Water Act, 1974 की धारा 3- 4 : जल प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण के लिए केंद्रीय एवं राज्य बोर्ड

Himanshu Mishra

20 Aug 2025 6:27 PM IST

  • Water Act, 1974 की धारा 3- 4 : जल प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण के लिए केंद्रीय एवं राज्य बोर्ड

    भारत में Water (Prevention and Control of Pollution) Act, 1974 केवल एक नीति दस्तावेज़ नहीं है, बल्कि यह ऐसा अधिनियम है जिसने पर्यावरणीय प्रशासन को नई दिशा दी। इसका दूसरा अध्याय विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें Central Pollution Control Board (CPCB) और State Pollution Control Boards (SPCBs) की स्थापना और संरचना का प्रावधान है।

    यह अध्याय यह समझने की कुंजी है कि भारत में जल प्रदूषण नियंत्रण का संस्थागत ढांचा कैसे काम करता है। इस लेख में हम इन प्रावधानों का विस्तार से अध्ययन करेंगे, उनके महत्व को समझेंगे और वास्तविक उदाहरणों (Real Examples) से देखेंगे कि कैसे ये संस्थाएँ ज़मीनी स्तर पर कार्य करती हैं।

    केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का गठन (Constitution of Central Board)अधिनियम की धारा 3 के अनुसार, केंद्र सरकार को अधिनियम लागू होने के छह माह के भीतर Central Pollution Control Board (CPCB) की स्थापना करनी होती है। यह बोर्ड एक सांविधिक निकाय (Statutory Body) है जिसे “कॉर्पोरेट बॉडी” का दर्जा दिया गया है। इसका अर्थ है कि CPCB का अपना नाम, मुहर (Seal) और निरंतर उत्तराधिकार (Perpetual Succession) होता है। यह संपत्ति खरीद सकता है, बेच सकता है, अनुबंध कर सकता है और अदालत में वाद (Litigation) दायर कर सकता है या उस पर वाद चलाया जा सकता है।

    संरचना (Composition of CPCB)

    CPCB में निम्नलिखित सदस्य होते हैं:

    1. पूर्णकालिक अध्यक्ष (Full-time Chairman): जिसे केंद्र सरकार नामित करती है। यह व्यक्ति पर्यावरण संरक्षण (Environmental Protection) से संबंधित विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव वाला होना चाहिए।

    2. केंद्र सरकार के प्रतिनिधि (Officials): अधिकतम पाँच अधिकारी जो केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व करते हैं।

    3. राज्य बोर्डों के सदस्य (State Board Members): अधिकतम पाँच, जिनमें से दो तक वे सदस्य होते हैं जिन्हें स्थानीय निकायों का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुना गया है।

    4. गैर-सरकारी सदस्य (Non-officials): अधिकतम तीन सदस्य जिन्हें कृषि, मत्स्य, उद्योग या व्यापार जैसे क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुना जाता है।

    5. केंद्र सरकार के उपक्रमों के प्रतिनिधि (Corporations' Representatives): दो सदस्य जो केंद्र सरकार के स्वामित्व वाली कंपनियों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

    6. पूर्णकालिक सदस्य सचिव (Member-Secretary): जिसे केंद्र सरकार नियुक्त करती है और जिसे प्रदूषण नियंत्रण के वैज्ञानिक, इंजीनियरिंग या प्रबंधन पहलुओं का विशेष ज्ञान और अनुभव होना चाहिए।

    वास्तविक उदाहरण (Real Example)

    CPCB का मुख्यालय नई दिल्ली में है और इसके विभिन्न ज़ोनल ऑफिस (Zonal Offices) पूरे देश में फैले हुए हैं। उदाहरण के तौर पर, दिल्ली की यमुना नदी में प्रदूषण नियंत्रण के लिए CPCB ने कई बार रिपोर्ट तैयार की और सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर कार्य योजनाएँ बनाईं। हाल ही में CPCB ने यमुना की सफाई के लिए एक Action Plan तैयार किया जिसमें दिल्ली जल बोर्ड और नगर निगमों को सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (STPs) स्थापित करने का निर्देश दिया गया।

    राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों का गठन (Constitution of State Boards)

    अधिनियम की धारा 4 के अनुसार, प्रत्येक राज्य सरकार अपने राज्य में State Pollution Control Board (SPCB) का गठन करती है। यह बोर्ड भी एक कॉर्पोरेट बॉडी होता है और इसका नाम राज्य सरकार अधिसूचना (Notification) द्वारा तय करती है।

    संरचना (Composition of SPCBs)

    राज्य बोर्ड की संरचना इस प्रकार है:

    1. अध्यक्ष (Chairman): जिसे राज्य सरकार नामित करती है। यह पूर्णकालिक या अंशकालिक (Whole-time/Part-time) हो सकता है।

    2. राज्य सरकार के प्रतिनिधि (Officials): अधिकतम पाँच अधिकारी जो राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व करते हैं।

    3. स्थानीय निकायों के प्रतिनिधि (Local Authorities): अधिकतम पाँच सदस्य जो नगर निगम या पंचायत जैसे निकायों से आते हैं।

    4. गैर-सरकारी सदस्य (Non-officials): अधिकतम तीन सदस्य जिन्हें कृषि, मत्स्य, उद्योग या व्यापार जैसे क्षेत्रों से चुना जाता है।

    5. राज्य सरकार के उपक्रमों के प्रतिनिधि (Corporations' Representatives): दो सदस्य जो राज्य सरकार के स्वामित्व वाली कंपनियों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

    6. पूर्णकालिक सदस्य सचिव (Member-Secretary): जिसे राज्य सरकार नियुक्त करती है और जिसे प्रदूषण नियंत्रण का तकनीकी ज्ञान हो।

    विशेष प्रावधान (Special Provision for Union Territories)

    संविधान के अनुसार, केंद्र शासित प्रदेशों (Union Territories) के लिए अलग राज्य बोर्ड नहीं बनाए जाते। वहाँ CPCB ही राज्य बोर्ड की तरह कार्य करता है। हालाँकि केंद्र सरकार चाहे तो अपने अधिकार किसी व्यक्ति या निकाय को सौंप सकती है।

    वास्तविक कार्यान्वयन (Real-world Implementation)

    दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (DPCC)

    दिल्ली, जो कि केंद्र शासित प्रदेश है, में स्वतंत्र SPCB नहीं है। वहाँ CPCB के अधिकारों को Delhi Pollution Control Committee (DPCC) को सौंपा गया है। DPCC ने दिल्ली में उद्योगों की “Red, Orange और Green” श्रेणीबद्ध सूची तैयार की है और इस आधार पर उन्हें अनुमति (Consent to Operate) दी जाती है। उदाहरण के लिए, दिल्ली में प्लास्टिक रीसाइक्लिंग इकाइयों पर DPCC ने कई बार कार्रवाई की है और गैरकानूनी इकाइयों को बंद कराया है।

    राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (RSPCB)

    राजस्थान जैसे शुष्क राज्य में जल संरक्षण और जल प्रदूषण रोकना बेहद महत्वपूर्ण है। Rajasthan State Pollution Control Board (RSPCB) ने उद्योगों के लिए Zero Liquid Discharge (ZLD) नीति लागू की है। पाली और बांगड़ औद्योगिक क्षेत्रों में कपड़ा उद्योगों से निकलने वाले रंगीन अपशिष्ट (Dye Effluents) के खिलाफ यह बोर्ड सक्रिय रूप से काम करता रहा है। सुप्रीम कोर्ट और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) के आदेशों पर RSPCB ने पाली के कई उद्योगों को सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने का आदेश दिया।

    तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (TNPCB)

    तमिलनाडु में चमड़ा उद्योग (Tanning Industry) के कारण गंभीर प्रदूषण हुआ। Tamil Nadu Pollution Control Board (TNPCB) ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर वेल्लोर (Vellore) जिले की कई इकाइयों को बंद कराया। यह मामला Vellore Citizens Welfare Forum v. Union of India के नाम से मशहूर है, जिसमें कोर्ट ने Polluter Pays Principle और Precautionary Principle को लागू किया।

    बोर्डों के अधिकार और जिम्मेदारियाँ (Powers and Responsibilities of Boards)

    CPCB और SPCBs को कई शक्तियाँ दी गई हैं ताकि वे प्रभावी ढंग से प्रदूषण को नियंत्रित कर सकें।

    1. मानक निर्धारण (Setting Standards): ये संस्थाएँ जल प्रदूषण के मानक तय करती हैं, जैसे कि उद्योग कितना Biological Oxygen Demand (BOD) या Chemical Oxygen Demand (COD) वाला पानी छोड़ सकता है।

    2. अनुमति प्रदान करना (Granting Consent): किसी भी उद्योग को काम शुरू करने से पहले “Consent to Establish” और काम शुरू करने के बाद “Consent to Operate” लेना अनिवार्य है।

    3. जाँच और निरीक्षण (Inspection): बोर्ड किसी भी समय उद्योग का निरीक्षण कर सकते हैं और नमूने (Samples) ले सकते हैं।

    4. कार्रवाई (Enforcement): यदि कोई उद्योग नियमों का उल्लंघन करता है तो बोर्ड उसे नोटिस जारी कर सकता है, दंड लगा सकता है या बंद करा सकता है।

    5. शोध और जागरूकता (Research and Awareness): CPCB और SPCBs नए प्रदूषण नियंत्रण तकनीकों पर शोध कराते हैं और जनता को जागरूक करने के लिए अभियान चलाते हैं।

    चुनौतियाँ और वास्तविक समस्याएँ (Challenges in Implementation)

    हालाँकि CPCB और SPCBs का ढाँचा मज़बूत है, लेकिन व्यावहारिक स्तर पर कई समस्याएँ हैं।

    • संसाधनों की कमी (Resource Constraints): अक्सर राज्य बोर्डों के पास पर्याप्त तकनीकी स्टाफ और उपकरण नहीं होते।

    • राजनीतिक दबाव (Political Pressure): कई बार शक्तिशाली उद्योगों पर कार्रवाई करने में बोर्ड हिचकिचाते हैं।

    • अनुपालन की कमी (Non-compliance): कई उद्योग बिना अनुमति के चलते रहते हैं और समय पर शर्तें पूरी नहीं करते।

    • निगरानी की समस्या (Monitoring Issues): देशभर में हज़ारों उद्योग हैं लेकिन उनका नियमित निरीक्षण करना कठिन है।

    उदाहरण के तौर पर, यमुना नदी में आज भी 70% से अधिक प्रदूषण असंशोधित सीवेज (Untreated Sewage) से आता है। यह दिखाता है कि केवल बोर्ड बनाना पर्याप्त नहीं है, बल्कि शहरी स्थानीय निकायों को भी मजबूत करना होगा।

    न्यायिक हस्तक्षेप और संस्थागत मजबूती (Judicial Interventions and Institutional Strengthening)

    अदालतों ने बार-बार CPCB और SPCBs को सक्रिय करने के आदेश दिए हैं।

    • M.C. Mehta v. Union of India (Ganga Pollution Case): सुप्रीम कोर्ट ने CPCB और SPCBs को आदेश दिया कि वे गंगा किनारे के टैनरी उद्योगों को बंद कराएँ या उन्हें प्रदूषण नियंत्रण संयंत्र लगाने के लिए बाध्य करें।

    • Vellore Citizens Case: अदालत ने SPCBs को सख्ती से लागू करने का आदेश दिया और प्रदूषण फैलाने वालों पर भारी जुर्माना लगाया।

    • NGT के आदेश: नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने 2017 में आदेश दिया कि दिल्ली और उत्तर प्रदेश के बोर्ड यमुना की सफाई के लिए समयबद्ध योजना बनाएँ।

    अध्याय II में जो प्रावधान दिए गए हैं, वे भारतीय पर्यावरणीय प्रशासन की रीढ़ हैं। CPCB और SPCBs ने देशभर में प्रदूषण नियंत्रण के लिए एक संगठित ढाँचा बनाया है। हालाँकि इनके सामने संसाधन, अनुपालन और राजनीतिक दबाव जैसी चुनौतियाँ हैं, फिर भी सुप्रीम कोर्ट और NGT के आदेशों से इनकी भूमिका मज़बूत होती गई है।

    आज जब जलवायु परिवर्तन और जल संकट की चर्चा तेज़ है, तो यह और भी आवश्यक है कि ये बोर्ड केवल अनुमति देने वाली संस्थाएँ न रहकर वास्तविक निगरानी और सुधारात्मक कार्रवाई करने वाली प्रभावी संस्थाएँ बनें। यमुना, गंगा, पाली और वेल्लोर जैसे उदाहरण दिखाते हैं कि यदि बोर्ड सक्रियता से काम करें तो परिणाम सामने आते हैं।

    इस प्रकार, अध्याय II केवल कानूनी प्रावधानों का संकलन नहीं है बल्कि यह भारत में जल प्रदूषण नियंत्रण की संस्थागत नींव है।

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