Indian Partnership Act 1932 की धारा 30 : भागीदारी के लाभों में नाबालिगों का प्रवेश
Himanshu Mishra
4 July 2025 9:30 PM IST

भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 (Indian Partnership Act, 1932) की धारा 30 (Section 30) नाबालिगों (Minors) को भागीदारी के लाभों में शामिल करने से संबंधित विशिष्ट प्रावधानों (Specific Provisions) को निर्धारित करती है। यह धारा भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 (Indian Contract Act, 1872) के सिद्धांत से एक अपवाद (Exception) है, जो नाबालिगों को अनुबंध करने में अक्षम (Incompetent to Contract) मानता है।
नाबालिग को भागीदारी में शामिल करना (Admitting a Minor to Partnership)
उप-धारा (1) के अनुसार, एक व्यक्ति जो अपने कानून के अनुसार नाबालिग (Minor) है, वह किसी फर्म में भागीदार नहीं बन सकता (May Not Be a Partner) है। हालांकि, फर्म के सभी वर्तमान भागीदारों की सहमति (Consent of All the Partners) से उसे भागीदारी के लाभों (Benefits of Partnership) में शामिल किया जा सकता है। इसका मतलब है कि नाबालिग लाभ में हिस्सा ले सकता है लेकिन वह पूर्ण भागीदार नहीं बनता और उसकी असीमित देनदारी (Unlimited Liability) नहीं होती।
नाबालिग के अधिकार और देनदारियां (Rights and Liabilities of a Minor)
उप-धारा (2) बताती है कि ऐसे नाबालिग को फर्म की संपत्ति (Property) और मुनाफे (Profits) में उतना हिस्सा प्राप्त करने का अधिकार होता है जितना सहमत हो। उसे फर्म के किसी भी खाते (Accounts) तक पहुंच (Access) रखने, उसका निरीक्षण (Inspect) करने और उसकी प्रति (Copy) लेने का भी अधिकार होता है।
उप-धारा (3) के अनुसार, ऐसे नाबालिग का हिस्सा फर्म के कार्यों के लिए उत्तरदायी (Liable) होता है, लेकिन नाबालिग स्वयं (Minor is Not Personally Liable) किसी ऐसे कार्य के लिए व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी नहीं होता है। यह बिंदु महत्वपूर्ण है क्योंकि यह नाबालिग को फर्म के नुकसान से व्यक्तिगत रूप से बचाता है।
हिस्से के लिए मुकदमा करने का अधिकार (Right to Sue for Share)
उप-धारा (4) के तहत, ऐसा नाबालिग फर्म की संपत्ति या मुनाफे में अपने हिस्से के लिए भागीदारों पर मुकदमा (Sue) नहीं कर सकता है, सिवाय तब जब वह फर्म के साथ अपना संबंध समाप्त कर रहा हो (Severing His Connection with the Firm)। ऐसे मामले में, उसके हिस्से की राशि का निर्धारण धारा 48 (Section 48) में निहित नियमों के अनुसार मूल्यांकन द्वारा किया जाएगा, जहाँ तक संभव हो।
परंतु (Provided that), सभी भागीदार एक साथ कार्य करते हुए या कोई भी भागीदार जो अन्य भागीदारों को नोटिस (Notice) देकर फर्म को भंग करने का हकदार है, ऐसे मुकदमे में फर्म को भंग करने का चुनाव कर सकता है। उसके बाद, न्यायालय इस मुकदमे को विघटन (Dissolution) और भागीदारों के बीच खातों का निपटान (Settling Accounts) करने वाले मुकदमे के रूप में आगे बढ़ाएगा, और नाबालिग के हिस्से की राशि का निर्धारण भागीदारों के हिस्सों के साथ ही किया जाएगा।
वयस्क होने पर स्थिति का चुनाव (Election of Position on Attaining Majority)
उप-धारा (5) एक महत्वपूर्ण समय-सीमा निर्धारित करती है। अपने वयस्क होने (Attaining Majority) के छह महीने के भीतर, या उसे यह जानकारी प्राप्त होने के छह महीने के भीतर कि उसे भागीदारी के लाभों में शामिल किया गया था (इनमें से जो भी तारीख बाद में हो), ऐसा व्यक्ति सार्वजनिक नोटिस (Public Notice) देकर यह चुनाव कर सकता है कि वह फर्म में भागीदार बनना चाहता है या नहीं बनना चाहता है। यह नोटिस फर्म के संबंध में उसकी स्थिति (Position) को निर्धारित करेगा।
परंतु (Provided that), यदि वह ऐसा नोटिस देने में विफल रहता है, तो वह उक्त छह महीने की समाप्ति पर फर्म में भागीदार बन जाएगा (Shall Become a Partner)। यह प्रावधान नाबालिग को अपनी स्थिति चुनने का अवसर देता है, लेकिन निष्क्रियता (Inactivity) की स्थिति में उसे भागीदार मान लिया जाता है।
उप-धारा (6) स्पष्ट करती है कि जहां किसी व्यक्ति को नाबालिग के रूप में भागीदारी के लाभों में शामिल किया गया है, और वयस्क होने के छह महीने बाद तक उसे इस बात की जानकारी नहीं थी, इस तथ्य को साबित करने का बोझ (Burden of Proving) उन व्यक्तियों पर होगा जो इस बात का दावा करते हैं।
भागीदार बनने पर प्रभाव (Effect of Becoming a Partner)
उप-धारा (7) बताती है कि जब ऐसा व्यक्ति भागीदार बन जाता है:
• (क) उसके अधिकार और देनदारियां (Rights and Liabilities): नाबालिग के रूप में उसके अधिकार और देनदारियां उस तारीख तक जारी रहती हैं जब वह भागीदार बनता है, लेकिन वह भागीदारी के लाभों में शामिल होने के बाद से फर्म द्वारा किए गए सभी कार्यों के लिए तीसरे पक्षों (Third Parties) के प्रति व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी (Personally Liable) भी हो जाता है। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि एक बार जब वह भागीदार बनने का चुनाव कर लेता है, तो उसकी देनदारी असीमित हो जाती है (संदर्भ: धारा 25 (Section 25))।
• (ख) संपत्ति और मुनाफे में हिस्सा (Share in Property and Profits): फर्म की संपत्ति और मुनाफे में उसका हिस्सा वही होगा जिसके लिए वह नाबालिग के रूप में हकदार था।
भागीदार न बनने का चुनाव करने पर प्रभाव (Effect of Electing Not to Become a Partner)
उप-धारा (8) बताती है कि जब ऐसा व्यक्ति भागीदार न बनने का चुनाव करता है:
• (क) अधिकार और देनदारियां (Rights and Liabilities): उसके अधिकार और देनदारियां इस धारा के तहत नाबालिग के रूप में ही रहेंगी जब तक कि वह सार्वजनिक नोटिस नहीं देता।
• (ख) हिस्से की देनदारी (Liability of Share): उसका हिस्सा नोटिस की तारीख के बाद फर्म द्वारा किए गए किसी भी कार्य के लिए उत्तरदायी नहीं होगा।
• (ग) मुकदमा करने का अधिकार (Right to Sue): उसे उप-धारा (4) के अनुसार संपत्ति और मुनाफे में अपने हिस्से के लिए भागीदारों पर मुकदमा करने का अधिकार होगा।
उप-धारा (9) स्पष्ट करती है कि उप-धारा (7) और (8) में कुछ भी धारा 28 (Section 28) (होल्डिंग आउट) के प्रावधानों को प्रभावित नहीं करेगा। इसका मतलब है कि यदि कोई नाबालिग, भले ही वह भागीदार न बनने का चुनाव करे, खुद को भागीदार के रूप में प्रस्तुत करता है और कोई तीसरा पक्ष उस पर भरोसा करता है, तो वह 'होल्डिंग आउट' के सिद्धांत के तहत उत्तरदायी हो सकता है।