राजस्थान न्यायालय शुल्क अधिनियम, 1961 की धारा 57 और 58 : कम शुल्क भुगतान की स्थिति
Himanshu Mishra
8 May 2025 10:18 PM IST

राजस्थान न्यायालय शुल्क और वादों के मूल्य निर्धारण अधिनियम, 1961 की धारा 57 और 58 उन परिस्थितियों को संबोधित करती हैं जहाँ वसीयत (Probate) या उत्तराधिकार पत्र (Letters of Administration) पर कम या अधिक शुल्क का भुगतान किया गया हो।
ये धाराएँ सुनिश्चित करती हैं कि यदि किसी त्रुटि या अज्ञानता के कारण शुल्क का भुगतान अनुचित रूप से हुआ है, तो उसे कैसे सुधारा जा सकता है और यदि जानबूझकर ऐसा किया गया है, तो क्या दंड निर्धारित है।
धारा 57: कम शुल्क भुगतान की स्थिति में प्रशासक द्वारा सुरक्षा प्रदान करना
यदि किसी उत्तराधिकार पत्र पर कम शुल्क का भुगतान हुआ है, तो कलेक्टर तब तक उसे विधिवत मुद्रित नहीं करेगा जब तक कि प्रशासक उस न्यायालय को उचित सुरक्षा प्रदान नहीं करता जिसने उत्तराधिकार पत्र जारी किया है। यह सुरक्षा उस स्थिति के समान होनी चाहिए जब संपत्ति का पूर्ण मूल्य पहले ही ज्ञात होता।
धारा 58: अधिक शुल्क भुगतान की स्थिति में राहत
यदि वसीयत या उत्तराधिकार पत्र जारी होने के बाद यह पता चलता है कि संपत्ति के वास्तविक मूल्य की तुलना में अधिक शुल्क का भुगतान किया गया है, तो निष्पादक या प्रशासक कलेक्टर से वापसी के लिए आवेदन कर सकता है। यह आवेदन संपत्ति के संशोधित मूल्यांकन और संबंधित दस्तावेजों के साथ होना चाहिए।
धारा 58(1): वापसी के लिए आवेदन
निष्पादक या प्रशासक कलेक्टर को आवेदन कर सकता है, जिसमें संपत्ति का संशोधित मूल्यांकन और संबंधित दस्तावेज संलग्न हों। यह आवेदन वसीयत या उत्तराधिकार पत्र जारी होने की तिथि से तीन वर्षों के भीतर किया जाना चाहिए, या कलेक्टर द्वारा अनुमत अतिरिक्त अवधि में।
धारा 58(2): कलेक्टर द्वारा वापसी की प्रक्रिया
यदि कलेक्टर संतुष्ट होता है कि संशोधित मूल्यांकन सही है, तो वह वसीयत या उत्तराधिकार पत्र पर एक प्रमाणपत्र अंकित करेगा जिसमें यह दर्शाया जाएगा कि शुल्क का एक हिस्सा वापस किया गया है। इसके बाद, वह मूल भुगतान और वास्तविक देय शुल्क के बीच का अंतर वापस करेगा।
धारा 58(3): कानूनी कार्यवाहियों के कारण वापसी में देरी
यदि किसी कानूनी कार्यवाही के कारण मृतक की देनदारियाँ निर्धारित नहीं हो पाई हैं या उसकी संपत्ति उपलब्ध नहीं हो पाई है, और इसके परिणामस्वरूप निष्पादक या प्रशासक तीन वर्षों की अवधि में वापसी का दावा नहीं कर सका है, तो कलेक्टर परिस्थितियों के अनुसार अतिरिक्त समय प्रदान कर सकता है।
धारा 58(4): वापसी न मिलने पर राजस्व बोर्ड से आवेदन
यदि कलेक्टर वापसी नहीं देता है, तो निष्पादक या प्रशासक राजस्व बोर्ड से वापसी के लिए आदेश प्राप्त करने हेतु आवेदन कर सकता है। इस आवेदन के साथ संपत्ति का संशोधित मूल्यांकन संलग्न होना चाहिए।
पूर्ववर्ती धाराओं का संदर्भ
धारा 50 के अनुसार, वसीयत या उत्तराधिकार पत्र के लिए आवेदन करते समय संपत्ति का मूल्यांकन प्रस्तुत करना अनिवार्य है। यह मूल्यांकन दो प्रतियों में होना चाहिए और संबंधित जिले के कलेक्टर को भेजा जाता है।
धारा 54 में कलेक्टर को यह अधिकार दिया गया है कि वह प्रस्तुत मूल्यांकन की जांच कर सकता है और यदि उसे संदेह होता है कि मूल्यांकन कम करके प्रस्तुत किया गया है, तो वह न्यायालय से जांच कराने का अनुरोध कर सकता है।
धारा 55 में न्यायालय को यह अधिकार दिया गया है कि वह कलेक्टर के अनुरोध पर संपत्ति के वास्तविक मूल्य की जांच कर सकता है और उचित शुल्क का निर्धारण कर सकता है।
उदाहरण
मान लीजिए, एक व्यक्ति ने वसीयत के लिए आवेदन किया और संपत्ति का मूल्यांकन ₹50 लाख प्रस्तुत किया। बाद में पता चलता है कि संपत्ति का वास्तविक मूल्य ₹70 लाख है। यदि यह त्रुटि अज्ञानता के कारण हुई थी और निष्पादक छह महीने के भीतर शेष ₹20 लाख के मूल्य पर शुल्क का भुगतान करता है, तो कलेक्टर वसीयत को उचित शुल्क के साथ मुद्रित करवा सकता है।
यदि निष्पादक छह महीने के भीतर शेष शुल्क का भुगतान नहीं करता है, तो उसे ₹20 लाख के मूल्य पर निर्धारित शुल्क का पांच गुना तक दंड देना पड़ सकता है।
यदि कलेक्टर को लगता है कि यह त्रुटि जानबूझकर की गई थी, तो वह वसीयत को उचित शुल्क के साथ मुद्रित करवा सकता है और इसके अतिरिक्त पांच गुना तक का दंड भी लगा सकता है।
धारा 57 और 58 यह सुनिश्चित करती हैं कि वसीयत या उत्तराधिकार पत्र के लिए उचित शुल्क का भुगतान किया जाए। यदि किसी त्रुटि या अज्ञानता के कारण शुल्क का भुगतान अनुचित रूप से हुआ है, तो उसे सुधारने का अवसर दिया जाता है। हालांकि, यदि यह जानबूझकर किया गया है, तो दंड का प्रावधान भी है। ये धाराएँ न्यायिक प्रक्रिया की पारदर्शिता और निष्पक्षता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।