धारा 496 आईपीसी - भारतीय दंड संहिता - वैध विवाह के बिना गलत तरीके से विवाह समारोह संपन्न होना

Himanshu Mishra

26 March 2024 1:09 PM GMT

  • धारा 496 आईपीसी - भारतीय दंड संहिता - वैध विवाह के बिना गलत तरीके से विवाह समारोह संपन्न होना

    धोखाधड़ी विवाह, जैसा कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 496 में परिभाषित है, तब होता है जब कोई व्यक्ति जानबूझकर धोखाधड़ी या बेईमान इरादों के साथ विवाह समारोह में भाग लेता है, यह जानते हुए कि समारोह के परिणामस्वरूप वैध विवाह नहीं होता है।

    आवश्यक सामग्री:

    धोखाधड़ी विवाह का अपराध स्थापित करने के लिए, तीन आवश्यक तत्व मौजूद होने चाहिए:

    • व्यक्ति के इरादे कपटपूर्ण या बेईमान होने चाहिए।

    • उन्हें इन्हीं इरादों के साथ किसी विवाह समारोह में भाग लेना चाहिए।

    • उन्हें इस बात की जानकारी होनी चाहिए कि यह समारोह वैध विवाह नहीं है।

    दायरा:

    धारा 496 उन व्यक्तियों को दंडित करने पर केंद्रित है जो दूसरे पक्ष को धोखा देकर यह विश्वास दिलाते हैं कि एक वैध विवाह हुआ है, भले ही समारोह अमान्य हो। धारा 493 के विपरीत, इसमें Co-habitation को अपराध मानने की आवश्यकता नहीं है।

    केस कानून:

    शेख अल्तमुद्दीन बनाम सम्राट: इस मामले में, यदि विवाह समारोह पिछले विवाह के कारण अमान्य है, तो धारा 496 लागू नहीं होती है। इसके बजाय, आईपीसी की धारा 494 के तहत इसे द्विविवाह (Bigamy) माना जाता है।

    कैलाश सिंह बनाम राजस्थान राज्य: यहां, तलाक की अपील के दौरान आरोपी ने दूसरी शादी कर ली, लेकिन इस तथ्य को दुल्हन से नहीं छिपाया। अदालत ने आरोपी को धारा 496 के तहत दोषी नहीं पाया क्योंकि उसके कार्य बेईमान नहीं थे।

    सज़ा:

    धारा 496 में उल्लिखित धोखाधड़ी विवाह के लिए सज़ा में अधिकतम सात साल के लिए साधारण या कठोर कारावास के साथ-साथ जुर्माना भी शामिल हो सकता है।

    अपराध का प्रकार:

    भारतीय दंड संहिता की धारा 496 के तहत अपराध गैर-संज्ञेय हैं, जिसका अर्थ है कि पुलिस को आरोपी को गिरफ्तार करने के लिए अदालत से वारंट की आवश्यकता होती है। यह सुनिश्चित करता है कि गिरफ्तारी मजिस्ट्रेट से उचित प्राधिकरण के साथ की जाती है।

    जमानत और समझौता:

    ये अपराध जमानती हैं, यानी आरोपी को जमानत मांगने का अधिकार है। हालाँकि, यह पुलिस पर निर्भर है कि वह जमानत दे या नहीं। इसके अतिरिक्त, ये अपराध गैर-समझौता योग्य हैं, जिसका अर्थ है कि पीड़ित अपराधी के खिलाफ आरोप नहीं हटा सकता है।

    निचली अदालत:

    आईपीसी 496 के तहत मामलों की सुनवाई प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट या सत्र न्यायालय की अदालत में की जा सकती है।

    सज़ा:

    धारा 496 के तहत अपराधों के लिए सज़ा में कारावास, जो साधारण या कठोर हो सकता है, अधिकतम सात साल तक और जुर्माना शामिल है।

    निष्कर्ष:

    आईपीसी के तहत कपटपूर्ण विवाह गंभीर अपराध हैं, जिसका उद्देश्य व्यक्तियों को विवाह समारोहों में कपटपूर्ण प्रथाओं से बचाना है। धोखाधड़ी वाले विवाहों से संबंधित कानूनी प्रावधानों और केस कानूनों को समझने से वैवाहिक संबंधों में न्याय और जवाबदेही सुनिश्चित करने में मदद मिलती है।

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