भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 की धारा 55: फर्म के विघटन के बाद सद्भावना की बिक्री और व्यापार पर प्रतिबंध के समझौते
Himanshu Mishra
16 July 2025 4:13 PM

भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 (Indian Partnership Act, 1932) की धारा 55 (Section 55) फर्म के विघटन (Dissolution of a Firm) के बाद सद्भावना (Goodwill) की बिक्री और उससे संबंधित जटिल अधिकारों और व्यापारिक प्रतिबंधों पर विस्तार से बताती है। यह एक महत्वपूर्ण धारा है जो फर्म की अमूर्त संपत्ति (Intangible Asset) के मूल्य को पहचानती है और उसके निपटान के तरीके को नियंत्रित करती है।
सद्भावना की बिक्री के नियम (Rules for Sale of Goodwill)
1. सद्भावना का परिसंपत्ति में शामिल होना और बिक्री (Inclusion in Assets and Sale of Goodwill): फर्म के विघटन के बाद खातों का निपटान करते समय, भागीदारों के बीच किसी विपरीत अनुबंध (Contract) के अधीन रहते हुए, सद्भावना को फर्म की परिसंपत्तियों (Assets) में शामिल किया जाएगा। इसे या तो अलग से (Separately) बेचा जा सकता है या फर्म की अन्य संपत्ति के साथ बेचा जा सकता है।
यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि सद्भावना, जो व्यवसाय की प्रतिष्ठा और ग्राहक संबंधों से उत्पन्न होती है, को फर्म के परिसमापन (Liquidation) के दौरान एक आर्थिक मूल्य के रूप में मान्यता मिले। (संदर्भ: धारा 14 (Section 14), जो फर्म की संपत्ति की परिभाषा में सद्भावना को भी शामिल करती है)।
2. सद्भावना की बिक्री के बाद बाहर जाने वाले भागीदार के अधिकार और प्रतिबंध (Rights and Restrictions of Outgoing Partner After Sale of Goodwill): जहां विघटन के बाद फर्म की सद्भावना बेची जाती है, एक भागीदार क्रेता (Buyer) के साथ प्रतिस्पर्धा (Competing) करने वाला व्यवसाय चला सकता है और वह ऐसे व्यवसाय का विज्ञापन (Advertise) भी कर सकता है।
हालांकि, उसके और क्रेता के बीच किसी समझौते के अधीन, वह निम्न कार्य नहीं कर सकता:
* (क) फर्म के नाम का उपयोग (Use the Firm Name): वह फर्म के नाम का उपयोग नहीं कर सकता है।
* (ख) खुद को फर्म का व्यवसाय चलाने वाले के रूप में प्रस्तुत करना (Represent Himself as Carrying on the Business of the Firm): वह खुद को यह नहीं दिखा सकता कि वह फर्म का व्यवसाय चला रहा है।
* (ग) ग्राहकों को आकर्षित करना (Solicit the Custom): वह उन व्यक्तियों के ग्राहकों को आकर्षित नहीं कर सकता जो फर्म के विघटन से पहले फर्म के साथ व्यवहार कर रहे थे।
यह उप-धारा धारा 36 (Section 36) में बाहर जाने वाले भागीदार के प्रतिस्पर्धी व्यवसाय चलाने के अधिकार और उस पर लगे प्रतिबंधों को आगे बढ़ाती है, विशेष रूप से सद्भावना की बिक्री के संदर्भ में। इन प्रतिबंधों का उद्देश्य सद्भावना के खरीदार द्वारा अधिग्रहीत मूल्य की रक्षा करना है, यह सुनिश्चित करना कि वे फर्म की प्रतिष्ठा और ग्राहक आधार का लाभ उठा सकें जिसके लिए उन्होंने भुगतान किया है।
3. सद्भावना की बिक्री पर व्यापार प्रतिबंध में समझौता (Agreement in Restraint of Trade on Sale of Goodwill): कोई भी भागीदार, फर्म की सद्भावना की बिक्री पर, क्रेता के साथ एक समझौता कर सकता है कि ऐसा भागीदार एक निर्दिष्ट अवधि (Specified Period) के भीतर या निर्दिष्ट स्थानीय सीमाओं (Specified Local Limits) के भीतर फर्म के समान कोई व्यवसाय नहीं करेगा। और भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 (Indian Contract Act, 1872) की धारा 27 (Section 27) में निहित किसी भी बात के बावजूद, ऐसा समझौता मान्य (Valid) होगा
यदि लगाए गए प्रतिबंध उचित (Reasonable) हों। यह विशिष्ट उप-धारा व्यापार प्रतिबंध के लिए समझौतों को वैध बनाती है जब वे सद्भावना की बिक्री के संदर्भ में होते हैं, बशर्ते वे तर्कसंगत हों। यह खरीदार को फर्म के ग्राहक आधार और व्यापारिक रहस्यों की सुरक्षा के लिए एक कानूनी उपकरण प्रदान करता है। (संदर्भ: धारा 54 (Section 54), जो विघटन पर व्यापार प्रतिबंध के सामान्य समझौतों को भी वैध करती है)।