सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66F: साइबर आतंकवाद की व्यापक व्याख्या

Himanshu Mishra

10 Jun 2025 5:08 PM IST

  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66F: साइबर आतंकवाद की व्यापक व्याख्या

    प्रस्तावना

    डिजिटल युग में इंटरनेट, कंप्यूटर, नेटवर्क प्रणाली और संचार उपकरण हमारे दैनिक जीवन का अहम हिस्सा बन गए हैं। लेकिन जितनी तेजी से ये तकनीकें उपयोग में लाई जाती हैं, उतनी ही चिंताएं भी बढ़ रही हैं। साइबर अपराध (Cyber Crime) बढ़े हैं और उसमें अधिकांश नए खतरों में से एक साइबर आतंकवाद (Cyber Terrorism) है। भारत सरकार ने इसे नियंत्रण में लाने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 में संशोधन करते हुए 2008 में धारा 66F जोड़ी, जो इस अपराध पर आजीवन कैद समेत अन्य दंड प्रदान करती है।

    पहले हमने अधिनियम की धारा 65, 66, 66A, 66B, 66C, 66D और 66E पर चर्चा की थी। अब धारा 66F के माध्यम से हम यह समझेंगे कि किस तरह से यह राष्ट्रीय सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था और नागरिक जीवन से जुड़े गंभीर अपराधों का जिम्मेदार, कानूनी प्रावधान बनता है।

    धारा 66F का कानूनी विवरण और वर्गीकरण

    धारा 66F दो मुख्य भागों में विभक्त है। पहले भाग (1)(A) में उन कृत्यों को बताया गया है जो इस्लामिक आतंकवाद या राजनीतिक उन्माद नहीं बल्कि साइबर हमले के रूप में किये जाते हैं। इसमें डिजिटल साधनों के माध्यम से सरकार का नियंत्रण कर बाधा उत्पन्न करना, अथॉराइज्ड व्यक्ति को सिस्टम से दूर रखना, और कंप्यूटर में मालवेयर, वायरस या रैंसमवेयर जैसे कंप्यूटर कंटामिनेंट्स (Contaminant) स्थापित करना शामिल है।

    यदि इस तरह की घटना से लोगों की जान को खतरा, संपत्ति को नुकसान या जीवन-आवश्यक सेवाओं में व्यवधान जैसे स्वास्थ्य सेवाएँ, बिजली, पानी, यातायात या सुरक्षा को असर होता है, या महत्वपूर्ण सूचना संरचना (Critical Information Infrastructure) जैसे एयर ट्रैफिक कंट्रोल, बैंकिंग सिस्टम, ऊर्जा ग्रिड, पानी की आपूर्ति आदि को क्षति पहुँचती है, तो यह अपराध धारा 66F के अंतर्गत आता है ।

    इसी धारा के दूसरे भाग (1)(B) में उन घटनाओं को शामिल किया गया है जहाँ कोई व्यक्ति बिना अनुमति या अधिकृत पहुँच से अधिक पहुँच हासिल करता है और ऐसी जानकारी, डेटा या सुरक्षित कंप्यूटर डेटाबेस को एक्सेस करता है जो राज्य की सुरक्षा, विदेशी संबंध, सार्वजनिक व्यवस्था, अदालत की गरिमा, मानवीय मर्यादा या नैतिकता से सम्बंधित होती है। तथा उसे विश्वास होता है कि उसका उपयोग इन मूल्यों को प्रभावित करने में हो सकता है। ऐसे अपराध राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से अत्यंत गंभीर माने जाते हैं ।

    धारा का दूसरा भाग यह सुनिश्चित करता है कि साइबर आतंकवाद या उसकी साज़िश करने वाले व्यक्तियों को आजीवन कारावास (Life Imprisonment) दिया जाये, जो भारतीय कानून में सबसे कड़ी सजा मानी जाती है ।

    पिछली धाराओं के साथ इसकी संरचनात्मक सीढ़ी

    सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की विभिन्न धाराओं से यह स्पष्ट होता है कि कैसे कानून डिजिटल अपराधों की गंभीरता के अनुसार वर्गीकरण करता है। धारा 65 स्रोत कोड की सुरक्षा सुनिश्चित करती है, धारा 66 सामान्य हैकिंग और धोखाधड़ी को दंडित करती है।

    धारा 66B से 66E पहचान की चोरी, उत्पाद चौराहट, व्यक्ति बनकर धोखाधड़ी और निजता का उल्लंघन जैसे अपराधों की जिम्मेदारी लेती हैं। धारा 66F इसमें एक नई परत जोड़ती है जहाँ अपराध का उद्देश्य केवल डाटा चुराना नहीं बल्कि राष्ट्र की सुरक्षा, जनजीवन और बुनियादी ढांचे पर हमला करना होता है।

    इस क्रम में धारा 66F अब एक ऐसा ढाल बन गई है जिसकी मदद से केवल अपराधियों को रोकना नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर की प्रणाली और जनता की सुरक्षा सुनिश्चित करना कानून का लक्ष्य बन गया है।

    प्रमुख उदाहरण और मामले

    हाल में विश्व भर में कई घटनाएँ समय-समय पर प्रकाश में आई हैं जो धारा 66F की गंभीरता को दर्शाती हैं। एक प्रमुख उदाहरण था साल 2001 में संसद हमले की बैकडोर साइबर कनेक्शन, जहाँ मान्यता प्राप्त हैकिंग नेटवर्क को सरकार द्वारा राष्ट्रीय सूचना प्रणाली तक अवैध प्रवेशाची गई थी । हालांकि वह हमला पारंपरिक हथियारों से हुआ, पर बाद में खुलासा हुआ कि कुछ डिजिटल सिस्टम्स में भी अनधिकृत प्रवेश हुआ था।

    साल 2020 में सूचना आई कि एक विदेशी समूह ने भारत की बैंकिंग और बिजली ग्रिड को लक्षित किया था। भारत में मुंबई शहर के कुछ जिलों में बिजली की सप्लाई बाधित हुई।

    हाई-लेवल जांच में पाया गया कि यह साइबर हमला था, जिसमें कथित रूप से विदेशी समर्थित हैकर्स ने इलेक्ट्रिक लॉजिस्टिक इन्फ्रास्ट्रक्चर में लाल बत्ती जलाई थी । यह दर्शाता है कि ऐसे साइबर आतंकवाद से केवल डिजिटल माध्यमों को नष्ट नहीं किया जाता बल्कि वास्तविक जीवन में भय और अस्पष्टता लाई जाती है।

    गुजरात की हालिया 'Operation Sindoor' मामले में राजस्थान ATS ने एक लड़के को गिरफ्तार किया था जिसने सरकारी वेबसाइट पर डीडीओएस अटैक कर दिया था। इस पर धारा 43, 66 एवं विशेष रूप से 66F के तहत मुकदमा दर्ज किया गया । यहाँ यह विश्लेषण सुखद है कि अगर हमला राष्ट्रीय सुरक्षा के स्तर पर होता है, तो धारा 66F लागू हो सकती है।

    तकनीकी और कानूनी चुनौतियाँ

    धारा 66F को लागू करना आसान नहीं है क्योंकि इसकी पहचान और न्यायिक निर्णय पर कई परतें हैं। तकनीकी रूप से मालवेयर, DDoS, डेटाबेस में हैकिंग जैसी विधियों को स्पष्ट रूप से पहचानना पड़ता है। कानूनी रूप से यह साबित करना पड़ता है कि अपराध का लक्ष्य सिर्फ डेटा चोरी नहीं था, बल्कि राष्ट्र की एकता, सुरक्षा या जनजीवन को खतरा था।

    जजों और जांच एजेंसियों को यह साबित करना होता है कि कार्य में यह रूप था कि “राष्ट्र की संप्रभुता को निशाना या जनता को भय” के रूप में परिणाम निकल सकता था। यही कारण है कि धारा 66F में आरोपी को गिरफ्तार कर के, पूरे तकनीकी प्रमाण, IP लॉग, डेटा एनालिसिस, और डिजिटल फोरेंसिक सबूत पेश करने होते हैं।

    इस संदर्भ में यह भी आवश्यक है कि धारा 66, 66B–66E की जानकारी और तकनीकी विश्लेषण की नींव हो, क्योंकि ये आधारभूत अध्याय होते हैं जो साइबर आतंकी कार्य की परिभाषा को आकार देते हैं।

    राजनीतिक, सामाजिक और अंतर्राष्ट्रीय ढांचा

    भारत में धारा 66F को अंतरराष्ट्रीय दबाव और आंतरिक सुरक्षा जरूरतों से जोड़ा गया था। वैश्विक स्तर पर साइबर आतंकवाद कई देशों में चिंता का विषय है। भारत ने 2008 की संशोधन कानूनी संरचना में धारा 66F को शामिल करने के दौरान ऐसे मामलों को देख कर अपनी प्रणाली को मजबूत किया।

    इसके साथ ही भारत ने इंटरनल सुरक्षा एजेंसियों को भी अधिकार दिए। धारा 70 के तहत कुछ सिस्टम “Protected Systems” घोषित किये गए, जो कि CII (Critical Information Infrastructure) के अंतर्गत आते हैं, और इनमें भी सेंसर, कैमेरा और रक्षा से जुड़ी प्रणाली हो सकती है । धारा 70A और 70B ने National Critical Information Infrastructure Protection Centre (NCIIPC) तथा CERT-In को राष्ट्रीय नियंत्रण के लिए गठन दिया ।

    इस संरचना का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि साइबर अथॉरिटी, तकनीकी इकाइयाँ और न्यायपालिका एक साथ मिलकर इस गंभीर अपराध को नियंत्रित कर सकें।

    धारा 66F सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम का सबसे कठोर प्रावधान है, जिसमें डिजिटल माध्यमों का उपयोग कर 'साइबर आतंकवाद' जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा आपातकालीन अपराधों को नियंत्रित किया गया है।

    यह सिर्फ हैकिंग या डेटा चोरी नहीं है, बल्कि यह उन कार्यों को भी दुनिया के सामने लाता है जो सार्वजनिक व्यवस्था, सुरक्षा, आर्थिक ढांचे और जनविश्वास को धड़ाम पंस पहुँचा सकते हैं। इस अपराध में आरोपी को सज़ा ए आजीवन दी जाती है, जो दिखाती है कि भारत इस मुद्दे को कितनी गंभीरता से ले रहा है।

    ईमानदारी से कहा जाये तो धारा 66F तभी प्रभावी हो सकती है जब इसका न्यायिक क्रियान्वयन तकनीकी रूप से मजबूत हो, जांच एजेंसियों को कौशल हो, और न्यायाधीशों को तकनीकी समझ हो। यदि ये तीनों पक्ष एक साथ मिलकर काम करें, तो भारत एक सुरक्षित डिजिटल राष्ट्र की दिशा में अग्रसर हो सकता है।

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