नीलामी के बाद खरीदार के अधिकार और सह-स्वामियों के Pre-emption अधिकार : राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 251 से 254

Himanshu Mishra

28 Jun 2025 8:28 PM IST

  • नीलामी के बाद खरीदार के अधिकार और सह-स्वामियों के Pre-emption अधिकार : राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 251 से 254

    राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 के अंतर्गत जब किसी भूमि या अचल संपत्ति की नीलामी की जाती है और उसे अंतिम रूप से अनुमोदन (Confirmation) मिल जाता है, तो उसके बाद उस संपत्ति का स्वामित्व, कब्जा, और उससे संबंधित दायित्वों का निर्धारण कानून के अनुसार किया जाता है। धाराएँ 251 से 254 इसी प्रक्रिया को स्पष्ट करती हैं। यह लेख इन धाराओं का सरल भाषा में विश्लेषण करता है।

    धारा 251 – खरीदार को कब्जा दिलाना और प्रमाणपत्र देना (Purchaser to be Put in Possession – Certificate of Purchase)

    जब किसी भूमि या अचल संपत्ति की नीलामी को अंतिम रूप से अनुमोदित (Confirmed) कर दिया जाता है, तब कलेक्टर उस संपत्ति पर खरीदार को विधिवत कब्जा (Possession) दिलाता है। इसके साथ ही उसे एक "क्रय प्रमाणपत्र" (Certificate of Purchase) प्रदान किया जाता है। यह प्रमाणपत्र इस बात का प्रमाण होता है कि खरीदार ने उक्त भूमि को विधिपूर्वक नीलामी के माध्यम से खरीदा है।

    यह प्रमाणपत्र वैध हस्तांतरण (Valid Transfer) के रूप में स्वीकार किया जाता है और इसे पंजीकृत (Registered) कराना आवश्यक नहीं है, सिवाय इसके कि भारतीय पंजीकरण अधिनियम, 1908 (Indian Registration Act, 1908) की धारा 89 में जो प्रावधान हैं, उनका पालन करना पड़े।

    उदाहरण:

    श्याम ने एक खेत की नीलामी में सबसे ऊँची बोली लगाकर उसे खरीदा। जब उसकी नीलामी कलेक्टर द्वारा अनुमोदित कर दी गई, तो उसे जमीन का कब्जा दिलाया गया और एक प्रमाणपत्र भी दिया गया जो उसके स्वामित्व का प्रमाण है।

    धारा 252 – बिक्री से प्राप्त राशि का उपयोग (Application of Proceeds of Sale)

    जब नीलामी से प्राप्त राशि प्राप्त हो जाती है और बिक्री की पुष्टि हो जाती है, तो उस राशि का उपयोग निम्नलिखित क्रम में किया जाता है:

    1. सबसे पहले, उस राशि से राज्य सरकार को जो भी बकाया राजस्व, किराया (Rent) या उससे संबंधित लागत (Costs) हो, उसका भुगतान किया जाता है।

    2. यदि नीलामी किसी अन्य बकाया राशि की वसूली के लिए की गई थी, जो राज्य सरकार की नहीं थी, तो उसका भुगतान दूसरे क्रम में किया जाएगा।

    3. यदि उपर्युक्त दोनों भुगतान करने के बाद कोई शेष (Surplus) राशि बचती है, तो वह उस व्यक्ति को दी जाएगी जिसकी भूमि बेची गई थी।

    o यदि भूमि कई सह-स्वामियों की थी, तो यह राशि या तो संयुक्त रूप से या उनके रिकॉर्ड किए गए हिस्से के अनुसार दी जाएगी, जैसा कलेक्टर उपयुक्त समझे।

    उदाहरण:

    नीलामी में ₹2 लाख प्राप्त हुए, जिसमें ₹1.2 लाख राज्य को बकाया था और ₹30,000 अन्य वसूली योग्य राशि थी। ₹1.5 लाख देने के बाद ₹50,000 बचे, जो संबंधित भूमि स्वामी या सह-स्वामियों को दे दिए जाएंगे।

    धारा 253 – खरीदार की किराया/राजस्व देयता (Liability of Purchaser for Revenue or Rent)

    जिस व्यक्ति का नाम "क्रय प्रमाणपत्र" में दर्ज होता है, वह उस भूमि के लिए नीलामी की पुष्टि की तिथि के बाद उत्पन्न होने वाले सभी राजस्व (Revenue) या किराया (Rent) के भुगतान का उत्तरदायी होता है।

    इसका अर्थ यह है कि:

    • पूर्व स्वामी के द्वारा बकाया छोड़ दिए जाने के बाद, अब खरीदार को सभी भविष्य के भुगतानों की जिम्मेदारी लेनी होगी।

    • यह जिम्मेदारी अपने आप लागू हो जाती है, अलग से किसी अनुबंध की आवश्यकता नहीं होती।

    धारा 254 – सह-स्वामियों का पूर्वक्रय अधिकार (Pre-emption by Co-sharers)

    यदि बेची गई भूमि किसी संपत्ति का एक हिस्सा थी और कोई बाहरी व्यक्ति (Stranger) उसकी नीलामी में खरीदार बनता है, तो उस भूमि के अन्य दर्ज सह-स्वामी (Recorded Co-sharers) को पूर्वक्रय (Pre-emption) का अधिकार प्राप्त होता है।

    यह अधिकार लागू होने के लिए कुछ शर्तें हैं:

    • यह दावा नीलामी की तिथि से 7 दिनों के भीतर किया जाना चाहिए।

    • पूर्वक्रय का दावा करने वाले सह-स्वामी को नीलामी में अंतिम बोली गई राशि (Last Bid) पर ही वह भूमि लेनी होगी।

    • उसे नीलामी के अन्य सभी नियमों व शर्तों को भी पूरा करना होगा।

    उदाहरण:

    किसी खेत की नीलामी में एक बाहरी व्यक्ति राम ने अंतिम बोली ₹1,00,000 लगाई और उसे संपत्ति दी गई। उसी खेत के सह-स्वामी मोहन ने 5वें दिन ₹1,00,000 जमा कर नीलामी से उस भूमि को अपने नाम करा लिया क्योंकि उसे पहले खरीदने का अधिकार (Pre-emption) था।

    धाराएँ 251 से 254 राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 में नीलामी की अंतिम प्रक्रियाओं और उससे जुड़ी जिम्मेदारियों को परिभाषित करती हैं। यह प्रावधान सुनिश्चित करते हैं कि खरीदार को अधिकारों के साथ-साथ जिम्मेदारियों का भी वहन करना हो और सह-स्वामियों को यदि कोई बाहरी व्यक्ति उनकी साझा भूमि खरीदता है, तो पहले खरीदने का अधिकार मिले। साथ ही नीलामी की राशि का न्यायसंगत वितरण हो, यह भी सुनिश्चित किया जाता है।

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