भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 6: संयोजनों का विनियमन - CCI की मंजूरी क्यों है ज़रूरी?

Himanshu Mishra

30 July 2025 5:01 PM IST

  • भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 6: संयोजनों का विनियमन - CCI की मंजूरी क्यों है ज़रूरी?

    हमने पिछली बार भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम (Competition Act) की धारा 5 को समझा, जिसमें यह बताया गया है कि किन वित्तीय सीमाओं को पार करने वाले बड़े विलय (mergers) और अधिग्रहणों (acquisitions) को "संयोजन" (combination) माना जाएगा।

    अब, धारा 6 (Section 6) इस प्रक्रिया को आगे ले जाती है। यह बताती है कि एक बार जब किसी डील को "संयोजन" के रूप में पहचान लिया जाता है, तो कानून उसे कैसे नियंत्रित करता है। यह धारा सुनिश्चित करती है कि कोई भी बड़ा मर्जर या अधिग्रहण Competition (प्रतिस्पर्धा) को नुकसान न पहुँचाए।

    धारा 6(1): मूल सिद्धांत - Competition को नुकसान पहुँचाने वाले संयोजन शून्य होंगे (Basic Principle - Combinations Harmful to Competition will be Void)

    धारा 6(1) में एक बहुत ही स्पष्ट और सख्त नियम है: कोई भी व्यक्ति या उद्यम ऐसे किसी संयोजन में प्रवेश नहीं करेगा जो भारत में संबंधित बाजार में Competition पर Appreciable Adverse Effect (पर्याप्त प्रतिकूल प्रभाव) डालता है या डालने की संभावना है, और ऐसा कोई भी संयोजन शून्य (void) होगा।

    इसका सीधा सा मतलब है कि अगर दो बड़ी कंपनियाँ आपस में मिलकर बाजार में Competition को खत्म कर देती हैं, जिससे ग्राहकों को नुकसान होता है, तो वह मर्जर या अधिग्रहण अवैध (illegal) माना जाएगा। कानून की नजर में, ऐसा समझौता कभी हुआ ही नहीं।

    धारा 6(2): CCI को सूचना देना अनिवार्य है (Mandatory Notice to the CCI)

    यदि कोई व्यक्ति या उद्यम किसी ऐसे संयोजन में प्रवेश करने का प्रस्ताव करता है जो धारा 5 के तहत आता है, तो उसे कुछ खास बातें करनी होंगी:

    • उन्हें Competition Commission of India (CCI) को एक नोटिस देना होगा। यह नोटिस एक विशेष फॉर्म में होगा और इसके लिए शुल्क भी देना होगा।

    • यह नोटिस बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स (Board of Directors) की मंजूरी के 30 दिनों के भीतर दिया जाना चाहिए (यदि यह मर्जर या समामेलन है) या उस समझौते पर हस्ताक्षर करने के 30 दिनों के भीतर दिया जाना चाहिए (यदि यह अधिग्रहण है)।

    यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि बड़े सौदे गुपचुप तरीके से न हों। CCI को समय रहते सूचित करना जरूरी है ताकि वह सौदे का मूल्यांकन कर सके कि कहीं यह Competition को नुकसान तो नहीं पहुँचा रहा।

    धारा 6(2A): CCI की मंजूरी के बिना संयोजन प्रभावी नहीं होगा (No Combination shall take Effect without CCI's Approval)

    यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रावधान है जो संयोजन की प्रक्रिया पर रोक लगाता है। धारा 6(2A) कहती है कि कोई भी संयोजन तब तक प्रभावी नहीं होगा जब तक:

    • CCI को नोटिस दिए जाने के बाद से 210 दिन बीत न जाएं, या

    • CCI धारा 31 के तहत कोई आदेश पारित न कर दे, जो भी पहले हो।

    इसका मतलब है कि कंपनियों को इंतजार करना होगा। वे नोटिस देने के तुरंत बाद मर्जर को अंतिम रूप नहीं दे सकते। उन्हें या तो 210 दिनों का इंतजार करना होगा ताकि CCI के पास जांच के लिए पर्याप्त समय हो, या CCI के आदेश का इंतजार करना होगा। इससे CCI को Competition पर किसी भी नकारात्मक प्रभाव का विश्लेषण करने का समय मिल जाता है।

    धारा 6(3): CCI की जांच प्रक्रिया (CCI's Scrutiny Process)

    CCI को नोटिस मिलने के बाद, वह धारा 29, 30 और 31 के प्रावधानों के अनुसार नोटिस पर कार्रवाई करेगा। संक्षेप में, CCI यह जांच करेगा कि क्या संयोजन से Competition पर कोई नकारात्मक प्रभाव पड़ने की संभावना है। यदि CCI को लगता है कि ऐसा होगा, तो वह मर्जर को रोक सकता है या ऐसी शर्तें लगा सकता है जिनका पालन करने पर ही मर्जर को मंजूरी मिलेगी।

    धारा 6(4) और 6(5): वित्तीय संस्थानों के लिए अपवाद (Exception for Financial Institutions)

    यह धारा कुछ विशिष्ट वित्तीय संस्थाओं को छूट देती है। धारा 6(4) कहती है कि यह धारा शेयर सब्सक्रिप्शन, फाइनेंसिंग सुविधा, या किसी सार्वजनिक वित्तीय संस्थान, विदेशी संस्थागत निवेशक, बैंक या वेंचर कैपिटल फंड द्वारा ऋण समझौते (loan agreement) या निवेश समझौते (investment agreement) के कारण किए गए किसी भी अधिग्रहण पर लागू नहीं होती।

    लेकिन, यह छूट पूरी तरह से नहीं है। धारा 6(5) के अनुसार, इन संस्थानों को अधिग्रहण के सात दिनों के भीतर CCI को सूचित करना होगा। उन्हें अधिग्रहण का विवरण देना होगा, जिसमें नियंत्रण की जानकारी, उस नियंत्रण का प्रयोग करने की परिस्थितियाँ, और ऋण या निवेश समझौते से उत्पन्न होने वाले चूक के परिणाम शामिल होंगे। यह सुनिश्चित करता है कि भले ही ये संस्थाएं तत्काल अधिग्रहण कर सकती हैं, फिर भी CCI को बाद में सूचित किया जाना चाहिए ताकि बाजार की निगरानी बनी रहे।

    भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 6 बड़े विलय और अधिग्रहणों के लिए एक नियामक ढाँचा प्रदान करती है। यह सुनिश्चित करती है कि कोई भी संयोजन, जो बाजार में Competition को नुकसान पहुंचा सकता है, उसे CCI की जांच और मंजूरी के बिना प्रभावी होने की अनुमति नहीं है। यह धारा बड़े सौदों में पारदर्शिता और जिम्मेदारी को बढ़ावा देती है, जिससे बाजार में निष्पक्षता और ग्राहकों के हितों की रक्षा होती है।

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