राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 88 और 89 : राज्य की कब संपत्ति मानी जाएंगी
Himanshu Mishra
16 May 2025 10:21 PM IST

धारा 88 – सभी सड़कें, नाले, जल स्रोत तथा ऐसी अन्य भूमि जो किसी व्यक्ति की संपत्ति नहीं है, वे राज्य की संपत्ति मानी जाएंगी
राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम की धारा 88 यह स्पष्ट करती है कि वे सभी सड़कें, गलियाँ, रास्ते, पुल, नाले, नदी-नालों के किनारे की बाड़ें, नदियाँ, झीलें, तालाब, नहरें, जलधाराएँ, बहता हुआ अथवा जमा हुआ पानी और वे सभी भूमि जो किसी व्यक्ति या ऐसी संस्था की संपत्ति नहीं हैं जो कानूनन संपत्ति रखने की पात्र हो—वे राज्य सरकार की संपत्ति मानी जाएंगी।
इसका मतलब यह हुआ कि जो जमीन या संपत्ति स्पष्ट रूप से किसी के नाम पर दर्ज नहीं है और जिस पर किसी का वैध अधिकार साबित नहीं हुआ है, वह सरकारी संपत्ति मानी जाएगी।
उदाहरण
मान लीजिए, गाँव में एक तालाब है, जिसके चारों ओर कोई बाड़बंदी नहीं है और कोई व्यक्ति यह दावा नहीं कर रहा है कि वह उसकी निजी संपत्ति है। ऐसा तालाब राज्य की संपत्ति माना जाएगा और उसका मालिकाना हक राज्य सरकार के पास होगा।
इस प्रावधान के तहत कलेक्टर को अधिकार है कि वह ऐसी संपत्तियों को राज्य के निर्देशों के अनुसार नियमानुसार निपटाए यानी बेचे, पट्टे पर दे या अन्य उपयोग में ले, लेकिन इसमें जनता के रास्तों या व्यक्तिगत अधिकारों का उल्लंघन नहीं किया जा सकता।
कलेक्टर द्वारा दावा तय करना – उपधारा (2)
अगर कोई व्यक्ति किसी संपत्ति पर दावा करता है, जबकि सरकार भी उसे अपनी संपत्ति मानती है, तो कलेक्टर उस पर सुनवाई कर सकता है। यह सुनवाई औपचारिक होगी और दोनों पक्षों को नोटिस दिया जाएगा। इसके बाद कलेक्टर निर्णय देगा कि संपत्ति किसकी है।
उदाहरण
मान लीजिए, कोई व्यक्ति यह दावा करता है कि उसकी पुश्तैनी जमीन है, लेकिन राजस्व अभिलेख में वह भूमि 'सरकारी' दर्ज है। तो कलेक्टर दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद आदेश पारित करेगा।
न्यायालय में वाद दायर करने की समय सीमा – उपधारा (3)
यदि कलेक्टर ने उपधारा (1) या (2) के तहत कोई आदेश पारित किया है, तो उस आदेश के विरुद्ध कोई वाद सिविल न्यायालय में एक वर्ष के भीतर ही दायर किया जा सकता है। यदि किसी न्यायिक अपील का निर्णय आया है, तो अंतिम निर्णय की तारीख से एक वर्ष की समय सीमा मानी जाएगी। अगर यह समय बीत चुका है, तो वाद केवल इस आधार पर खारिज कर दिया जाएगा कि उसने समय सीमा का पालन नहीं किया, भले ही प्रतिवादी ने समय सीमा का मुद्दा उठाया हो या नहीं।
उदाहरण
अगर कलेक्टर ने 1 जनवरी 2025 को आदेश पारित किया और व्यक्ति ने उसे चुनौती नहीं दी, तो 1 जनवरी 2026 के बाद वह सिविल न्यायालय में वाद दायर नहीं कर सकेगा।
नोटिस का अनुमानित ज्ञान – उपधारा (4)
अगर किसी व्यक्ति को विधि के अनुसार नोटिस दिया गया है या कानून के तहत नोटिस देने की विधि का पालन हुआ है, तो माना जाएगा कि उस व्यक्ति को उस आदेश या कार्यवाही की जानकारी थी।
प्रवर्तन का अधिकार – उपधारा (5)
कलेक्टर को यह अधिकार प्राप्त है कि वह अपने आदेशों को लागू करवाने के लिए वैधानिक उपायों का उपयोग करे।
धारा 89 – खनिज, खान, पत्थर की खदानें, मत्स्य पालन, जल-परिवहन और सिंचाई पर राज्य सरकार का विशेषाधिकार
इस धारा के अनुसार, सभी प्रकार के खनिज, खदानें, पत्थर की खदानें, मत्स्य पालन, नदियों से संबंधित परिवहन एवं सिंचाई के अधिकार राज्य सरकार के पास होंगे। यह एक व्यापक अधिकार है जो सरकार को इन संसाधनों का प्रयोग, नियंत्रण और प्रबंधन करने का अधिकार देता है।
खनन और सहायक कार्यों हेतु भूमि उपयोग का अधिकार – उपधारा (2)
राज्य सरकार को यह भी अधिकार है कि वह खनन संबंधी कार्यों के लिए आवश्यक भूमि तक पहुँच बनाए, वहाँ कार्यालय, कर्मचारियों के निवास, मशीनरी आदि के निर्माण की अनुमति दे, रास्ते बनाए और अन्य सहायक कार्यों की अनुमति दे।
उदाहरण
अगर राज्य सरकार किसी निजी कंपनी को एक क्षेत्र में पत्थर की खदान चलाने का अधिकार देती है, तो कंपनी को वहाँ तक पहुँचने के लिए सड़क बनाने और कर्मचारियों के लिए कार्यालय व निवास बनाने की अनुमति राज्य सरकार से मिलेगी।
अधिकार के हस्तांतरण के साथ शक्तियों का हस्तांतरण – उपधारा (3)
यदि राज्य सरकार ने किसी व्यक्ति को किसी क्षेत्र के खनिजों के दोहन का अधिकार दिया है और उस कार्य के लिए उपधारा (1) व (2) के तहत कुछ शक्तियों की आवश्यकता है, तो कलेक्टर उन्हें लिखित आदेश द्वारा, शर्तों सहित, सौंप सकता है।
लेकिन, इससे पहले उस भूमि पर अधिकार रखने वाले सभी व्यक्तियों को नोटिस देना और उनकी आपत्तियों को सुनना आवश्यक होगा।
मुआवज़े का अधिकार – उपधारा (4)
यदि खनन या अन्य कार्यों से किसी व्यक्ति की भूमि या अधिकारों को क्षति पहुँचती है, तो उस व्यक्ति को उचित मुआवज़ा दिया जाएगा। यह मुआवज़ा कलेक्टर तय करेगा और यदि कोई पक्ष संतुष्ट नहीं है तो वह सिविल न्यायालय में जा सकता है। मुआवज़े की गणना राजस्थान भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1953 के अनुसार होगी।
उदाहरण
यदि किसी किसान की ज़मीन में से खनन कंपनी सड़क बनाती है जिससे उसकी खेती में बाधा आती है, तो उसे मुआवज़ा मिलेगा।
बिना अनुमति भूमि में प्रवेश निषिद्ध – उपधारा (5)
राज्य सरकार द्वारा अधिकृत कोई भी व्यक्ति तब तक किसी की भूमि पर प्रवेश नहीं कर सकता जब तक कि कलेक्टर की अनुमति न मिल जाए और मुआवज़ा तय कर उसे दे न दिया गया हो।
मुआवज़े की वसूली – उपधारा (6)
यदि राज्य सरकार का कोई असाइन किया गया व्यक्ति मुआवज़ा नहीं देता, तो कलेक्टर उस राशि को भू-राजस्व की बकाया राशि की तरह वसूल कर उस व्यक्ति को दिला सकता है।
अवैध खनन पर दंड – उपधारा (7)
यदि कोई व्यक्ति बिना अधिकार या अनुमति के किसी खदान या खान से खनिज निकालता है, तो कलेक्टर उसे दंडित कर सकता है। दंड की अधिकतम राशि प्रति टन 50 रुपये होगी, और न्यूनतम राशि 1000 रुपये तक बढ़ाई जा सकती है।
उदाहरण
अगर कोई व्यक्ति बिना अनुमति के 10 टन पत्थर निकालता है, तो उसे 500 रुपये प्रति टन के हिसाब से 5000 रुपये का जुर्माना देना पड़ सकता है।
राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम की धारा 88 और 89 का मूल उद्देश्य यह है कि जो सार्वजनिक संपत्तियाँ या प्राकृतिक संसाधन व्यक्तिगत स्वामित्व में नहीं हैं, वे राज्य की संपत्ति मानी जाएँगी और उनका नियंत्रण सरकार के पास होगा। इससे राज्य सरकार को इन संसाधनों के उचित प्रबंधन, उपयोग और संरक्षण में सहायता मिलती है। साथ ही, इन प्रावधानों में यह भी सुनिश्चित किया गया है कि यदि किसी व्यक्ति के अधिकारों का हनन होता है, तो उसे मुआवज़ा और न्यायिक प्रक्रिया का विकल्प प्राप्त हो।

