वायु (प्रदूषण निवारण तथा नियंत्रण) अधिनियम, 1981 की धारा 35 और धारा 36 : प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों की वार्षिक रिपोर्ट और लेखापरीक्षा
Himanshu Mishra
12 Aug 2025 5:26 PM IST

वायु (प्रदूषण निवारण तथा नियंत्रण) अधिनियम, 1981, के तहत, प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों (Pollution Control Boards) को न केवल परिचालन (operational) शक्तियाँ और वित्तीय स्वायत्तता (financial autonomy) दी गई है, बल्कि उन पर अपने कार्यों और वित्त के लिए पूर्ण जवाबदेही (accountability) और पारदर्शिता (transparency) सुनिश्चित करने का दायित्व भी डाला गया है।
अध्याय V में, धारा 35 और धारा 36 इन सार्वजनिक निकायों के वित्तीय और कार्यात्मक प्रबंधन (functional management) की निगरानी के लिए एक मजबूत तंत्र स्थापित करती हैं। ये प्रावधान सुनिश्चित करते हैं कि बोर्ड, जिन्हें जनता के पैसे से चलाया जाता है, अपने सभी कार्यों के लिए सरकार और जनता के प्रति जवाबदेह हों।
धारा 35 - वार्षिक रिपोर्ट (Annual Report)
धारा 35 केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (SPCBs) दोनों के लिए वार्षिक रिपोर्ट (Annual Report) तैयार करने को अनिवार्य बनाती है। यह रिपोर्ट बोर्ड के कामकाज का एक विस्तृत विवरण (detailed account) प्रस्तुत करती है और जनता तथा विधायी निकायों (legislative bodies) को यह समझने में मदद करती है कि प्रदूषण नियंत्रण के प्रयास कैसे चल रहे हैं।
केंद्रीय बोर्ड की रिपोर्ट प्रक्रिया (Central Board's Reporting Process)
उप-धारा (1) के अनुसार, केंद्रीय बोर्ड को प्रत्येक वित्तीय वर्ष (financial year) के दौरान, पिछले वित्तीय वर्ष में अपनी गतिविधियों का पूरा विवरण (full account) देते हुए एक वार्षिक रिपोर्ट तैयार करनी होती है।
• समय सीमा: यह रिपोर्ट पिछले वित्तीय वर्ष की अंतिम तिथि से चार महीने के भीतर केंद्र सरकार को भेजी जानी चाहिए।
• संसदीय प्रस्तुति (Parliamentary Presentation): केंद्र सरकार को यह सुनिश्चित करना होता है कि यह रिपोर्ट पिछले वित्तीय वर्ष की अंतिम तिथि से नौ महीने के भीतर संसद के दोनों सदनों (both Houses of Parliament) के सामने रखी जाए।
यह प्रक्रिया सुनिश्चित करती है कि CPCB की सभी गतिविधियाँ, जैसे राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता की निगरानी (monitoring), अनुसंधान (research) और राज्य बोर्डों का समन्वय (coordination), सार्वजनिक रूप से उपलब्ध हों।
उदाहरण के लिए, CPCB की वार्षिक रिपोर्ट में निम्नलिखित जानकारी शामिल हो सकती है:
• देश भर में स्थापित वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशनों (air quality monitoring stations) की संख्या और उनके द्वारा दर्ज किए गए प्रदूषण के स्तर।
• जारी किए गए दिशा-निर्देशों (guidelines) और विनियमों (regulations) का विवरण।
• उद्योगों पर की गई कानूनी कार्रवाइयों (legal actions) की संख्या।
• प्रदूषण नियंत्रण प्रौद्योगिकियों (pollution control technologies) से संबंधित किए गए अनुसंधान।
• जन जागरूकता अभियानों (public awareness campaigns) और कार्यशालाओं का विवरण।
यह प्रक्रिया सांसदों (Members of Parliament) को बोर्ड के प्रदर्शन पर सवाल उठाने और जवाबदेही सुनिश्चित करने का अवसर देती है।
राज्य बोर्ड की रिपोर्ट प्रक्रिया (State Board's Reporting Process)
उप-धारा (2) के तहत, प्रत्येक राज्य बोर्ड के लिए भी इसी तरह की प्रक्रिया का पालन करना आवश्यक है।
• समय सीमा: राज्य बोर्ड को अपनी वार्षिक रिपोर्ट पिछले वित्तीय वर्ष की अंतिम तिथि से चार महीने के भीतर राज्य सरकार को भेजनी होती है।
• विधानसभा में प्रस्तुति (Presentation in the State Legislature): राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करना होता है कि यह रिपोर्ट पिछले वित्तीय वर्ष की अंतिम तिथि से नौ महीने के भीतर राज्य विधानमंडल (State Legislature) के सामने रखी जाए।
उदाहरण के लिए, एक SPCB की वार्षिक रिपोर्ट में राज्य के भीतर प्रदूषण फैलाने वाले हॉटस्पॉट (hotspots), प्रमुख औद्योगिक क्षेत्रों में उत्सर्जन के स्तर, और उन उद्योगों की संख्या का विवरण हो सकता है जिन्हें प्रदूषण नियंत्रण उपकरण स्थापित करने के लिए नोटिस (notices) जारी किए गए थे।
यह राज्य के विधायकों (legislators) को अपने निर्वाचन क्षेत्रों (constituencies) में वायु प्रदूषण की स्थिति को समझने और सरकार से प्रभावी कार्रवाई की मांग करने में मदद करता है। यह प्रणाली यह सुनिश्चित करती है कि बोर्ड की गतिविधियाँ पारदर्शी हों और वे अपने कार्यों के लिए राजनीतिक और सार्वजनिक दोनों रूप से जिम्मेदार हों।
धारा 36 - लेखा और लेखापरीक्षा (Accounts and Audit)
धारा 36 बोर्डों के वित्तीय प्रबंधन (financial management) को नियंत्रित करती है और यह सुनिश्चित करने के लिए एक कठोर लेखापरीक्षा (audit) प्रक्रिया स्थापित करती है कि सार्वजनिक धन का उपयोग कुशलतापूर्वक और कानूनी रूप से किया जाता है। यह प्रावधान बोर्डों के फंड (fund) और बजट (budget) के प्रबंधन से जुड़ा है, जैसा कि धारा 33 और धारा 34 में उल्लिखित है।
लेखा और रिकॉर्ड (Accounts and Records)
उप-धारा (1) के अनुसार, प्रत्येक बोर्ड को इस अधिनियम के तहत अपने कार्यों के संबंध में उचित लेखा (proper accounts) और अन्य प्रासंगिक रिकॉर्ड (relevant records) बनाए रखने चाहिए। उन्हें एक वार्षिक लेखा विवरण (annual statement of accounts) भी तैयार करना होता है। यह वित्तीय अनुशासन (financial discipline) का एक मौलिक पहलू है।
लेखापरीक्षक की नियुक्ति (Appointment of Auditors)
उप-धारा (2) और (3) एक स्वतंत्र और योग्य लेखापरीक्षक (independent and qualified auditor) की नियुक्ति का विवरण देती हैं।
• योग्यता (Qualification): लेखापरीक्षा (audit) एक ऐसे लेखापरीक्षक द्वारा की जाती है जो कंपनी अधिनियम, 1956 की धारा 226 के तहत कंपनियों के लेखापरीक्षक के रूप में कार्य करने के लिए विधिवत योग्य (duly qualified) हो। यह आमतौर पर एक चार्टर्ड अकाउंटेंट (Chartered Accountant) होता है।
• नियुक्ति (Appointment): इस लेखापरीक्षक की नियुक्ति केंद्र सरकार या राज्य सरकार द्वारा भारत के नियंत्रक और महालेखापरीक्षक (Comptroller and Auditor General of India - CAG) की सलाह पर की जाती है। CAG, भारत में सार्वजनिक क्षेत्र की लेखापरीक्षा का सर्वोच्च प्राधिकरण है, और उसकी सलाह पर नियुक्ति यह सुनिश्चित करती है कि लेखापरीक्षा प्रक्रिया उच्च मानकों (high standards) और निष्पक्षता (impartiality) के तहत हो।
लेखापरीक्षक की शक्तियाँ (Powers of the Auditor)
उप-धारा (4) लेखापरीक्षक को लेखापरीक्षा को प्रभावी ढंग से संचालित करने के लिए आवश्यक व्यापक शक्तियाँ (broad powers) देती है।
• लेखापरीक्षक को किताबें (books), खाते (accounts), संबंधित वाउचर (connected vouchers) और अन्य दस्तावेजों (documents) की मांग करने का अधिकार है।
• उसे बोर्ड के किसी भी कार्यालय (offices) का निरीक्षण करने का भी अधिकार है।
यह प्रावधान लेखापरीक्षक को बोर्ड के वित्तीय लेनदेन की गहराई से जांच करने की अनुमति देता है, जिससे किसी भी संभावित वित्तीय अनियमितता (financial irregularity) या कुप्रबंधन (mismanagement) का पता लगाया जा सके।
रिपोर्ट और संसदीय प्रस्तुति (Report and Parliamentary Presentation)
उप-धारा (5), (6) और (7) लेखापरीक्षा रिपोर्ट को प्रस्तुत करने की प्रक्रिया का वर्णन करती हैं:
• लेखापरीक्षक अपनी रिपोर्ट की एक प्रति, लेखापरीक्षित खातों (audited accounts) के साथ, केंद्र सरकार या राज्य सरकार को भेजता है।
• केंद्र सरकार को यह रिपोर्ट प्राप्त होने के बाद, इसे जल्द से जल्द संसद के दोनों सदनों के सामने रखना होता है।
• इसी तरह, राज्य सरकार को इसे राज्य विधानमंडल के सामने रखना होता है।
उदाहरण के लिए, एक लेखापरीक्षा रिपोर्ट में यह उजागर हो सकता है कि एक SPCB ने प्रदूषण नियंत्रण उपकरणों को सब्सिडी (subsidies) देने के लिए बजट का एक बड़ा हिस्सा खर्च किया, लेकिन इस खर्च के लिए आवश्यक प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया।
रिपोर्ट यह भी इंगित कर सकती है कि कुछ प्राप्तियाँ, जैसे कि जुर्माना (fines), ठीक से दर्ज नहीं की गईं। ऐसी रिपोर्टों को संसद या राज्य विधानमंडल में पेश करने से यह सुनिश्चित होता है कि वित्तीय कदाचार (financial misconduct) के मामलों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है, और जिम्मेदार लोगों को जवाबदेह ठहराया जा सकता है।
धारा 35 और धारा 36 मिलकर एक मजबूत जवाबदेही चक्र (accountability cycle) बनाती हैं। वार्षिक रिपोर्ट बोर्ड के कार्यों की पारदर्शिता प्रदान करती है, जबकि लेखापरीक्षा रिपोर्ट वित्तीय मामलों में अनुशासन और ईमानदारी सुनिश्चित करती है। इन दोनों रिपोर्टों को विधायी निकायों के सामने प्रस्तुत करने से, बोर्डों का कामकाज जनता और उनके निर्वाचित प्रतिनिधियों (elected representatives) की निगरानी में रहता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि वे अपने महत्वपूर्ण कार्य को प्रभावी ढंग से और जिम्मेदारी से करते रहें।

