राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 116 से 121 : ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि के अभिलेखन, सीमांकन और स्वामित्व निर्धारण की प्रक्रिया

Himanshu Mishra

27 May 2025 12:28 PM

  • राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 116 से 121 : ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि के अभिलेखन, सीमांकन और स्वामित्व निर्धारण की प्रक्रिया

    राजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम, 1956 की धाराएँ 116 से 121 तक ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि के अभिलेखन, सीमांकन और स्वामित्व निर्धारण की प्रक्रिया को स्पष्ट रूप से वर्णित करती हैं। इन प्रावधानों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि ग्रामों की आम जरूरतों, निवास, कृषि कार्यों और स्वामित्व से जुड़ी सभी जानकारियाँ विधिसम्मत रूप से दर्ज और सुरक्षित की जाएँ। यह लेख इन धाराओं की सरल भाषा में व्याख्या प्रस्तुत करता है।

    धारा 116 - सामान्य प्रयोजनों के लिए उपयोग की जा रही बेनाम भूमि के संबंध में प्रक्रिया

    जब किसी भूमि पर किसी का स्वामित्व दावा नहीं होता और वह भूमि राज्य की घोषित की जाती है, तब भी यदि गाँव के निवासी यह सिद्ध कर देते हैं कि वे उस भूमि का उपयोग वर्षों से चराई, कृषि या अन्य सामान्य प्रयोजनों के लिए करते आ रहे हैं, तो भू-अभिलेख अधिकारी ऐसी भूमि का आवश्यक भाग उस गाँव के लिए सुरक्षित कर सकता है। शेष भूमि को राज्य की संपत्ति घोषित किया जा सकता है।

    उदाहरण के लिए, अगर गाँव 'रामपुरा' के लोग किसी भूमि को वर्षों से अपने मवेशियों के लिए चारागाह के रूप में उपयोग करते आ रहे हैं और उस पर कोई कानूनी दावा नहीं है, तो अधिकारी उस भाग को गाँव के लिए संरक्षित घोषित कर सकता है।

    धारा 117 - सीमित अधिकार की स्थापना होने पर प्रक्रिया

    यदि कोई व्यक्ति ऐसी भूमि पर केवल उपयोग का अधिकार सिद्ध करता है, न कि पूर्ण स्वामित्व, तो भू-अभिलेख अधिकारी उस व्यक्ति को स्पष्ट रूप से चिन्हित भाग सौंप सकता है या राजस्थान भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1953 के अंतर्गत राज्य सरकार की अनुमति से क्षतिपूर्ति दे सकता है। इससे उस व्यक्ति के अन्य सभी दावों का अंत हो जाता है।

    उदाहरण स्वरूप, यदि किसी किसान ने वर्षों तक किसी भूमि से मिट्टी लेने का सीमित अधिकार सिद्ध किया हो, तो अधिकारी उसे कुछ भूमि दे सकता है या मुआवजा प्रदान कर सकता है।

    धारा 118 - खुदकश्त भूमि का निर्धारण और अभिलेखन

    खुदकश्त भूमि वह होती है जिसे भूमि का स्वामी स्वयं जोतता है। भू-अभिलेख अधिकारी प्रत्येक क्षेत्र में यह निर्धारित करता है कि कितनी भूमि खुदकश्त श्रेणी में आती है और उसी अनुसार उसका रिकॉर्ड बनाया जाता है।

    उदाहरण के लिए, यदि 'श्यामलाल' अपनी 5 बीघा भूमि स्वयं जोतता है, तो वह भूमि खुदकश्त के रूप में दर्ज की जाएगी।

    धारा 119 - गाँव की आबादी का निर्धारण

    प्रत्येक बसे हुए गाँव में निवासियों के आवास हेतु जो क्षेत्र सुरक्षित रखा गया है या जो सहायक कार्यों के लिए आवश्यक है, उसका निर्धारण भू-अभिलेख अधिकारी करता है। इस क्षेत्र को गाँव की 'आबादी' माना जाता है।

    उदाहरण के लिए, गाँव 'धनेरिया' में 20 बीघा भूमि पर घर बने हैं और पास ही तालाब, रास्ते, स्कूल और मंदिर हैं, तो यह पूरा क्षेत्र 'आबादी' क्षेत्र माना जाएगा।

    धारा 120 - गाँवों का रजिस्टर

    भू-अभिलेख अधिकारी प्रत्येक सर्वे और अभिलेख क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले सभी गाँवों की सूची तैयार करता है। इस सूची में निम्न जानकारियाँ शामिल की जाती हैं : ऐसी भूमि जो नदी आदि से सिंचित होती है, जो अस्थिर कृषि योग्य होती है, उस पर निर्धारित लगान, किराया, उसे कौन चुका रहा है, किसके माध्यम से यह भुगतान होता है, और जहाँ लगान माफ हुआ है वहाँ किस अधिकारी ने और किन शर्तों पर यह माफी दी है।

    उदाहरण के लिए, 'लालपुरा' गाँव में 50 बीघा भूमि पर वर्षा आधारित खेती होती है और राज्य सरकार ने प्राकृतिक आपदा के कारण उस पर एक साल के लिए लगान माफ कर दिया है, तो यह सब रजिस्टर में दर्ज होगा।

    धारा 121 - खतौनी में दिए जाने वाले विवरण

    यह धारा खतौनी नामक रजिस्टर से संबंधित है जिसमें खेती करने वालों या भूमि पर किसी भी प्रकार का अधिकार रखने वालों के विवरण होते हैं। प्रत्येक व्यक्ति के लिए निम्न जानकारियाँ शामिल होती हैं : उसका किरायेदारी का प्रकार, खाता संख्या, कितनी भूमि है, प्रत्येक खेत का खसरा नंबर और क्षेत्रफल, वार्षिक किराया, कोई अन्य विशेष शर्तें, और कब से वह भूमि उसके पास है।

    यदि वह व्यक्ति खातेदार नहीं है, तो उसके भूमि पर अधिकार का कालावधि भी लिखा जाता है। इसके अतिरिक्त, खुदकश्त भूमि का विवरण और कितने वर्षों से कोई व्यक्ति उसे जोत रहा है यह भी दर्ज किया जाता है।

    उदाहरण के लिए, 'हरिराम' पिछले 10 वर्षों से 3 बीघा भूमि जोत रहा है जिसकी खतौनी संख्या 54 है और खसरा संख्या 101, 102, 103 है, तो यह सब खतौनी में लिखा जाएगा। यदि वह खालिस खातेदार है तो उसका उल्लेख भी होगा।

    राजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम, 1956 की ये धाराएँ ग्रामीण भूमि व्यवस्थापन को पारदर्शी और न्यायपूर्ण बनाने की दिशा में एक सशक्त आधार प्रदान करती हैं। इससे यह सुनिश्चित होता है कि न केवल राज्य की संपत्ति की रक्षा हो, बल्कि आम जनता के उपयोग और स्वामित्व से जुड़े अधिकार भी सुरक्षित रहें।

    भू-अभिलेख अधिकारियों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि वही सीमांकन, स्वामित्व निर्धारण, अभिलेखन और विवादों के समाधान की प्रक्रिया को निष्पक्ष रूप से संचालित करते हैं। इन प्रावधानों की सही समझ ग्रामीण जनता को अपने भूमि अधिकारों की रक्षा के लिए सशक्त बनाती है।

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