भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 48 और धारा 49 : कंपनियों द्वारा उल्लंघन और प्रतिस्पर्धा वकालत

Himanshu Mishra

21 Aug 2025 5:55 PM IST

  • भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 48 और धारा 49 : कंपनियों द्वारा उल्लंघन और प्रतिस्पर्धा वकालत

    भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम (Indian Competition Act) के तहत, किसी भी उल्लंघन के लिए न केवल कंपनियों बल्कि उसके लिए जिम्मेदार व्यक्तियों को भी जवाबदेह ठहराया जाता है। इसके साथ ही, यह अधिनियम केवल एक नियामक निकाय के रूप में ही कार्य नहीं करता, बल्कि भारत में प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने वाले एक वकील (advocate) के रूप में भी कार्य करता है।

    धारा 48 यह निर्धारित करती है कि कंपनियों द्वारा किए गए उल्लंघनों के लिए कौन जिम्मेदार होगा, जबकि धारा 49 CCI की प्रतिस्पर्धा वकालत (Competition Advocacy) की भूमिका को परिभाषित करती है। ये दोनों धाराएँ अधिनियम के प्रवर्तन और प्रचार (enforcement and promotion) को सुनिश्चित करती हैं।

    धारा 48: कंपनियों द्वारा उल्लंघन (Contravention by Companies)

    यह धारा यह सुनिश्चित करती है कि कॉर्पोरेट संस्थाओं द्वारा किए गए उल्लंघनों के लिए व्यक्तियों को भी व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार ठहराया जा सके। यह प्रावधान अधिकारियों को किसी भी अनुचित व्यवहार से बचने के लिए उचित परिश्रम (due diligence) करने के लिए प्रोत्साहित करता है।

    1. कंपनी और प्रभारी व्यक्ति दोनों जिम्मेदार (Both Company and Person in Charge are Responsible)

    धारा 48(1) के अनुसार, जब कोई कंपनी अधिनियम के किसी भी प्रावधान, नियम, विनियम या आदेश का उल्लंघन करती है, तो उस समय व्यवसाय के संचालन के लिए प्रभारी (in charge) और जिम्मेदार (responsible) व्यक्ति के साथ-साथ कंपनी को भी दोषी (guilty) माना जाएगा। इन दोनों पर मुकदमा चलाया जा सकता है और उन्हें दंडित किया जा सकता है।

    • उदाहरण: एक कंपनी एक कार्टेल (cartel) का हिस्सा थी। CCI ने कंपनी पर जुर्माना लगाया। इस मामले में, कंपनी के साथ-साथ सीईओ (CEO) और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों को भी दोषी माना जाएगा क्योंकि वे कार्टेल समझौते के समय व्यवसाय के प्रभारी थे।

    • सुरक्षा का प्रावधान (Proviso for Protection): हालांकि, इस धारा में एक महत्वपूर्ण अपवाद है। यदि प्रभारी व्यक्ति यह साबित कर देता है कि:

    1. उल्लंघन उसकी जानकारी के बिना (without his knowledge) हुआ था, या

    2. उसने ऐसे उल्लंघन को रोकने के लिए सभी उचित सावधानी (all due diligence) बरती थी,

    तो उसे किसी भी दंड के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जाएगा।

    • उदाहरण: एक कंपनी के क्षेत्रीय प्रबंधक (regional manager) ने सीईओ की जानकारी के बिना स्थानीय स्तर पर प्राइस फिक्सिंग (price fixing) की। यदि सीईओ यह साबित करते हैं कि उन्हें इसकी कोई जानकारी नहीं थी और उन्होंने कंपनी की नीतियों में प्रतिस्पर्धा-अनुकूल व्यवहार को बढ़ावा देने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाए थे, तो उन्हें व्यक्तिगत रूप से दंडित नहीं किया जाएगा।

    2. सहमति या लापरवाही के मामले (Cases of Consent or Neglect)

    धारा 48(2) उन स्थितियों से संबंधित है जहाँ उल्लंघन सीधे तौर पर प्रभारी व्यक्ति द्वारा नहीं, बल्कि कंपनी के किसी अन्य अधिकारी द्वारा किया गया है। यदि यह साबित हो जाता है कि उल्लंघन किसी निदेशक, प्रबंधक, सचिव या अन्य अधिकारी (director, manager, secretary or other officer) की सहमति या मिलीभगत (consent or connivance) से हुआ है, या उनकी लापरवाही (neglect) के कारण हुआ है, तो उस अधिकारी को भी दोषी माना जाएगा और उसे दंडित किया जाएगा।

    • उदाहरण: कंपनी का एक निदेशक एक Competition-विरोधी रणनीति के बारे में जानता था, लेकिन उसने इसकी अनदेखी की और इसे होने दिया। भले ही वह सीधे तौर पर व्यवसाय के प्रभारी न हो, लेकिन उसकी लापरवाही के कारण उसे उल्लंघन के लिए जिम्मेदार ठहराया जाएगा।

    • व्याख्या (Explanation): इस धारा में, "कंपनी" (company) का मतलब किसी भी निगमित निकाय (body corporate) से है, जिसमें एक फर्म (firm) या व्यक्तियों का अन्य समूह भी शामिल है। "निदेशक" (director) के संबंध में, एक फर्म में निदेशक का मतलब साझेदार (partner) से है।

    धारा 49: प्रतिस्पर्धा वकालत (Competition Advocacy)

    धारा 49 CCI को एक नियामक के साथ-साथ एक सलाहकार और अधिवक्ता (advocate) के रूप में एक महत्वपूर्ण भूमिका देती है। इसका उद्देश्य Competition-अनुकूल नीतियों को बढ़ावा देना है, जिससे CCI की भूमिका केवल उल्लंघनकर्ताओं को दंडित करने तक ही सीमित न रहे।

    1. नीति पर राय देना (Giving Opinion on Policy)

    धारा 49(1) के अनुसार, केंद्र सरकार या कोई राज्य सरकार जब किसी नीति को तैयार करती है (जिसमें Competition से संबंधित कानूनों की समीक्षा भी शामिल है), तो वह उस नीति के Competition पर संभावित प्रभाव के बारे में CCI से राय मांग सकती है। CCI को ऐसी राय मिलने पर, उसे 60 दिनों के भीतर अपनी राय सरकार को देनी होगी।

    • उदाहरण: सरकार एक नई दूरसंचार नीति (telecommunication policy) तैयार कर रही है। यह CCI से राय मांग सकती है कि नीति में स्पेक्ट्रम (spectrum) के आवंटन के प्रावधानों का बाजार में Competition पर क्या प्रभाव पड़ेगा। CCI तब अपनी राय दे सकता है कि क्या कोई प्रावधान छोटे खिलाड़ियों के लिए बाजार में प्रवेश को बाधित कर सकता है।

    • वास्तविक जीवन का उदाहरण: भारत सरकार ने अक्सर CCI से नीतियों पर सलाह मांगी है, खासकर डिजिटल बाजारों (digital markets) और ई-कॉमर्स (e-commerce) से संबंधित मुद्दों पर। यह CCI को बाजार में शुरुआती चरण में ही Competition-विरोधी समस्याओं को हल करने का मौका देता है।

    2. राय बाध्यकारी नहीं है (Opinion is Not Binding)

    धारा 49(2) स्पष्ट रूप से बताती है कि CCI द्वारा दी गई राय सरकार के लिए बाध्यकारी (binding) नहीं होगी। सरकार CCI की राय पर विचार कर सकती है लेकिन अपनी नीतियों को अंतिम रूप देने में स्वतंत्र है।

    • इसका महत्व: यह प्रावधान सरकारी नीतियों पर CCI के अधिकार को सीमित करता है, क्योंकि नीति-निर्माण एक संप्रभु कार्य (sovereign function) है। हालांकि, CCI की राय का एक महत्वपूर्ण सलाहकार मूल्य होता है और सरकारें अक्सर इसे गंभीरता से लेती हैं।

    3. जागरूकता और प्रशिक्षण को बढ़ावा देना (Promotion of Awareness and Training)

    धारा 49(3) CCI को Competition वकालत (advocacy), जागरूकता पैदा करने और Competition से संबंधित मुद्दों के बारे में प्रशिक्षण देने के लिए उपयुक्त उपाय करने का निर्देश देती है।

    • इसका महत्व: यह CCI को एक सक्रिय भूमिका निभाने की अनुमति देता है। CCI केवल शिकायतों का इंतजार नहीं करता, बल्कि वह स्वयं सेमिनार, कार्यशालाएं और प्रकाशन आयोजित करता है ताकि व्यवसायों, सरकारी विभागों और आम जनता को Competition कानूनों के बारे में शिक्षित किया जा सके।

    • उदाहरण: CCI ने पिछले कुछ वर्षों में विभिन्न क्षेत्रों, जैसे ई-कॉमर्स, ऑटोमोबाइल और फिल्म उद्योग में Competition पर जागरूकता अभियान चलाए हैं। इसने Competition कानूनों के बारे में हितधारकों को शिक्षित करने के लिए कई प्रकाशन और रिपोर्ट जारी की हैं।

    भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 48 और धारा 49 CCI के अधिकार क्षेत्र और भूमिका के दो महत्वपूर्ण पहलू दर्शाती हैं। धारा 48 कंपनियों द्वारा किए गए उल्लंघनों के लिए व्यक्तिगत जवाबदेही स्थापित करके अधिनियम के प्रवर्तन को मजबूत करती है, जबकि धारा 49 CCI को एक नियामक के साथ-साथ एक महत्वपूर्ण नीति सलाहकार और Competition का एक सक्रिय अधिवक्ता बनाती है।

    ये दोनों धाराएँ यह सुनिश्चित करती हैं कि CCI न केवल बाजार में निष्पक्षता को लागू करे, बल्कि Competition-अनुकूल संस्कृति को भी बढ़ावा दे, जिससे भारत में एक स्वस्थ और गतिशील अर्थव्यवस्था का निर्माण हो सके।

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