राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम की धारा 141 से 141-एफ : अधिसूचित आबादी क्षेत्र का सर्वेक्षण

Himanshu Mishra

2 Jun 2025 5:15 PM IST

  • राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम की धारा 141 से 141-एफ : अधिसूचित आबादी क्षेत्र का सर्वेक्षण

    भारत में राजस्व कानून व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि भूमि संबंधी विवादों, स्वामित्व के अधिकारों और रिकॉर्ड की स्पष्टता को सुनिश्चित किया जाए। इसी उद्देश्य से अनेक प्रावधान बनाए गए हैं जिनके अंतर्गत "आबादी क्षेत्र" (Abadi Area) का सर्वेक्षण (Survey) किया जाता है।

    सर्वेक्षण से यह सुनिश्चित होता है कि प्रत्येक भूमि या भवन के स्वामी, उसका सीमांकन और अन्य विवरण स्पष्ट रूप से दर्ज हों, जिससे आगे कोई विवाद न उत्पन्न हो। यहां हम सरल भाषा में उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता की धाराओं 141 से 141-एफ तक के सभी प्रावधानों को विस्तार से समझेंगे।

    धारा 141 – राजस्व न्यायालयों पर निर्णयों की बाध्यता

    इस धारा में यह स्पष्ट किया गया है कि जब इस अध्याय के अंतर्गत किसी विवाद का निर्णय होता है, तो वह निर्णय उस विवाद की विषयवस्तु के संबंध में सभी राजस्व न्यायालयों के लिए बाध्यकारी होगा। इसका अर्थ है कि यदि कोई विवाद इस अध्याय के अंतर्गत हल कर दिया गया है, तो उसी विषय पर भविष्य में कोई अन्य राजस्व न्यायालय अलग निर्णय नहीं दे सकता।

    हालांकि, इसका एक अपवाद है – यदि विवाद किराया (rent) या राजस्व (revenue) की देनदारी से संबंधित है, तब यह बाध्यता लागू नहीं होगी।

    उदाहरण के लिए, यदि दो व्यक्ति किसी भूखंड के स्वामित्व को लेकर विवाद करते हैं और इस अध्याय के अंतर्गत उसका निर्णय हो जाता है, तो वही निर्णय आगे चलकर किसी अन्य राजस्व न्यायालय में भी मान्य होगा।

    धारा 141-ए – परिभाषाएँ

    इस धारा में इस अध्याय के प्रयोजनार्थ प्रयुक्त कुछ प्रमुख शब्दों की परिभाषा दी गई है:

    "आबादी क्षेत्र" और "भूमि" की परिभाषा धारा 103 से ली गई है।

    "स्वामी" का अर्थ केवल भूमि या भवन के मालिक से नहीं है। इसमें वह व्यक्ति भी शामिल है जिसके पास स्थायी अधिकार हो, उसका एजेंट या प्रबंधक, उसका ट्रस्टी, या वह कंपनी जिसके नाम पर कोई भूमि दर्ज हो। यहां तक कि जो भूमि या भवन का तत्कालीन कब्जेदार हो, उसे भी स्वामी माना जाएगा।

    "प्रांगण" (Premises) का अर्थ उस भूमि या भवन से है जो रिकॉर्ड में इस प्रकार दर्ज हो।

    "सर्वेक्षण" का अर्थ सीमाओं की पहचान और उससे संबंधित सभी अन्य गतिविधियों से है।

    उदाहरण के लिए, यदि किसी गांव में कोई भवन एक ट्रस्ट के नाम दर्ज है, तो ट्रस्टी को स्वामी माना जाएगा और वह सर्वेक्षण में सम्मिलित किया जाएगा।

    धारा 142-बी – सर्वेक्षण का आदेश देने की शक्ति

    इस धारा के अनुसार, राज्य सरकार जब चाहे, किसी भी आबादी क्षेत्र या उसके किसी भाग का सर्वेक्षण कराने के लिए अधिसूचना जारी कर सकती है। अधिसूचना के जारी होते ही वह क्षेत्र "सर्वेक्षणाधीन" (under survey) माना जाएगा।

    राज्य सरकार यह भी निर्देश दे सकती है कि संबंधित क्षेत्र की स्थानीय प्राधिकरण (जैसे नगर पंचायत या ग्राम पंचायत) सर्वेक्षण की प्रभारी होगी। यदि किसी स्थानीय प्राधिकरण को प्रभारी नहीं बनाया गया हो, तो उस जिले का जिलाधिकारी सर्वेक्षण का प्रभारी होगा।

    सर्वेक्षण का कार्य एक ऐसे अधिकारी द्वारा किया जाएगा जो "अपर भूमि अभिलेख अधिकारी" (Additional Land Records Officer) या उससे ऊपर के स्तर का हो। राज्य सरकार इस कार्य में सहायता के लिए सहायक अभिलेख अधिकारी एवं अन्य कर्मचारी भी नियुक्त कर सकती है।

    ये सभी अधिकारी व कर्मचारी राज्य सरकार द्वारा निर्धारित शक्तियाँ एवं कर्तव्यों का पालन करेंगे।

    उदाहरण के लिए, यदि अमेठी जिले के किसी कस्बे की आबादी का सर्वेक्षण करवाना हो, तो राज्य सरकार अधिसूचना जारी करके जिलाधिकारी या नगरपालिका को प्रभारी बना सकती है और एक अपर भूमि अभिलेख अधिकारी को सर्वेक्षण अधिकारी नियुक्त किया जाएगा।

    धारा 141-सी – भूमि में प्रवेश का अधिकार

    इस धारा के अनुसार, सर्वेक्षण अधिकारी या उसके अधीनस्थ कर्मचारी सूर्योदय से सूर्यास्त के बीच सर्वेक्षणाधीन क्षेत्र में किसी भी भूमि या भवन में प्रवेश कर सकते हैं। इस प्रवेश के लिए किसी प्रकार की कानूनी कार्यवाही नहीं होगी।

    हालांकि, यदि कोई भूमि या भवन उस समय आबाद (occupied) हो, तो प्रवेश से पहले उस अधिवासी को या तो उसकी सहमति लेनी होगी, या फिर कम से कम 24 घंटे पहले सूचना देनी होगी।

    उदाहरण के लिए, यदि कोई कर्मचारी किसी घर की सीमा चिन्हित करने हेतु जाना चाहता है, और वह घर किसी परिवार के कब्जे में है, तो वह परिवार की अनुमति लेकर या 24 घंटे पहले सूचना देकर ही वहां प्रवेश कर सकता है।

    धारा 141-डी – सर्वेक्षण का पूर्व सूचना देना

    सर्वेक्षण शुरू करने से पहले, अधिकारी भूमि या भवन के स्वामी और आस-पास की अन्य संपत्तियों के स्वामियों को नोटिस भेज सकता है। यह नोटिस लिखित होगा और यह बताएगा कि किस तारीख और समय पर वे अपनी भूमि पर उपस्थित हों ताकि सीमाएं स्पष्ट की जा सकें और आवश्यक जानकारी दी जा सके।

    यह अनिवार्य है कि यह नोटिस कम से कम तीन दिन पहले भेजा जाए। नोटिस प्राप्त करने वाला व्यक्ति कानूनन बाध्य होता है कि वह समय पर उपस्थित हो और जानकारी दे सके।

    उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यक्ति की भूमि का सर्वेक्षण 10 अगस्त को होना है, तो कम से कम 7 अगस्त तक उसे नोटिस प्राप्त हो जाना चाहिए।

    धारा 141-ई – नोटिस के बाद भी सर्वेक्षण किया जा सकता है

    इस धारा के अनुसार, यदि धारा 141-डी के अनुसार नोटिस दे दिया गया है, लेकिन संबंधित व्यक्ति उपस्थित नहीं होता, तो भी सर्वेक्षण किया जा सकता है। उसकी अनुपस्थिति में किया गया सर्वेक्षण भी वैध माना जाएगा और वह व्यक्ति सर्वेक्षण के परिणामों से बाध्य होगा, मानो यह कार्य उसकी उपस्थिति में हुआ हो।

    उदाहरण के लिए, यदि कोई स्वामी जानबूझकर उपस्थित नहीं होता, तब भी सर्वेक्षण अधिकारी कार्यवाही कर सकता है और उस व्यक्ति को उस सर्वेक्षण के अनुसार ही अपना अधिकार मानना पड़ेगा।

    धारा 141-एफ – सर्वेक्षण मानचित्र और पंजिका का निर्माण

    यह धारा सर्वेक्षण के बाद तैयार किए जाने वाले दस्तावेजों की व्यवस्था करती है। सर्वेक्षण अधिकारी निम्नलिखित कार्य करता है:

    वह सर्वेक्षित क्षेत्र का मानचित्र तैयार करेगा।

    इस मानचित्र में प्रत्येक भूमि और भवन को अलग-अलग दिखाया जाएगा।

    हर भूमि या भवन को एक अलग "संकेतांक सर्वेक्षण संख्या" (indicative survey number) दी जाएगी।

    इसके साथ-साथ, वह एक पंजिका (Register) भी तैयार करेगा जिसमें प्रत्येक भूमि और भवन के बारे में स्वामित्व संबंधी जानकारी दर्ज होगी।

    इस पंजिका में उस व्यक्ति का नाम दर्ज किया जाएगा जो सर्वेक्षण के समय उस भूमि या भवन का स्वामी प्रतीत होता हो।

    उदाहरण के लिए, किसी मोहल्ले में 50 घरों का सर्वेक्षण किया गया है, तो प्रत्येक घर को एक नंबर मिलेगा जैसे 101, 102 आदि। फिर एक रजिस्टर बनेगा जिसमें यह लिखा जाएगा कि 101 नंबर के घर का मालिक श्री रामलाल हैं, उसका क्षेत्रफल कितना है, सीमाएं क्या हैं आदि।

    धारा 141 से 141-एफ तक की व्यवस्था यह सुनिश्चित करती है कि आबादी क्षेत्रों का विधिपूर्वक सर्वेक्षण हो सके और स्वामित्व, सीमांकन, और रिकॉर्ड की पारदर्शिता बनी रहे। इस प्रक्रिया से न केवल भूमि संबंधी विवादों में कमी आती है बल्कि सरकारी योजनाओं की क्रियान्विति, संपत्ति कर निर्धारण, और शहरी योजनाओं के कार्यान्वयन में भी सहायता मिलती है। यह प्रक्रिया नागरिकों के अधिकारों की रक्षा और प्रशासन की प्रभावशीलता दोनों के लिए अत्यंत आवश्यक है।

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