गवाहों के उत्तरों को खंडित करने के नियम : भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 की धारा 156
Himanshu Mishra
6 Sept 2024 6:35 PM IST
भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023, जो 1 जुलाई 2024 से लागू हुआ है, भारतीय न्यायिक प्रक्रिया में साक्ष्य (Evidence) से संबंधित महत्वपूर्ण प्रावधानों को समाहित करता है। धारा 156 एक प्रमुख धारा है जो गवाह से पूछे गए सवालों और उनके उत्तरों के संदर्भ में साक्ष्य पेश करने के नियमों को स्पष्ट करती है। यह धारा, विशेष रूप से, गवाह की साख (Credibility) को हानि पहुँचाने या उसे गलत साबित करने के उद्देश्य से पूछे गए प्रश्नों से जुड़ी है। इस धारा के तहत, गवाह द्वारा दिए गए उत्तरों को खंडित (Contradict) करने के लिए और साक्ष्य पेश नहीं किए जा सकते, लेकिन अगर गवाह ने झूठ बोला हो, तो उसे बाद में झूठा साक्ष्य देने के आरोप में अभियोजित किया जा सकता है।
धारा 156 की मुख्य प्रावधान (Main Provisions of Section 156)
धारा 156 के अनुसार, अगर किसी गवाह से ऐसा प्रश्न पूछा गया जो उसकी साख पर आघात करता हो और गवाह ने उसका उत्तर दे दिया हो, तो अब उस उत्तर को खंडित करने के लिए कोई और साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया जा सकता। यह सुनिश्चित करता है कि गवाह पर बार-बार अवांछनीय और अनावश्यक सवाल न उठाए जाएं। हालांकि, अगर गवाह ने झूठ बोला है, तो उस पर झूठा साक्ष्य देने का आरोप लगाया जा सकता है।
धारा 156 के तहत, दो प्रमुख अपवाद (Exceptions) हैं जहाँ गवाह के उत्तर को खंडित किया जा सकता है:
1. पहला अपवाद: अगर गवाह से पूछा गया कि क्या उसे पहले किसी अपराध में दोषी ठहराया गया है और वह इसे नकार देता है, तो उसके पिछले दोषसिद्धि (Conviction) का साक्ष्य पेश किया जा सकता है।
2. दूसरा अपवाद: अगर गवाह से कोई ऐसा प्रश्न पूछा गया जो उसकी निष्पक्षता (Impartiality) पर सवाल उठाता हो, और वह इसे नकार देता है, तो उसे खंडित करने के लिए साक्ष्य पेश किया जा सकता है।
धारा 156 की व्याख्या: उदाहरणों के माध्यम से (Explanation of Section 156 Through Illustrations)
इस धारा में दिए गए उदाहरण (Illustrations) गवाह से पूछे गए सवालों और उनके उत्तरों से संबंधित स्थितियों को स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं:
उदाहरण (a)
एक व्यक्ति ने बीमा कंपनी (Underwriter) के खिलाफ दावा किया, जो धोखाधड़ी (Fraud) के आधार पर खारिज किया जा रहा है। दावा करने वाले से पूछा गया कि क्या उसने पहले किसी लेनदेन में धोखाधड़ी का दावा नहीं किया था, और उसने इसे नकार दिया। यहाँ यह साक्ष्य कि उसने पहले धोखाधड़ी का दावा किया था, स्वीकार्य नहीं होगा क्योंकि यह सीधे वर्तमान विवादित तथ्य से संबंधित नहीं है। इसका मतलब यह है कि केवल गवाह की साख को चोट पहुँचाने के लिए इस तरह के साक्ष्य का उपयोग नहीं किया जा सकता।
उदाहरण (b)
एक गवाह से पूछा गया कि क्या उसे बेईमानी (Dishonesty) के कारण किसी पद से निकाला गया था, और उसने इसे नकार दिया। यहाँ, बेईमानी के आधार पर उसे निकाले जाने का साक्ष्य पेश नहीं किया जा सकता, क्योंकि इसका उद्देश्य सिर्फ गवाह की साख को नुकसान पहुंचाना होगा और यह सीधे विवादित तथ्य से संबंधित नहीं है।
उदाहरण (c)
गवाह 'A' ने कहा कि उसने एक विशेष दिन 'B' को गोवा में देखा था। 'A' से पूछा गया कि क्या वह स्वयं उस दिन वाराणसी में नहीं था, और उसने इसे नकार दिया। यहाँ 'A' के उस दिन वाराणसी में होने का साक्ष्य स्वीकार्य होगा, क्योंकि यह इस तथ्य को खंडित करने के लिए है कि 'B' को गोवा में देखा गया था। इसका उद्देश्य गवाह की साख को चोट पहुँचाना नहीं है, बल्कि विवादित तथ्य से संबंधित है।
उदाहरण (d)
गवाह से पूछा गया कि क्या उसकी और 'B' की परिवारों के बीच खून का झगड़ा (Blood Feud) है, और उसने इसे नकार दिया। यहाँ, गवाह की निष्पक्षता को चुनौती देने के लिए इस तथ्य को खंडित करने का साक्ष्य पेश किया जा सकता है।
धारा 151 और धारा 152 के संदर्भ में धारा 156 का महत्व (Relevance of Section 156 in Context of Sections 151 and 152)
धारा 151 और धारा 152 यह सुनिश्चित करती हैं कि गवाह से पूछे जाने वाले प्रश्नों के पीछे उचित और ठोस आधार हो। धारा 151 कहती है कि गवाह से केवल वही प्रश्न पूछे जाएं जिनके लिए वकील के पास ठोस सबूत हों कि उनका आरोप सही है। यह प्रश्न केवल गवाह की साख को नुकसान पहुँचाने के लिए नहीं पूछे जा सकते। धारा 152 यह निर्दिष्ट करती है कि बिना किसी ठोस आधार के कोई भी अनुचित प्रश्न नहीं पूछे जाने चाहिए, और अगर कोई पूछे, तो न्यायालय को इसे रोकने का अधिकार है।
इन धाराओं का उद्देश्य गवाहों की गरिमा और उनके अधिकारों की रक्षा करना है। धारा 156 इसी संदर्भ में काम करती है। यह सुनिश्चित करती है कि गवाहों से पूछे गए सवालों के बाद अगर गवाह का जवाब आ गया है, तो और कोई साक्ष्य उस उत्तर को खंडित करने के लिए नहीं दिया जा सकता, जब तक कि प्रश्न निष्पक्षता या आपराधिक दोषसिद्धि से संबंधित न हो।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 के अंतर्गत धारा 156 गवाहों की साख और न्यायिक प्रक्रिया की निष्पक्षता को बनाए रखने के लिए एक महत्वपूर्ण प्रावधान है। यह गवाहों के अधिकारों की रक्षा करते हुए यह सुनिश्चित करती है कि उनके खिलाफ साक्ष्य केवल उचित और प्रासंगिक परिस्थितियों में ही पेश किए जाएं। साथ ही, यह वकीलों और न्यायालयों के लिए एक स्पष्ट दिशा-निर्देश प्रदान करती है कि गवाहों से पूछे गए सवालों के बाद किन परिस्थितियों में अतिरिक्त साक्ष्य पेश किए जा सकते हैं।