राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 262 और 263 : पटवारी आदि लोक सेवक माने जाएंगे

Himanshu Mishra

3 July 2025 5:09 PM IST

  • राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 262 और 263 : पटवारी आदि लोक सेवक माने जाएंगे

    राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 राज्य में भूमि और राजस्व से जुड़े मामलों के व्यापक नियमन के लिए लागू किया गया था। अधिनियम के अंतिम दो प्रावधान धारा 262 और 263 इस कानून की व्याख्या को पूर्णता प्रदान करते हैं। एक ओर जहां धारा 262 यह स्पष्ट करती है कि इस अधिनियम के अंतर्गत नियुक्त सभी भूमि राजस्व अधिकारी 'लोक सेवक' (Public Servant) माने जाएंगे, वहीं दूसरी ओर धारा 263 यह स्पष्ट करती है कि पूर्ववर्ती कानूनों और परंपराओं का इस अधिनियम के लागू होने के बाद क्या स्थान रहेगा।

    धारा 262 – पटवारी आदि लोक सेवक माने जाएंगे (Patwaris etc. to be Public Servants)

    इस धारा के अनुसार, राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम की अध्याय III के तहत नियुक्त सभी अधिकारी, जैसे कि पटवारी (Patwari), गिरदावर कानूनगो (Girdawar Qanungo), भू-अभिलेख निरीक्षक (Land Records Inspector) और सदर कानूनगो (Sadar Qanungo) को भारतीय दंड संहिता, 1860 (Indian Penal Code, 1860) की धारा 21 के तहत 'लोक सेवक' (Public Servant) माना जाएगा।

    इसका अर्थ यह है कि ये सभी अधिकारी सार्वजनिक दायित्वों के अंतर्गत कार्य करते हैं और इनकी कार्यवाही में भ्रष्टाचार, धोखाधड़ी, कर्तव्यहीनता या शक्तियों का दुरुपयोग दंडनीय अपराध होगा।

    प्रासंगिक उदाहरण:

    यदि कोई पटवारी भूमि अभिलेखों में गलत प्रविष्टि करता है या रिश्वत लेकर सरकारी रिकॉर्ड में परिवर्तन करता है, तो उसके विरुद्ध भ्रष्टाचार अधिनियम के अंतर्गत लोक सेवक के रूप में आपराधिक कार्रवाई की जा सकती है।

    इस धारा का प्रभावी उद्देश्य यह है कि भूमि से संबंधित सभी अभिलेखों, माप-तौल, पुनरीक्षण (Settlement), रिकार्ड ऑफ राइट्स (Record of Rights) आदि की निष्पक्षता, विश्वसनीयता और पारदर्शिता बनी रहे।

    धारा 263 – निरसन और बचाव प्रावधान (Repeal and Savings)

    उपधारा (1) – पुराने अधिनियमों का निरसन (Repeal of Previous Enactments)

    जब यह अधिनियम लागू होता है, तो इसमें वर्णित विषयों पर यदि कोई पूर्व कानून लागू था, वह स्वतः समाप्त (Repealed) हो जाएगा। इस उपधारा में तीन श्रेणियों के कानूनों को निरस्त करने की बात कही गई है:

    (a) इस अधिनियम की द्वितीय अनुसूची (Second Schedule) में वर्णित अधिनियम।

    (b) संघटक राज्यों के वे पुराने कानून जो इसी अधिनियम में समाहित विषयों से संबंधित हैं।

    (c) उपरोक्त (a) और (b) में वर्णित कानूनों में किए गए संशोधन (Amendments)।

    इसका अर्थ यह है कि एकीकृत राजस्थान राज्य में यदि भू-राजस्व के विषय में अलग-अलग क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न कानून लागू थे, तो यह नया अधिनियम अब उन सबको समाप्त कर देता है।

    उपधारा (2) – अवैध प्रथा को वैध नहीं बनाता (No Legalization of Illegal Practice)

    इस उपधारा का उद्देश्य यह स्पष्ट करना है कि यदि कोई प्रथा या व्यवहार इस अधिनियम के लागू होने से पहले गैरकानूनी (Illegal) था, तो इस अधिनियम के लागू हो जाने से वह वैध (Legal) नहीं हो जाएगा।

    उदाहरण:

    यदि किसी क्षेत्र में पटवारी द्वारा खेतों के अभिलेखों में परिवर्तन रिश्वत लेकर किया जाता था और वह प्रथा वर्षों से चल रही थी, तो यह अधिनियम उसे वैध नहीं मानता, भले ही पुराने कानूनों में इस पर स्पष्ट रोक न रही हो।

    उपधारा (3) – विरोधी रिवाज निष्प्रभावी होंगे (Conflicting Customs to Cease)

    यह उपधारा यह स्पष्ट करती है कि यदि राज्य में किसी भी क्षेत्र में कोई रिवाज (Custom) या प्रथा (Usage) प्रचलित थी जो इस अधिनियम से विरोधाभासी (Repugnant) है, तो वह रिवाज अब इस अधिनियम के लागू होते ही अप्रभावी (Inoperative) हो जाएगी।

    महत्वपूर्ण उदाहरण:

    यदि किसी गांव में यह रिवाज था कि पटवारी की सहमति के बिना भूमि का हस्तांतरण नहीं होगा, जबकि यह अधिनियम यह अधिकार राज्य सरकार द्वारा तय प्रक्रिया से देता है, तो इस अधिनियम के लागू होते ही वह रिवाज निष्प्रभावी हो जाएगा।

    पूर्व धाराओं से संबंध (Link with Previous Sections)

    धारा 263 का महत्व तभी समझा जा सकता है जब इसे अधिनियम की अन्य धाराओं से जोड़ा जाए:

    • धारा 90-A: भूमि के कृषि से गैर-कृषि उपयोग में परिवर्तन की अनुमति। यदि कोई पुराना रिवाज या स्थानीय कानून इसके विपरीत है, तो वह अब निष्प्रभावी होगा।

    • धारा 14 और 121–132: भूमि अभिलेखों और रिकॉर्ड ऑफ राइट्स की तैयारी की प्रक्रिया। किसी क्षेत्रीय प्रथा के आधार पर अब यह प्रक्रिया प्रभावित नहीं होगी।

    • धारा 261: राज्य सरकार और मंडल को नियम बनाने की शक्ति – यह सुनिश्चित करती है कि नया अधिनियम राज्य भर में एकरूपता लाएगा, जिससे स्थानीय कानूनों की विविधता समाप्त होगी।

    धारा 262 और 263, राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की कार्यान्वयन क्षमता को ठोस आधार प्रदान करती हैं। जहां धारा 262 सरकारी भूमि अधिकारियों को विधिक सुरक्षा और दायित्व के अंतर्गत लाती है, वहीं धारा 263 यह सुनिश्चित करती है कि अब राज्य में केवल एक एकीकृत भू-राजस्व अधिनियम लागू होगा और कोई भी विरोधाभासी प्रथा, कानून या संशोधन स्वतः निष्प्रभावी हो जाएगा।

    इससे राज्य में भूमि से जुड़े मामलों में पारदर्शिता, एकरूपता और कानूनी स्पष्टता आती है, जो नागरिकों के हितों की रक्षा के साथ-साथ प्रशासनिक सुविधा भी सुनिश्चित करती है।

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