Right to Information Act सूचना नहीं दिए जाने पर अपनायी जाने वाली प्रक्रिया
Shadab Salim
21 Jun 2025 5:42 AM

इस अधिनियम में सूचना प्रदान नहीं किये जाने पर जुर्माना किये जाने का प्रावधान है। इस संबंध में इस एक्ट की धारा 20 दी गयी है जिसके अनुसार-
(1) जहाँ किसी शिकायत या अपील का विनिश्चय करते समय, यथास्थिति, केन्द्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग की यह राय है कि, यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी ने, किसी युक्तियुक्त कारण के बिना सूचना के लिए कोई आवेदन प्राप्त करने से इंकार किया है या धारा 7 की उपधारा (1) के अधीन सूचना के लिए विनिर्दिष्ट समय के भीतर सूचना नहीं दी है या असद्भावपूर्वक सुचना के लिए अनुरोध से इंकार किया है या जानबूझकर गलत, अपूर्ण भ्रामक सूचना दी है या उस सूचना को नष्ट कर दिया है, जो अनुरोध का विषय थी या किसी रीति से सूचना देने में बाधा डाली है, तो वह ऐसे प्रत्येक दिन के लिए, जब तक आवेदन प्राप्त किया जाता है या सूचना दी जाती है, दो सौ पचास रुपए की कॉस्ट अधिरोपित करेगा, हालांकि, ऐसी कॉस्ट की कुल रकम पच्चीस हजार रुपए से अधिक नहीं होगी:
परन्तु यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी को, उस पर कोई कॉस्ट अधिरोपित किए जाने के पूर्व सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर दिया जाएगा:
परन्तु यह और कि यह साबित करने का भार कि उसने युक्तियुक्त रूप से और तत्परतापूर्वक कार्य किया है, यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी पर होगा।
(2) जहाँ किसी शिकायत या अपील का विनिश्चय करते समय, यथास्थिति, केन्द्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग की यह राय है कि, यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी, किसी युक्तियुक्त कारण के बिना और लगातार सूचना के लिए कोई आवेदन प्राप्त करने में असफल रहा है या उसने धारा 7 की उपधारा (1) के अधीन विनिर्दिष्ट समय के भीतर सूचना नहीं दी है या असद्भावपूर्वक सूचना के लिए अनुरोध से इंकार किया है या जानबूझकर गलत, अपूर्ण या भ्रामक सूचना दी है या ऐसी सूचना को नष्ट कर दिया है, जो अनुरोध का विषय थी या किसी रीति से सूचना देने में बाधा डाली है वहां वह यथास्थिति, ऐसे केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी के विरुद्ध उसे लागू सेवा नियमों के अधीन अनुशासनिक कार्रवाई के लिए सिफारिश करेगा।
यह धारा कॉस्ट के लिए प्रक्रिया को अधिकथित करती है। केन्द्रीय सूचना आयोग/राज्य सूचना आयोग केन्द्रीय और राज्य लोक सूचना अधिकारी या केन्द्रीय और राज्य सहायक लोक सूचना अधिकारी या ऐसे अन्य लोक सूचना अधिकारियों या व्यक्तियों पर, जिन्हें इस अधिनियम के प्रयोजन के लिए उक्त अधिकारियों के समान माना जा रहा है, पर उसके किये गये या न किये गये या कपटपूर्वक किये गये कार्य के लिए कॉस्ट उद्ग्रहीत करने के लिए प्राधिकृत है। कॉस्ट आवेदन प्राप्त करने में असफलता, समय के अन्तर्गत सूचना प्रदान करने से इन्कार करने और गलत या अपूर्ण या भ्रामक सूचना प्रदान करने के मामले में भी अधिरोपित की जा सकती है।
विधि विहित समय के भीतर सूचना अधिकारी द्वारा सूचना देने को उपबंधित करती है। सूचना देने में असफलता कॉस्ट के लिए उत्तरदायी होगी।
फारुक अहमद सरकार बनाम चितरंजन लोकोमोटिव वर्क्स के मामले में कहा गया है कि उत्तर के लिए अधिनियम में नियत अवधि के पश्चात् एक मास से अधिक के विलम्ब के पश्चात् के मामले में आयोग कारण बताओ नोटिस जारी करने के लिए सशक्त है, कि क्यों न इस विलम्ब के लिए कॉस्ट उदग्रहीत की जाये।
इसे दण्ड अधिरोपित करने अथवा अनुशासनिक कार्यवाही करने की भी शक्ति प्राप्त है। आयोग की कार्यवाहियों को नैसर्गिक न्याय के सिद्धान्तों के अनुरूप होना है।
आयोग जुर्माना अधिरोपित कर सकता है, यदि सूचना प्रदान करने के लिये निर्देश का अनुपालन नहीं किया गया है।
धारा 20 (2) शक्ति के प्रयोग के लिए नैसर्गिक न्याय के सिद्धान्तों के अनुपालन को पूर्ववर्ती शर्त नहीं बनाती है, फिर भी धारा 20 (2) में नैसर्गिक न्याय के सिद्धान्तों को पढ़ा जाना है। कॉस्ट अधिरोपित की जा सकती है, यदि समवर्ती निष्कर्ष है कि सम्बद्ध अधिकारी ने नियत समय के भीतर सूचना प्रदान करने में त्रुटि कारित की है। कॉस्ट अधिरोपित की जा सकती है, यदि समवर्ती निष्कर्ष है कि सम्बद्ध अधिकारी ने नियत समय के भीतर सूचना प्रदान करने में त्रुटि कारित की है।
यदि मांगी गयी सूचना तीस दिनों की नियत अवधि के भीतर नहीं दी जाती, तो कॉस्ट उत्तरदायी प्राधिकारी पर अधिरोपित की जा सकती है।
इस धारा के अधीन कॉस्ट अधिरोपित करने की शक्तियाँ प्रकृति में अर्द्ध-न्यायिक हैं। यह तथ्य कल्पनाथ चौबे बनाम सूचना आयुक्त, 2010 (3) के मामले में दिया गया है।
रमेश शर्मा बनाम स्टेट इन्फार्मेशन कमीशन, हरियाणा, 2008 के प्रकरण में कहा गया है कि अपेक्षित सूचना प्रदान करने में असफल होने वाले लोक प्राधिकारियों को दण्डित किया जा सकता है।
लोक प्राधिकारी अधिनियम के अनुसार कार्य करने में असफल रहा है और प्रभावी ढंग से किसी युक्तियुक्त कारण के बिना सूचना का प्रत्याख्यान किया है, जो धारा 20 (1) के दाण्डिक प्रावधानों को आकर्षित करता है।
अजीत कुमार जैन बनाम हाईकोर्ट ऑफ डेलही के मामले में कहा गया है कि यदि भ्रामक या अपूर्ण सूचना प्रदान की जाती है, तो कॉस्ट अधिरोपित की जा सकती है।
सूचना प्रदान करने में केवल चार मास से अधिक के विलम्ब के लिए लोक सूचना अधिकारों के विरुद्ध दाण्डिक कार्यवाही प्रारम्भ की जा सकती है।
सूचना प्रदान करने में कुछ विलम्ब के कारण, आयोग त्रुटि करने वाले अधिकारी के विरुद्ध अनुशासनिक कार्यवाही करने की सिफारिश करने के लिए सशक्त है। यह आदेश रमेश शर्मा बनाम स्टेट इन्फार्मेशन कमीशन, हरियाणा, ए आई आर 2008 पी एण्ड एच 1261 के मामले में दिया गया है।
कॉस्ट जैसा कि सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 को धारा 5 के अधीन गठित सूचना अधिकारी पर " अधिनियम, 2005 की धारा 20 के अधीन कॉस्ट अधिरोपित की जाती है, तब वह व्यक्ति स्वयं ही कॉस्ट के लिए उत्तरदायी होता है, इस प्रकार, यदि सम्बन्धित अधिकारी कॉस्ट के अधिरोपण से क्षुध महसूस करता है तथा उच्चतर कोर्ट के समक्ष अपनी व्यथा को व्यक्त करना चाहता है तब यह ऐसा अपनी वैयक्तिक क्षमता में कर सकता है तथा उक्त प्रयोजन के लिये यह केवल प्राइवेट अधिवक्ता को संलग्न कर उसके माध्यम से रिट याचिका को दाखिल कर सकता है लेकिन वह जैसा कि एल आर मैनुअल में परिभाषित किया गया अपर मुख्य स्थाई अधिवक्ता अथवा मुख्य स्थाई अधिवक्ता के माध्यम से नहीं दाखिल कर सकता है।
जैसा कि वैयक्तिक क्षमता में याची द्वारा दाखिल की गयी रिट याचिका को मुख्य स्थाई अधिवक्ता के कार्यालय के माध्यम से दाखिल नहीं किया जाना चाहिये था याची प्राइवेट अधिवक्ता को संलग्न करने तथा उसके माध्यम से रिट याचिका को दाखिल करने के लिए स्वतंत्र है। यदि यह इस प्रकार करने का चुनाव करता है, तो यह आशा की जाती है कि यदि किसी रिट याचिका को दाखिल किया जाता है, सम्बन्धित कोर्ट द्वारा रिट याचिका के काफी समय पूर्व से विचाराधीन रहने के प्रभाव पर विचार करेगा।
लोक प्राधिकारी के विरुद्ध अधिरोपित कॉस्ट उचित है यदि अधिनियम के प्रावधानों के गलत निर्वचन पर सूचना का प्रत्याख्यान गम्भीर त्रुटि है।
कॉस्ट का अभिषण उचित होगा यदि
(1) लोक प्राधिकारी ने अपेक्षित सूचना प्रदान नहीं की है।
(ii) लोक प्राधिकारी ने अन्तर्ग्रस्त मुद्रा विकाधक के सम्बन्ध में आवश्यक तथ्यों को छिपाया है।
(iii) लोक प्राधिकारी ने सूचना प्रदान करने के लिए आयापक निर्देश का अनुपालन नहीं किया है।
(IV) निर्धारित तारीख पर अनुपस्थित रहा है।
नरेंद्र कुमार बनाम मुख्य सूचना अधिकारी, उत्तराखण्ड, ए आई आर 2014 उत्तराखंड 40 के वाद में अभिनिर्धारित किया गया है कि विलंब हेतु उचित आधार चाही गई सूचना के प्रदाय में विलंब हुआ था क्योंकि बोर्ड का संपूर्ण कर्मचारी दल कलेक्टर के आदेशानुसार आंकड़े और मतदाता पहचान पत्र बनाने में व्यस्त था और प्राकृतिक आपदा के उपरान्त राहत कार्य में भी व्यस्तता समयावधि में सूचना के अप्रदाय हेतु उचित आधार है।
इसका प्रयोग धारा 20 (2) में विनिर्दिष्ट व्यतिक्रमों के आधार पर किया जा सकता है। आयोग द्वारा व्यतिक्रम का कोई नया आधार नहीं जोड़ा जा सकता है। उपेक्षा स्वयं अनुशासनिक कार्यवाही करने की सिफारिश करने का आधार नहीं है। धारा 20 (2) के अधीन कार्यवाही के लिये उपेक्षा को सतत् और बिना किसी युक्तियुक्त कारण से होना है। यह अभिनिश्चय मनोहर मानिकराव अंतुले बनाम महाराष्ट्र राज्य, ए आई आर 2013 एस सी 6811 के मामले में किया गया है।
कॉस्ट केवल परिवाद या अपील को निपटाते समय अधिरोपित की जा सकती है।
अधिनियम के अन्तर्गत सूचना 30 दिनों के भीतर ही प्रदाय किये जाने की अपेक्षा की गयी थी यदि अभिलेख कार्यालय में उपलब्ध था। सूचना प्राप्त करने का अधिकार इस विस्तार तक विस्तारित नहीं किया जाना था कि हालांकि फाइल अच्छे कारणों से उपलब्ध नहीं थी फिर भी फाइल प्राप्त करने और सूचना देने के लिये कार्यालय द्वारा कदम उठाने की अपेक्षा की जाती थी। परिणामस्वरूप सूचना प्रदान करने को उसकी और मे चूक के लिये लोक सूचना अधिकारी पर दण्ड का अधिरोपण अनुचित था।
यदि आवेदन का व्यावहारिक रूप से अधिनियम में विहित समयावधि के भीतर उत्तर दिया गया था और सूचना, जैसा कि अभिलेख पर उपलब्ध थी, प्रदान की गई थी, तब दण्ड के अधिरोपण के लिये कोई मामला नहीं बनता है।
यदि आवेदक की ओर से सद्भावना की कमी या अनिश्चितता है तो उस पर कॉस्ट अधिरोपित की जा सकती है।
यदि आयोग लोक सूचना अधिकारी के स्पष्टीकरण को संतोषजनक पाता है, तब दण्ड की कार्यवाही समाप्त की जा सकती है। यह अभिनिश्चय कलीमुद्दीन बनाम शिक्षा निदेशक के मामले में दिया गया है।