बिना तलाक लिए दूसरी शादी: हिन्दू विवाह अधिनियम, भारतीय न्याय संहिता और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के अनुसार क्या है कानून?
Himanshu Mishra
27 May 2025 6:01 PM IST

भारत में विवाह (Marriage) केवल एक सामाजिक संस्था नहीं बल्कि एक कानूनी संबंध (Legal Relationship) है, जिसे अलग-अलग धर्मों के लिए अलग-अलग कानूनों के तहत नियंत्रित किया गया है। हिन्दू कानून (Hindu Law) के तहत एक व्यक्ति एक समय में केवल एक विवाह कर सकता है, यानी एक पति या पत्नी के रहते दूसरी शादी करना कानूनन मना है। लेकिन आज भी कई लोग बिना पहले विवाह को खत्म किए (Divorce लिए बिना) दूसरी शादी कर लेते हैं।
यह न सिर्फ कानून के खिलाफ है बल्कि इससे पहली पत्नी या पति के अधिकारों का उल्लंघन (Violation) होता है। यह लेख विस्तार से बताएगा कि बिना तलाक के दूसरी शादी करने पर भारत में क्या-क्या कानूनी परिणाम (Legal Consequences) हो सकते हैं, कौन-कौन से कानून लागू होते हैं और सुप्रीम कोर्ट ने इस पर क्या कहा है।
द्विविवाह क्या है? (What is Bigamy?)
अगर कोई व्यक्ति अपने पहले पति या पत्नी के जीवित रहते हुए दूसरी शादी करता है, तो इसे कानून की भाषा में "द्विविवाह" (Bigamy) कहा जाता है। हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 के अनुसार, ऐसा विवाह शून्य (Void) माना जाता है, यानी उसका कोई कानूनी अस्तित्व नहीं होता। इसके अलावा भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita) के तहत यह एक अपराध (Criminal Offense) भी है, जिसमें जेल और जुर्माने की सजा हो सकती है।
हिन्दू विवाह अधिनियम के तहत प्रावधान (Provisions under Hindu Marriage Act)
हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 5 (Section 5) में कहा गया है कि विवाह तभी मान्य (Valid) माना जाएगा जब दोनों पक्षों में से किसी के पास उस समय दूसरा जीवित पति या पत्नी न हो। अगर यह शर्त पूरी नहीं होती तो वह विवाह धारा 11 के अनुसार शून्य (Void) माना जाएगा।
धारा 17 (Section 17) यह साफ करती है कि अगर कोई हिन्दू दूसरी शादी करता है जबकि उसकी पहली शादी अभी भी वैध (Valid) है, तो वह न केवल अवैध (Illegal) होगा बल्कि उस व्यक्ति के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (अब Bharatiya Nyaya Sanhita) की धारा 82 (पहले IPC की Section 494) के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है।
विशेष विवाह अधिनियम (Special Marriage Act) के तहत स्थिति
जो लोग बिना धर्म के बंधन के शादी करना चाहते हैं, उनके लिए विशेष विवाह अधिनियम, 1954 (Special Marriage Act) लागू होता है। इस कानून की धारा 4 (Section 4) में भी स्पष्ट कहा गया है कि दोनों पक्षों में से किसी की उस समय कोई वैध शादी नहीं होनी चाहिए। अगर कोई इस शर्त को तोड़कर शादी करता है, तो वह विवाह भी धारा 24 (Section 24) के तहत शून्य (Void) घोषित किया जा सकता है।
भारतीय न्याय संहिता 2023 के तहत अपराध (Criminal Offense under Bharatiya Nyaya Sanhita 2023)
1 जुलाई 2024 से भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) को हटाकर भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita – BNS) लागू कर दी गई है। इसके Section 82 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि अगर कोई व्यक्ति अपने पहले पति या पत्नी के जीवित रहते हुए दूसरी शादी करता है, तो यह एक अपराध है।
इस धारा के अनुसार, ऐसी दूसरी शादी शून्य (Void) मानी जाएगी और दोषी को सात साल तक की कैद (Imprisonment) और जुर्माना (Fine) हो सकता है। यह अपराध संज्ञेय (Cognizable) और गैर-जमानती (Non-bailable) है, यानी पुलिस बिना वारंट के गिरफ्तारी कर सकती है और जमानत आसानी से नहीं मिलती।
इस अपराध के कुछ अपवाद (Exceptions to the Offense)
हालाँकि, कानून में कुछ विशेष परिस्थितियों में दूसरी शादी को अपराध नहीं माना जाता। अगर किसी व्यक्ति के पति या पत्नी को सात साल से कोई खबर नहीं है और उसे मृत मान लिया गया है, तब वह व्यक्ति दोबारा शादी कर सकता है—लेकिन यह ज़रूरी है कि वह अपने नए साथी को पहले ही इसकी जानकारी (Information) दे दे।
इसके अलावा, अगर पहली शादी को अदालत ने पहले ही शून्य (Void) घोषित कर दिया है, तब भी दूसरी शादी करना अपराध नहीं माना जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण फैसले (Landmark Supreme Court Judgments)
सारला मुद्गल बनाम भारत संघ (Sarla Mudgal v. Union of India, 1995) इस विषय पर सबसे चर्चित फैसला है। इस केस में कुछ हिन्दू पुरुषों ने इस्लाम धर्म अपना लिया ताकि वे दूसरी शादी कर सकें, क्योंकि इस्लाम में चार शादियां वैध मानी जाती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय दिया कि सिर्फ धर्म बदल लेने से पहली शादी खत्म नहीं हो जाती। अगर पहली पत्नी जीवित है और तलाक नहीं हुआ है, तो दूसरी शादी को गैरकानूनी (Illegal) माना जाएगा और यह द्विविवाह (Bigamy) के तहत अपराध होगा।
कंवल राम बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य (Kanwal Ram v. State of Himachal Pradesh, 1966) में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर कोई यह साबित कर दे कि दूसरी शादी के समय वैध रीति से विवाह समारोह (Ceremony) नहीं हुआ, तो उसे अपराध से बरी किया जा सकता है। लेकिन जब भी दूसरी शादी वैध तरीके से होती है और पहली शादी खत्म नहीं हुई होती, तब यह सीधा कानून का उल्लंघन (Violation of Law) माना जाता है।
पहली पत्नी के पास क्या कानूनी विकल्प हैं? (Legal Remedies for the First Wife)
अगर पति ने बिना तलाक लिए दूसरी शादी की है, तो पहली पत्नी के पास कई कानूनी अधिकार हैं। वह अदालत में Maintenance (भरण-पोषण) की मांग कर सकती है। वह Section 9 के तहत पुनः एकत्र होने (Restitution of Conjugal Rights) का मुकदमा दायर कर सकती है।
अगर उसे मानसिक या शारीरिक उत्पीड़न (Cruelty) सहना पड़ा है, तो वह BNS की धारा 85 (पहले IPC की Section 498A) के तहत भी मुकदमा दर्ज करा सकती है। वह दूसरी शादी के खिलाफ भी रिपोर्ट कर सकती है, जिसके तहत पति को Section 82 BNS के अंतर्गत सज़ा दी जा सकती है।
अन्य धर्मों में स्थिति (Status under Other Personal Laws)
हिन्दू, ईसाई (Christian) और पारसी (Parsi) कानूनों में द्विविवाह मना है। लेकिन मुस्लिम कानून (Muslim Personal Law) चार शादियों की अनुमति देता है। इसलिए मुस्लिम पुरुष को चार विवाह करने की छूट है, बशर्ते कि वह मुस्लिम कानून के अनुसार शादी करे। लेकिन अगर कोई मुस्लिम व्यक्ति Special Marriage Act के तहत शादी करता है, तो उस पर भी द्विविवाह का कानून लागू होगा।
भारत का कानून विवाह को पवित्र और कानूनी अनुबंध (Legal Bond) मानता है, जिसमें एक समय में केवल एक विवाह की अनुमति है। हिन्दू विवाह अधिनियम और विशेष विवाह अधिनियम दोनों में स्पष्ट प्रावधान हैं कि दूसरी शादी केवल तभी वैध मानी जाएगी जब पहली शादी कानूनी रूप से समाप्त (Legally Dissolved) हो चुकी हो।
अगर कोई व्यक्ति बिना तलाक लिए दोबारा शादी करता है, तो उसका दूसरा विवाह शून्य माना जाएगा और वह व्यक्ति भारतीय न्याय संहिता की धारा 82 के तहत दोषी माना जाएगा। सुप्रीम कोर्ट के फैसले इस बात को बार-बार दोहरा चुके हैं कि धर्म परिवर्तन या चुपचाप विवाह करने से किसी को कानूनी सुरक्षा नहीं मिल सकती।
इसलिए अगर कोई व्यक्ति दोबारा शादी करना चाहता है तो उसे पहले अपनी वैध शादी को कानूनन समाप्त करना होगा। अन्यथा उसे गंभीर कानूनी परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं, जिनमें जेल और जुर्माना शामिल हैं।

