राजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 142 से 146 : सेटलमेंट या पुनःसेटलमेंट
Himanshu Mishra
4 Jun 2025 5:27 PM IST

धारा 142: सेटलमेंट या पुनःसेटलमेंट (Settlement or Re-settlement)
राजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 142 के अंतर्गत राज्य सरकार को यह अधिकार दिया गया है कि वह अधिसूचना (Notification) के माध्यम से किसी जिले या अन्य स्थानीय क्षेत्र को सेटलमेंट या पुनःसेटलमेंट के अंतर्गत ला सकती है।
अधिसूचना को सरकारी राजपत्र (Official Gazette) में प्रकाशित किया जाता है। जब कोई जिला या स्थानीय क्षेत्र इस अधिसूचना के माध्यम से सेटलमेंट प्रक्रिया के अधीन लाया जाता है, तब से वह क्षेत्र औपचारिक रूप से सेटलमेंट प्रक्रिया के अधीन माना जाता है।
यह प्रक्रिया तब तक लागू रहती है जब तक राज्य सरकार दूसरी अधिसूचना जारी करके यह घोषित नहीं कर देती कि उस क्षेत्र में सेटलमेंट की कार्यवाही समाप्त हो चुकी है। उदाहरण के तौर पर मान लीजिए कि राज्य सरकार ने अजमेर जिले को 1 जनवरी 2025 को सेटलमेंट प्रक्रिया के अधीन लाने की अधिसूचना जारी की, तो वह क्षेत्र उसी दिन से सेटलमेंट प्रक्रिया में माना जाएगा, और जब तक नई अधिसूचना जारी नहीं होती, यह प्रक्रिया जारी रहेगी।
धारा 143: पुनःसेटलमेंट के संभावित परिणाम (Probable Results of Resettlement)
जब किसी जिले या स्थानीय क्षेत्र की भूमि राजस्व की वर्तमान सेटलमेंट की अवधि समाप्त होने वाली होती है, तो राज्य सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए एक रिपोर्ट तैयार करवा सकती है जिसमें यह पूर्वानुमान (Forecast) किया जाता है कि अगर पुनःसेटलमेंट किया जाए तो उसके संभावित परिणाम क्या होंगे।
इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि बिना उचित जानकारी के पुनःसेटलमेंट की कार्यवाही प्रारंभ न हो। यदि अनुमान लगाया जाए कि पुनःसेटलमेंट से राजस्व में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हो सकती है, तो यह सरकार को निर्णय लेने में सहायक होता है।
उदाहरण के लिए, यदि किसी क्षेत्र में पिछले 30 वर्षों में सिंचाई के साधनों, सड़क, बाजार और अन्य बुनियादी ढांचे में काफी विकास हुआ है, तो वहां की भूमि की उपज बढ़ी होगी, और उस आधार पर राजस्व बढ़ाने की संभावना हो सकती है।
धारा 144: पुनःसेटलमेंट के निर्णय के लिए आवश्यक विचार (Considerations for Re-settlement)
धारा 144 के अनुसार, राज्य सरकार को यह निर्णय लेने से पहले कुछ बातों पर विचार करना होता है कि किसी क्षेत्र को पुनःसेटलमेंट के अंतर्गत लाया जाए या नहीं।
सबसे पहले, यह देखा जाता है कि क्या इससे भूमि राजस्व में उचित वृद्धि या कमी होने की संभावना है। "उचित वृद्धि" का अर्थ यह है कि यदि पुनःसेटलमेंट में होने वाला खर्च दस वर्षों में वसूल हो सकता है, तो इसे सामान्यतः उचित माना जाएगा।
दूसरा, यह देखा जाता है कि यदि वृद्धि की संभावना है, तो क्या पुनःसेटलमेंट को टालने के लिए कोई ठोस कारण हैं। जैसे कि यदि किसी क्षेत्र में सामाजिक या प्राकृतिक कारणों से अभी स्थायित्व नहीं है—जैसे बाढ़ या सूखा—तो पुनःसेटलमेंट टाला जा सकता है।
तीसरा, यदि वर्तमान सेटलमेंट अत्यधिक कठोर (Unduly Severe) या असमान (Uneven) हो गया है, तो भी पुनःसेटलमेंट किया जा सकता है, भले ही उससे राजस्व वृद्धि की संभावना न हो।
उदाहरण के लिए, यदि एक क्षेत्र में वर्षा की असमानता के कारण कुछ किसानों पर अत्यधिक कर लग गया हो जबकि कुछ किसानों पर बहुत कम, तो इस असमानता को दूर करने के लिए पुनःसेटलमेंट किया जा सकता है।
धारा 145: सेटलमेंट अधिकारी की नियुक्ति (Appointment of Settlement Officers)
जब धारा 142 के अंतर्गत कोई क्षेत्र सेटलमेंट प्रक्रिया में लाया जाता है, तब राज्य सरकार को दो प्रकार के अधिकारी नियुक्त करने का अधिकार है।
पहला, राज्य सरकार एक मुख्य सेटलमेंट अधिकारी (Settlement Officer) नियुक्त करती है जो पूरी सेटलमेंट प्रक्रिया का प्रभारी होता है। यदि पहले से कोई स्थायी सेटलमेंट अधिकारी वहां नियुक्त है तो नया अधिकारी नियुक्त करने की आवश्यकता नहीं होती।
दूसरा, राज्य सरकार आवश्यकता अनुसार कई सहायक सेटलमेंट अधिकारी (Assistant Settlement Officers) भी नियुक्त कर सकती है, जो मुख्य अधिकारी की सहायता करेंगे।
उदाहरण के लिए, यदि कोटा जिले को पुनःसेटलमेंट के अंतर्गत लाया गया है, तो सरकार वहां के लिए एक सेटलमेंट अधिकारी और तीन सहायक अधिकारी नियुक्त कर सकती है, ताकि कार्य सुचारु रूप से और समय पर पूर्ण हो सके।
धारा 146: भूमि अभिलेख अधिकारी (Land Records Officer) के कार्यों का हस्तांतरण (Transfer of Duties)
धारा 146 में यह प्रावधान है कि जब कोई जिला या स्थानीय क्षेत्र सेटलमेंट प्रक्रिया के अधीन होता है, तो उस क्षेत्र में नक्शे और फील्ड बुक्स (Field Books) का रख-रखाव, तथा वार्षिक रजिस्टर (Annual Registers) तैयार करने की जिम्मेदारी जो पहले भूमि अभिलेख अधिकारी की होती थी, वह राज्य सरकार के आदेश से सेटलमेंट अधिकारी को हस्तांतरित की जा सकती है।
सेटलमेंट अधिकारी को इन मामलों में वही अधिकार और शक्तियां प्राप्त होंगी जो भूमि अभिलेख अधिकारी को अध्याय VI (Chapter VI) में प्रदान की गई हैं।
इसका उद्देश्य यह है कि सेटलमेंट प्रक्रिया में सभी जानकारी एक ही अधिकारी के अधीन केंद्रित हो जाए, जिससे निर्णय लेने और कार्य करने में पारदर्शिता और प्रभावशीलता बढ़े। उदाहरण स्वरूप, यदि जैसलमेर जिले को सेटलमेंट प्रक्रिया के अंतर्गत लाया गया है, तो नक्शों और रिकॉर्ड के सभी अधिकार सेटलमेंट अधिकारी को दे दिए जा सकते हैं ताकि सभी अभिलेख एक ही स्थान से नियंत्रित हों।
सम्बंधित प्रावधानों की सन्दर्भ में व्याख्या (Reference to Earlier Provisions)
धारा 92 से 99 तक के प्रावधानों में भूमि के वर्गीकरण, माप, मूल्यांकन और रिकॉर्ड बनाए जाने की प्रक्रिया बताई गई है। सेटलमेंट प्रक्रिया में यही सभी जानकारी उपयोग में लाई जाती है। इसी तरह, अध्याय VI में भूमि अभिलेख अधिकारियों की शक्तियां और कार्यों का उल्लेख है, जिनका उपयोग सेटलमेंट अधिकारी तब करता है जब उसे धारा 146 के अंतर्गत वह कार्य सौंपे जाते हैं।
राजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम, 1956 की धाराएं 142 से 146 राज्य सरकार को यह कानूनी ढांचा प्रदान करती हैं कि वह समय-समय पर किसी भी जिले या स्थानीय क्षेत्र में भूमि राजस्व की समीक्षा कर सके और आवश्यक होने पर सेटलमेंट या पुनःसेटलमेंट की प्रक्रिया चला सके।
इस प्रक्रिया का उद्देश्य राजस्व व्यवस्था को अधिक न्यायसंगत, संतुलित और यथार्थवादी बनाना है। इसके लिए राज्य सरकार पहले संभावित परिणामों का पूर्वानुमान कर सकती है, आवश्यक विचार कर सकती है, और फिर सक्षम अधिकारियों की नियुक्ति कर सकती है, जिससे पूरी प्रक्रिया विधिपूर्वक और प्रभावी ढंग से पूर्ण की जा सके।
यह प्रावधान सुनिश्चित करते हैं कि न तो किसान पर अनावश्यक कर भार पड़े और न ही राज्य को संभावित राजस्व हानि हो। सभी कदम सुनियोजित और विधिसम्मत रूप से उठाए जाते हैं, जो भूमि राजस्व प्रशासन की पारदर्शिता और कार्यकुशलता को दर्शाते हैं।