सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 87: नियम बनाने की केंद्र सरकार की शक्ति

Himanshu Mishra

23 Jun 2025 5:29 PM IST

  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 87: नियम बनाने की केंद्र सरकार की शक्ति

    सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 का उद्देश्य डिजिटल युग में साइबर अपराधों को नियंत्रित करना, डिजिटल दस्तावेजों की वैधता को सुनिश्चित करना और ऑनलाइन लेन-देन को कानूनी सुरक्षा प्रदान करना है। इस अधिनियम में केंद्र सरकार को विभिन्न धाराओं के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए नियम (Rules) बनाने का अधिकार भी दिया गया है।

    यह अधिकार विशेष रूप से अधिनियम की धारा 87 में बताया गया है। इस लेख में हम धारा 87 को विस्तार से समझेंगे, साथ ही इसमें उल्लिखित अन्य धाराओं का संक्षेप में उल्लेख करते हुए यह जानेंगे कि ये नियम क्यों और कैसे बनाए जाते हैं।

    नियम बनाने की शक्ति का उद्देश्य

    धारा 87 के अनुसार, केंद्र सरकार अधिसूचना (Notification) के माध्यम से आधिकारिक राजपत्र (Official Gazette) और इलेक्ट्रॉनिक गजट में नियम प्रकाशित कर सकती है। यह नियम अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने और उसे स्पष्ट करने के लिए बनाए जाते हैं।

    सरकार को यह अधिकार इसलिए दिया गया है क्योंकि अधिनियम में कई बार ऐसे विषय होते हैं जिन्हें विस्तार से परिभाषित करना व्यावहारिक नहीं होता। ऐसे मामलों में नियमों के माध्यम से बारीक प्रक्रियाएं, तकनीकी निर्देश, शुल्क, योग्यता आदि तय किए जाते हैं।

    कौन-कौन से विषयों पर बनाए जा सकते हैं नियम

    इस धारा के उपधारा (2) में बताया गया है कि सरकार विशेष रूप से किन-किन विषयों पर नियम बना सकती है। उदाहरण के लिए, इलेक्ट्रॉनिक सिग्नेचर की प्रमाणिकता और प्रक्रिया से जुड़े नियम धारा 3A और 5 के अंतर्गत निर्धारित किए जा सकते हैं। धारा 3A डिजिटल सिग्नेचर के अतिरिक्त अन्य इलेक्ट्रॉनिक प्रमाणीकरण तकनीकों की वैधता को लेकर है। धारा 5 यह तय करती है कि किस प्रकार कोई सूचना इलेक्ट्रॉनिक सिग्नेचर द्वारा प्रमाणित मानी जाएगी।

    इसके अलावा, धारा 6 में यह बताया गया है कि सरकारी कार्य जैसे आवेदन जमा करना, दस्तावेज़ जारी करना या भुगतान करना इलेक्ट्रॉनिक रूप में कैसे होगा। इसके लिए नियमों में प्रक्रिया, प्रारूप (Format), शुल्क आदि निर्धारित किए जा सकते हैं।

    इसी तरह, धारा 10 में यह प्रावधान है कि इलेक्ट्रॉनिक सिग्नेचर को किस प्रकार लगाया जाएगा, धारा 15 में इसका डाटा कहां और कैसे सुरक्षित किया जाएगा और धारा 16 में सुरक्षा मानक (Security Standards) क्या होंगे, यह सब नियमों द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।

    धारा 17 के अंतर्गत Controller, Deputy Controller और Assistant Controllers की योग्यता और सेवा शर्तें भी नियमों द्वारा निर्धारित की जा सकती हैं। यह अधिकारी डिजिटल प्रमाणपत्र जारी करने और उनके नियमन से संबंधित होते हैं।

    धारा 21 से लेकर 23 तक के प्रावधान प्रमाणन प्राधिकरण (Certifying Authority) से संबंधित हैं। इन प्राधिकरणों को लाइसेंस देने की प्रक्रिया, फीस, और आवेदन के प्रारूप जैसे विषयों को नियमों के द्वारा संचालित किया जाता है।

    धारा 35 यह सुनिश्चित करती है कि किसी व्यक्ति को डिजिटल सिग्नेचर सर्टिफिकेट कैसे मिलेगा। इसमें भी नियमों के माध्यम से आवेदन का फॉर्मेट, फीस और आवश्यक दस्तावेजों को तय किया जाता है।

    धारा 40A में यह बताया गया है कि Subscriber की क्या जिम्मेदारियाँ होंगी, जैसे डिजिटल सिग्नेचर का गोपनीय रखना। इसके लिए नियमों में विस्तार किया जा सकता है। इसी तरह, धारा 43A में संवेदनशील निजी डाटा की सुरक्षा और कंपनियों के लिए अनिवार्य सुरक्षा उपाय बताए गए हैं। यह सेक्शन डेटा प्राइवेसी से जुड़ा हुआ है और नियमों के माध्यम से इसकी व्याख्या की जाती है।

    धारा 46 और 57 में Adjudicating Officers की नियुक्ति, योग्यता और उनके द्वारा किए जाने वाले वादों की प्रक्रिया भी नियमों के द्वारा नियंत्रित होती है।

    धारा 67C यह कहती है कि इंटरमीडियरी (जैसे सोशल मीडिया कंपनियाँ) को कुछ जानकारी कितनी अवधि तक सुरक्षित रखनी चाहिए, इसका निर्धारण भी नियमों द्वारा होगा।

    धारा 69, 69A और 69B में क्रमशः निगरानी, ब्लॉकिंग और ट्रैफिक डाटा की निगरानी से जुड़े प्रावधान हैं। इन सभी गतिविधियों के लिए केंद्र सरकार नियम बनाएगी जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि नागरिकों के अधिकारों और सरकारी सुरक्षा के बीच संतुलन बना रहे।

    धारा 70 में Protected System की सुरक्षा के लिए नियम बनाए जा सकते हैं। यह वह सिस्टम होते हैं जिनका राष्ट्रीय सुरक्षा, अर्थव्यवस्था या सार्वजनिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव होता है। इनकी सुरक्षा पद्धतियों को तय करने के लिए सरकार नियम बनाती है।

    धारा 70A और 70B क्रमशः National Nodal Agency और Indian Computer Emergency Response Team (CERT-In) की भूमिकाओं को निर्धारित करती हैं। इनके कार्यों, कर्मचारियों और वेतन संबंधी शर्तों को भी नियमों द्वारा तय किया जाता है।

    धारा 79 में Intermediaries की जिम्मेदारी और छूट का वर्णन है। इसके अंतर्गत नियमों में यह बताया जाता है कि वे किन शर्तों का पालन करें ताकि उन्हें वैधानिक संरक्षण प्राप्त हो।

    धारा 84A में एन्क्रिप्शन यानी जानकारी को सुरक्षित रूप से भेजने की विधियों को केंद्र सरकार नियमों द्वारा तय करती है।

    संसद की भूमिका और निगरानी

    धारा 87 की उपधारा (3) में यह स्पष्ट किया गया है कि केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए किसी भी नियम या अधिसूचना को संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखा जाएगा। यह संसद की निगरानी की व्यवस्था है जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि कार्यपालिका द्वारा बनाए गए नियम संविधान और कानून के अनुरूप हैं।

    यदि संसद के दोनों सदन किसी नियम में बदलाव करना चाहें या उसे रद्द करना चाहें, तो वे ऐसा कर सकते हैं। उस स्थिति में वह नियम उसी रूप में प्रभावी होगा जैसा संसद ने तय किया है। इस प्रकार, संसद की शक्ति को सुरक्षित रखते हुए प्रशासनिक प्रक्रियाओं को लचीला बनाया गया है।

    उदाहरण और व्याख्या

    मान लीजिए केंद्र सरकार ने एक नियम बनाया कि सभी ई-गवर्नेंस सेवाओं में डिजिटल सिग्नेचर का उपयोग अनिवार्य होगा, और इसके लिए एक निश्चित एन्क्रिप्शन तकनीक अपनाई जाएगी। यह नियम तब प्रभावी माना जाएगा जब वह अधिसूचना द्वारा प्रकाशित होगा और संसद के समक्ष रखा जाएगा। यदि संसद को लगे कि यह नियम आम जनता के अधिकारों का उल्लंघन करता है, तो वह इसे संशोधित या रद्द कर सकती है।

    इसी प्रकार, यदि कोई इंटरमीडियरी जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म सरकार द्वारा दी गई गाइडलाइंस के अनुसार कार्य नहीं करता और आपत्तिजनक सामग्री हटाने में विफल रहता है, तो सरकार द्वारा बनाए गए नियमों के अनुसार उस पर कार्रवाई हो सकती है।

    धारा 87 सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम का एक अत्यंत महत्वपूर्ण भाग है जो केंद्र सरकार को अधिनियम के सुचारू क्रियान्वयन हेतु नियम बनाने की शक्ति देता है। यह शक्ति न केवल प्रशासनिक दृष्टिकोण से आवश्यक है, बल्कि यह तकनीकी बदलावों के अनुसार कानून को समय-समय पर अद्यतन बनाए रखने में भी सहायक है।

    धारा 87 के माध्यम से बनाए गए नियम यह सुनिश्चित करते हैं कि अधिनियम के प्रावधान केवल कागज़ पर न रह जाएं, बल्कि व्यवहार में लागू हों और डिजिटल भारत के लक्ष्य की प्राप्ति में सहायक बनें।

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