राजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम के अध्याय से संबंधित धारा 136 से 140-A : संपत्ति के उत्तराधिकार का नियम
Himanshu Mishra
30 May 2025 12:58 PM

धारा 136: त्रुटियों का सुधार
धारा 136 भूमि रिकॉर्ड अधिकारी को यह अधिकार देती है कि वह कभी भी रिकॉर्ड ऑफ राइट्स या किसी भी रजिस्टर में की गई लिपिकीय त्रुटियों या उन त्रुटियों को, जिन्हें संबंधित पक्ष स्वीकार करते हैं, ठीक कर सकता है। इसके अतिरिक्त, यदि कोई राजस्व अधिकारी निरीक्षण के दौरान किसी रजिस्टर में कोई त्रुटि पाता है, तो वह भी उस त्रुटि को सही करने का अधिकार रखता है।
हालाँकि, इसमें एक महत्वपूर्ण शर्त यह है कि यदि कोई राजस्व अधिकारी निरीक्षण के दौरान रिकॉर्ड ऑफ राइट्स में कोई त्रुटि पाता है, तो वह बिना पूर्व सूचना दिए उस त्रुटि को नहीं सुधार सकता। यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि संबंधित पक्षों को अपना पक्ष रखने का उचित अवसर मिले।
उदाहरण: मान लीजिए किसी किसान का नाम रिकॉर्ड में "रामसिंह" की जगह गलती से "रमेश" दर्ज हो गया है, और किसान खुद इस गलती को स्वीकार करता है। ऐसी स्थिति में भूमि रिकॉर्ड अधिकारी उस नाम को सही कर सकता है। लेकिन अगर निरीक्षण के दौरान अधिकारी को यह गलती दिखती है और किसान इस गलती को स्वीकार नहीं करता, तो अधिकारी को पहले किसान को कारण बताओ नोटिस जारी करना होगा।
धारा 137: संपत्ति के उत्तराधिकार का नियम
धारा 137 के अनुसार, किसी भी संपत्ति (estate) के उत्तराधिकार और हस्तांतरण का निर्धारण इस अधिनियम की किसी भी बात के बावजूद उस क्षेत्र में प्रचलित कानून, रिवाज या प्रथा के अनुसार किया जाएगा। इसका अर्थ यह है कि चाहे राजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम में कुछ भी कहा गया हो, संपत्ति के उत्तराधिकार के लिए स्थानीय कानून, परंपरा या अभ्यास को प्राथमिकता दी जाएगी।
साथ ही, यह भी स्पष्ट किया गया है कि धारा 263 के प्रावधानों के बावजूद, उक्त कानून, रिवाज या प्रथा इस उद्देश्य के लिए लागू रहेंगे।
उदाहरण: यदि किसी क्षेत्र में रिवाज यह है कि केवल पुत्र को पिता की भूमि मिलती है, तो उत्तराधिकार उसी के अनुसार होगा, चाहे अन्य विधानों में कुछ और कहा गया हो।
धारा 138: अभिलेखों का निरीक्षण
धारा 138 कहती है कि इस अधिनियम के अंतर्गत तैयार किए गए सभी नक्शे, फील्ड बुक्स और रजिस्टर जनसामान्य के निरीक्षण के लिए खुले होंगे। कोई भी व्यक्ति इन्हें निःशुल्क देख सकता है, बशर्ते वह राज्य सरकार द्वारा निर्धारित समय, स्थान और शर्तों का पालन करे।
यह प्रावधान पारदर्शिता सुनिश्चित करता है और यह अधिकार देता है कि कोई भी व्यक्ति भूमि से संबंधित जानकारी की जांच कर सके।
उदाहरण: यदि कोई व्यक्ति यह जानना चाहता है कि उसके पड़ोसी की भूमि की सीमाएं क्या हैं, तो वह संबंधित रजिस्टर या नक्शा निःशुल्क देख सकता है।
धारा 139: प्रविष्टियों की प्रतिलिपियाँ
धारा 139 के तहत पटवारी को यह दायित्व सौंपा गया है कि जब भी कोई व्यक्ति अनुरोध करे, वह रिकॉर्ड्स और रजिस्टरों से प्रविष्टियों की प्रमाणित प्रतियाँ तैयार करके दे। इसके लिए राज्य सरकार समय-समय पर प्रतिलिपि शुल्क निर्धारित करती है, जो व्यक्ति को अदा करना होता है।
यह प्रतियाँ एक निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार प्रमाणित (अटैस्ट) की जाती हैं, ताकि उनकी वैधता बनी रहे।
उदाहरण: किसी किसान को बैंक से कृषि ऋण लेने के लिए जमीन का रिकॉर्ड चाहिए। वह पटवारी से रिकॉर्ड की प्रति शुल्क देकर प्राप्त कर सकता है और इसका उपयोग आधिकारिक कार्यों में कर सकता है।
धारा 140: प्रविष्टियों के प्रति अनुमान
धारा 140 एक महत्वपूर्ण कानूनी धारणा प्रदान करती है। इसके अनुसार, रिकॉर्ड ऑफ राइट्स में की गई सभी प्रविष्टियों को तब तक सही माना जाएगा जब तक कि कोई इसके विपरीत प्रमाण न दे दे।
इसका अर्थ है कि रिकॉर्ड में जो लिखा है, उसे प्रारंभिक तौर पर सत्य माना जाएगा। यदि कोई व्यक्ति यह साबित करना चाहता है कि रिकॉर्ड गलत है, तो उसे पर्याप्त साक्ष्य देने होंगे।
उदाहरण: यदि रिकॉर्ड में लिखा है कि "मोहन" खेत का मालिक है, तो यह सही माना जाएगा जब तक कोई "सोहन" यह साबित न कर दे कि वह असली मालिक है और रिकॉर्ड में गलती हुई है।
धारा 140-A: खुदकश्त प्रविष्टियों से संबंधित विवादों की प्रक्रिया
धारा 140-A भूमि अधिकारों के विवादों में विशेष रूप से खुदकश्त प्रविष्टियों (Khudkasht entries) से संबंधित मामलों को सुलझाने के लिए है। यह धारा कहती है कि यदि किसी बिर (Bir) या जोरे (Jore) भूमि को, जो कि किसी जागीरदार द्वारा घास के चारागाह के रूप में प्रयोग की जाती थी, खुदकश्त के रूप में दर्ज किया गया हो और इस पर विवाद हो, तो निर्णय उस भूमि के वास्तविक कब्जे के आधार पर होगा।
यह कब्जा उस समय के लागू कानूनों और नियमों के अनुसार देखा जाएगा, जो खुदकश्त भूमि के आबंटन और सीमांकन को नियंत्रित करते हैं।
साथ ही, एक महत्वपूर्ण उपबंध यह भी है कि अगर जागीरदार के कब्जे में खुदकश्त भूमि की कुल सीमा, राजस्थान काश्तकारी अधिनियम, 1955 की धारा 180 की उपधारा (1) के खंड (क) के लिए निर्धारित न्यूनतम सीमा से दो गुना अधिक नहीं है, तो ऐसी प्रविष्टि को चुनौती नहीं दी जा सकती।
इसके अतिरिक्त, यदि खुदकश्त से संबंधित प्रविष्टि राजस्थान भूमि राजस्व (संशोधन) अधिनियम, 1959 के प्रारंभ से पहले की गई थी, तो उसकी चुनौती या सुधार संबंधी आवेदन अधिकतम पाँच वर्ष के भीतर ही किया जा सकता है।
उदाहरण: मान लीजिए किसी जागीरदार ने अपने क्षेत्र की किसी भूमि को घास काटने के लिए किराए पर दिया और रिकॉर्ड में उसे खुदकश्त दर्ज करवा लिया। बाद में कोई किसान यह कहता है कि यह भूमि असल में उसकी है। अब निर्णय इस बात पर निर्भर करेगा कि 1959 के संशोधन अधिनियम के लागू होने से पहले जागीरदार उस भूमि पर कब्जे में था या नहीं। यदि वह वास्तव में कब्जे में था और खुदकश्त की कुल भूमि निर्धारित सीमा से अधिक नहीं है, तो प्रविष्टि को वैध माना जाएगा।
धारा 136 से 140-A तक की ये कानूनी व्यवस्थाएँ राजस्थान की भूमि प्रशासन प्रणाली को स्पष्टता, पारदर्शिता और न्याय की भावना के साथ संचालित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। एक ओर ये प्रविष्टियों में सुधार की सुविधा प्रदान करती हैं, वहीं दूसरी ओर यह सुनिश्चित करती हैं कि इन सुधारों की प्रक्रिया निष्पक्ष हो और संबंधित पक्षों को सुनवाई का मौका मिले।
साथ ही, खुदकश्त जैसे जटिल भूमि विवादों में निर्णयन के लिए समयबद्ध और न्यायपूर्ण व्यवस्था प्रदान करती हैं। इन धाराओं के माध्यम से नागरिकों को उनके भूमि अधिकारों की रक्षा हेतु आवश्यक उपकरण दिए गए हैं और भूमि रिकॉर्ड की वैधता व प्रामाणिकता को सुनिश्चित किया गया है।