भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 की धारा 19-24: भागीदारों का तीसरे पक्ष से संबंध

Himanshu Mishra

1 July 2025 11:31 AM

  • भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 की धारा 19-24: भागीदारों का तीसरे पक्ष से संबंध

    भागीदार फर्म का एजेंट होता है (Partner to be Agent of the Firm)

    भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 (Indian Partnership Act, 1932) की धारा 18 (Section 18) यह स्पष्ट करती है कि इस अधिनियम के प्रावधानों के अधीन रहते हुए, एक भागीदार फर्म के व्यवसाय के उद्देश्यों के लिए फर्म का एजेंट (Agent) होता है।

    इसका मतलब है कि एक भागीदार के कार्य फर्म को वैसे ही बाध्य करते हैं जैसे एक प्रिंसिपल (Principal) के एजेंट के कार्य प्रिंसिपल को बाध्य करते हैं। यह भागीदारी की सबसे महत्वपूर्ण विशेषताओं में से एक है, जिसे 'आपसी एजेंसी' (Mutual Agency) का सिद्धांत कहा जाता है।

    भागीदार का निहित प्राधिकार (Implied Authority of Partner)

    धारा 19 (Section 19) भागीदार के निहित प्राधिकार (Implied Authority) की व्याख्या करती है:

    1. फर्म को बाध्य करने वाले कार्य (Acts Binding the Firm): धारा 22 (Section 22) के प्रावधानों के अधीन रहते हुए, एक भागीदार का ऐसा कार्य जो फर्म द्वारा किए जाने वाले व्यवसाय को सामान्य तरीके (Usual Way) से चलाने के लिए किया जाता है, फर्म को बाध्य करता है।

    इस धारा द्वारा फर्म को बाध्य करने का भागीदार का अधिकार ही उसका "निहित प्राधिकार" (Implied Authority) कहलाता है। इसका मतलब है कि भागीदार द्वारा व्यवसाय के सामान्य पाठ्यक्रम में किए गए कार्य फर्म के लिए बाध्यकारी होते हैं, भले ही इसके लिए कोई विशेष अनुमति न दी गई हो।

    2. निहित प्राधिकार की सीमाएं (Limitations on Implied Authority): व्यापार के किसी विपरीत उपयोग या रीति (Usage or Custom of Trade) के अभाव में, एक भागीदार का निहित प्राधिकार उसे निम्न कार्य करने का अधिकार नहीं देता है:

    • फर्म के व्यवसाय से संबंधित किसी विवाद को मध्यस्थता (Arbitration) के लिए प्रस्तुत करना।

    • फर्म की ओर से अपने ही नाम पर बैंक खाता (Banking Account) खोलना।

    • फर्म के किसी दावे या दावे के हिस्से से समझौता करना (Compromise) या उसे छोड़ देना (Relinquish)।

    • फर्म की ओर से दायर किए गए किसी मुकदमे या कार्यवाही (Suit or Proceeding) को वापस लेना (Withdraw)।

    • फर्म के खिलाफ किसी मुकदमे या कार्यवाही में किसी देनदारी (Liability) को स्वीकार करना।

    • फर्म की ओर से अचल संपत्ति (Immovable Property) प्राप्त करना।

    • फर्म से संबंधित अचल संपत्ति का हस्तांतरण (Transfer) करना।

    • फर्म की ओर से भागीदारी (Partnership) में प्रवेश करना।

    इन सीमाओं का उद्देश्य फर्म और अन्य भागीदारों को अनधिकृत या जोखिम भरे कार्यों से बचाना है जो एक भागीदार अपने निहित प्राधिकार के तहत कर सकता है।

    भागीदार के निहित प्राधिकार का विस्तार और प्रतिबंध (Extension and Restriction of Partner's Implied Authority)

    धारा 20 (Section 20) यह अनुमति देती है कि एक फर्म में भागीदार, अपने आपसी अनुबंध (Contract) द्वारा, किसी भी भागीदार के निहित प्राधिकार का विस्तार (Extend) या प्रतिबंध (Restrict) कर सकते हैं।

    हालांकि, ऐसे किसी भी प्रतिबंध के बावजूद, एक भागीदार द्वारा फर्म की ओर से किया गया कोई भी कार्य जो उसके निहित प्राधिकार के दायरे में आता है, फर्म को बाध्य करता है।

    ऐसा तभी नहीं होगा जब जिस व्यक्ति के साथ वह व्यवहार कर रहा है, उसे प्रतिबंध की जानकारी हो (Knows of the Restriction) या वह यह न जानता हो या विश्वास न करता हो कि वह भागीदार एक भागीदार है (Does Not Know or Believe That Partner to be a Partner)। यह प्रावधान तीसरे पक्ष के हितों की रक्षा करता है जो सद्भावना (Good Faith) में फर्म के भागीदार के साथ लेनदेन करते हैं।

    आपातकाल में भागीदार का प्राधिकार (Partner's Authority in an Emergency)

    धारा 21 (Section 21) एक भागीदार के आपातकालीन प्राधिकार (Authority in an Emergency) को संबोधित करती है। एक भागीदार को आपातकाल में, फर्म को नुकसान से बचाने के उद्देश्य से ऐसे सभी कार्य करने का अधिकार होता है, जैसा कि एक सामान्य विवेक का व्यक्ति (Person of Ordinary Prudence) अपनी स्थिति में, समान परिस्थितियों में कार्य करते हुए करेगा। ऐसे कार्य फर्म को बाध्य करते हैं। यह सुनिश्चित करता है कि आपातकालीन स्थितियों में, एक भागीदार फर्म के सर्वोत्तम हित में त्वरित और निर्णायक कार्रवाई कर सकता है।

    फर्म को बाध्य करने के लिए कार्य करने का तरीका (Mode of Doing Act to Bind Firm)

    धारा 22 (Section 22) यह निर्धारित करती है कि फर्म को बाध्य करने के लिए कोई कार्य कैसे किया जाना चाहिए। फर्म को बाध्य करने के लिए, किसी भागीदार या अन्य व्यक्ति द्वारा फर्म की ओर से किया गया या निष्पादित किया गया कोई कार्य या साधन (Act or Instrument) फर्म के नाम पर (In the Firm Name) किया या निष्पादित किया जाएगा, या किसी अन्य ऐसे तरीके से किया जाएगा जिससे फर्म को बाध्य करने का इरादा (Intention) व्यक्त या निहित होता हो। यह स्पष्टता सुनिश्चित करता है कि बाहरी पक्ष यह जान सकें कि वे एक फर्म के साथ लेनदेन कर रहे हैं, न कि केवल एक व्यक्तिगत भागीदार के साथ।

    भागीदार द्वारा स्वीकृति का प्रभाव (Effect of Admissions by a Partner)

    धारा 23 (Section 23) के अनुसार, फर्म के मामलों (Affairs of the Firm) से संबंधित किसी भागीदार द्वारा की गई कोई भी स्वीकृति (Admission) या प्रतिनिधित्व (Representation) फर्म के खिलाफ सबूत (Evidence Against the Firm) होता है, यदि यह व्यवसाय के सामान्य पाठ्यक्रम (Ordinary Course of Business) में किया गया हो। यह दर्शाता है कि एक भागीदार की ओर से की गई उचित और व्यवसाय से संबंधित टिप्पणियां या बयान फर्म पर कानूनी प्रभाव डाल सकते हैं।

    कार्यवाहक भागीदार को नोटिस का प्रभाव (Effect of Notice to Acting Partner)

    धारा 24 (Section 24) बताती है कि फर्म के व्यवसाय में आदतन (Habitually) कार्य करने वाले भागीदार को फर्म के मामलों से संबंधित किसी भी मामले की सूचना (Notice) फर्म को दी गई सूचना के रूप में कार्य करती है।

    हालाँकि, इसका एक महत्वपूर्ण अपवाद (Exception) है: यदि वह भागीदार फर्म पर धोखाधड़ी (Fraud) करता है या उसकी सहमति से धोखाधड़ी की जाती है, तो उस भागीदार को दी गई सूचना फर्म को दी गई सूचना नहीं मानी जाएगी। यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि एक सक्रिय भागीदार को दी गई जानकारी फर्म के लिए प्रभावी मानी जाए, लेकिन धोखाधड़ी के मामलों में फर्म के हितों की रक्षा करता है।

    Next Story