The Indian Contract Act में एजेंट को दिए गए अधिकार

Shadab Salim

15 Sept 2025 9:31 AM IST

  • The Indian Contract Act में एजेंट को दिए गए अधिकार

    अभिकरण की संविदा के अंतर्गत मालिक अपने द्वारा किए जाने वाले कार्यों को किसी अभिकर्ता को सौंप देता है। इस प्रकार वह अपने कार्यों का प्रत्यारोपण कर देता है। मालिक के कार्य अभिकर्ता द्वारा किए जाते हैं तो मालिक अभिकर्ता को अपने अधिकार भी सौंप देता है।

    भारतीय संविदा अधिनियम 1872 की धारा 188 अभिकर्ता के प्राधिकार के विस्तार के संबंध में उल्लेख कर रही है। यह धारा इस बात पर प्रकाश डालती है कि किसी अभिकर्ता के प्राधिकार या उसकी शक्ति का विस्तार कहां तक होता है।

    इस धारा के अनुसार- किसी कार्य को करने का अधिकार रखने वाला अभिकर्ता प्रत्येक ऐसी विधिपूर्ण बात करने का अधिकार रखता है जो वैसा कार्य करने के लिए आवश्यक है।

    इस धारा का दूसरा पैरा इस बात का उल्लेख करता है कि किसी कारोबार को चलाने का अधिकार रखने वाला अभिकर्ता हर ऐसी विधिपूर्ण बात करने का प्राधिकार रखता है जो ऐसे कारोबार के संचालन के प्रयोजन के लिए आवश्यक हो या उसके अनुक्रम में प्राय की जाती है। उदाहरण के लिए ख जो लंदन में रहता है अपने को शोध्य ऋण मुंबई में वसूल करने के लिए क को नियोजित करता है। क उस ऋण को वसूल करने के प्रयोजन के लिए आवश्यक कोई भी विधिक प्रक्रिया अपना सकेगा और उसके लिए वह विद्यमान मोचन दे सकेगा।

    अभिकर्ता का प्राधिकार उस सीमा तक विस्तृत है जिस सीमा तक वह अपने विवेक और शक्ति का प्रयोग कर सकता है।

    धारा 181 से यह समझा जा सकता है कि कोई भी अभिकर्ता वह कोई भी काम कर सकता है जो विधिपूर्ण हो और विधिपूर्ण उस कार्य को माना जाता है जो लोकनीति के विरुद्ध न हो और जो युक्तियुक्तता से परे नहीं हो।

    सतलज कॉटन मिल्स लिमिटेड बनाम रंजीत सिंह एआईआर 1952 पंजाब 253 के प्रकरण में कहा गया है कि किसी निगम के संदर्भ में अभिकर्ता किसी ऐसे कार्य का संपादन कर रहा है जिसका किया जाना उसके लिए अधिकारातीत था तो यह विधिमान नहीं माना जाएगा।

    आरके डालमिया बनाम दिल्ली एडमिनिस्ट्रेशन एआईआर 1962 एससी 1521 के प्रकरण में कहा गया है जहां किसी धार्मिक मामले में कोई व्यक्ति प्राधिकार के साथ दूसरे व्यक्ति का प्रतिनिधित्व कर रहा हो वहां उसका इस प्रकार का प्रतिनिधित्व किया जाना यथोचित माना गया।

    वलापद कोऑपरेटिव स्टोर्स लिमिटेड बनाम श्रीनिवास अय्यर ब्रदर एआईआर 1964 केरल 126 के प्रकरण में कहा गया है कोई भी अभिकर्ता अपने विवक्षित पर अधिकार के अंतर्गत वह कार्य करने के लिए प्राधिकृत है जो विधि विरुद्ध न हो एवं जिसका संबंध वस्तु के विक्रय से हो।

    मोहम्मद इब्राहिम बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया एआईआर 1959 337 पटना के प्रकरण में कहा गया है कि इस संबंध में यदि अभिकर्ता किसी प्रतिकूल दावे का अभिवाद करता है तो उसे स्वीकार किया जाएगा। उसका यथोचित आधार पर परीक्षण किया जाएगा।

    सतनाम चंदन बनाम दर्शन सिंह एआईआर 2007 डी ओ सी 216 के प्रकरण में अभिनिर्धारित हुआ है कि जब एनआरआई भूमि स्वामी द्वारा एक बेदखली हेतु वाद दायर किया गया और मुख्तारनामा के धारक में भूमि स्वामी की वास्तविक आवश्यकता का परीक्षण किया कब पारित किया गया बेदखली का आदेश अवैधानिक था।

    अभिकरण की संविदा एक प्रकार की संविदा होती है तो इस संबंध में प्राधिकार संबंधी वह सारे नियम होंगे जो संविदा की बाबत लागू होते हैं। इस संबंध में पक्षकारों के आशय संबंधी निश्चयात्मक सबूत की अवधारणा प्रकाश में आती है।

    मुख्तारनामा एक दस्तावेज जो कतिपय औपचारिकताओं से युक्त होता है। बैंक ऑफ़ बंगाल बनाम रामानाथन चोटी 1916 कोलकाता 527 के मामले में कहा गया है कि जहां कोई कार्य किसी मुख्तारनामा के तहत किया जाना तात्पर्य था उसे इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि यह प्रदाय शक्ति से बाहर होकर किए जाने के लिए तात्पर्य है। वहां यह अभिनिर्धारित किया गया है कि संबंध में आवश्यक प्राधिकार सीमा के भीतर ही कार्य का संपादन किया जा सकता है।

    मुख्तारनामा का तात्पर्य उस दस्तावेज से हैं जिस के संदर्भ में वह व्यक्ति जिसे उक्त प्रकार का मुख्तारनामा प्रदान किया गया है वह विधिक कार्यवाहियों का संचालन करने हेतु समर्थ माना जाता है। किसी कार्य को विधितः संपन्न कराने हेतु किसी व्यक्ति को मुख्तारनामा प्रदान किया गया है वह केवल उसी कार्य के संबंध में अपनी शक्ति का प्रयोग कर सकता है क्योंकि वह उक्त कार्य से भिन्न न किसी प्रयोजन के लिए उक्त शक्ति का प्रयोग करने के लिए अधिकृत नहीं माना जाएगा।

    जहां सामान्य शक्ति सहित विशेष शक्ति भी अपेक्षित है तो ऐसी स्थिति में यदि मुख्तारनामा के द्वारा किसी व्यक्ति को विशेष शक्ति से युक्त किया गया है तो वह अपनी विशेष शक्ति का प्रयोग कर सकता है।

    सुलेमान बीवी बनाम हफीज मोहम्मद एआईआर 1927 कोलकाता 687 के प्रकरण में इसी प्रकार जहां किसी देय राशि की वसूली हेतु मुख्तारनामा दिया गया हो तो ऐसी स्थिति में उक्त अधिकतम अपने नियोजन के सामान्य अनुक्रम में उक्त राशि की वसूली करने हेतु प्राधिकृत माना जाएगा।

    किसी दस्तावेज के पंजीकरण के संबंध में मुख्तारनामा में जो बातें उल्लेखित हो उसी के अनुसार अभिकर्ता को कार्य करना चाहिए यदि वह उसके असंगत कार्य करता है तो इसे परिस्थितियों के अनुसार युक्तियुक्त माना गया।

    विधिक कार्यवाहियों का संचालन उसी रूप में होना चाहिए जिस रूप में मालिक के मुख्तार को मुख्तारनामा के द्वारा प्रधिकृत किया गया है अर्थात वह उसी पर अधिकार के अंतर्गत कार्य करेगा जिस पर अधिकार के अंतर्गत उसे कार्य करने हेतु प्राधिकृत किया गया है।

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