जल अधिनियम 1974 की धाराएं 13 और 14 : संयुक्त बोर्ड का गठन

Himanshu Mishra

23 Aug 2025 5:02 PM IST

  • जल अधिनियम 1974 की धाराएं 13 और 14 : संयुक्त बोर्ड का गठन

    जल प्रदूषण केवल एक राज्य या क्षेत्र की समस्या नहीं है, बल्कि यह कई बार सीमापार (Inter-State) प्रकृति की होती है। नदियाँ, नहरें और जलाशय प्राकृतिक सीमाओं को नहीं मानते। उदाहरण के लिए, गंगा, यमुना, गोदावरी या ब्रह्मपुत्र जैसी नदियाँ कई राज्यों से होकर बहती हैं। यदि एक राज्य में प्रदूषण फैलता है, तो उसका प्रभाव पड़ोसी राज्य पर भी पड़ता है। इस जटिलता को समझते हुए, जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 ने संयुक्त बोर्डों (Joint Boards) का प्रावधान रखा है।

    संयुक्त बोर्ड का विचार भारतीय संघीय ढाँचे में सहयोगात्मक संघवाद (Cooperative Federalism) की झलक दिखाता है, जहाँ केंद्र और राज्य या एक से अधिक राज्य आपसी सहमति से मिलकर काम करते हैं।

    धारा 13: संयुक्त बोर्ड का गठन (Constitution of Joint Board)

    धारा 13 यह प्रावधान करती है कि यदि दो या अधिक पड़ोसी राज्य चाहें, तो वे आपस में एक समझौते (Agreement) के माध्यम से संयुक्त बोर्ड गठित कर सकते हैं। इसी तरह, यदि कोई केंद्र शासित प्रदेश (Union Territory) किसी राज्य की सीमा से जुड़ा हुआ है, तो केंद्र सरकार और संबंधित राज्य सरकार मिलकर भी ऐसा बोर्ड बना सकते हैं।

    यह समझौता निश्चित अवधि के लिए हो सकता है और ज़रूरत पड़ने पर इसका नवीनीकरण (Renewal) किया जा सकता है। इस तरह की लचीलापन वाली व्यवस्था इसलिए रखी गई है क्योंकि प्रदूषण से निपटने के लिए कई बार लंबे समय तक आपसी सहयोग की ज़रूरत होती है।

    उदाहरण के लिए, यदि हरियाणा और उत्तर प्रदेश यह महसूस करें कि यमुना नदी में प्रदूषण नियंत्रण के लिए उन्हें मिलकर काम करना होगा, तो वे धारा 13 के तहत एक संयुक्त बोर्ड बना सकते हैं। इसी तरह, यदि दिल्ली (जो एक केंद्र शासित प्रदेश है) और उत्तर प्रदेश साथ मिलकर यमुना की सफाई के लिए काम करना चाहें, तो केंद्र सरकार भी उस समझौते का हिस्सा बन सकती है।

    धारा 13(2) आगे यह स्पष्ट करती है कि इस समझौते में क्या-क्या बातें शामिल हो सकती हैं।

    पहली बात, खर्च का बँटवारा (Apportionment of Expenditure) कैसे होगा। उदाहरण के तौर पर, यदि गंगा नदी की सफाई के लिए एक संयुक्त बोर्ड बने जिसमें उत्तर प्रदेश और बिहार शामिल हों, तो यह तय करना आवश्यक है कि खर्च का कौन-सा हिस्सा उत्तर प्रदेश देगा और कितना बिहार।

    दूसरी बात, राज्य सरकार की शक्तियाँ (Powers of State Government) कौन प्रयोग करेगा। यदि कोई संयुक्त बोर्ड बना है, तो यह तय करना होगा कि कौन-सी सरकार किस स्तर पर कार्य करेगी।

    तीसरी बात, परामर्श (Consultation) का प्रावधान होगा। यानी संबंधित राज्य सरकारें या केंद्र और राज्य सरकारें आपसी चर्चा करके निर्णय लेंगी।

    चौथी बात, समझौते में अन्य सहायक प्रावधान भी जोड़े जा सकते हैं, बशर्ते वे इस अधिनियम के विपरीत न हों।

    धारा 13(3) यह भी कहती है कि इस तरह के समझौते को राजपत्र (Official Gazette) में प्रकाशित किया जाना चाहिए, ताकि यह सार्वजनिक रूप से मान्य हो और सभी पक्षकार इससे अवगत हो जाएँ।

    धारा 14: संयुक्त बोर्ड की संरचना (Composition of Joint Boards)

    धारा 14 यह स्पष्ट करती है कि जब एक संयुक्त बोर्ड बनता है, तो उसमें कौन-कौन सदस्य होंगे। यह संरचना इस बात पर निर्भर करेगी कि बोर्ड दो या अधिक राज्यों के बीच बना है या केंद्र और राज्य सरकार के बीच।

    स्थिति 1: दो या अधिक राज्यों के बीच संयुक्त बोर्ड

    यदि दो या अधिक पड़ोसी राज्य मिलकर संयुक्त बोर्ड बनाते हैं, तो उसकी संरचना इस प्रकार होगी:

    सबसे पहले, एक पूर्णकालिक अध्यक्ष (Full-time Chairman) होगा। यह व्यक्ति ऐसा होना चाहिए जिसे पर्यावरण संरक्षण (Environmental Protection) के विषय में विशेष ज्ञान या अनुभव हो, या फिर ऐसा व्यक्ति जिसने किसी संबंधित संस्था का प्रशासनिक अनुभव प्राप्त किया हो। इस अध्यक्ष को केंद्र सरकार नामित करती है।

    इसके बाद, प्रत्येक राज्य सरकार अपने-अपने दो अधिकारियों को बोर्ड में नामित करेगी। ये अधिकारी अपने राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व करेंगे।

    फिर, प्रत्येक राज्य सरकार अपने राज्य की स्थानीय निकायों (Local Authorities) में से एक सदस्य को नामित करेगी। उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश लखनऊ नगर निगम से एक सदस्य नामित कर सकता है, जबकि बिहार पटना नगर निगम से।

    इसके अलावा, प्रत्येक राज्य सरकार एक ग़ैर-सरकारी सदस्य (Non-official Member) नामित करेगी, जो कृषि, मत्स्य (Fishery), उद्योग, व्यापार या किसी अन्य क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर सके। इसका उद्देश्य यह है कि बोर्ड केवल सरकारी अधिकारियों तक सीमित न रहे, बल्कि समाज के विभिन्न वर्गों की आवाज़ भी सुनी जाए।

    इसके अतिरिक्त, केंद्र सरकार दो व्यक्तियों को नामित करेगी जो उन कंपनियों या निगमों (Corporations) का प्रतिनिधित्व करेंगे जो संबंधित राज्य सरकारों के स्वामित्व या नियंत्रण में हैं।

    अंत में, बोर्ड में एक पूर्णकालिक सदस्य-सचिव (Full-time Member Secretary) होगा, जिसे केंद्र सरकार नियुक्त करेगी। यह व्यक्ति वैज्ञानिक, इंजीनियरिंग या प्रबंधन संबंधी योग्यता और प्रदूषण नियंत्रण का अनुभव रखता हो।

    स्थिति 2: केंद्र और राज्य के बीच संयुक्त बोर्ड

    यदि किसी केंद्र शासित प्रदेश और राज्य सरकार के बीच संयुक्त बोर्ड बने, तो उसकी संरचना थोड़ी अलग होगी।

    इसमें भी अध्यक्ष वही होगा जिसे केंद्र सरकार नामित करेगी और जिसके पास पर्यावरण संरक्षण का अनुभव होगा।

    इसके बाद, केंद्र सरकार प्रत्येक संबंधित केंद्र शासित प्रदेश से दो अधिकारियों को नामित करेगी, और प्रत्येक संबंधित राज्य सरकार भी अपने राज्य से दो अधिकारियों को नामित करेगी।

    इसी तरह, स्थानीय निकायों के प्रतिनिधि भी केंद्र और राज्य सरकारें नामित करेंगी।

    ग़ैर-सरकारी सदस्य दोनों पक्षों की ओर से नामित होंगे। उदाहरण के लिए, यदि दिल्ली और हरियाणा मिलकर बोर्ड बनाते हैं, तो दिल्ली के लिए गैर-सरकारी सदस्य केंद्र सरकार नामित करेगी और हरियाणा के लिए राज्य सरकार।

    इसके अलावा, केंद्र सरकार उन कंपनियों या निगमों के प्रतिनिधि भी नामित करेगी जो केंद्र या राज्य सरकार के स्वामित्व में हैं और उस क्षेत्र में कार्यरत हैं।

    अंत में, इस संरचना में भी एक पूर्णकालिक सदस्य-सचिव होगा, जिसे केंद्र सरकार नियुक्त करेगी।

    धारा 14(3), 14(4) और 14(5): अन्य प्रावधान

    धारा 14(3) कहती है कि जब किसी केंद्र शासित प्रदेश के लिए संयुक्त बोर्ड बन जाता है, तो उस केंद्र शासित प्रदेश में अलग से राज्य बोर्ड की आवश्यकता नहीं रह जाती।

    धारा 14(4) और 14(5) स्पष्ट करते हैं कि संयुक्त बोर्ड पर वही प्रावधान लागू होंगे जो एक राज्य बोर्ड पर लागू होते हैं। यानी धारा 5 से 12 के प्रावधान जैसे समिति का गठन, सदस्य-सचिव की नियुक्ति, रिक्तियों का प्रभाव, अध्यक्ष को अधिकारों का प्रत्यायोजन आदि, संयुक्त बोर्ड पर भी लागू होंगे।

    साथ ही, जहाँ भी अधिनियम में "राज्य बोर्ड" का उल्लेख किया गया है, उसे "संयुक्त बोर्ड" के रूप में पढ़ा जा सकेगा, यदि संदर्भ उसी से मेल खाता हो।

    धाराएँ 13 और 14 यह सुनिश्चित करती हैं कि जल प्रदूषण नियंत्रण का कार्य राज्य सीमाओं से बँधा न रहे। नदियाँ और जलस्रोत राजनीतिक सीमाओं को नहीं मानते, इसलिए एक राज्य का प्रदूषण दूसरे राज्य पर बोझ बन सकता है। इसीलिए, संयुक्त बोर्ड की व्यवस्था बनाई गई ताकि पड़ोसी राज्य या केंद्र और राज्य मिलकर साझा ढाँचा तैयार कर सकें।

    संयुक्त बोर्ड में सरकारी अधिकारियों के साथ-साथ स्थानीय निकायों और गैर-सरकारी प्रतिनिधियों को शामिल किया जाना इस बात का प्रमाण है कि यह ढाँचा केवल प्रशासनिक नहीं बल्कि सहभागी और लोकतांत्रिक है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि प्रदूषण नियंत्रण की रणनीतियाँ व्यावहारिक, क्षेत्रीय और समन्वित (Coordinated) हों।

    उदाहरण के तौर पर, यदि गंगा नदी पर प्रदूषण नियंत्रण का मुद्दा उठता है, तो उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल को अलग-अलग प्रयासों से ज़्यादा फायदा नहीं होगा। लेकिन यदि वे एक संयुक्त बोर्ड बनाकर काम करें, तो परिणाम अधिक प्रभावी और स्थायी हो सकते हैं।

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