Sales of Goods Act, 1930 की धारा 64A: बिक्री अनुबंधों में करों का समायोजन
Himanshu Mishra
15 July 2025 12:11 PM

माल विक्रय अधिनियम (Sales of Goods Act), 1930 का अध्याय VII विविध प्रावधानों (Miscellaneous Provisions) को शामिल करता है। धारा 64A, जो बाद में जोड़ी गई थी, विशेष रूप से बिक्री अनुबंधों में कर (Tax) के प्रभाव से संबंधित है, जब अनुबंध बनने के बाद कर की दरों में बदलाव होता है या नया कर लगाया जाता है। यह धारा सुनिश्चित करती है कि माल की कीमत पर कर परिवर्तनों का उचित प्रभाव पड़े, चाहे वह विक्रेता (Seller) या खरीदार (Buyer) को हो।
बिक्री अनुबंधों में बढ़े हुए या घटे हुए करों को जोड़ना या घटाना (Amount of Increased or Decreased Taxes to be Added or Deducted in Contracts of Sale)
धारा 64A(1) उन सामान्य परिस्थितियों को निर्धारित करती है जिनमें करों का समायोजन किया जा सकता है:
जब तक अनुबंध की शर्तों से कोई भिन्न इरादा प्रतीत न हो (Unless a Different Intention Appears from the Terms of the Contract), यदि अनुबंध बनने के बाद उप-धारा (2) में वर्णित प्रकृति का कोई कर किसी भी माल के संबंध में लगाया जाता है, बढ़ाया जाता है, घटाया जाता है या माफ किया जाता है (Imposed, Increased, Decreased or Remitted), और अनुबंध में कर के भुगतान के संबंध में कोई विशेष शर्त नहीं थी (जहाँ अनुबंध के समय कर देय नहीं था), या माल को कर-भुगतान के रूप में बेचा या खरीदा गया था (जहाँ उस समय कर देय था), तो:
(a) यदि ऐसा अधिरोपण या वृद्धि इस प्रकार प्रभावी होती है कि कर या बढ़ा हुआ कर, जैसा भी मामला हो, या ऐसे कर का कोई भी हिस्सा भुगतान किया जाता है या देय है, तो विक्रेता अनुबंध मूल्य में उतनी राशि जोड़ सकता है जो ऐसे कर के भुगतान की गई या देय राशि के बराबर होगी, और वह ऐसी अतिरिक्त राशि का भुगतान प्राप्त करने और उसके लिए मुकदमा करने तथा वसूल करने का हकदार होगा (If such imposition or increase so takes effect that the tax or increased tax, as the case may be, or any part of such tax is paid or is payable, the seller may add so much to the contract price as will be equivalent to the amount paid or payable in respect of such tax or increase of tax, and he shall be entitled to be paid and to sue for and recover such addition); और
यह खंड विक्रेता को सुरक्षा प्रदान करता है जब अनुबंध के बाद कर का बोझ बढ़ जाता है। यदि सरकार कोई नया कर लगाती है, या मौजूदा कर की दर बढ़ाती है, और विक्रेता को वह अतिरिक्त कर देना पड़ता है, तो विक्रेता अनुबंध मूल्य में उस अतिरिक्त कर की राशि जोड़ सकता है। खरीदार को यह अतिरिक्त राशि चुकानी होगी, और यदि वह नहीं चुकाता है, तो विक्रेता उसके लिए मुकदमा कर सकता है।
उदाहरण: रमेश ने सुरेश को ₹1000 में एक निश्चित माल बेचने का अनुबंध किया, जिसमें कोई कर शामिल नहीं था क्योंकि उस समय कोई बिक्री कर लागू नहीं था। अनुबंध के बनने के बाद, सरकार ने उस माल पर 5% बिक्री कर लगा दिया। रमेश को अब ₹50 का बिक्री कर देना होगा। रमेश अनुबंध मूल्य में ₹50 जोड़ सकता है, और सुरेश को अब ₹1050 का भुगतान करना होगा।
(b) यदि ऐसा कमी या माफी इस प्रकार प्रभावी होती है कि केवल घटा हुआ कर, या कोई कर नहीं, जैसा भी मामला हो, भुगतान किया जाता है या देय है, तो खरीदार अनुबंध मूल्य से उतनी राशि घटा सकता है जो कर की कमी या माफ किए गए कर के बराबर होगी, और वह ऐसी कटौती का भुगतान करने, या उसके लिए मुकदमा किए जाने, या उसके संबंध में, उत्तरदायी नहीं होगा (If such decrease or remission so takes effect that the decreased tax only, or no tax, as the case may be, is paid or is payable, the buyer may deduct so much from the contract price as will be equivalent to the decrease of tax or remitted tax, and he shall not be liable to pay, or be sued for, or in respect of, such deduction)।
यह खंड खरीदार को लाभ प्रदान करता है जब अनुबंध के बाद कर का बोझ कम हो जाता है। यदि सरकार कोई कर घटाती है या माफ करती है, और विक्रेता को अब कम कर देना पड़ता है (या बिल्कुल नहीं), तो खरीदार अनुबंध मूल्य से उस कमी के बराबर राशि घटा सकता है। विक्रेता ऐसी कटौती के लिए खरीदार पर मुकदमा नहीं कर सकता है।
उदाहरण: सुरेश ने रमेश से ₹1000 में एक माल खरीदा, जिसमें 10% उत्पाद शुल्क शामिल था (यानी कुल ₹1100)। अनुबंध के बनने के बाद, सरकार ने उत्पाद शुल्क को 5% तक घटा दिया। रमेश को अब ₹50 कम उत्पाद शुल्क देना होगा। सुरेश अनुबंध मूल्य से ₹50 घटा सकता है, और उसे अब केवल ₹1050 का भुगतान करना होगा।
सारांश में, धारा 64A(1) का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अनुबंध बनने के बाद कर दरों में परिवर्तन का बोझ या लाभ निष्पक्ष रूप से पार्टियों के बीच साझा किया जाए, जब तक कि उन्होंने अनुबंध में अन्यथा सहमति न दी हो। यह उस पक्ष को सुरक्षा देता है जिसे अप्रत्याशित रूप से अधिक कर देना पड़ता है, और उस पक्ष को लाभ देता है जिसके लिए कर कम हो जाता है।
इस धारा के अधीन करों के प्रकार (Types of Taxes Covered by this Section)
धारा 64A(2) उन विशिष्ट प्रकार के करों को सूचीबद्ध करती है जिन पर उप-धारा (1) के प्रावधान लागू होते हैं:
ये प्रावधान निम्नलिखित करों पर लागू होते हैं: (a) माल पर कोई भी सीमा शुल्क या उत्पाद शुल्क (Any duty of customs or excise on goods); (b) माल की बिक्री या खरीद पर कोई भी कर (Any tax on the sale or purchase of goods)।
यह उपधारा स्पष्ट रूप से उन करों के प्रकार को सीमित करती है जिनके लिए यह समायोजन प्रावधान लागू होता है। इसमें आम तौर पर अप्रत्यक्ष कर (Indirect Taxes) शामिल होते हैं जो माल की कीमतों को सीधे प्रभावित करते हैं, जैसे कि सीमा शुल्क (जब माल आयात या निर्यात किया जाता है), उत्पाद शुल्क (जब माल का उत्पादन किया जाता है), और बिक्री या खरीद पर कर (जैसे अब वस्तु एवं सेवा कर - GST)।
यह धारा विशेष रूप से महत्वपूर्ण क्यों है? आज के व्यावसायिक परिदृश्य में, जहाँ कर नीतियों में लगातार बदलाव होता रहता है, यह धारा अनिश्चितता से बचाती है। यह उन अनुबंधों के लिए एक डिफ़ॉल्ट तंत्र प्रदान करती है जहाँ पार्टियों ने कर परिवर्तनों के लिए स्पष्ट प्रावधान नहीं किए हैं। यह विक्रेता और खरीदार दोनों के हितों की रक्षा करती है, जिससे वे कर में अप्रत्याशित बदलावों के कारण अनुचित लाभ या नुकसान से बच सकें।
संबंधित अवधारणाएं (Related Concepts):
• फोर्स मेजर (Force Majeure): यह धारा फोर्स मेजर क्लॉज से भिन्न है, जो आमतौर पर अप्रत्याशित घटनाओं के कारण अनुबंध के प्रदर्शन में देरी या विफलता से संबंधित होता है। धारा 64A विशेष रूप से कर परिवर्तनों को संबोधित करती है।
• अनुबंध की स्वतंत्रता (Freedom of Contract): यह धारा इस सिद्धांत को बरकरार रखती है कि पार्टियां कर परिवर्तनों के प्रभाव के बारे में अपने स्वयं के विशिष्ट समझौते कर सकती हैं (जैसे कि "कर के बदलाव का जोखिम खरीदार वहन करेगा")। यदि ऐसा कोई समझौता है, तो वह इस धारा के प्रावधानों पर हावी होगा।
कोई विशिष्ट भारतीय लैंडमार्क मामला: धारा 64A, स्वयं में एक स्पष्ट वैधानिक प्रावधान होने के कारण, अक्सर सीधे सर्वोच्च न्यायालय के प्रमुख निर्णयों का विषय नहीं रही है, क्योंकि यह एक व्याख्यात्मक नियम से अधिक एक क्रियात्मक नियम है। हालाँकि, GST जैसे नए कर कानूनों के आगमन ने बिक्री अनुबंधों में कर के निहितार्थों को महत्वपूर्ण बना दिया है, और इस धारा के सिद्धांत आज भी प्रासंगिक हैं।