अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (SC ST Act) भाग :6 लोक सेवकों के कर्तव्य की उपेक्षा करने पर दंड का प्रावधान (धारा 4)

Shadab Salim

25 Oct 2021 6:24 AM GMT

  • अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (SC ST Act) भाग :6 लोक सेवकों के कर्तव्य की उपेक्षा करने पर दंड का प्रावधान (धारा 4)

    अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (Scheduled Caste and Scheduled Tribe (Prevention of Atrocities) Act, 1989) के अंतर्गत धारा 4 लोक सेवकों पर अधिरोपित किए गए कर्तव्यों की उपेक्षा करने के परिणामस्वरूप उन्हें दंडित करने का प्रावधान प्रस्तुत करती है। यह धारा इस अधिनियम को लागू करने में बल देती है। इस आलेख के अंतर्गत संसद द्वारा बनाई गई धारा के मूल स्वरूप को प्रस्तुत किया जा रहा है तथा उससे संबंधित न्याय निर्णय प्रस्तुत किए जा रहे हैं।

    धारा-4

    अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 के अंतर्गत अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजातियों से संबंधित ऐसे अपराध जो इन जातियों पर अत्याचार से संबंधित हैं जिनका उल्लेख इस अधिनियम की धारा 3 के अंतर्गत किया गया है होने पर इन अपराधों से संबंधित प्रक्रिया हेतु पीड़ित पक्षकार किसी लोक सेवक के समक्ष उपस्थित होता है तब यदि उस लोक सेवक द्वारा उपेक्षा की जाती है तो उस उपेक्षा हेतु भी इस अधिनियम की धारा 4 के अंतर्गत दंड का प्रावधान किया गया है।

    यह अधिनियम केवल अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजातियों पर होने वाले अत्याचारों को ही अपराध नहीं बनाता है अपितु यह अधिनियम तो ऐसे अपराधों के होने के बाद उन अपराधों से संबंधित निर्धारित की गई प्रक्रिया के संबंध में संबंधित लोक सेवक यदि उपेक्षा करता है और अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों की सुनवाई नहीं करता है तब भी ऐसे कार्य को यह अधिनियम अपराध करार देता है। इस ही बात का उल्लेख इस अधिनियम की धारा 4 में प्रस्तुत किया गया है।

    पार्लियामेंट द्वारा बनाई गई यह धारा इस प्रकार है:-

    धारा 4:- कर्तव्य की उपेक्षा के लिए दण्ड-

    (1) कोई भी लोक सेवक, जो अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं है, इस अधिनियम और उसके अधीन बनाये गये नियमों के अधीन उसके द्वारा पालन किये जाने के लिए अपेक्षित करने कर्तव्यों की जानबूझकर उपेक्षा करेगा, वह कारावास से, जिसकी अवधि छह मास से कम की नहीं होगी, किन्तु जो एक वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डनीय होगा।

    (2) उपधारा (1) में निर्दिष्ट लोक सेवक के कर्तव्यों में निम्नलिखित सम्मिलित होगा,

    (क) पुलिस थाने के प्रभारी अधिकारी द्वारा सूचनाकर्ता के हस्ताक्षर लेने से पहले मौखिक रूप से दो गई सूचना को सूचनाकर्ता को पढ़कर सुनाना और उसको लेखबद्ध करना;

    (ख) इस अधिनियम और अन्य सुसंगत उपबन्धों के अधीन शिकायत या प्रथम इत्तिला रिपोर्ट को रजिस्टर करना और अधिनियम की उपयुक्त धाराओं के अधीन उसको रजिस्टर करना;

    (ग) इस प्रकार अभिलिखित की गई सूचना की एक प्रति सूचनाकर्ता को तुरन्त प्रदान करना;

    (घ) पीड़ितों या साक्षियों के कथन को अभिलिखित करना;

    (ङ) अन्वेषण करना और विशेष न्यायालय या अनन्य विशेष न्यायालय में साठ दिन की अवधि के भीतर आरोपपत्र फाइल करना तथा विलम्ब यदि कोई हो, लिखित में स्पष्ट करना;

    (च) किसी दस्तावेज या इलेक्ट्रानिक अभिलेख को सही रूप से तैयार, विरचित करना तथा उसका अनुवाद करना;

    (छ) इस अधिनियम या उसके अधीन बनाये गये नियमों में विनिर्दिष्ट किसी अन्य कर्तव्य का पालन करना; परन्तु लोक सेवक के विरुद्ध इस सम्बन्ध में आरोप, प्रशासनिक जाँच की सिफारिश पर अभिलिखित किये जायेंगे।

    (3) लोक सेवक द्वारा उपधारा (2) में निर्दिष्ट कर्तव्य की अवहेलना के सम्बन्ध में संज्ञान विशेष न्यायालय या अनन्य विशेष न्यायालय द्वारा लिया जायेगा और लोक सेवक के विरुद्ध दाण्डिक कार्रवाइयों के लिए निदेश दिया जायेगा।

    राम पाल बनाम स्टेट आफ राजस्थान 1998 क्रि० लॉ ज० 3261 (राज०) के मामले में याची के साथ ही साथ पुलिस अधीक्षक, चुरू के द्वारा अ० जा० अ० जन० अधिनियम की धारा 4 के अधीन कोई अपराध कारित किये जाने के लिए नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 173 के अधीन अन्तिम रिपोर्ट का प्रस्तुत करना संहिता, न कि अ० जा०/अ० जन० अधिनियम के किसी प्रावधान के द्वारा कर्तव्य के निर्वहन में है। अधिनियम की धारा 4 यह दर्शाती है कि धारा 4 के अधीन अपराध कारित किये जा सकने के पहले यह दर्शाया जाना चाहिए कि लोक सेवक ने अपने कर्तव्य की जानबूझ करके उपेक्षा किया है। सद्भावपूर्वक कार्यवाही, यद्यपि यह त्रुटिपूर्ण हो सकती है, फिर भी इसे कर्तव्य की स्वेच्छापूर्वक उपेक्षा नहीं कहा जा सकता है

    अल्का बनाम जे० पी० शोक, 2003 क्रि० लॉ ज० 1333 (बाम्बे) के वाद में याची के विरुद्ध जारी आदेशिका रद्द मामले के तथ्य यह थे कि याची ने परिवादी को विनिर्दिष्ट रेलवे क्वार्टर आबंटित नहीं किया और याची को रेलवे बोर्ड द्वारा अनुसूचित जाति एवं जनजाति के सदस्यों के कल्याण को ध्यान में रखने के लिए नियुक्त किया गया था लेकिन यह अभिलेख पर नहीं लाया गया था कि वह इस हैसियत में नियुक्त किया गया था और कर्तव्य की उपेक्षा की थी। तथ्यों एवं उपलब्ध साक्ष्य की दृष्टि से न्यायालय ने याचिकाकर्ता के विरुद्ध जारी आदेशिका को अपास्त कर दिया।

    आनन्द पंगल बनाम टी० आर० जगन्नाथ, 2003 क्रि० लॉ ज० 3215 प्रकरण में लोक सेवक के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं। धारा 4 के प्रावधान को आकर्षित करने के लिए यह कहा जाना चाहिए कि लोक सेवक की तरफ से किस तरीके से कर्तव्य के निष्पादन में निष्फलता है लेकिन प्रस्तुत मामले में, अभिलेख पर यह दर्शित करने के लिए कोई सामग्री नहीं थी कि धारा 4 के तत्व की पूर्ति कर दी गई है परिणामतः लोक अधिकारी (लोक सेवक) के विरुद्ध कोई भी कार्यवाही नहीं की जा सकती थी।

    जाति प्रमाणपत्र प्रदान नहीं किया जाना-

    पोन्नियाम्मल बनाम दि डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर, वेल्लौर, ए० आई० आर० 2014 मद्रास 141 के वाद में याची ने हिन्दू ' आदियन' समुदाय, जो अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (संशोधन) अधिनियम, 1976 की क्रम संख्या 001 के अनुसार मान्यता प्राप्त अनुसूचित जनजाति समुदाय है, से सम्बन्धित होने का दावा किया। उसने जाति प्रमाणपत्र जारी करने की माँग करते हुए जिला कलेक्टर के समक्ष आवेदन प्रस्तुत किया राजस्व मण्डलीय अधिकारी ने कार्यवाही में तहसीलदार को जाँच करने तथा रिपोर्ट देने के लिए परिपत्र भेजा उच्च न्यायालय ने अनुतोष की प्रकृति पर विचार करते हुए याची के आवेदन पर उसके गुणावगुण पर तथा विधि के अनुसार विचार करने के लिए जिला कलेक्टर तथा राजस्व मण्डलीय अधिकारी को निर्देशित किया।

    अधिनियम में इस धारा को समाहित करने का उद्देश्य उन लोक सेवकों पर निर्बंधन लगाना है जो कारण प्रतीत होते हुए भी प्रथम दृष्टया अपराध बनते देख भी अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों की शिकायतों को दर्ज़ नहीं करते हैं तथा उनके द्वारा अपने पर होने वाले अत्याचारों से संबंधित शिकायतों पर अनदेखी करते हैं या उनकी उपेक्षा करते हैं। यह धारा मुख्य रूप से एक पुलिस अधिकारी पर निर्बंधन अधिरोपित करती है कि उसके द्वारा प्रकरण में प्राथमिकी दर्ज क्यों नहीं की गई तथा उसका अन्वेषण प्रारंभ क्यों नहीं किया गया! इस धारा का मूल उद्देश्य यह है कि कोई भी लोकसेवक जानबूझकर किसी अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य द्वारा दी गई शिकायत पर कार्यवाही करने में उपेक्षा नहीं करें।

    उपेक्षा करने हेतु दंड:-

    जैसा कि ऊपर प्रस्तुत की गई धारा 4 में दंड का भी उल्लेख किया गया है यदि धारा 4 के अंतर्गत किसी लोक सेवक द्वारा यह अपराध कारित किया जाता है तो इस स्थिति में न्यूनतम दंड 6 माह का कारावास है तथा अधिकतम दंड 1 वर्ष का कारावास हो सकेगा।

    विशेष न्यायालय द्वारा संज्ञान:-

    इस धारा के अंतर्गत दर्ज होने वाले अपराध के संबंध में संज्ञान विशेष न्यायालय द्वारा किया जाएगा यह विशेष न्यायालय की स्थापना इस ही अधिनियम के अंतर्गत की गई है जो मुख्य रूप से अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजातियों से संबंधित होने वाले अपराधों पर संज्ञान लेते हैं। धारा 4 के अंतर्गत यदि कोई लोक सेवक द्वारा उपेक्षा कारित की जाती है और उस पर धारा के अंतर्गत अपराध दर्ज किया जाता है तब उस अपराध का संज्ञान अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के अंतर्गत बनाए गए विशेष न्यायालय द्वारा ही लिया जाएगा।

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