राजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 94: वनों की वृद्धि के नियंत्रण और प्रबंधन की शक्तियां

Himanshu Mishra

21 May 2025 7:22 PM IST

  • राजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 94: वनों की वृद्धि के नियंत्रण और प्रबंधन की शक्तियां

    राजस्थान एक ऐसा राज्य है जहाँ वनों का संरक्षण न केवल पर्यावरणीय दृष्टिकोण से आवश्यक है, बल्कि यह स्थानीय ग्रामीण जीवन और आजीविका से भी गहराई से जुड़ा हुआ है। इसी उद्देश्य से राजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 94 बनाई गई है, जो राज्य सरकार को वनों की वृद्धि के नियंत्रण और प्रबंधन के लिए आवश्यक नियम बनाने की शक्ति प्रदान करती है। यह धारा न केवल पर्यावरण की रक्षा करती है बल्कि ग्रामों और सम्पदा (estate) के स्तर पर वन उत्पादों के संरक्षण को भी सुनिश्चित करती है।

    धारा 94(1): नियम बनाने की शक्ति और दंड का प्रावधान

    इस उपधारा के अनुसार, राज्य सरकार को यह अधिकार है कि वह वनों की कटाई को रोकने और वन विकास को नियंत्रित करने हेतु नियम बना सके। यह नियम किसी भी सम्पदा या गांव की भूमि पर स्थित वनों की वृद्धि, उनका नियंत्रण और उनके उपयोग के अधिकारों से संबंधित हो सकते हैं।

    सरकार इन नियमों के उल्लंघन पर अधिकतम एक हजार रुपये का दंड निर्धारित कर सकती है। यदि नियम का उल्लंघन लगातार होता रहता है, तो हर दिन के लिए अधिकतम पचास रुपये तक का दंड लगाया जा सकता है।

    यह ध्यान देने योग्य है कि यह दंड केवल किसी सक्षम आपराधिक न्यायालय द्वारा ही लगाया जा सकता है। उदाहरण के लिए, अगर कोई गांव का व्यक्ति सरकार द्वारा बनाए गए नियमों की अवहेलना करता है और बार-बार वन क्षेत्र से लकड़ी काटता है, तो उस पर अदालत द्वारा उपयुक्त दंड लगाया जा सकता है।

    धारा 94(2): हानि के मुआवजे का प्रावधान

    यदि किसी नियम के उल्लंघन से किसी व्यक्ति को हानि या चोट पहुँची है, तो अदालत यह आदेश दे सकती है कि वसूले गए धन का संपूर्ण या कोई हिस्सा उस व्यक्ति को मुआवजे के रूप में दिया जाए।

    इसके अतिरिक्त, यदि अदालत चाहे तो वह यह भी निर्देश दे सकती है कि यह राशि वन क्षेत्र के लाभ के लिए किसी उपयुक्त तरीके से व्यय की जाए। जैसे किसी गांव में अवैध रूप से जंगल काटे गए और इससे वहाँ के चरवाहों की आजीविका प्रभावित हुई, तो अदालत हर्जाना राशि का प्रयोग वन क्षेत्र में चारा उगाने या वृक्षारोपण के लिए करवा सकती है।

    धारा 94(3): जब्त की गई लकड़ी या वन उत्पाद की बिक्री

    यदि कोई व्यक्ति इन नियमों के विरुद्ध जाकर लकड़ी या अन्य वन उत्पाद काटता है, तो वह न्यायालय इन वस्तुओं को जब्त कर सकती है और उन्हें बेच सकती है। बिक्री से प्राप्त धन का प्रयोग या तो पीड़ित व्यक्ति को मुआवजा देने में या वन क्षेत्र के सुधार हेतु किया जा सकता है।

    उदाहरण के लिए, एक व्यक्ति गाँव के बाहर से चोरी-छिपे बड़ी मात्रा में इमारती लकड़ी काटता है, तो अदालत उस लकड़ी को जब्त कर नीलाम कर सकती है, और प्राप्त राशि को वृक्षारोपण या जंगल की सुरक्षा में लगा सकती है।

    धारा 94(4): गंभीर उल्लंघन की स्थिति में कलेक्टर की शक्ति

    अगर कोई सम्पदा-धारक या कोई अन्य व्यक्ति नियमों का गंभीर उल्लंघन करता है और यह प्रमाणित होता है कि उसने ऐसी स्थिति को रोकने के लिए पर्याप्त सावधानी नहीं बरती, तो कलेक्टर के पास दो विकल्प होते हैं:

    (क) कलेक्टर यह घोषणा कर सकता है कि अब उस सम्पदा या गांव के वन क्षेत्र की सुरक्षा राज्य सरकार द्वारा की जाएगी।

    (ख) कलेक्टर उस व्यक्ति को कारण बताओ नोटिस जारी कर सकता है और यह पूछा जा सकता है कि क्यों न उसे उस वन भूमि के कब्जे से बाहर कर दिया जाए।

    इस प्रक्रिया में यह भी आवश्यक है कि संबंधित व्यक्ति को पूरी सुनवाई का अवसर दिया जाए।

    मान लीजिए, किसी सम्पदा मालिक के वन क्षेत्र में बार-बार अवैध कटाई हो रही है और वह कोई कदम नहीं उठाता है, तब कलेक्टर उसे नोटिस देकर उसका वन भूमि पर से अधिकार समाप्त कर सकता है।

    धारा 94(5): सरकार द्वारा संरक्षित वन क्षेत्र में कटाई का निषेध

    जब किसी गांव या सम्पदा के वन क्षेत्र को सरकार द्वारा संरक्षित घोषित कर दिया जाता है, तब वहां से किसी भी प्रकार की लकड़ी या झाड़ी की कटाई बिना कलेक्टर की अनुमति के अवैध मानी जाएगी।

    उदाहरण के लिए, किसी गांव के वन क्षेत्र को सरकार ने संरक्षण में ले लिया है, तो उस गांव का कोई भी निवासी यदि बिना अनुमति लकड़ी काटेगा, तो वह अपराध होगा।

    धारा 94(6): वन क्षेत्र का प्रबंधन सरकार द्वारा किया जाना

    यदि कारण बताओ नोटिस का संतोषजनक उत्तर नहीं दिया गया, तो कलेक्टर ऐसे व्यक्ति को वन भूमि के कब्जे से बाहर कर सकता है और सरकार उस भूमि का प्रत्यक्ष प्रबंधन अपने हाथ में ले सकती है।

    इस स्थिति में यह व्यवस्था की गई है कि उस वन भूमि की सकल आय का भुगतान सम्बंधित व्यक्ति को किया जाएगा, लेकिन उससे प्रबंधन में हुए खर्च की कटौती की जाएगी।

    उदाहरण के तौर पर, सरकार ने किसी वन क्षेत्र का प्रत्यक्ष प्रबंधन संभाला और उसे एक साल में ₹1,00,000 की आय हुई, तो ₹20,000 प्रशासनिक खर्च काटकर ₹80,000 सम्बंधित सम्पदा-धारक को मिलेगा, बशर्ते उसे पूरी प्रक्रिया में सुनवाई का अवसर मिला हो।

    धारा 94(7): वन भूमि पर कोई अनुबंध सरकार पर बाध्यकारी नहीं होगा

    जब सरकार वन भूमि का प्रत्यक्ष प्रबंधन करती है, तब उस भूमि पर किया गया कोई पट्टा (lease), अधिकार (lien), बंधक (encumbrance) या अनुबंध (contract) सरकार के लिए बाध्यकारी नहीं होगा।

    इसका अर्थ है कि अगर पहले से किसी व्यक्ति ने ऐसी भूमि को किराए पर दे रखा था, तो सरकार उस अनुबंध को मानने के लिए बाध्य नहीं होगी।

    उदाहरण के लिए, एक वन क्षेत्र को किसी व्यापारी को बांस काटने के लिए पट्टे पर दिया गया था, परन्तु बाद में सरकार ने उस भूमि का प्रत्यक्ष प्रबंधन संभाल लिया, तो अब वह पट्टा स्वतः शून्य हो जाएगा।

    अंतिम प्रावधान: अवैध रूप से काटे गए पेड़ों का मूल्य सरकार को देना होगा

    यदि कोई व्यक्ति वन क्षेत्र से अवैध रूप से पेड़ या अन्य प्राकृतिक उत्पाद प्राप्त करता है, तो वह उस उत्पाद का मूल्य सरकार को चुकाने के लिए उत्तरदायी होगा। यह राशि सरकार भू-राजस्व के बकाया की तरह वसूल सकती है और इसके अलावा अन्य दंड भी लगाया जा सकता है।

    कलेक्टर का इस संबंध में जो मूल्य निर्धारण होगा, वह अंतिम और निर्णायक माना जाएगा।

    यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि धारा के अंतिम हिस्से में एक स्पष्टीकरण जोड़ा गया है, जिसके अनुसार किसी किरायेदार को ऐसे वृक्षों का उत्पादन प्राप्त करने का विशेष अधिकार है। यह प्रावधान इसलिए जोड़ा गया है

    राजस्थान भूमि राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 94 न केवल वनों की रक्षा के लिए एक प्रभावशाली कानूनी ढांचा प्रदान करती है, बल्कि यह ग्राम स्तर पर जागरूकता और संरक्षण को भी बढ़ावा देती है। इसके माध्यम से राज्य सरकार को यह शक्ति मिलती है कि वह नियम बनाकर वनों की अवैध कटाई पर अंकुश लगा सके, दोषियों को दंडित कर सके और जंगलों को समुचित प्रबंधन के अधीन लाकर उनका सतत विकास सुनिश्चित कर सके।

    यह धारा एक उदाहरण है कि किस प्रकार कानून, प्रशासन और पर्यावरण की रक्षा के बीच संतुलन स्थापित करता है।

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