सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 10 और 10A : इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर से संबंधित नियम
Himanshu Mishra
21 May 2025 1:49 PM

धारा 10: इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर (Electronic Signature) से संबंधित नियम बनाने की केंद्र सरकार की शक्ति
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 10 केंद्र सरकार को यह अधिकार देती है कि वह इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर (Electronic Signature) से जुड़े विभिन्न पहलुओं को स्पष्ट करने के लिए नियम बना सके। इस धारा का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर का उपयोग विधिक रूप से मान्य, सुरक्षित और प्रमाणिक हो। यह धारा अधिनियम के उद्देश्यों की पूर्ति में सहायक है, विशेषकर तब जब डिजिटल लेनदेन और ई-गवर्नेंस के क्षेत्र में भरोसेमंद इलेक्ट्रॉनिक प्रमाणन की आवश्यकता हो।
इससे पहले की धाराएँ जैसे धारा 3 और 3A भी इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड (Electronic Record) और इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर (Electronic Signature) की मान्यता और प्रमाणीकरण को लेकर हैं। धारा 10 इन प्रावधानों की व्यावहारिक रूपरेखा तय करने के लिए केंद्र सरकार को अधिकार प्रदान करती है।
इस धारा के अंतर्गत केंद्र सरकार निम्नलिखित बातों को लेकर नियम बना सकती है:
(a) इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर का प्रकार (Type of Electronic Signature): सरकार यह तय कर सकती है कि किन प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर वैध माने जाएंगे। उदाहरण के लिए, डिजिटल सिग्नेचर (Digital Signature) को एक प्रकार का इलेक्ट्रॉनिक सिग्नेचर माना गया है, जिसमें सार्वजनिक कुंजी अवसंरचना (Public Key Infrastructure - PKI) का प्रयोग होता है। सरकार चाहे तो भविष्य में उन्नत जैविक (biometric) या ब्लॉकचेन आधारित हस्ताक्षरों को भी वैध बना सकती है।
(b) हस्ताक्षर को लगाने का ढंग और प्रारूप (Manner and Format): यह नियम यह स्पष्ट करेगा कि इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर को किसी दस्तावेज़ या सूचना पर किस प्रारूप में और कैसे लगाया जाए, ताकि उसे कानून की दृष्टि से प्रमाणिक और विधिसम्मत माना जा सके। इससे यह सुनिश्चित होगा कि कोई भी हस्ताक्षर किसी भी दस्तावेज़ पर एक मानक प्रक्रिया के तहत ही किया गया हो।
(c) पहचान की विधियाँ (Procedures for Identification): हस्ताक्षर करने वाले व्यक्ति की पहचान सुनिश्चित करने के लिए सरकार नियम बनाएगी। उदाहरण के लिए, डिजिटल हस्ताक्षर के लिए पंजीकृत प्रमाणन प्राधिकारी (Certifying Authority) द्वारा व्यक्ति की पहचान की जाती है। इन नियमों का उद्देश्य यह है कि कोई और व्यक्ति किसी दूसरे की पहचान को चुराकर हस्ताक्षर न कर सके।
(d) नियंत्रण प्रक्रिया और गोपनीयता (Integrity, Security and Confidentiality): यह भाग यह सुनिश्चित करता है कि इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड्स या भुगतान प्रणाली में कोई छेड़छाड़ न हो और वह पूर्णतः सुरक्षित एवं गोपनीय रहें। सरकार यह तय करेगी कि कौन-से तकनीकी या प्रशासनिक उपाय अपनाए जाएं ताकि डेटा लीक या रिकॉर्ड्स में हेरफेर रोका जा सके।
(e) अन्य आवश्यक बातें (Other Necessary Matters): केंद्र सरकार किसी अन्य जरूरी विषय पर भी नियम बना सकती है, जिससे कि इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर को कानूनी प्रभाव प्रदान किया जा सके। यह खंड बहुत लचीला और व्यापक है, ताकि तकनीकी प्रगति के अनुसार नई चुनौतियों से निपटा जा सके।
इस धारा का महत्त्व इसलिए भी है क्योंकि यह सरकार को डिजिटल लेनदेन और रिकॉर्ड्स की प्रामाणिकता सुनिश्चित करने की शक्ति देता है, जिससे कि नागरिक, संस्थान और सरकार के बीच इलेक्ट्रॉनिक संवाद और अनुबंध विधिसम्मत रूप से संपन्न हो सके।
धारा 10A: इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से बने अनुबंधों की वैधता (Validity of Contracts Formed through Electronic Means)
धारा 10A वर्ष 2008 के संशोधन के तहत अधिनियम में जोड़ी गई थी। इसका उद्देश्य यह स्पष्ट करना था कि केवल इस आधार पर कोई अनुबंध अमान्य नहीं माना जाएगा कि वह इलेक्ट्रॉनिक रूप में बना है। इस प्रावधान ने भारत में ई-कॉमर्स, ऑनलाइन सर्विसेज, इंटरनेट बैंकिंग, और डिजिटल लेनदेन को कानूनी संरक्षण दिया है।
यह धारा भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 की पारंपरिक अवधारणाओं को डिजिटल युग के अनुरूप बनाती है। अनुबंध का निर्माण सामान्यतः प्रस्ताव (Offer), स्वीकृति (Acceptance), और प्रतिफल (Consideration) के माध्यम से होता है। जब ये सभी चरण इलेक्ट्रॉनिक माध्यम (Electronic Means) से पूर्ण होते हैं, तब भी वह अनुबंध वैध माना जाएगा।
उदाहरण के तौर पर, अगर किसी ई-कॉमर्स वेबसाइट पर ग्राहक कोई उत्पाद खरीदने का प्रस्ताव करता है, और विक्रेता उसे स्वीकार करता है, और फिर ऑनलाइन भुगतान हो जाता है, तो यह अनुबंध पूरी तरह से इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से बना है। धारा 10A सुनिश्चित करती है कि इस तरह का अनुबंध केवल इसलिए अवैध नहीं माना जाएगा क्योंकि यह कागज़ पर नहीं बना।
इस धारा के तहत निम्नलिखित क्रियाओं को यदि इलेक्ट्रॉनिक रूप में किया गया है, तो उन्हें भी वैध माना जाएगा:
1. प्रस्ताव भेजना (Communication of Proposal)
2. प्रस्ताव को स्वीकार करना (Acceptance of Proposal)
3. प्रस्ताव या स्वीकृति को वापस लेना (Revocation of Proposal or Acceptance)
यह स्पष्ट किया गया है कि यदि उपरोक्त सभी प्रक्रिया इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड्स या किसी इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से पूरी की जाती है, तो उस अनुबंध को केवल इस आधार पर अवैध नहीं ठहराया जा सकता कि यह डिजिटल है।
यह प्रावधान इस युग में अत्यंत आवश्यक था क्योंकि डिजिटल लेनदेन ने परंपरागत कागजी कार्यवाही को बहुत पीछे छोड़ दिया है। विभिन्न ई-सेवाएं, मोबाइल ऐप्स, वेबसाइट्स, और ईमेल द्वारा होने वाले अनुबंधों को अब इस धारा द्वारा वैधानिक मान्यता दी गई है।
धारा 10A और अनुबंध विधि का सम्मिलन (Integration with Indian Contract Law)
यह धारा भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 के बुनियादी सिद्धांतों के साथ टकराव नहीं करती बल्कि उन्हें डिजिटल युग के अनुसार व्याख्यायित करती है। यह बताती है कि अनुबंध का रूप चाहे जो हो, यदि वह कानून के अनुसार वैध है, तो वह लागू किया जा सकता है।
महत्वपूर्ण संदर्भ और अन्य धाराओं से संबंध
धारा 10 और 10A सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के उस भाग का हिस्सा हैं जो इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षरों और इलेक्ट्रॉनिक रूप में बने अनुबंधों को कानूनी आधार प्रदान करता है। इससे पहले धारा 3 और 3A इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर की परिभाषा और प्रमाणीकरण से संबंधित हैं, जबकि धारा 4 से 9 इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड्स की कानूनी मान्यता और उनके इस्तेमाल से जुड़े प्रावधानों को स्पष्ट करते हैं। ये सभी धाराएँ मिलकर एक समग्र डिजिटल कानून की रूपरेखा तैयार करती हैं।
धारा 10 और 10A सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के सबसे व्यावहारिक और प्रभावशाली प्रावधानों में से हैं। एक ओर धारा 10 केंद्र सरकार को इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर की प्रक्रिया को नियंत्रित करने और प्रमाणिकता सुनिश्चित करने की शक्ति देती है, वहीं धारा 10A डिजिटल माध्यम से बने अनुबंधों को कानूनी सुरक्षा देती है। इन दोनों धाराओं ने भारत में डिजिटल लेन-देन, ई-कॉमर्स और ई-गवर्नेंस को कानूनी आधार प्रदान कर राष्ट्र को 'डिजिटल इंडिया' की दिशा में आगे बढ़ाया है।