भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 18-19 : CCI के कर्तव्य और जांच की शक्तियां
Himanshu Mishra
6 Aug 2025 5:47 PM IST

हमने पिछले अध्यायों में भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (Competition Commission of India - CCI) के गठन, संरचना, और कर्मचारियों के बारे में सीखा। अब, भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम का अध्याय IV (Chapter IV) CCI के कर्तव्यों, शक्तियों और कार्यों पर ध्यान केंद्रित करता है। यह अध्याय बताता है कि CCI को क्या करना चाहिए और Competition (प्रतिस्पर्धा) से जुड़े मामलों की जांच कैसे करनी चाहिए।
धारा 18: आयोग के कर्तव्य (Duties of the Commission)
धारा 18 CCI के मुख्य कर्तव्यों को परिभाषित करती है। इस अधिनियम के प्रावधानों के अधीन रहते हुए, CCI का कर्तव्य है कि वह:
• Competition पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली प्रथाओं को खत्म करे।
• Competition को बढ़ावा दे और उसे बनाए रखे।
• उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करे।
• भारत के बाजारों में अन्य प्रतिभागियों द्वारा किए जाने वाले व्यापार की स्वतंत्रता सुनिश्चित करे।
ये चार कर्तव्य CCI के पूरे मिशन का सार प्रस्तुत करते हैं। यह सुनिश्चित करना है कि भारतीय बाजार निष्पक्ष, Competitive और उपभोक्ता-अनुकूल हों।
इस धारा में एक प्रावधान (proviso) भी है जो CCI को केंद्र सरकार की पूर्व-अनुमति से किसी भी विदेशी देश की एजेंसी के साथ समझौता या व्यवस्था करने की अनुमति देता है। यह CCI को अंतर्राष्ट्रीय Competition नियमों और प्रथाओं के साथ तालमेल बिठाने और विदेशी Competition अधिकारियों के साथ सहयोग करने में मदद करता है।
धारा 19: कुछ समझौतों और प्रमुख स्थिति की जांच (Inquiry into Certain Agreements and Dominant Position)
धारा 19(1) बताती है कि CCI किसी भी कथित उल्लंघन की जांच कैसे शुरू कर सकता है। CCI या तो अपने आप से (on its own motion) या फिर किसी शिकायत के आधार पर जांच शुरू कर सकता है।
शिकायत इन स्रोतों से आ सकती है:
• किसी व्यक्ति, उपभोक्ता, उनके संघ या व्यापार संघ से सूचना प्राप्त होने पर। इस सूचना के साथ एक निर्धारित शुल्क भी जमा करना होता है।
• केंद्र सरकार या राज्य सरकार या किसी statutory authority (वैधानिक प्राधिकरण) द्वारा भेजे गए एक रेफरेंस (reference) के आधार पर।
धारा 19(2) स्पष्ट करती है कि आयोग की शक्तियों में धारा 19(3) से (7) में निर्दिष्ट शक्तियां और कार्य भी शामिल हैं।
धारा 19(3): Competition पर प्रतिकूल प्रभाव का निर्धारण (Determining Appreciable Adverse Effect on Competition)
जब CCI धारा 3 के तहत किसी समझौते की जांच कर रहा होता है, तो वह यह निर्धारित करने के लिए कि क्या उस समझौते का Competition पर Appreciable Adverse Effect (पर्याप्त प्रतिकूल प्रभाव) पड़ा है, कुछ कारकों पर विचार करता है।
इनमें शामिल हैं:
• बाजार में नए प्रवेशकों के लिए बाधाएं पैदा करना।
• मौजूदा Competitors (प्रतिस्पर्धियों) को बाजार से बाहर निकालना।
• बाजार में प्रवेश को रोककर Competition को खत्म करना।
• उपभोक्ताओं को लाभ मिलना।
• वस्तुओं के उत्पादन या वितरण में सुधार।
• वस्तुओं के उत्पादन या वितरण के माध्यम से तकनीकी, वैज्ञानिक और आर्थिक विकास को बढ़ावा देना।
यह खंड CCI को केवल समझौते के अस्तित्व पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय उसके वास्तविक या संभावित प्रभाव का विश्लेषण करने की अनुमति देता है।
धारा 19(4): प्रमुख स्थिति का निर्धारण (Determining Dominant Position)
जब CCI धारा 4 के तहत यह जांच कर रहा होता है कि कोई उद्यम प्रमुख स्थिति में है या नहीं, तो वह कई कारकों पर विचार करता है।
इनमें से कुछ प्रमुख कारक हैं:
• उद्यम की बाजार हिस्सेदारी (market share)।
• उद्यम का आकार और संसाधन।
• Competitors का आकार और महत्व।
• Competitors की तुलना में उद्यम की आर्थिक शक्ति।
• उद्यमों का ऊर्ध्वाधर एकीकरण (vertical integration)।
• उद्यम पर उपभोक्ताओं की निर्भरता।
• Competition में प्रवेश की बाधाएं (entry barriers)।
• सामाजिक दायित्व और सामाजिक लागत।
• बाजार की संरचना और आकार।
• कोई भी अन्य कारक जिसे CCI जांच के लिए प्रासंगिक मानता है।
इन कारकों पर विचार करके, CCI यह निर्धारित करता है कि क्या कोई कंपनी वास्तव में बाजार में एक प्रभावशाली शक्ति रखती है।
धारा 19(5), (6) और (7): प्रासंगिक बाजार का निर्धारण (Determining the Relevant Market)
CCI के लिए "प्रमुख स्थिति" या "Competition पर प्रतिकूल प्रभाव" का आकलन करने के लिए सबसे पहले "प्रासंगिक बाजार" (relevant market) को परिभाषित करना महत्वपूर्ण है। धारा 19(5) में कहा गया है कि "प्रासंगिक बाजार" का निर्धारण करते समय CCI को "प्रासंगिक भौगोलिक बाजार" (relevant geographic market) और "प्रासंगिक उत्पाद बाजार" (relevant product market) दोनों पर विचार करना होगा।
धारा 19(6) के अनुसार, "प्रासंगिक भौगोलिक बाजार" का निर्धारण करते समय CCI इन कारकों पर ध्यान देता है:
• नियामक व्यापार बाधाएं (regulatory trade barriers)।
• परिवहन लागत (transport costs)।
• उपभोक्ता प्राथमिकताएं (consumer preferences)।
• सुरक्षित या नियमित आपूर्ति की आवश्यकता।
धारा 19(7) के अनुसार, "प्रासंगिक उत्पाद बाजार" का निर्धारण करते समय CCI इन कारकों पर ध्यान देता है:
• उत्पादों की भौतिक विशेषताएं या अंतिम उपयोग (physical characteristics or end-use)।
• उत्पादों या सेवाओं की कीमत (price of goods or services)।
• उपभोक्ता प्राथमिकताएं।
• विशेषज्ञ निर्माताओं का अस्तित्व (existence of specialised producers)।
यह विस्तृत विश्लेषण यह सुनिश्चित करता है कि CCI किसी भी Competition संबंधी मामले को एक संकीर्ण दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि बाजार की वास्तविकताओं के आधार पर समझे।
भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम का अध्याय IV CCI की भूमिका को एक नियामक निकाय (regulatory body) के रूप में मजबूती से स्थापित करता है।
धारा 18 इसके कर्तव्यों को निर्धारित करती है, जो भारत के बाजारों में निष्पक्षता और Competition को बढ़ावा देने पर केंद्रित हैं। धारा 19 CCI को जांच शुरू करने की शक्ति देती है और उसे यह भी बताती है कि Competition पर प्रतिकूल प्रभाव या प्रमुख स्थिति का निर्धारण करते समय किन विस्तृत कारकों पर विचार करना है। यह विस्तृत ढांचा CCI को Competition-विरोधी व्यवहारों को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिए आवश्यक उपकरण और दिशा-निर्देश प्रदान करता है।

