भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 32, धारा 33, और धारा 35 : CCI के अधिकार क्षेत्र, अंतरिम आदेश और उपस्थिति का अधिकार

Himanshu Mishra

13 Aug 2025 5:31 PM IST

  • भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 32, धारा 33, और धारा 35 : CCI के अधिकार क्षेत्र, अंतरिम आदेश और उपस्थिति का अधिकार

    पिछले अनुभागों में हमने भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) के कर्तव्य, जांच की शक्तियाँ और आदेशों के बारे में सीखा। अब हम उन तीन महत्वपूर्ण धाराओं पर ध्यान देंगे जो CCI की पहुंच, तात्कालिकता और प्रक्रियात्मक स्वतंत्रता को दर्शाती हैं।

    भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 32, धारा 33, और धारा 35 CCI को वैश्विक स्तर पर कार्रवाई करने, जांच के दौरान संभावित नुकसान को रोकने के लिए तुरंत हस्तक्षेप करने और यह तय करने की स्वतंत्रता देती हैं कि उसके सामने कौन और कैसे उपस्थित हो सकता है। ये धाराएँ आधुनिक, वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक नियामक (regulator) के रूप में CCI की प्रभावशीलता को रेखांकित करती हैं।

    धारा 32: भारत के बाहर होने वाले कार्य जिनका भारत में प्रतिस्पर्धा पर प्रभाव पड़ता है (Extraterritorial Jurisdiction of CCI)

    धारा 32 CCI को एक महत्वपूर्ण शक्ति प्रदान करती है जिसे क्षेत्राधिकार से परे (Extraterritorial Jurisdiction) की शक्ति कहा जाता है। यह धारा स्पष्ट करती है कि CCI को भारत के बाहर होने वाले किसी भी कार्य की जांच करने का अधिकार है, बशर्ते कि उस कार्य का भारत के प्रासंगिक बाजार (Relevant Market) में प्रतिस्पर्धा पर पर्याप्त प्रतिकूल प्रभाव (Appreciable Adverse Effect) पड़ता हो या पड़ने की संभावना हो।

    यह धारा विशेष रूप से छह विशिष्ट परिस्थितियों को सूचीबद्ध करती है, जो इस प्रकार हैं:

    • यदि धारा 3 में संदर्भित कोई समझौता भारत के बाहर किया गया हो।

    • यदि ऐसे समझौते का कोई पक्ष भारत के बाहर हो।

    • यदि कोई उद्यम अपनी प्रमुख स्थिति (Dominant Position) का दुरुपयोग कर रहा है और वह भारत के बाहर है।

    • यदि कोई संयोजन (Combination) भारत के बाहर हुआ है।

    • यदि संयोजन का कोई पक्ष भारत के बाहर है।

    • यदि किसी समझौते, प्रमुख स्थिति के दुरुपयोग, या संयोजन से उत्पन्न कोई अन्य मामला या प्रथा भारत के बाहर है।

    इन सभी मामलों में, CCI को धारा 19 (समझौतों और प्रमुख स्थिति की जांच), धारा 20 (संयोजन की जांच), धारा 26 (जांच की प्रक्रिया), धारा 29 और 30 (संयोजन की जांच प्रक्रिया) के अनुसार जांच करने और उचित आदेश पारित करने की शक्ति है।

    इस धारा का महत्व

    आज की वैश्वीकृत दुनिया में, कई बड़े निगमों (Corporations) की गतिविधियाँ दुनिया भर के बाजारों को प्रभावित करती हैं। इस धारा के बिना, CCI केवल भारत में पंजीकृत या संचालित कंपनियों के खिलाफ ही कार्रवाई कर पाता, जिससे भारत के उपभोक्ताओं और छोटे व्यवसायों को नुकसान पहुँचाने वाले विदेशी दिग्गजों के खिलाफ कार्रवाई करना असंभव हो जाता। यह धारा सुनिश्चित करती है कि CCI अंतरराष्ट्रीय सीमाओं को पार करके भी भारतीय बाजार की अखंडता की रक्षा कर सके।

    उदाहरण

    • ** काल्पनिक उदाहरण:** मान लीजिए कि यूरोप की दो बड़ी कार निर्माता कंपनियाँ आपस में एक गुप्त समझौता करती हैं कि वे भारतीय बाजार में अपनी कारों की कीमतें एक निश्चित स्तर से नीचे नहीं रखेंगी। यह समझौता भारत के बाहर हुआ है, लेकिन इसका सीधा असर भारतीय उपभोक्ताओं और प्रतिस्पर्धा पर पड़ रहा है। इस स्थिति में, CCI को धारा 32 के तहत इस समझौते की जांच करने और इन विदेशी कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई करने का अधिकार है।

    • वास्तविक जीवन का उदाहरण: Google Android के मामले में, CCI ने Google के Android operating system से संबंधित कई प्रथाओं की जांच की। हालांकि Google एक अमेरिकी कंपनी है और उसकी वैश्विक नीतियां भारत के बाहर बनती हैं, CCI ने यह पाया कि उसकी ये नीतियाँ भारतीय बाजार में Competition पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही थीं। CCI ने इस मामले में Google पर भारी जुर्माना लगाया और उसे अपनी व्यावसायिक प्रथाओं को बदलने का आदेश दिया। यह मामला CCI की क्षेत्राधिकार से परे शक्ति का एक प्रमुख उदाहरण है।

    धारा 33: अंतरिम आदेश जारी करने की शक्ति (Power to Issue Interim Orders)

    धारा 33 CCI को एक बहुत ही महत्वपूर्ण शक्ति देती है: अंतरिम आदेश (Interim Order) जारी करने की शक्ति। CCI जांच के दौरान, यदि यह संतुष्ट है कि धारा 3 (प्रतिस्पर्धा-विरोधी समझौता), धारा 4 (प्रमुख स्थिति का दुरुपयोग), या धारा 6 (संयोजन) के उल्लंघन में कोई कार्य किया गया है, जारी है, या होने वाला है, तो वह एक आदेश जारी करके संबंधित पक्ष को उस कार्य को अस्थायी रूप से (temporarily) करने से रोक सकता है। यह आदेश जांच के निष्कर्ष तक या अगले आदेश तक लागू रहता है।

    इस धारा की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि CCI बिना किसी सूचना दिए (without giving notice) भी ऐसा आदेश जारी कर सकता है, यदि उसे ऐसा करना आवश्यक लगता है।

    इस धारा का महत्व

    अंतरिम आदेशों का मुख्य उद्देश्य यह है कि जांच पूरी होने तक बाजार को अपरिवर्तनीय (irreversible) क्षति से बचाया जाए। CCI की जांच प्रक्रिया में समय लगता है। इस दौरान, यदि कोई कंपनी प्रतिस्पर्धा-विरोधी व्यवहार जारी रखती है, तो इससे बाजार और उपभोक्ताओं को गंभीर नुकसान हो सकता है। अंतरिम आदेश CCI को तुरंत हस्तक्षेप करने और "जैसे-को-तैसे" की स्थिति बनाए रखने में सक्षम बनाते हैं।

    उदाहरण

    • काल्पनिक उदाहरण: एक बड़ी ऑनलाइन रिटेल कंपनी अपने प्लेटफॉर्म पर एक विशिष्ट मोबाइल फोन ब्रांड को केवल अपने ही विक्रेताओं के माध्यम से बेचने के लिए मजबूर करती है, जिससे अन्य विक्रेताओं और प्रतिस्पर्धी ब्रांडों को नुकसान होता है। इस मामले की जांच शुरू होने के दौरान, CCI को लगता है कि यह प्रथा बाजार में प्रतिस्पर्धा को गंभीर रूप से बाधित कर रही है। CCI तब एक अंतरिम आदेश जारी करके उस रिटेल कंपनी को तुरंत इस विशिष्ट ब्रांड को सभी विक्रेताओं के लिए उपलब्ध कराने का निर्देश दे सकता है, जब तक कि पूरी जांच समाप्त नहीं हो जाती।

    • वास्तविक जीवन का उदाहरण: कई मामलों में, जब किसी बड़े विलय की घोषणा होती है और CCI को लगता है कि इससे बाजार में तुरंत समस्याएं पैदा हो सकती हैं, तो वह अंतरिम आदेश जारी करके विलय को अस्थायी रूप से रोक सकता है। एक बार CCI की जांच पूरी हो जाने और यह पुष्टि होने पर कि विलय प्रतिस्पर्धा-अनुकूल है, यह अंतरिम आदेश हटा दिया जाता है।

    धारा 35: आयोग के समक्ष उपस्थिति (Appearance Before the Commission)

    धारा 35 यह निर्धारित करती है कि CCI के समक्ष कौन और कैसे उपस्थित हो सकता है। यह एक प्रक्रियात्मक धारा है जो कानूनी प्रतिनिधित्व के नियमों को स्पष्ट करती है। इस धारा के अनुसार, कोई व्यक्ति (Person), उद्यम (Enterprise), या महानिदेशक (Director General) स्वयं व्यक्तिगत रूप से (in person) उपस्थित हो सकते हैं या किसी को अपनी ओर से प्रतिनिधित्व करने के लिए अधिकृत (authorise) कर सकते हैं।

    प्रतिनिधित्व के लिए अधिकृत व्यक्ति

    कोई भी व्यक्ति या उद्यम इन पेशेवरों को अपने मामले का प्रतिनिधित्व करने के लिए अधिकृत कर सकता है:

    • एक या अधिक चार्टर्ड अकाउंटेंट (Chartered Accountants)।

    • एक या अधिक कंपनी सेक्रेटरी (Company Secretaries)।

    • एक या अधिक कॉस्ट अकाउंटेंट (Cost Accountants)।

    • एक या अधिक लीगल प्रैक्टिशनर (Legal Practitioners) (यानी वकील)।

    • उस व्यक्ति या उद्यम के अपने अधिकारी।

    यह धारा आगे एक स्पष्टीकरण (Explanation) भी देती है, जिसमें "चार्टर्ड अकाउंटेंट," "कंपनी सेक्रेटरी," "कॉस्ट अकाउंटेंट," और "लीगल प्रैक्टिशनर" को उनके संबंधित अधिनियमों (जैसे चार्टर्ड अकाउंटेंट्स एक्ट, 1949) के अनुसार परिभाषित किया गया है।

    इस धारा का महत्व

    यह धारा CCI की प्रक्रिया को लचीला और सुलभ बनाती है। यह सुनिश्चित करती है कि CCI के सामने पेश होने वाले पक्ष को अपने मामले को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करने का मौका मिले। चूंकि CCI के मामलों में अक्सर जटिल कानूनी, वित्तीय और आर्थिक पहलू शामिल होते हैं, इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि पक्षों को ऐसे पेशेवरों द्वारा प्रतिनिधित्व करने की अनुमति दी जाए जिनके पास इन क्षेत्रों में आवश्यक विशेषज्ञता हो।

    उदाहरण

    • काल्पनिक उदाहरण: एक छोटे स्टार्टअप पर एक बड़े प्रतिद्वंद्वी के साथ एक अनुचित समझौते का आरोप लगाया गया है। स्टार्टअप के मालिक CCI के सामने खुद पेश होने के बजाय, अपने मामले का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक वकील (Legal Practitioner) या एक चार्टर्ड अकाउंटेंट को नियुक्त कर सकते हैं, जो CCI के नियमों और प्रक्रियाओं से परिचित हों।

    • बड़े उद्यमों का उदाहरण: बड़ी कंपनियाँ, जैसे कि टाटा मोटर्स या रिलायंस इंडस्ट्रीज, अक्सर अपने इन-हाउस legal team (कानूनी टीम) या एक प्रसिद्ध law firm (लॉ फर्म) के वकीलों को CCI के समक्ष अपना बचाव करने के लिए भेजती हैं। यह प्रतिनिधित्व की प्रक्रिया में व्यावसायिकता और कानूनी विशेषज्ञता का उच्च स्तर सुनिश्चित करता है।

    भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 32, 33 और 35 CCI को एक शक्तिशाली और आधुनिक नियामक बनाती हैं। धारा 32 CCI को वैश्विक पहुंच देती है, जिससे वह अंतरराष्ट्रीय गतिविधियों से भारत में प्रतिस्पर्धा को होने वाले नुकसान को रोक सकता है। धारा 33 उसे तुरंत कार्रवाई करने की शक्ति देती है, जिससे जांच के दौरान बाजार को सुरक्षित रखा जा सके।

    अंत में, धारा 35 एक स्पष्ट और लचीली प्रक्रिया निर्धारित करती है कि कौन CCI के सामने उपस्थित हो सकता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि सभी पक्ष, चाहे वे कितने भी बड़े या छोटे क्यों न हों, अपने मामलों का प्रभावी ढंग से प्रतिनिधित्व कर सकें। ये तीनों धाराएं मिलकर CCI को एक मजबूत और सक्षम संस्था बनाती हैं जो भारतीय अर्थव्यवस्था में प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने और बनाए रखने के अपने महत्वपूर्ण मिशन को पूरा कर सके।

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