भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 की धारा 13 - 17: भागीदारों के आपसी अधिकार, दायित्व और फर्म की संपत्ति
Himanshu Mishra
30 Jun 2025 11:12 AM

भागीदारों के आपसी अधिकार और दायित्व (Mutual Rights, and Liabilities of Partners)
भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 (Indian Partnership Act, 1932) की धारा 13 (Section 13) भागीदारों के आपसी अधिकारों और देनदारियों को स्पष्ट करती है, बशर्ते भागीदारों के बीच कोई विपरीत अनुबंध (Contract) न हो:
• (क) पारिश्रमिक का अधिकार नहीं (Not Entitled to Remuneration): एक भागीदार को व्यवसाय के संचालन में भाग लेने के लिए पारिश्रमिक (Remuneration) यानी वेतन या मजदूरी प्राप्त करने का अधिकार नहीं होता है। सामान्यतः, भागीदार लाभ साझा करके अपनी कमाई करते हैं।
• (ख) लाभ और हानि में समान हिस्सेदारी (Equal Share in Profits and Losses): भागीदारों को अर्जित लाभ (Profits Earned) में समान रूप से हिस्सा लेने का अधिकार होता है, और वे फर्म द्वारा उठाए गए नुकसान (Losses Sustained) में भी समान रूप से योगदान करेंगे। यह एक डिफ़ॉल्ट (Default) नियम है, जिसे भागीदारों के बीच अनुबंध द्वारा बदला जा सकता है।
• (ग) पूंजी पर ब्याज (Interest on Capital): यदि किसी भागीदार को उसके द्वारा लगाई गई पूंजी (Capital Subscribed) पर ब्याज का अधिकार है, तो ऐसा ब्याज केवल लाभ (Profits) में से ही देय होगा। इसका मतलब है कि अगर फर्म को नुकसान होता है, तो पूंजी पर ब्याज नहीं दिया जाएगा।
• (घ) अग्रिम पर ब्याज (Interest on Advance): यदि कोई भागीदार व्यवसाय के उद्देश्यों के लिए, जितनी पूंजी देने के लिए सहमत हुआ था, उससे अधिक का कोई भुगतान या अग्रिम (Advance) करता है, तो उसे उस राशि पर छह प्रतिशत प्रति वर्ष (Six Per Cent. Per Annum) की दर से ब्याज प्राप्त करने का अधिकार है। यह पूंजी पर दिए जाने वाले ब्याज से अलग होता है क्योंकि यह ऋण (Loan) की तरह माना जाता है।
• (ङ) फर्म द्वारा क्षतिपूर्ति (Indemnification by Firm): फर्म एक भागीदार को उसके द्वारा किए गए भुगतानों (Payments Made) और उपगत देनदारियों (Liabilities Incurred) के संबंध में क्षतिपूर्ति (Indemnify) करेगी:
o व्यवसाय के सामान्य और उचित संचालन (Ordinary and Proper Conduct) में।
o किसी आपातकाल (Emergency) में, फर्म को नुकसान से बचाने के उद्देश्य से ऐसा कार्य करने में, जैसा कि एक सामान्य विवेक का व्यक्ति (Person of Ordinary Prudence) अपनी स्थिति में, समान परिस्थितियों में करता। यह भागीदारों को निडर होकर फर्म के हित में कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करता है।
• (च) जानबूझकर की गई लापरवाही के लिए क्षतिपूर्ति (Indemnify for Wilful Neglect): एक भागीदार फर्म के व्यवसाय के संचालन में अपनी जानबूझकर की गई लापरवाही (Wilful Neglect) से हुए किसी भी नुकसान के लिए फर्म को क्षतिपूर्ति करेगा। यह सुनिश्चित करता है कि भागीदार अपने कर्तव्यों का सावधानी से पालन करें।
फर्म की संपत्ति (The Property of the Firm)
धारा 14 (Section 14) फर्म की संपत्ति को परिभाषित करती है। भागीदारों के बीच अनुबंध के अधीन रहते हुए, फर्म की संपत्ति में वे सभी संपत्ति (Property) और संपत्ति में अधिकार और हित (Rights and Interests) शामिल होते हैं:
• जो मूल रूप से फर्म के स्टॉक (Stock) में लाए गए थे।
• जो फर्म द्वारा या फर्म के लिए, या फर्म के व्यवसाय के उद्देश्यों और उसके दौरान खरीद (Purchase) या अन्यथा प्राप्त किए गए थे।
• इसमें व्यवसाय की सद्भावना (Goodwill) भी शामिल है।
जब तक विपरीत इरादा (Contrary Intention) प्रकट न हो, फर्म से संबंधित धन (Money Belonging to the Firm) से अधिग्रहित संपत्ति और अधिकार व हित, फर्म के लिए ही अधिग्रहित माने जाते हैं। इसका अर्थ है कि यदि फर्म के पैसे का उपयोग करके कोई संपत्ति खरीदी जाती है, तो वह स्वचालित रूप से फर्म की संपत्ति बन जाती है, जब तक कि स्पष्ट रूप से कुछ और निर्धारित न हो।
फर्म की संपत्ति का उपयोग (Application of the Property of the Firm)
धारा 15 (Section 15) यह निर्धारित करती है कि फर्म की संपत्ति का उपयोग कैसे किया जाएगा। भागीदारों के बीच अनुबंध के अधीन रहते हुए, फर्म की संपत्ति को भागीदारों द्वारा विशेष रूप से व्यवसाय के उद्देश्यों (Exclusively for the Purposes of the Business) के लिए रखा और उपयोग किया जाएगा। यह सुनिश्चित करता है कि फर्म की संपत्ति का दुरुपयोग न हो और इसका उपयोग केवल फर्म के लाभ और उसके लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए हो।
भागीदारों द्वारा अर्जित व्यक्तिगत लाभ (Personal Profits Earned by Partners)
धारा 16 (Section 16) उन स्थितियों को संबोधित करती है जहां भागीदार अपने लिए व्यक्तिगत लाभ कमाते हैं। भागीदारों के बीच अनुबंध के अधीन रहते हुए:
• (क) फर्म के लेन-देन से व्यक्तिगत लाभ (Personal Profits from Firm's Transactions): यदि कोई भागीदार फर्म के किसी लेन-देन (Transaction) से, या फर्म की संपत्ति (Property), या व्यावसायिक संबंध (Business Connection), या फर्म के नाम (Firm Name) के उपयोग से अपने लिए कोई लाभ प्राप्त करता है, तो उसे उस लाभ का हिसाब (Account) देना होगा और उसे फर्म को भुगतान करना होगा। यह भागीदारों के निष्ठा के कर्तव्य (Duty of Loyalty) को मजबूत करता है।
• (ख) प्रतिस्पर्धी व्यवसाय से लाभ (Profits from Competing Business): यदि कोई भागीदार फर्म के व्यवसाय के समान प्रकृति (Same Nature) का और फर्म के साथ प्रतिस्पर्धा (Competing) करने वाला कोई व्यवसाय चलाता है, तो उसे उस व्यवसाय में अपने द्वारा कमाए गए सभी मुनाफे का हिसाब देना होगा और उसे फर्म को भुगतान करना होगा। यह प्रावधान भागीदारों को फर्म के हितों के खिलाफ कार्य करने से रोकता है।
फर्म में परिवर्तन के बाद भागीदारों के अधिकार और कर्तव्य (Rights and Duties of Partners—After a Change in the Firm, After the Expiry of the Term of the Firm, and Where Additional Undertakings are Carried Out)
धारा 17 (Section 17) बताती है कि फर्म में किसी बदलाव या विशिष्ट परिस्थितियों में भागीदारों के अधिकार और कर्तव्य कैसे प्रभावित होते हैं, बशर्ते भागीदारों के बीच कोई विपरीत अनुबंध न हो:
• (क) फर्म की संरचना में परिवर्तन के बाद (After a Change in the Constitution of a Firm): यदि किसी फर्म की संरचना (Constitution) में कोई बदलाव होता है (जैसे किसी नए भागीदार का प्रवेश या किसी मौजूदा भागीदार का सेवानिवृत्त होना), तो पुनर्गठित फर्म (Reconstituted Firm) में भागीदारों के आपसी अधिकार और कर्तव्य वही रहते हैं जो परिवर्तन से ठीक पहले थे, जहाँ तक संभव हो। इसका अर्थ है कि बुनियादी नियम और शर्तें आमतौर पर समान रहती हैं जब तक कि एक नया समझौता न किया जाए।
• (ख) निश्चित अवधि की समाप्ति के बाद व्यवसाय जारी रखना (Continuing Business After Expiry of Fixed Term): यदि एक निश्चित अवधि (Fixed Term) के लिए गठित फर्म उस अवधि की समाप्ति के बाद भी व्यवसाय जारी रखती है, तो भागीदारों के आपसी अधिकार और कर्तव्य वही रहते हैं जो अवधि समाप्त होने से पहले थे। हालांकि, ये अधिकार और कर्तव्य इच्छा पर भागीदारी (Partnership at Will) की विशेषताओं (Incidents) के साथ सुसंगत (Consistent) होने चाहिए। यह दर्शाता है कि एक बार निश्चित अवधि समाप्त होने के बाद, फर्म तकनीकी रूप से इच्छा पर भागीदारी बन जाती है, लेकिन भागीदारों के आपसी संबंध पहले के समझौते के अनुसार ही चलते रहते हैं।
• (ग) अतिरिक्त उपक्रमों को पूरा करना (Carrying Out Additional Undertakings): यदि एक या अधिक रोमांच (Adventures) या उपक्रमों (Undertakings) को पूरा करने के लिए गठित फर्म अन्य रोमांच या उपक्रमों को भी पूरा करती है, तो उन अन्य रोमांच या उपक्रमों के संबंध में भागीदारों के आपसी अधिकार और कर्तव्य वही होते हैं जो मूल रोमांच या उपक्रमों के संबंध में थे। इसका मतलब है कि यदि फर्म अपने मूल दायरे से आगे बढ़ती है और नई परियोजनाओं में संलग्न होती है, तो भागीदारों के आपसी नियम और शर्तें उन नई गतिविधियों पर भी लागू होती हैं।