Transfer Of Property में होने वाली लीज में हित अन्तरित करने का अधिकार
Shadab Salim
21 Feb 2025 3:27 AM

इस एक्ट की धारा 108 (अ) के अनुसार Lessee को महत्वपूर्ण अधिकार प्रदान करता है। इसके अनुसार Lessee लीज़ सम्पत्ति में अपने पूर्ण हित को या उसके भाग को आत्यन्तिक रूप से अथवा बंधक या उपपट्टे द्वारा अन्तरित कर सकेगा और ऐसे हित को भाग का अन्तरिती उसे पुनः अन्तरित कर सकेगा। Lessee का मात्र ऐसे अन्तरण के फलस्वरूप पट्टे से संलग्न दायित्यों में से किसी के अध्यधीन रहना प्रविरत न हो जाएगा। उस उपबन्ध में प्रदत्त अन्तरण का अधिकार निम्न परिस्थितियों में प्रवर्तित नहीं होगा।
(1) Lessee के पास अनन्तरणीय धारणाधिकार है।
(2) मालगुजारी न दे पाने वाले काश्तकार का उक्त काश्त में निहित हित
(3) कोट ऑफ वार्ड्स के प्रबन्धन में स्थित सम्पत्ति के लीज़ग्राही का हित । इस सम्बन्ध में यह महत्वपूर्ण है कि पट्टे के समापन के पश्चात् सम्पत्ति का कब्जा वापस लीज़कतों को सौंपने का दायित्व Lessee पर होता है। यह दायित्व किसी अन्य व्यक्ति पर नहीं होता है क्योंकि अन्य व्यक्ति से लीज़कतों को संविदा की सनिकटता नहीं होती है। अतः संव्यवहार Lessor एवं Lessee के बीच ही होना चाहिए। परन्तु यदि Lessor इस बात पर सहमत हो जाए। कि वह अन्य व्यक्ति अर्थात् उपLessee समुनदेशिती को मूल Lessee के रूप में स्वीकार कर लेगा तो मूल Lessee अपने दायित्व से मुक्त हो जाएगा। एक साधारण Lessee या समनुदेशिती Lessor के प्रति जवाबदेह नहीं है, परन्तु यदि उपलीज़ या समनुदेश आत्यन्तिक है तो उपLessee या समनुदेशितो सम्पदा की सन्निकटता के आधार पर दायी होगा।
सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम, 1882 की धारा 10 में वर्णित प्रावधान के अध्यधीन Lessee को सम्पदा के साधारण अनुक्रम में उसे अन्तरित करने की अनुमति प्रदान की गयी है। जब तक कि कोई ऐसी प्रसंविदा न हो जो Lessee के अधिकारों को सीमित करती है, स्थायो पट्टे के प्रकरण में Lessee का अधिकार अन्तरणीय एवं उत्तराधिकार में प्राप्त दोनों ही हैं। आत्यन्तिक अन्तरण के फलस्वरूप Lessee लीज़ सम्पत्ति में अपना सम्पूर्ण हित हस्तान्तरित कर देता है एवं इस प्रक्रिया द्वारा Lessor एवं अन्तरितों के बीच सम्पदा को सनिकटता सृजित हो जाती है जिसके फलस्वरूप नवीन अन्तरिती तथा Lessor के बीच संबंध स्थापित हो जाता है एवं अन्तरिती भूमि के साथ चलने वाली प्रसंविदाओं जिसमें किराया या भाटक के भुगतान की प्रसंविदा भी सम्मिलित रहती है, के फलस्वरूप Lessor के प्रति दायी हो जाता है।
प्रस्तुत उपबन्ध भले ही Lessee को उपलीज़ सृजित करने हेतु प्राधिकृत करता है। यदि वह Lessor को पूर्वानुमति लिए बिना सम्पत्ति का अन्तरण करता है एवं इस आधार पर यदि Lessor Lessee की बेदखली हेतु प्रक्रिया प्रारम्भ करता है तो वह (Lessee) यह बचाव नहीं ले सकेगा कि उसे धारा 108 (ञ) के अन्तर्गत सम्पत्ति का अन्तरण करने का अधिकार है। पट्टे को शेष बची अवधि के लिए आत्यन्तिक रूप में किए गये उपपट्टे द्वारा अन्तरण शेष अवधि हेतु समनुदेशन नहीं होगा, केवल एक उपलीज़ होगा तथा यह समनुदेशन के विरुद्ध प्रसंविदा का उल्लंघन करता हुआ नहीं माना जाएगा
उपLessee के अधिकार-
चूंकि अधिनियम के अन्तर्गत उपपट्टे को अवैध नहीं घोषित किया गया है, अपितु Lessee को अधिकार दिया गया है कि यदि वह चाहे तो उपलीज़ सृजित कर सकता है सम्पूर्ण सम्पत्ति का या उसके एक भाग का अतः उपLessee को Lessee के अधीन कतिपय अधिकार प्राप्त होंगे। साधारणतया Lessee का उपलीज़ सृजित करने का अधिकार उसके तथा Lessor के बीच हुई आपसी सहमति पर निर्भर करती हैं, अतः केवल उन मामलों में जिनमें लीज़ करार में सम्पत्ति का उपलीज़ सृजित करने पर कोई विशिष्ट निषेध हैं और इस निषेध की उपेक्षा कर अप्राधिकृत उपलीज़ सृजित किया जाता है तो ऐसी स्थिति में Lessor लीज़ के जब्तीकरण की कार्यवाही कर सकेगा।
सम्पत्ति विधि का यह एक मान्य सिद्धान्त है कि कोई भी व्यक्ति अपने से उत्तम हित जो उसे सम्पत्ति में प्राप्त है, अन्तरित नहीं कर सकता है। अतः एक निश्चित कालावधि का अन्तरितो उपLessee को अपने से अधिक अवधि का लीज़ नहीं कर सकेगा। अतः यदि उपलीज़ विलेख में किसी अवधि का उल्लेख नहीं हुआ है तो इससे यह निष्कर्षन नहीं निकाला जाएगा कि उपलीज़ स्थायी प्रकृति का लीज़ है। केवल यह निष्कर्ष निकाला जाएगा कि उपलीज़ मूल पट्टे की अवशिष्ट अवधि के लिए सृजित किया गया है।
सम्पदा की सन्निकटता-
जब Lessee का रेन्ट अदा करने का दायित्व सम्पदा को सन्निकटता पर आधारित होता है, तो यह दायित्व उस क्षण समाप्त हो जाता है जब यह हित किसी अन्य व्यक्ति को अन्तरित कर दिया जाता है। परन्तु जहाँ तक मूल Lessee का सम्बन्ध है, उसका दायित्व समनुदेशन के कारण समाप्त नहीं होता है। उसका दायित्व केवल तभी समाप्त होता है जब समनुदेशन को Lessor द्वारा प्रत्यक्ष परोक्ष रूप में Lessee के रूप में स्वीकार कर लिया जाए अन्यथा Lessee एवं समनुदेशिती दोनों के विरुद्ध बेदखली हेतु वाद संस्थित किया जा सकेगा।
एक पट्टे के समनुदेशिती का किराया भुगतान का दायित्व सम्पदा की सन्निकटता के फलस्वरूप उत्पन्न होता है और यह सन्निकटता सम्पत्ति के अन्तरण के फलस्वरूप उत्पन्न होती है न कि कहा प्राप्त करने के कारण समनुदेशिती यदि अपना हित एक अन्य व्यक्ति के पक्ष में अन्तरित करता है, तो उसकी सम्पदा को सन्निकटता समाप्त हो जाएगी परिणामतः समनुदेशन के पश्चात् प्रसंविदा का उल्लंघन होने की दशा में उसका कोई दायित्व नहीं होगा।
एक लीज़धृत सम्पत्ति का बन्धको जिसने अन्य बंधकियों के हितों के जब्तीकरण द्वारा प्राप्त कर लिया है वह Lessor को किराया अदा करने के दायित्वाधीन है क्योंकि ऐसे मामले में Lessee तथा बन्धकी दोनों के सम्पूर्ण हित विधि के प्रवर्तन द्वारा एक व्यक्ति अर्थात् बन्धकी में विलीन हो है।
यदि Lessee लीज़ सम्पत्ति की शर्तों का उल्लंघन कर बन्धक सृजित करता है तथा भू-स्वामी जब्ती (समपहरण) के आधार पर बेदखली हेतु डिक्री प्राप्त कर लेता है, तो बन्धकी, चूँकि वह समनुदेशिती नहीं है, यह नहीं कह सकेगा कि धारा 111 (छ) के अन्तर्गत दी गयी नोटिस वैध नहीं है या पट्टे की शर्तों का उल्लंघन नहीं हुआ है। यदि Lessee से सम्पत्ति का कब्जा प्राप्त करने वाला व्यक्ति पूर्णतया अतिचारी है तथा उसके एवं Lessee के बीच किसी भी प्रकार की सन्निकटता नहीं है तो न्यायालय कब्जा हेतु Lessor के पक्ष में डिक्री पारित कर सकेगा पर अन्य मामलों में जिनमें कब्जाधारी, Lessee द्वारा किए गये अन्तरण के फलस्वरूप कब्जाधारी है, तो कब्जा हेतु Lessor के पक्ष में डिक्री पारित नहीं होगी जब तक कि Lessee द्वारा परित्याग न साबित हो जाए।