राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 204 से 210: विभाजन की प्रक्रिया और ज़मीनों का न्यायसंगत आवंटन
Himanshu Mishra
17 Jun 2025 4:46 PM IST

राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 के अंतर्गत भूमि के विभाजन की प्रक्रिया को पूरी तरह व्यवस्थित किया गया है। जहां पहले की धाराओं में यह बताया गया कि विभाजन कैसे किया जा सकता है – आपसी सहमति, मध्यस्थता या कलेक्टर द्वारा – वहीं धाराएं 204 से 210 तक यह बताती हैं कि विभाजन की क्रियात्मक प्रक्रिया किस तरह से की जाएगी, कौन अधिकारी क्या करेगा, अमीन की भूमिका क्या होगी, किस तरह से दावे और आपत्तियां निपटाई जाएंगी, और कैसे ज़मीनों का संतुलित और न्यायसंगत बंटवारा किया जाएगा। यह लेख इन सभी धाराओं की सरल, स्पष्ट और उदाहरणों सहित व्याख्या करता है।
धारा 204 – अमीन की नियुक्ति और वारंट जारी करना (Appointment of Amins etc., and Issue of Warrant)
जब भूमि विभाजन की लागत का भुगतान कर दिया जाता है, तब कलेक्टर एक अमीन या अन्य उपयुक्त व्यक्ति को नियुक्त करता है, जो ज़मीन के विभाजन का कार्य करेगा। उसके नाम पर एक आयोग वारंट (Warrant of Commission) जारी किया जाता है। साथ ही, कलेक्टर उसे सभी आवश्यक दस्तावेज़ और जानकारी भी प्रदान करता है ताकि वह विभाजन कार्य को उचित ढंग से कर सके।
उदाहरण: यदि किसी गांव की 90 बीघा ज़मीन के तीन हिस्सेदारों ने विभाजन लागत की राशि जमा कर दी, तो कलेक्टर ने अमीन रामस्वरूप को नियुक्त किया और उसे आदेश पत्र, नक्शे और अन्य दस्तावेज़ सौंपे।
धारा 205 – वारंट का पालन करने की प्रक्रिया (Manner of Executing Warrant)
धारा 205 में विस्तार से बताया गया है कि अमीन को वारंट मिलने के बाद क्या-क्या करना होता है। सबसे पहले वह एक डायरी खोलता है, जिसमें वह वारंट प्राप्ति की तारीख, प्रतिदिन की गई कार्रवाई, दौरे की जानकारी, दावे-आपत्तियां, उनके समाधान की विधि और कारण लिखता है। इसके बाद वह व्यक्तिगत निरीक्षण का कार्यक्रम बनाता है और सभी पक्षकारों को पंद्रह दिन पहले सूचना देता है।
फिर वह प्रारंभिक आदेश के अनुसार एक अस्थायी नक्शा तैयार करता है, जिसमें यह दिखाया जाता है कि संपत्ति को किन हिस्सों में विभाजित किया जा रहा है। इसके बाद वह ज़मीन के स्थान पर पहुंचता है, वहां का निरीक्षण करता है, पक्षकारों की मौखिक या लिखित आपत्तियां सुनता है, और उन पर वहीं उपस्थित लंबरदारों के समक्ष निर्णय करता है।
वारंट के पालन के बाद वह अपनी रिपोर्ट के साथ कलेक्टर को वह डायरी, रंगीन नक्शा (जैसा धारा 200 में बताया गया है) और अन्य आवश्यक विवरण सौंपता है, जिसमें यह दर्शाया गया होता है कि किस व्यक्ति को कौन सा भाग दिया गया है और वह किस प्रकार की पट्टेदारी, पट्टा, लीज या अनुज्ञा (License) पर ज़मीन रखे हुए है।
उदाहरण: अमीन गोविंद सिंह को एक खेत का विभाजन करना था, जिसमें चार भाई थे। वह स्थल पर गया, उन्हें बुलाया, उनकी आपत्तियां सुनीं, नक्शा तैयार किया और एक रिपोर्ट तैयार करके यह बताया कि राम को 22 बीघा दक्षिण की तरफ, श्याम को 25 बीघा पूर्व में, आदि रूप से ज़मीन दी गई है। साथ ही यह भी दर्शाया गया कि कुछ ज़मीन लीज पर है, कुछ पर व्यक्तिगत खेती (खुदकश्त) हो रही है।
धारा 206 – उद्घोषणा जारी करना (Issue of Proclamation)
जब कलेक्टर को अमीन की रिपोर्ट प्राप्त होती है, तब वह एक उद्घोषणा (Proclamation) जारी करता है, जिसमें वह सभी संबंधित पक्षकारों को एक निश्चित तिथि पर उपस्थित होने के लिए कहता है। वह यह भी निर्देश देता है कि अगर किसी को कोई आपत्ति हो तो वह उसे 15 दिनों के भीतर दर्ज करे। उद्घोषणा की प्रति सभी पक्षकारों को भेजी जाती है ताकि वे समय पर अपनी आपत्ति प्रस्तुत कर सकें।
उदाहरण: अमीन द्वारा भेजी गई रिपोर्ट पर कलेक्टर ने 10 मार्च की तिथि तय की और सभी पक्षकारों को नोटिस भेजा कि वे उस दिन कलेक्ट्रेट में आकर अपनी बात रखें। यदि किसी को आपत्ति हो, तो वे 25 मार्च तक लिखित रूप में भेज सकते हैं।
धारा 207 – दावों और आपत्तियों का निस्तारण (Consideration of Proposals and Determination of Claims and Objections)
धारा 207 के अंतर्गत, कलेक्टर तय तारीख को सबसे पहले पक्षकारों द्वारा की गई आपत्तियों को एक-एक करके सुनता है। इसके बाद किसी अन्य व्यक्ति द्वारा दी गई आपत्तियों और दावों पर विचार करता है। फिर वह यह सुनिश्चित करता है कि जो प्रस्ताव अमीन द्वारा दिए गए हैं, वे प्रारंभिक आदेश के अनुरूप हैं और कानून के सभी प्रावधानों का पालन करते हैं।
उदाहरण: कलेक्टर ने देखा कि एक खेत को दो हिस्सों में बांटा गया था, लेकिन एक पक्षकार ने आपत्ति की कि उसमें एक कुआं है जिसे सभी भाई मिलकर बनवाए थे। कलेक्टर ने रिपोर्ट का अध्ययन किया और पाया कि उस कुएं को साझा उपयोग में बनाए रखने की व्यवस्था नहीं की गई थी। उसने फिर से सीमांकन करवाया और प्रस्ताव में सुधार किया।
धारा 208 – किरायेदार की जोत का विभाजन (Division of Tenant's Holding)
जहां तक संभव हो, कलेक्टर कोशिश करता है कि किरायेदारों की जोतों का विभाजन न हो। यदि ऐसा करना जरूरी हो जाए, तो जोत के किराए को विभाजित भागों के बीच उचित अनुपात में बांटा जाता है। इसका उद्देश्य यह है कि किसी एक हिस्सेदार पर अधिक किराया न पड़े और कोई असंतुलन न हो।
उदाहरण: यदि एक किरायेदार की 10 बीघा जोत में से 3 बीघा एक हिस्सेदार के हिस्से में आ गई और 7 बीघा दूसरे के पास, तो किराया भी उसी अनुपात में बांटा जाएगा – यानी 30% और 70% के अनुपात में।
धारा 209 – खुदकश्त भूमि का विभाजन (Division of Khudkasht)
खुदकश्त भूमि यानी वह भूमि जिसमें किसी व्यक्ति ने स्वयं खेती की हो और उस पर अधिकार जमा लिया हो, उसे अलग से बांटा जाएगा। यह बांट इस प्रकार किया जाएगा कि हर हिस्सेदार को उसकी हिस्सेदारी के अनुपात में मूल्य के अनुसार भूमि का भाग मिले।
उदाहरण: अगर किसी भाई ने 15 बीघा खुदकश्त भूमि पर वर्षों तक खेती की और बाकी भाइयों के हिस्से अलग थे, तो इस भूमि को मूल्य के आधार पर बांटा जाएगा, न कि केवल क्षेत्रफल के आधार पर।
धारा 210 – सामान्य रूप से साझा भूमि का विभाजन (Allotment of Lands held in Common)
साझा रूप से रखी गई ज़मीन, जो खुदकश्त नहीं है, को इस तरह बांटा जाएगा कि हर हिस्सेदार को उसकी हिस्सेदारी के मूल्य के अनुपात में भूमि मिले। यदि कोई ज़मीन अलग-अलग हिस्सेदारों के कब्जे में है, तो वह कोशिश की जाएगी कि वह उसी हिस्सेदार को दी जाए जिसके पास वह पहले से है, ताकि पुनः बंटवारे की आवश्यकता न हो।
उदाहरण: यदि एक नहर के किनारे की 6 बीघा ज़मीन सभी भाइयों की साझा थी, तो उसे तीन बराबर हिस्सों में इस तरह बांटा जाएगा कि सभी को पानी की पहुंच समान रूप से मिले और भूमि की उपजाऊता भी बराबर हो।
राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धाराएं 204 से 210 तक भूमि विभाजन की पूरी प्रशासनिक प्रक्रिया को दर्शाती हैं। इसमें अमीन की नियुक्ति से लेकर, रिपोर्ट तैयार करने, उद्घोषणा जारी करने, दावे-आपत्तियों के समाधान, खुदकश्त और किरायेदार की जोतों के विभाजन और साझा ज़मीनों के न्यायपूर्ण आवंटन की विस्तृत प्रक्रिया है।
यह प्रणाली भूमि विवादों को न्यायसंगत, पारदर्शी और प्रभावी ढंग से सुलझाने के लिए एक सशक्त ढांचा प्रदान करती है। यह अधिनियम ग्रामीण भारत में भूमि स्वामित्व की स्पष्टता और सामाजिक संतुलन बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।