राजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 147 से 152 : किराया दरों का निर्धारण

Himanshu Mishra

5 Jun 2025 8:42 PM IST

  • राजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 147 से 152 : किराया दरों का निर्धारण

    धारा 147: नियम बनाने की शक्ति

    धारा 147 में राज्य सरकार को यह अधिकार दिया गया है कि वह अधिसूचना (Notification) द्वारा सरकारी राजपत्र (Official Gazette) में नियम बना सकती है, जो सेटलमेंट अधिकारियों की कार्यप्रणाली (Procedure) को नियंत्रित करेंगे। इसका उद्देश्य यह है कि सेटलमेंट प्रक्रिया एक समान और पारदर्शी तरीके से चले तथा सभी अधिकारी स्पष्ट दिशा-निर्देशों का पालन करें।

    जैसे मान लीजिए कि राज्य सरकार ने यह नियम बना दिया कि किसी भी आर्थिक सर्वेक्षण के बाद 30 दिनों के भीतर आकलन समूह (Assessment Groups) तैयार किए जाने चाहिए। ऐसे नियमों के जरिए सेटलमेंट अधिकारियों के कार्य को समयबद्ध और संगठित बनाया जा सकता है।

    धारा 148: आर्थिक सर्वेक्षण (Economic Survey)

    धारा 148 के अनुसार, जब कोई जिला या स्थानीय क्षेत्र सेटलमेंट प्रक्रिया के अधीन लाया जाता है, तो सेटलमेंट अधिकारी को उस क्षेत्र में निवास करने वाले किरायेदारों (Tenants) की आर्थिक स्थिति का सर्वेक्षण करना अनिवार्य होता है। इस सर्वेक्षण में विशेष रूप से कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी होता है।

    सबसे पहले देखा जाता है कि क्षेत्र में सिंचाई की क्या स्थिति है और पिछली सेटलमेंट के बाद इसमें कितनी वृद्धि हुई है। सिंचाई की बेहतर स्थिति आमतौर पर अधिक पैदावार का संकेत देती है, जिससे राजस्व बढ़ने की संभावना होती है।

    दूसरी बात, फसलों की खेती का स्तर और खेती का कुल क्षेत्रफल कितना है, तथा पिछली सेटलमेंट के बाद उसमें वृद्धि या कमी हुई है या नहीं। यदि खेती का क्षेत्रफल बढ़ा है और उत्पादन बेहतर हुआ है, तो भूमि से आय भी बढ़ी होगी।

    तीसरी बात, खेती करने में आने वाला खर्च और किसान का स्वयं तथा अपने परिवार का भरण-पोषण करने का खर्चा कितना है, यह देखा जाता है। इससे यह आकलन किया जाता है कि किसान पर कर लगाने से उसकी आजीविका पर कितना असर पड़ेगा।

    इसके अतिरिक्त यह देखा जाता है कि क्या उस क्षेत्र या उसके आस-पास बाजार उपलब्ध हैं जिससे किसान अपने उत्पाद बेच सकते हैं, और क्या उस क्षेत्र में संचार के साधनों में कोई सुधार हुआ है।

    ध्यान दिया जाता है कि खेतों का औसत आकार (Size of Holding) क्या है, किसानों पर कितना कर्ज है और उन्हें ऋण लेने की कितनी सुविधा उपलब्ध है।

    उदाहरण के तौर पर यदि किसी जिले में ट्यूबवेल और नहरों के माध्यम से सिंचाई की सुविधा में वृद्धि हुई है, सड़कें बनी हैं, और ग्रामीण बाजार विकसित हुए हैं, तो यह माना जाएगा कि किसान की आर्थिक स्थिति बेहतर हुई है, और उसी अनुसार किराया तय किया जाएगा।

    धारा 149: आकलन समूहों या चक्रों का गठन (Formation of Assessment Circles or Groups)

    धारा 149 के अनुसार, जैसे ही आर्थिक सर्वेक्षण पूरा होता है या उसके साथ-साथ, सेटलमेंट अधिकारी को यह कार्य करना होता है कि वह उस जिले या क्षेत्र में आकलन समूहों (Assessment Circles) या चक्रों का गठन करे। इन समूहों का गठन करते समय अधिकारी को धारा 148 में वर्णित बिंदुओं के साथ-साथ कुछ अन्य बातों पर भी विचार करना होता है।

    इनमें क्षेत्र की भौतिक संरचना (Physical Configuration), जलवायु और वर्षा की स्थिति, जनसंख्या और मजदूरों की उपलब्धता, कृषि संसाधनों की स्थिति, प्रमुख फसलों का प्रकार और उत्पादन, बाजार में उनका मूल्य, वर्तमान किरायों की दरें, और पिछली सेटलमेंट में बनाए गए आकलन समूहों की जानकारी शामिल है।

    उदाहरण के लिए मान लीजिए कि एक क्षेत्र पहाड़ी है, जहां वर्षा कम होती है, और वहां गेहूं तथा जौ की खेती होती है, तो उस क्षेत्र को अन्य समतल और सिंचित क्षेत्रों से अलग आकलन समूह में रखा जाएगा, ताकि किराया स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार तय हो।

    धारा 150: मृदा वर्गीकरण (Soil Classification)

    धारा 150 के अंतर्गत, जब आकलन समूह बना दिए जाते हैं, तब सेटलमेंट अधिकारी को प्रत्येक गांव में भूमि की विभिन्न श्रेणियों (Soil Classes) में वर्गीकरण करना होता है। यह कार्य उन नियमों के अनुसार किया जाता है, जो राज्य सरकार द्वारा बनाए गए होते हैं।

    मृदा वर्गीकरण का उद्देश्य यह जानना होता है कि किस खेत में कैसी भूमि है – जैसे कि काली मिट्टी, दोमट मिट्टी, बलुई मिट्टी इत्यादि। हर मिट्टी की उपज क्षमता अलग होती है और उसी के आधार पर किराया तय किया जाता है।

    उदाहरण के लिए यदि एक गांव में दो प्रकार की मिट्टी है—एक उपजाऊ काली मिट्टी और दूसरी कम उपजाऊ बलुई मिट्टी—तो दोनों के लिए किराया अलग-अलग तय किया जाएगा।

    धारा 151: किराया दरों का निर्धारण (Evolution of Rent-Rates)

    धारा 151 के अनुसार, सेटलमेंट अधिकारी को प्रत्येक मृदा वर्ग के लिए उपयुक्त किराया दर (Rent-Rate) तय करनी होती है। यह दर आकलन समूहों के आधार पर तय की जाती है। इसका मतलब यह हुआ कि यदि किसी समूह में एक ही प्रकार की मिट्टी के खेत हैं, तो उनके लिए एकसमान किराया दर निर्धारित की जाएगी।

    इस प्रक्रिया का उद्देश्य यह है कि भूमि की उपज क्षमता के अनुसार ही किसानों से किराया लिया जाए, और कोई पक्षपात या असमानता न हो।

    धारा 152: किराया दरों का आधार (Basis of Rent-Rates)

    धारा 152 में यह स्पष्ट किया गया है कि किराया दरें कैसे तय की जाएंगी। इसके लिए सेटलमेंट अधिकारी को कई बिंदुओं पर विचार करना होता है।

    सबसे पहले, पिछले 20 वर्षों के दौरान वसूले गए किराए और करों को देखा जाता है, परंतु उन वर्षों को छोड़ दिया जाता है जिन्हें राज्य सरकार अधिसूचना के माध्यम से असामान्य (Abnormal) घोषित करती है, जैसे कि बाढ़ या महामारी के वर्ष।

    इसके बाद, पिछले 20 वर्षों की औसत कृषि उपज की कीमतों को देखा जाता है, और असामान्य वर्षों को इसमें से हटा दिया जाता है। फिर यह देखा जाता है कि किस प्रकार की फसलें उगाई जाती हैं और औसतन कितनी उपज मिलती है।

    उस उपज का मूल्य, उपरोक्त औसत कीमतों के आधार पर तय किया जाता है। फिर खेती की लागत और किसान के परिवार की न्यूनतम जीवन-निर्वाह लागत का मूल्यांकन किया जाता है।

    भूमि को कितने समय के लिए परती (Fallow) छोड़ा जाता है, खेती में रोटेशन (Rotation) कैसे होता है, फसल को आराम देने की अवधि कितनी होती है, इन बातों का भी ध्यान रखा जाता है।

    कितनी बार सरकार को राजस्व में छूट देनी पड़ी, कर माफ किए गए या कम वसूले गए, ये बातें भी दर्शाती हैं कि क्षेत्र की कृषि कितनी स्थिर है।

    इसके साथ यह भी देखा जाता है कि पिछली सेटलमेंट में किराया दरें कैसे तय की गई थीं, उपज का कितना हिस्सा सरकार को दिया जाता था, और उस समय क्या दाम चल रहे थे। यदि आस-पास के क्षेत्रों में समान मिट्टी के लिए कुछ दरें पहले से लागू हैं, तो उनकी तुलना भी की जाती है।

    उपरोक्त सभी बातों के आधार पर सेटलमेंट अधिकारी किराया दरें तय करता है, जो उपज के मूल्य का अधिकतम एक-छठा (One-Sixth) हिस्सा हो सकता है, जैसा कि क्षेत्र में आमतौर पर लागू होता है।

    उदाहरण के लिए यदि किसी खेत में औसतन 20 क्विंटल गेहूं होता है और एक क्विंटल की औसत कीमत ₹2000 है, तो कुल उपज का मूल्य ₹40,000 हुआ। इसका एक-छठा ₹6,667 होता है। तो उस खेत के लिए वार्षिक किराया दर लगभग ₹6,667 हो सकती है, यदि वह दर उस क्षेत्र के सामान्य व्यवहार से मेल खाती हो।

    धाराएं 147 से 152 तक राजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम, 1956 में सेटलमेंट प्रक्रिया की तकनीकी और व्यावहारिक कार्यवाही को स्पष्ट करती हैं। इन धाराओं के तहत राज्य सरकार को नियम बनाने का अधिकार है, जिससे सेटलमेंट अधिकारी एक निर्धारित प्रक्रिया के तहत कार्य करें।

    सेटलमेंट अधिकारी पहले आर्थिक सर्वेक्षण करते हैं, फिर आकलन समूह बनाते हैं, उसके बाद मिट्टी का वर्गीकरण कर किराया दरें तय करते हैं। यह सारी प्रक्रिया पारदर्शिता, वैज्ञानिकता और न्यायप्रियता पर आधारित होती है ताकि किसानों को अनावश्यक आर्थिक बोझ न उठाना पड़े और राज्य को भी सही राजस्व प्राप्त हो सके।

    ये प्रावधान सुनिश्चित करते हैं कि भूमि से जुड़े सभी निर्णय क्षेत्र की वास्तविक स्थिति, उत्पादन क्षमता और सामाजिक परिस्थितियों को ध्यान में रखकर लिए जाएं, ताकि भूमि राजस्व व्यवस्था संतुलित और टिकाऊ बनी रहे।

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