राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 174 से 177-A: बंदोबस्त प्रविष्टियों की विधिक और सिंचित भूमि पर किराया वृद्धि

Himanshu Mishra

11 Jun 2025 5:59 PM IST

  • राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 174 से 177-A: बंदोबस्त प्रविष्टियों की विधिक और सिंचित भूमि पर किराया वृद्धि

    राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 ग्रामीण भूमि प्रशासन और बंदोबस्त व्यवस्था को नियंत्रित करने वाला प्रमुख कानून है। इस अधिनियम की धाराएं 174 से लेकर 177-A तक बंदोबस्त प्रविष्टियों की कानूनी मान्यता, बंदोबस्त की अवधि, उसके समय से पहले समाप्त होने की परिस्थितियां, अस्थायी राहत और सिंचाई सुविधा मिलने पर किराया वृद्धि से संबंधित हैं। इन धाराओं का अध्ययन यह स्पष्ट करता है कि राज्य सरकार भूमि उपयोग, किराया निर्धारण, और किसानों के अधिकारों की सुरक्षा में कैसे संतुलन बनाती है।

    धारा 174 — बंदोबस्त प्रविष्टियों की विधिक मान्यता (Presumption of settlement entries)

    धारा 173 के अंतर्गत जब वाजिब-उल-अर्ज या दस्तूर गणवाई तैयार की जाती है, तो उसमें दर्ज की गई सभी प्रविष्टियों को तब तक सही माना जाएगा जब तक कि कोई व्यक्ति इसके विपरीत प्रमाण न दे दे। इसका अर्थ यह है कि गांव की परंपराएं, कर, रास्ते, सिंचाई के अधिकार आदि जो दस्तूर गणवाई में दर्ज हैं, उन्हें अदालतों और प्रशासनिक कार्यवाही में मान्य माना जाएगा।

    उदाहरण: अगर दस्तूर गणवाई में दर्ज है कि गांव का प्रत्येक निवासी तालाब से पानी लेने का अधिकार रखता है, तो इसे सही माना जाएगा, जब तक कोई सबूत न मिले कि ऐसा अधिकार नहीं था।

    यह धारा ग्रामीण परंपराओं को कानूनी मान्यता देती है और प्रशासनिक विवादों को रोकने में सहायक होती है।

    धारा 175 — बंदोबस्त की सामान्य अवधि (Term of Settlement)

    इस धारा के अनुसार, हर बंदोबस्त की सामान्य अवधि 20 वर्ष निर्धारित की गई है। हालांकि, राज्य सरकार जनसंख्या घनत्व, खेती के विस्तार और किराया व्यवस्था की पूर्णता को देखते हुए इस अवधि को बढ़ा सकती है। इसके अतिरिक्त, कुछ विशेष कारणों से राज्य सरकार इस अवधि को घटा भी सकती है।

    विशेष कारणों के उदाहरण: भूमि की गुणवत्ता में भारी गिरावट, पैदावार के आंकड़ों का छुपाया जाना, जानबूझकर जमीन को खाली छोड़ना आदि।

    पहली बार का बंदोबस्त हो या किसी अस्थिर या बदलते भू-भाग (जैसे नदी किनारे की भूमि) का बंदोबस्त हो, वहां पर अल्पकालिक बंदोबस्त की अनुमति है।

    यह प्रावधान प्रशासन को लचीलापन देता है कि वह भौगोलिक और सामाजिक स्थितियों के आधार पर उचित अवधि तय कर सके।

    धारा 175-A — बंदोबस्त अवधि की प्रारंभ तिथि (Commencement of term of settlement)

    बंदोबस्त की अवधि कब से मानी जाएगी, यह राज्य सरकार राजपत्र (Official Gazette) में अधिसूचना जारी करके तय करेगी। इससे यह सुनिश्चित होता है कि बंदोबस्त की अवधि की शुरुआत एक स्पष्ट तिथि से हो और सभी पक्षकार उस तिथि से बंधे रहें।

    उदाहरण: यदि कोई बंदोबस्त 15 जून 2025 से लागू घोषित किया गया है, तो उसी तिथि से किराया निर्धारण, करों की गणना आदि लागू होंगे।

    धारा 176 — बंदोबस्त की पूर्व समाप्ति (Premature termination of settlement)

    यदि राज्य सरकार यह समझे कि बंदोबस्त अवधि समाप्त होने से पहले ही उसे समाप्त करना आवश्यक है, तो वह ऐसा कर सकती है।

    इसके लिए कुछ परिस्थितियां दी गई हैं, जैसे:

    माल-मूल्यों (Prices) में भारी गिरावट

    किसी क्षेत्र और उसके पड़ोसी क्षेत्र के किराया दरों में भारी अंतर

    किराया दरों का अनुचित रूप से अधिक होना

    या कोई अन्य पर्याप्त कारण

    ऐसी स्थिति में सरकार एक अधिसूचना के माध्यम से अपनी मंशा घोषित करेगी और फिर उसी या शीघ्र बाद की अधिसूचना से बंदोबस्त की अवधि समाप्त करके उस क्षेत्र को पुनः बंदोबस्त में ले आएगी।

    इस धारा के अंतर्गत क्षेत्र को पुनः बंदोबस्त में लाने पर अधिनियम के अन्य सभी प्रावधान लागू हो जाते हैं, जैसे कि सर्वेक्षण, आंकलन, किराया निर्धारण, आपत्तियों की सुनवाई आदि।

    उदाहरण: यदि किसी क्षेत्र में सिंचाई सुविधा मिलने से उत्पादन अत्यधिक बढ़ गया और पड़ोसी क्षेत्रों में किराया दोगुना हो चुका है, तब सरकार यह कह सकती है कि पुराने बंदोबस्त की दरें अब असंगत हैं और पुनः बंदोबस्त आवश्यक है।

    धारा 176-A — बंदोबस्त कार्यवाही के दौरान अंतरिम राहत (Interim relief during settlement operations)

    जब किसी जिले या क्षेत्र को पुनः बंदोबस्त के अधीन लाया जाता है (धारा 142(1) या धारा 176(2) के तहत), तो राज्य सरकार वहां के कृषकों को अंतरिम राहत दे सकती है। यह राहत किन शर्तों पर दी जाएगी, इसका निर्धारण राज्य सरकार स्वयं करेगी।

    इसके साथ-साथ सरकार यह भी तय कर सकती है कि ऐसे क्षेत्रों में आर्थिक सर्वेक्षण करना आवश्यक नहीं होगा। यह विशेष प्रावधान उन स्थितियों के लिए है जहाँ समय और संसाधनों की बचत करनी हो या कोई आपात स्थिति हो।

    उदाहरण: यदि किसी जिले में अचानक मौसम के कारण खेती प्रभावित हुई है और सरकार ने पुनः बंदोबस्त घोषित किया है, तो वह किसानों को अस्थायी रूप से कम किराया देने की अनुमति दे सकती है।

    धारा 177 — बंदोबस्त समाप्ति के बाद ज़मीन रखने की स्थिति (Tenure of land under expired settlement until resettlement)

    यदि किसी बंदोबस्त की अवधि समाप्त हो गई हो लेकिन नया बंदोबस्त अभी शुरू नहीं हुआ हो, तो जो व्यक्ति ज़मीन पर काबिज हैं, वे पूर्व बंदोबस्त की शर्तों पर ही ज़मीन रखते रहेंगे, जब तक कि नया बंदोबस्त लागू नहीं हो जाता।

    हालांकि, यह स्थिति धारा 176-A(1) के प्रावधानों के अधीन होगी। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि बंदोबस्त की समाप्ति के बाद भी कानूनी असमंजस की स्थिति न बने और कृषकों को अधिकार यथावत् मिलते रहें।

    धारा 177-A — सिंचित भूमि पर किराया वृद्धि (Increase in assessment of irrigated land assessed at unirrigated rates)

    यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण और व्यावहारिक धारा है। इसके अनुसार यदि कोई ज़मीन जो पहले असिंचित थी, अब राज्य सरकार की सिंचाई परियोजना से सिंचित हो रही है और उस पर अभी भी असिंचित दर से किराया लिया जा रहा है, तो किराया प्रति बीघा ₹1.50 बढ़ा दिया जाएगा।

    यदि वह भूमि किसी सिंचाई परियोजना के अधीन आती है जहाँ 'नहरी दरें' (canal rates) पहले से निर्धारित हैं, तो उस परियोजना में निर्धारित न्यूनतम 'नहरी दर' लागू की जाएगी न कि ₹1.50 की वृद्धि।

    'बीघा' शब्द की व्याख्या भी दी गई है: 1 बीघा = 5/8 एकड़।

    उदाहरण: यदि एक कृषक की 10 बीघा ज़मीन पहले असिंचित थी और अब नहर से सिंचाई हो रही है, तो जब तक नया बंदोबस्त नहीं होता, उसे हर वर्ष ₹15 अतिरिक्त (₹1.50 x 10 बीघा) देना होगा।

    इस धारा में यह भी प्रावधान है कि कृषक इस वृद्धि को तीस दिनों के भीतर लिखित में अस्वीकार कर सकता है। यदि वह अस्वीकार करता है तो उसपर धारा 169 लागू होगी, यानी उसे ज़मीन छोड़नी होगी।

    यह धारा धारा 166, 167, 172 आदि के प्रावधानों से ऊपर मानी जाएगी। अर्थात यदि कोई आदेश या दस्तावेज़ इसके विपरीत कुछ कहता हो, तब भी यह धारा प्रभावी रहेगी।

    धारा 174 से 177-A तक के प्रावधान यह सुनिश्चित करते हैं कि राजस्थान की भूमि व्यवस्था समय के साथ व्यावहारिक, पारदर्शी और न्यायसंगत बनी रहे। ये धाराएं न केवल प्रशासन को परिस्थितियों के अनुरूप लचीलापन देती हैं, बल्कि कृषकों को भी न्यायपूर्ण अवसर प्रदान करती हैं।

    इनमें दस्तूर गणवाई को कानूनी मान्यता देना, बंदोबस्त की अवधि को लचीला रखना, पुनः बंदोबस्त की आवश्यकता होने पर तुरंत कार्यवाही करना, और सिंचाई के कारण उत्पादन वृद्धि होने पर किराया तदनुसार समायोजित करना — ये सभी पहलू राजस्थान के ग्रामीण कृषि समाज को सुगठित बनाए रखने की दिशा में अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

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