राजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 153 से 156 : किराया दरों में संशोधन

Himanshu Mishra

6 Jun 2025 5:14 PM IST

  • राजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 153 से 156 : किराया दरों में संशोधन

    धारा 153: किराया दरों में संशोधन (Modification of Rent-Rates)

    सेटलमेंट प्रक्रिया के अंतर्गत जब किसी गांव के लिए किराया दरें तय कर दी जाती हैं, तो सेटलमेंट अधिकारी को यह भी दर्ज करना होता है कि क्या वे दरें उस गांव में बिना किसी संशोधन (Modification) के लागू की जा सकती हैं या उनमें किसी प्रकार का परिवर्तन आवश्यक है। यह परिवर्तन पूरे गांव के लिए हो सकता है या केवल किसी विशेष मृदा वर्ग (Soil Class) के लिए।

    इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना होता है कि अगर किसी गांव की परिस्थितियाँ अन्य गांवों से अलग हैं—जैसे कि वहाँ की मिट्टी अधिक उपजाऊ है या सिंचाई की सुविधाएँ बहुत बेहतर हैं—तो वहाँ की किराया दरें उसी अनुरूप हों। उदाहरण के तौर पर, यदि गांव 'क' में सामान्यतः काली मिट्टी है लेकिन उसके दक्षिणी हिस्से में कम उपजाऊ बलुई मिट्टी है, तो उस विशेष हिस्से के लिए किराया दर को अलग किया जा सकता है।

    धारा 154: तय किए जाने वाले एवं दर्ज किए जाने वाले विषय (Matters to be Determined and Recorded)

    सेटलमेंट अधिकारी को राज्य सरकार द्वारा बनाए गए नियमों के अधीन रहकर कुछ महत्वपूर्ण बातें तय करनी होती हैं और उन्हें रिकॉर्ड करना होता है। ये बातें मुख्यतः किराया भुगतान से संबंधित होती हैं।

    सबसे पहले यह तय किया जाता है कि किराया एक बार में देना होगा या किस्तों में। यदि किस्तों में देना है, तो यह निर्धारित किया जाता है कि कुल कितनी किस्तें होंगी और प्रत्येक किस्त में कितनी राशि देनी होगी। साथ ही, हर किस्त की भुगतान तिथि भी दर्ज की जाती है।

    इसके अतिरिक्त, राज्य सरकार के नियमों के अनुसार, अधिकारी को अन्य कोई भी आवश्यक विषय दर्ज करने पड़ सकते हैं। उदाहरण के लिए, अगर किसी विशेष इलाके में किसानों की आमदनी अनियमित है, तो यह तय किया जा सकता है कि वहाँ किराया दो किस्तों में लिया जाए—एक खरीफ की फसल के बाद और दूसरी रबी के बाद। यह किसानों के लिए व्यावहारिक व्यवस्था होती है।

    धारा 155: प्रस्तावों का प्रकाशन और प्रस्तुति (Publication and Submission of Proposals)

    धारा 152 और 153 के अनुसार तय की गई किराया दरों और संबंधित प्रावधानों के प्रस्तावों को सार्वजनिक करना और आगे की प्रक्रिया के लिए प्रस्तुत करना अनिवार्य होता है।

    सबसे पहले, सेटलमेंट अधिकारी अपने द्वारा तैयार किए गए प्रस्तावों को प्रकाशित करता है। यह प्रकाशन निर्धारित तरीके से किया जाता है और इसमें उस आधार का उल्लेख होता है, जिस पर किराया दरें तय की गई हैं। यह पारदर्शिता सुनिश्चित करता है।

    इसके बाद, एक सार्वजनिक सूचना दी जाती है, जिसमें बताया जाता है कि कोई भी व्यक्ति जो इन प्रस्तावों से असहमत है, वह तय समयसीमा के भीतर अपनी आपत्ति प्रस्तुत कर सकता है। यदि कोई आपत्ति प्राप्त होती है, तो अधिकारी उसका विचार करता है और आवश्यक हो तो अपने प्रस्तावों में संशोधन करता है।

    अंत में, सेटलमेंट अधिकारी अपने संशोधित प्रस्तावों को, प्राप्त आपत्तियों और उन पर दिए गए आदेशों के साथ सेटलमेंट कमिश्नर को भेज देता है। उदाहरण के लिए, यदि गांव 'ख' के किसानों ने यह आपत्ति जताई कि मिट्टी की गुणवत्ता के आकलन में त्रुटि हुई है, और अधिकारी जांच के बाद पाता है कि आपत्ति उचित है, तो वह किराया दर में संशोधन कर सकता है।

    धारा 156: प्रस्तावों की स्वीकृति (Sanction of Proposals)

    सेटलमेंट कमिश्नर को धारा 155 के तहत प्राप्त प्रस्तावों की जांच करनी होती है। इसके लिए वह आवश्यक समझे तो कुछ मामलों की और गहराई से जांच कर सकता है। यह सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है कि प्रस्ताव न्यायसंगत और कानून के अनुरूप हैं।

    सेटलमेंट कमिश्नर इसके बाद अपने विचारों और सिफारिशों के साथ इन प्रस्तावों को बोर्ड (Board) के पास भेज देता है। बोर्ड इन प्रस्तावों की समीक्षा करता है और यदि उसे कोई बिंदु अस्पष्ट या अधूरा लगे, तो वह और जांच के निर्देश दे सकता है।

    जब सभी आवश्यक जांच पूरी हो जाती है, तब बोर्ड इन प्रस्तावों को राज्य सरकार की स्वीकृति के लिए भेजता है। यह प्रस्ताव या तो बिना किसी परिवर्तन के या प्रस्तावित आकलन समूहों, मृदा वर्गों और किराया दरों में संशोधन के साथ भेजे जा सकते हैं, लेकिन संशोधन के लिए बोर्ड को अपने कारणों को लिखित रूप में दर्ज करना होता है।

    राज्य सरकार को अंतिम निर्णय का अधिकार होता है। वह निम्नलिखित विकल्प चुन सकती है—

    पहला, वह प्रस्तावों को बोर्ड की सिफारिश के अनुसार स्वीकृति दे सकती है।

    दूसरा, वह यह निर्देश दे सकती है कि कुछ बिंदुओं की और जांच की जाए।

    तीसरा, वह प्रस्तावों को पुनर्विचार के लिए बोर्ड को लौटा सकती है।

    चौथा, वह अपने विवेक से कुछ संशोधन कर प्रस्तावों को स्वीकृत कर सकती है।

    एक बार जब राज्य सरकार प्रस्तावों को स्वीकृति दे देती है, तो उन पर आधारित किराया दरें ही अधिकृत (Sanctioned) दरें मानी जाती हैं।

    उदाहरण के लिए यदि राज्य सरकार पाती है कि एक क्षेत्र में सेटलमेंट अधिकारी द्वारा निर्धारित किराया दर उस क्षेत्र की उपज क्षमता से अधिक है, तो वह उस दर को घटाकर संशोधित रूप में स्वीकृति दे सकती है।

    धारा 153 से 156 तक राजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम, 1956 में सेटलमेंट प्रक्रिया के अंतिम चरणों का वर्णन किया गया है। यह चरण यह सुनिश्चित करते हैं कि तय की गई किराया दरें व्यवहारिक, न्यायसंगत और पारदर्शी हों।

    धारा 153 के अनुसार, सेटलमेंट अधिकारी को यह देखना होता है कि दरें पूरे गांव पर समान रूप से लागू होंगी या कुछ विशेष हिस्सों में संशोधन की आवश्यकता है। धारा 154 में किराया वसूली के तरीकों और समय-सीमा को तय कर रिकॉर्ड करना आवश्यक होता है।

    धारा 155 में इन प्रस्तावों के प्रकाशन और आपत्तियों के निपटारे की प्रक्रिया दी गई है, जिससे कि कोई भी व्यक्ति अपने अधिकारों की रक्षा कर सके। अंततः, धारा 156 में इस पूरे प्रस्ताव पर प्रशासनिक स्वीकृति की प्रक्रिया दी गई है, जिसमें सेटलमेंट कमिश्नर, बोर्ड और राज्य सरकार की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।

    यह प्रक्रिया यह सुनिश्चित करती है कि किसी भी क्षेत्र में भूमि से संबंधित किराया या कर तय करते समय न केवल भूमि की उपज क्षमता, बल्कि स्थानीय परिस्थितियाँ, किसानों की आर्थिक स्थिति और सार्वजनिक हित का भी पूरा ध्यान रखा जाए। यह एक न्यायपूर्ण और प्रभावी भूमि प्रशासन प्रणाली की नींव है।

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