Indian Partnership Act, 1932 की धारा 44: न्यायालय द्वारा फर्म का विघटन

Himanshu Mishra

10 July 2025 12:34 PM

  • Indian Partnership Act, 1932 की धारा 44: न्यायालय द्वारा फर्म का विघटन

    भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 (Indian Partnership Act, 1932) की धारा 44 (Section 44) उन आधारों को निर्धारित करती है जिन पर एक भागीदार के मुकदमे (Suit of a Partner) पर न्यायालय (Court) एक फर्म को भंग (Dissolve) कर सकता है।

    जबकि धारा 40 (Section 40) समझौते द्वारा विघटन, धारा 41 (Section 41) अनिवार्य विघटन, और धारा 42 (Section 42) आकस्मिकताओं पर विघटन की बात करती है, धारा 44 न्यायालय के हस्तक्षेप (Intervention) की अनुमति देती है जब भागीदारों के बीच गंभीर मुद्दे उत्पन्न होते हैं।

    एक भागीदार के मुकदमे पर, न्यायालय निम्नलिखित में से किसी भी आधार पर एक फर्म को भंग कर सकता है:

    • (क) भागीदार का अस्वस्थ मस्तिष्क होना (Partner Has Become of Unsound Mind): यदि कोई भागीदार अस्वस्थ मस्तिष्क (Unsound Mind) का हो गया है। इस स्थिति में, मुकदमा अस्वस्थ मस्तिष्क वाले भागीदार के अगले मित्र (Next Friend) द्वारा या किसी अन्य भागीदार द्वारा लाया जा सकता है। यह सुनिश्चित करता है कि मानसिक अक्षमता (Mental Incapacity) के कारण फर्म को नुकसान न हो और व्यवसाय जारी रखने में कठिनाई न हो।

    • (ख) भागीदार की स्थायी अक्षमता (Permanent Incapacity of Partner): यदि मुकदमा करने वाले भागीदार (Partner Suing) के अलावा कोई अन्य भागीदार किसी भी तरह से भागीदार के रूप में अपने कर्तव्यों का पालन करने में स्थायी रूप से अक्षम (Permanently Incapable) हो गया है। उदाहरण के लिए, एक गंभीर बीमारी या दुर्घटना जो उसे व्यवसाय में सक्रिय रूप से भाग लेने से रोकती है।

    • (ग) भागीदार का हानिकारक आचरण (Prejudicial Conduct of Partner): यदि मुकदमा करने वाले भागीदार के अलावा कोई अन्य भागीदार ऐसे आचरण (Conduct) का दोषी है जिससे व्यवसाय के संचालन पर प्रतिकूल प्रभाव (Prejudicially Affect) पड़ने की संभावना है, व्यवसाय की प्रकृति (Nature of the Business) को ध्यान में रखते हुए। इसमें अनैतिक व्यवहार, आपराधिक गतिविधि, या ऐसा कोई भी कार्य शामिल हो सकता है जो फर्म की प्रतिष्ठा (Reputation) या वित्तीय स्थिति (Financial Position) को नुकसान पहुंचाता है।

    • (घ) समझौते का जानबूझकर या लगातार उल्लंघन (Wilful or Persistent Breach of Agreements): यदि मुकदमा करने वाले भागीदार के अलावा कोई अन्य भागीदार फर्म के मामलों के प्रबंधन (Management of Affairs) या उसके व्यवसाय के संचालन से संबंधित समझौतों का जानबूझकर (Wilfully) या लगातार उल्लंघन (Persistently Commits Breach) करता है। या वह व्यवसाय से संबंधित मामलों में खुद को इस तरह से संचालित करता है कि अन्य भागीदारों के लिए उसके साथ भागीदारी में व्यवसाय जारी रखना उचित रूप से व्यावहारिक (Reasonably Practicable) नहीं है। यह तब लागू होता है जब एक भागीदार लगातार अपने कर्तव्यों की उपेक्षा करता है या भागीदारी विलेख (Partnership Deed) के नियमों का पालन नहीं करता है, जिससे फर्म का कामकाज बाधित होता है। (संदर्भ: धारा 9 (Section 9) जो भागीदारों के सामान्य कर्तव्यों को बताती है, और धारा 11 (Section 11) जो भागीदारों के अधिकारों और कर्तव्यों को अनुबंध द्वारा निर्धारित करने की बात करती है)।

    • (ङ) भागीदार द्वारा हित का हस्तांतरण या शुल्क (Transfer of Interest or Charge by Partner): यदि मुकदमा करने वाले भागीदार के अलावा कोई अन्य भागीदार फर्म में अपना पूरा हित (Whole of his Interest) किसी तीसरे पक्ष को किसी भी तरह से हस्तांतरित (Transferred) कर दिया है। या उसने सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (Code of Civil Procedure, 1908) की पहली अनुसूची के आदेश XXI के नियम 49 के प्रावधानों के तहत अपने हिस्से पर शुल्क (Charged) लगाने की अनुमति दी है। या उसने इसे भूमि-राजस्व के बकाया (Arrears of Land-Revenue) या भागीदार द्वारा देय भूमि-राजस्व के बकाया के रूप में वसूली योग्य किसी भी अन्य बकाया की वसूली में बेचे जाने की अनुमति दी है। यह इंगित करता है कि जब कोई भागीदार अपना पूरा वित्तीय हित हस्तांतरित कर देता है, तो वह प्रभावी रूप से फर्म में अपनी सक्रिय भूमिका खो देता है, जिससे विघटन का आधार बन सकता है। (संदर्भ: धारा 29 (Section 29), जो भागीदार के हित के हस्तांतरिती के अधिकारों को सीमित करती है, लेकिन यहां भागीदार के स्वयं के कृत्यों पर ध्यान केंद्रित किया गया है)।

    • (च) व्यवसाय का नुकसान पर चलना (Business Carried On Only at a Loss): यदि फर्म का व्यवसाय केवल नुकसान (Loss) पर ही चलाया जा सकता है। ऐसे मामलों में, न्यायालय यह मान सकता है कि फर्म को भंग करना न्यायसंगत और उचित है क्योंकि इसका कोई व्यावसायिक औचित्य नहीं है।

    • (छ) न्यायसंगत और उचित आधार (Just and Equitable Ground): किसी भी अन्य आधार पर जो यह न्यायसंगत और उचित (Just and Equitable) बनाता है कि फर्म को भंग कर दिया जाना चाहिए। यह खंड न्यायालय को व्यापक विवेक (Wide Discretion) प्रदान करता है ताकि वह उन स्थितियों में भी फर्म को भंग कर सके जो उपर्युक्त विशिष्ट आधारों में स्पष्ट रूप से शामिल नहीं हैं, लेकिन जहां फर्म को जारी रखना अन्यायपूर्ण या अनुचित होगा।

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