पंजीकरण अधिनियम, 1908 की धारा 23 और 23A के तहत पंजीकरण के लिए दस्तावेज़ प्रस्तुत करने के नियम और सुधार प्रक्रियाएं
Himanshu Mishra
25 July 2025 6:00 PM IST

धारा 23. दस्तावेज़ प्रस्तुत करने का समय (Time for presenting documents)
यह धारा पंजीकरण के लिए दस्तावेज़ प्रस्तुत करने की सामान्य समय-सीमा निर्धारित करती है। यह बताती है कि वसीयत (will) को छोड़कर कोई भी दस्तावेज़, उसके निष्पादन की तारीख (date of its execution) से चार महीने (four months) के भीतर उचित अधिकारी (proper officer) को पंजीकरण के उद्देश्य से प्रस्तुत नहीं किया जाएगा तो उसे स्वीकार नहीं किया जाएगा। इसका मतलब है कि अधिकांश दस्तावेजों के लिए, हस्ताक्षर करने के चार महीने के भीतर ही उन्हें पंजीकृत करवाना होगा।
परंतु (Provided that): इस धारा में एक महत्त्वपूर्ण छूट दी गई है कि किसी डिक्री (decree) या आदेश (order) की प्रतिलिपि (copy) को उस दिन से चार महीने (four months) के भीतर प्रस्तुत किया जा सकता है जिस दिन वह डिक्री या आदेश बनाया गया था। यदि वह अपील योग्य (appealable) है, तो उसे उस दिन से चार महीने के भीतर प्रस्तुत किया जा सकता है जिस दिन वह अंतिम (final) हो जाता है (यानी, अपील की अवधि समाप्त होने या अपील पर अंतिम निर्णय आने के बाद)। यह अदालती आदेशों के लिए लचीलापन प्रदान करता है, क्योंकि उनकी अंतिम स्थिति तक पहुँचने में समय लग सकता है।
उदाहरण: यदि किसी संपत्ति की बिक्री का विलेख (sale deed) 1 जनवरी को निष्पादित किया गया है, तो उसे 1 मई तक पंजीकृत करवाना होगा। वहीं, यदि अदालत का कोई आदेश 1 जनवरी को दिया गया, लेकिन उस पर 3 महीने के भीतर अपील की जा सकती है, और अपील नहीं की जाती है या अपील खारिज हो जाती है और वह 1 अप्रैल को अंतिम हो जाता है, तो उसे 1 अगस्त तक पंजीकृत किया जा सकता है।
धारा 23A. कुछ दस्तावेजों का पुनः-पंजीकरण (Re-registration of certain documents)
यह धारा एक विशेष प्रावधान है जो उन स्थितियों से निपटता है जहाँ पंजीकरण में मूल रूप से कोई त्रुटि हुई थी, खासकर दस्तावेज़ प्रस्तुत करने वाले व्यक्ति की क्षमता (competency) को लेकर। यह सुनिश्चित करता है कि ऐसी तकनीकी खामियों के कारण दस्तावेज़ अमान्य (invalid) न हो जाएँ, जिससे वास्तविक संपत्ति अधिकार प्रभावित न हों।
किसी भी विपरीत बात के बावजूद (Notwithstanding anything to the contrary): यह खंड इंगित करता है कि यह धारा अधिनियम के अन्य प्रावधानों पर वरीयता लेती है, विशेष रूप से धारा 23 की समय-सीमा पर।
यदि किसी रजिस्ट्रार (Registrar) या उप-रजिस्ट्रार (Sub-Registrar) ने किसी ऐसे व्यक्ति से पंजीकरण के लिए एक दस्तावेज़ स्वीकार कर लिया है जो उसे विधिवत प्रस्तुत करने के लिए सशक्त नहीं (not duly empowered to present the same) था, और वह दस्तावेज़ पंजीकृत भी हो गया है, तो उस दस्तावेज़ के तहत दावा करने वाला कोई भी व्यक्ति उसे पुनः-पंजीकरण (re-registration) के लिए प्रस्तुत कर सकता है। यह पुनः-पंजीकरण तब किया जा सकता है जब वह व्यक्ति पहली बार यह जागरूक होता है कि दस्तावेज़ का मूल पंजीकरण अमान्य (invalid) था, और उसे इस जानकारी के बाद चार महीने (four months) के भीतर ऐसा करना होगा।
यह पुनः-पंजीकरण भाग VI (Part VI) के प्रावधानों के अनुसार उसी जिले के रजिस्ट्रार के कार्यालय में किया जाएगा जहाँ दस्तावेज़ मूल रूप से पंजीकृत हुआ था। यदि रजिस्ट्रार इस बात से संतुष्ट है कि दस्तावेज़ वास्तव में ऐसे व्यक्ति द्वारा प्रस्तुत किया गया था जो सशक्त नहीं था, तो वह दस्तावेज़ का पुनः-पंजीकरण ऐसे करेगा जैसे कि उसे पहले कभी पंजीकृत नहीं किया गया था। इस पुनः-प्रस्तुति को ऐसा माना जाएगा जैसे कि यह भाग IV (Part IV) के तहत अनुमत समय-सीमा के भीतर की गई वैध प्रस्तुति थी।
इस अधिनियम के सभी प्रावधान जो दस्तावेजों के पंजीकरण पर लागू होते हैं, वे इस पुनः-पंजीकरण (re-registration) पर भी लागू होंगे। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यदि ऐसा दस्तावेज़ इस धारा के प्रावधानों के अनुसार विधिवत पुनः-पंजीकृत (duly re-registered) हो जाता है, तो उसे उसके मूल पंजीकरण की तारीख (date of its original registration) से सभी उद्देश्यों के लिए विधिवत पंजीकृत (duly registered) माना जाएगा। यह पूर्वव्यापी प्रभाव (retrospective effect) देता है, जिससे मूल पंजीकरण की त्रुटि को ठीक किया जा सके और अधिकारों को संरक्षित किया जा सके।
परंतु (Provided that): इस धारा में एक और शर्त है जो 12 सितंबर, 1917 की तारीख से संबंधित है। इस तारीख से तीन महीने के भीतर, इस धारा के तहत आने वाले किसी भी दस्तावेज़ के तहत दावा करने वाला कोई भी व्यक्ति इसे पुनः-पंजीकरण के लिए प्रस्तुत कर सकता है, भले ही उसे पहली बार कब पता चला हो कि दस्तावेज़ का पंजीकरण अमान्य था। यह एक विशिष्ट संक्रमणकालीन प्रावधान (transitional provision) था ताकि उस समय तक हुई त्रुटियों को ठीक किया जा सके।
उदाहरण: मान लीजिए कि एक संपत्ति का बिक्री विलेख 1 जनवरी को पंजीकृत हुआ था, लेकिन बाद में पता चला कि इसे प्रस्तुत करने वाला व्यक्ति (जो एक मुख्तारनामा धारक था) के पास वास्तव में दस्तावेज़ प्रस्तुत करने का वैध अधिकार नहीं था। यदि खरीदार को 1 जुलाई को इस अमान्यता का पता चलता है, तो उसके पास 1 नवंबर तक उस दस्तावेज़ को पुनः-पंजीकरण के लिए रजिस्ट्रार के पास प्रस्तुत करने का विकल्प है। यदि रजिस्ट्रार संतुष्ट होता है और पुनः-पंजीकरण करता है, तो दस्तावेज़ को 1 जनवरी (मूल पंजीकरण की तारीख) से ही वैध रूप से पंजीकृत माना जाएगा।
यह धारा कानूनी त्रुटियों को सुधारने और संपत्ति के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

