सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (RTI Act) भाग: 7 वह विषय जिन से संबंधित सूचनाओं को नहीं दिया जाएगा (धारा-8)

Shadab Salim

10 Nov 2021 3:30 AM GMT

  • सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (RTI Act) भाग: 7 वह विषय जिन से संबंधित सूचनाओं को नहीं दिया जाएगा (धारा-8)

    सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (RTI Act) के अंतर्गत धारा 8 कुछ ऐसे विषय को उल्लेखित करती है जिन पर मांगी गई सूचनाओं को नहीं दिया जा सकता है। ऐसे विषय देश हित में और किसी व्यक्ति के हित में होते हैं जिन से संबंधित सूचनाओं को नहीं दिया जा सकता। यदि इन विषयों से संबंधित सूचनाओं को दे दिया जाए तो समस्या खड़ी हो सकती है और देश की एकता अखंडता तथा किसी व्यक्ति के अधिकारों को क्षति हो सकती है।

    इस उद्देश्य से इस अधिनियम के अंतर्गत धारा 8 को गढ़ा गया है। इस आलेख के अंतर्गत इस धारा 8 की व्याख्या प्रस्तुत की जा रही है तथा यह बताने का प्रयास किया जा रहा है कि किन विषयों को सूचना के अधिकार अधिनियम से छूट दी गई है।

    यहां इस आलेख में इस धारा का मूल स्वरूप प्रस्तुत किया जा रहा है जो इस प्रकार है:-

    सूचना के प्रकट किए जाने से छूट-

    (1) इस अधिनियम में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी व्यक्ति को निम्नलिखित सूचना देने की बाध्यता नहीं होगी:-

    (क) सूचना, जिसके प्रकटन से भारत को प्रभुता और अखण्डता, राज्य की सुरक्षा, रणनीति, वैज्ञानिक या आर्थिक हित, विदेश से संबंध पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हो या किसी अपराध को करने का उद्दीपन होता हो।

    (ख) सूचना, जिसके प्रकाशन को किसी न्यायालय या अधिकरण द्वारा अभिव्यक्त रूप से निषिद्ध किया गया है या जिसके प्रकटन से न्यायालय का अवमान होता है।

    (ग) सूचना, जिसके प्रकटन से संसद या किसी राज्य के विधान मंडल के विशेषाधिकार का भंग कारित होगा।

    (घ) सूचना, जिसमें वाणिज्यिक विश्वास व्यापार गोपनीयता या बौद्धिक सम्पदा सम्मिलित है, जिसके प्रकटन से किसी पर व्यक्ति को प्रतियोगी स्थिति को नुकसान होता है, जब तक कि सक्षम प्राधिकारी का यह समाधान नहीं हो जाता है कि ऐसी सूचना के प्रकटन से विस्तृत लोकहित का समर्थन होता है

    (ङ) किसी व्यक्ति को उसकी वैश्वासिक नातेदारी में उपलब्ध सूचना, जब तक कि सक्षम प्राधिकारी का यह समाधान नहीं हो जाता है कि ऐसी सूचना के प्रकटन से विस्तृत लोकहित का समर्थन होता है;

    (च) किसी विदेशी सरकार से विश्वास में प्राप्त सूचना।

    (छ) सूचना जिसका प्रकट करना किसी व्यक्ति के जीवन या शारीरिक सुरक्षा को खतरे में डालेगा या जो विधि प्रवर्तन या सुरक्षा प्रयोजनों के लिए विश्वास में दो गई किसी सूचना या सहायता के स्त्रोत की पहचान करेगा।

    (ज) सूचना, जिससे अपराधियों के अन्वेषण, पकड़े जाने या अभियोजन की क्रिया में अड़चन पड़ेगी।

    (झ) मंत्रिमंडल के कागज-पत्र, जिसमें मंत्रिपरिषद, सचिवों और अन्य अधिकारियों के विचार-विमर्श के अभिलेख सम्मिलित हैं।

    परन्तु यह कि मंत्रिपरिषद के विनिश्चय, उनके कारण तथा वह सामग्री जिसके आधार पर विनिश्चय किए गए थे, विनिश्चय किए जाने और विषय के पूरा या समात होने के पश्चात् जनता को उपलब्ध कराए जाएंगे।

    परन्तु यह और कि वे विषय जो इस धारा में विनिर्दिष्ट सूटों के अंतर्गत आते हैं, प्रकट नहीं किए जाएंगे

    (ञ) सूचना, जो व्यक्तिगत सूचना से संबंधित है, जिसका प्रकटन किसी लोक क्रियाकलाप या हित से संबंध नहीं रखता है या जिससे व्यष्टि की एकांतता पर अनावश्यक अतिक्रमण होगा, जब तक कि यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी या अपील प्राधिकारी का यह समाधान नहीं हो जाता है कि ऐसी सूचना का प्रकटन विस्तृत लोकहित में न्यायोचित है।

    परन्तु ऐसी सूचना के लिए, जिसको, यथास्थिति, संसद या किसी विधान मंडल को देने से इंकार नहीं किया जा सकता है, किसी व्यक्ति को इंकार नहीं किया जा सकेगा।

    (2) शासकीय गुप्त बात अधिनियम, 1923 (1923 का 19) में उपधारा (1) के अनुसार अनुज्ञेय किसी छूट में किसी बात के होते हुए भी, किसी लोक प्राधिकारी को सूचना तक पहुँच अनुज्ञात की जा सकेगी, यदि सूचना के प्रकटन में लोकहित, संरक्षित हितों के नुकसान से अधिक है।

    (3) उपधारा (1) के खण्ड (क), खण्ड (ग) और खण्ड (झ) के उपबंधों के अधीन रहते हुए किसी ऐसी घटना, वृतान्त या विषय से संबंधित कोई सूचना, जो उस तारीख से, जिसको धारा 6 के अधीन कोई अनुरोध किया जाता है, बीस वर्ष पूर्व घटित हुई थी या हुआ था, उस धारा के अधीन अनुरोध करने वाले किसी व्यक्ति को उपलब्ध कराई जाएगी : परन्तु यह कि जहाँ उस तारीख के बारे में, जिससे बीस वर्ष को उक्त अवधि को संगणित किया जाता है, कोई प्रश्न उद्भूत होता है, वहाँ इस अधिनियम में उसके लिए उपबंधित प्रायिक अपीलों के अधीन रहते हुए केन्द्रीय सरकार का विनिश्चय अंतिम होगा।

    यह धारा का मूल स्वरूप था।

    यह अधिनियम लोक प्राधिकारियों द्वारा धारित सभी प्रकार को सूचना तक नगरिकों के पहुंच का प्रावधान नहीं करता। सूचना के प्रकटन से कुछ अपवादों का अधिनियम की धारा 8 (1) में प्रावधान किया गया है, इस धारा में सूचीबद्ध सूचना के संवर्गों का प्रत्याख्यान लोक सूचना अधिकारियों द्वारा नागरिकों को किया जा सकता है।

    नागरिकों को धारा 8 के प्रावधानों को भी जानना चाहिए, जिससे वे अपने तथा लोक सूचना अधिकारियों के समय को व्यर्थ न करें। लोक सूचना अधिकारियों के लिए इस प्रावधान को जानने और उसको स्पष्ट समझ को विकसित करना आज्ञापक है, जिससे उसके द्वारा अनुरोधित सूचना का कोई प्रत्याख्यान स्पष्ट रूप से धारा 8 (1) के क्षेत्रान्तर्गत आता है।

    लोक सूचना अधिकारियों को यह भी जानना चाहिए कि केवल धारा 8 (1) के खण्ड को उद्धृत करना पर्याप्त नहीं है, इसे युक्तियुक्त औचित्य द्वारा समर्थित होना चाहिए।

    लोक प्राधिकारी का लोक सूचना अधिकारी अधिनियम के अधीन सूचना के निम्नलिखित संवर्गों का प्रत्याख्यान कर सकता है:-

    (क) सूचना, जिसका प्रकटन भारत की सुरक्षा और अखण्डता को प्रभावित करेगा।

    (ख) न्यायालय द्वारा प्रकटन से वर्जित सूचना।

    (ग) सूचना, जिसका प्रकटन संसद/विधान सभा के विशेषाधिकारों का उल्लंघन करेगा।

    (घ) वाणिज्यिक गोपनीयता से सम्बन्धित सूचना।

    (ङ) सूचना, जो न्यास के विशेष सम्बन्ध (वैश्वासिक सम्बन्ध) के कारण व्यक्ति को उपलब्ध है।

    (च) विदेशी सरकारों से अभिप्राप्त गोपनीय सूचना।

    (छ) सूचना, जिसका प्रकटन व्यक्ति के जीवन और शरीरिक सुरक्षा को संकटापन्न करेगा।

    (ज) सूचना, जो अन्वेषण की प्रक्रिया को प्रभावित करेगा।

    (झ) मंत्रिमण्डल (मंत्रि परिषद) को बैठक का अभिलेख तथा

    (ञ) व्यक्तिगत सूचना, जिसके प्रकटन का किसी लोक हित से कोई सम्बन्ध नहीं है।

    लेकिन, लोक सूचना अधिकारी धारा 8 (1) में उपबन्धित उक्त अपवादों के बावजूद आवेदक को सूचना तक पहुँच अनुज्ञात कर सकता है, यदि सूचना प्रदान करने में लोकहित निजी हित में की गयी नुकसानी से अधिक है। इस तरह, लोक सूचना अधिकारियों को सूचना के लिए अनुरोध पर विचार करते समय सदैव स्मरण करना चाहिए कि लोकहित सूचना के प्रकटन में निजी हित को अमान्य करेगा और सूचना का प्रकटन नियम है तथा सूचना का प्रत्याख्यान अपवाद है।

    धारा 8 (1) (ञ) को लागू करने के लिये सूचना व्यक्तिगत सूचना से सम्बन्धित होना चाहिये और उसका प्रकटन किसी लोक क्रियाकलाप से सम्बन्धित न हो या जो किसी व्यक्ति को एकान्तता को भगन करता हो।

    लोकहित:- यह पद यदि संविधि में प्रयोग किया जाता है, अधिनियमिति की सम्पूर्ण योजना, प्रयोजन एवं उद्देश्य के प्रकाश में समझा एवं नियंचन किया जाना चाहिये।

    कोई लोकहित नहीं:- सूचना क्षेत्राधिकारी के पद में नियुक्ति के लिये चयनित उम्मीदवारों के अर्हता प्रमाण-पत्र से सम्बन्धित था। उक्त सूचना लोक क्रियाकलाप के किसी चरित्र धारण नहीं किया था या लोकहित का रूप ग्रहण नहीं किया था। सूचना की सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के अधीन उपलब्ध नहीं कराया जा सकता।

    वैयक्तिक सूचना:-

    पासपोर्ट धारक की जन्म तिथि और आवासीय पते के बारे में सूचना धारा 8 (1) (ज) के अर्थान्तर्गत वैयक्तिक सूचना गठित करती है। इसे प्रकट नहीं किया जा सकता है।

    व्यक्तिगत सूचना:-

    संगठन में कर्मचारी अधिकारी का कार्यपालन प्राथमिक रूप से कर्मचारी तथा नियोजक के मध्य का मामला है तथा सामान्यतया उन पहलुओं को सेवा नियमावली द्वारा शासित किया जाता है, जो पद "व्यक्तिगत सूचना के अधीन आता है, जिसके प्रकटन का किसी लोक क्रियाकलाप अथवा लोकनीति से कोई सम्बन्ध नहीं है। दूसरी ओर, जिसका प्रकटन उस व्यक्ति की गोपनीयता का अवधित उल्लंघन कारित करेगा।

    कर्मचारी के विवरणों का दावा अधिकार के रूप में नहीं किया जा सकता है। व्यक्ति द्वारा उसकी आयकर विवरणी में प्रकट किया गया विवरण व्यक्तिगत सूचना है, जो सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 8 (1) के खण्ड (ञ) के अधीन प्रकटन से छूट प्राप्त है, जब तक व्यापक लोकहित को अन्तर्ग्रस्त नहीं करता तथा केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी अथवा अपील प्राधिकारी को समाधान है कि व्यापक लोकहित ऐसी सूचना के प्रकटन को न्यायोचित ठहराता है।

    बैंक कर्मचारियों की व्यक्तिगत सूचना:-

    केनरा बैंक, इसके महाप्रबन्धक के माध्यम से बनाम सौ एम श्याम एवं एक अन्य, ए आई आर 2017 एस सी 404 के मामले में कहा गया है कि-

    सूचना की अपेक्षा व्यक्तिगत कर्मचारियों के सम्बन्ध में लिपिकीय कर्मचारिवृन्द तथा बैंक के कर्मचारिवृन्द के स्थानान्तरण के विभिन्न पहलुओं के सम्बन्ध में 15 मानदण्डों पर की गयी थी। यह सूचना व्यक्तिगत कर्मचारी के व्यक्तिगत विवरण जैसे उसके कार्यभार ग्रहण करने की तारीख, पदनाम, अर्जित पदोन्नति का विवरण, शाखा जहां वह तैनात है, उसके कार्यभार ग्रहण करने की तारीख, प्राधिकारियों, जिन्होंने स्थानान्तरण आदेश इत्यादि को जारी किया था, के सम्बन्ध में थी।

    सूचना को प्रदान करने से प्रत्याख्यान किया गया था, क्योंकि, प्रथमतः, कि बैंक में कार्यरत व्यक्तिगत कर्मचारियों की अपेक्षित सूचना प्रकृति में व्यक्तिगत थी, द्वितीयतः, यह कि अधिनियम की धारा 8 (1) (ञ) के अधीन प्रकट किये जाने से छूट प्राप्त है तथा अन्तिमतः, न तो सूचना प्राप्त करने वाले ने व्यक्तिगत कर्मचारी को ऐसी सूचना की अपेक्षा करने में अन्तग्रस्त किसी लोकहित कमोवेश व्यापक लोकहित को प्रकट किया था तथा न हो कोई निष्कर्ष अवर प्राधिकारियों द्वारा अभिलिखित किया गया था कि सूचना प्राप्त करने वाले व्यक्ति को ऐसी सूचना प्रदान करने में किसी व्यापक लोकहित की संलग्नता के सम्बन्ध में अभिलिखित किया गया था।

    अन्वेषण से सम्बन्धित सूचना पुलिस द्वारा अन्वेषण के अधीन मामलों में सूचना के प्रकटन को मुक्त किया गया है, और जारी पुलिस अन्वेषण के मामलों में सूचना प्रकट न करना न्यायोचित है (जो अभी पूरा नहीं किया गया है), क्योंकि ऐसा प्रकटन अन्वेषण प्रक्रिया को अवरुद्ध कर सकता है। यह तथ्य रवीन्दर कुमार बनाम बी एस बस्सी ज्वाइंट कमिश्नर, पुलिस, के प्रकरण में दिया गया है।

    वैयक्तिक सूचना नहीं: -घरेलू जाँच में प्रयुक्त किये गये दस्तावेज वैयक्तिक सूचना नहीं माने जा सकते हैं।

    यह पता लगाने के लिए सूचना, कि क्या विनिश्चय करने की प्रक्रिया निष्पक्ष और युक्तियुक्त है और निष्पक्षता की अपेक्षा को पूरा करती है, व्यक्तिगत सूचना नहीं है और छूट प्राप्त नहीं है।

    नागरिकों द्वारा जनगणना प्राधिकारी को दी गयी व्यक्तिगत सूचना अप्रकटनीय है क्योंकि ऐसी सूचना जनगणना अधिनियम की धारा 15 के अधीन संरक्षित है।

    व्यक्तिगत सूचना, जिसका लोक क्रियाकलाप या हित से कोई सम्बन्ध नहीं है या जो व्यक्ति को गोपनीयता का अवांछित उल्लंघन कारित को जाने की आवश्यकता नहीं है।

    उत्तर पुस्तिकाओं का मूल्यांकन करने वाले परीक्षकों के नामों का प्रकरण:-

    केरल पब्लिक सर्विस कमीशन एवं अन्य बनाम स्टेट इन्फार्मेशन कमीशन एवं अन्य (2016) 3 एस सी सी 4171 के मामले में अपनी उत्तर पुस्तिकाओं और साक्षात्कार अंकों के ब्यौरे की सूचना के बारे में सूचना मांगने वालों का निवेदन उन्हें प्रदत्त किया जा सकता है और किया जाना चाहिये। यह ऐसा कुछ नहीं है जिसे लोक प्राधिकारी वैश्वासिक क्षमता के अधीन रखते हैं।

    अभ्यर्थियों को उत्तर पुस्तिका और अंकों का प्रकटन करना भी यह सुनिश्चित करेगा कि अभ्यर्थियों को परीक्षा में उनके प्रदर्शन के अनुसार अंक दिये गये हैं। यह कार्यप्रणाली इस प्रतियोगी वातावरण के लिये उचित माहौल सुनिश्चित करेगी। जहां अभ्यर्थी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में अपना समय देते हैं, किन्तु सूचना मांगने वाले का उस व्यक्ति के बारे में ब्यौरे का निवेदन जिसने पेपर फो परीक्षित किया/ जांच को सूचना मांगने वाले को नहीं दिया जा सकता है और न ही दिया जाना चाहिये, क्योंकि लोक प्राधिकारी, अर्थात् सेवा आयोग और परीक्षकों के मध्य सम्बन्ध पूर्णतः वैश्यासिक सम्बन्ध के अन्तर्गत आता है।

    आयोग ने परीक्षकों पर यह विश्वास रखा है कि वे परीक्षा-पत्रों को जांच अत्यन्त सावधानी, ईमानदारी तथा पक्षपात रहित ढंग से करेंगे और समान रूप से परीक्षकों को यह विश्वास है कि अपना कार्य समुचित ढंग से करने के लिये ये किन्हीं दुर्भाग्यपूर्ण परिणामों का नहीं करेंगे।" प्रत्येक परीक्षा में परीक्षकों के नाम को प्रकटन करना अनुज्ञात किया जाता है, तो अपना कार्य समुचित ढंग से करने के लिये परीक्षकों से अभ्यर्थी प्रतिशोध लेने का प्रयास कर सकते हैं।

    यह आगे ऐसी स्थिति उत्पन्न कर सकता है जहां उसी प्रकार की अगली परीक्षा में संभाव्य/अभ्यर्थी, विशेष रूप से उसी राज्य में या उसी स्तर में संभाव्य परीक्षा में अवैध तरीके से किसी संभाव्य लाभ के लिये प्रकटित परीक्षकों से सम्पर्क करने का प्रयास करेंगे। आवेदकगण परीक्षकों के नामों के प्रफदन के हकदार नहीं है, जैसा कि उनके द्वारा अपेक्षा की गयी है।

    पर पक्षकार सूचना:-

    केरल पब्लिक सर्विस कमीशन एवं अन्य बनाम स्टेट इन्फार्मेशन कमीशन एवं अन्य (2016) 3 एस सी सी 4171 के वाद में याची द्वारा न्यास विलेख की प्रमाणित प्रति की ईप्सा सूचना को प्रदान करने से इस आधार पर नामंजूर कर दिया गया था कि सूचना को भारतीय जीवन बीमा निगम द्वारा वैश्वासिक क्षमता में धारित किया गया था तथा इस आधार पर भी कि सूचना वैयक्तिक सूचना होने से सम्बन्धित थी जिसका चाहे जो भी हो किसी लोक कार्यकलाप अथवा हित से कोई सम्बन्ध नहीं था।

    न्यास विलेख कम्पनी तथा कुछ कर्मचारियों के मध्य था। न्यास विलेख के आधार पर भारतीय जीवन बीमा निगम द्वारा कर्मचारियों के लाभ के लिए सामूहिक अधिवर्षता बीमा पालिसी को जारी किया था। इस प्रकार से भारतीय जीवन बीमा निगम कम्पनी के साथ वैश्वासिक सम्बन्ध में था। याची स्वयं न्यास का सदस्य था।

    इस प्रकार से याची तथा भारतीय जीवन बीमा निगम के मध्य सम्बन्ध भी वैश्वासिक सम्बन्ध की धारणा को भी लागू होगा। याची को पर-पक्षकार होना नहीं माना जा सकता है, कि जिसे ईप्सित सूचना से प्रत्याख्यान किया जा सकता हो। लोक अधिकार क्षेत्र का सिद्धान्त लागू नहीं होगा।

    लम्बित विचारण के मामले में कोई प्रकटन नहीं:-

    जब मामला न्यायाधीश (विधि के न्यायालय) के समक्ष विचारण में है, तब विधि की सम्यक प्रक्रिया है, जिसके अधीन अपीलार्थी विचारण न्यायालय के समक्ष अपने मामले में स्वयं प्रतिरक्षा करने के लिए दस्तावेजों को अभिप्रेत कर सकता है, तब आवेदक लोक प्राधिकारी से दस्तावेजों को प्राप्त करने के लिए हकदार नहीं है और अवधारित किया था कि चूंकि मामला अन्वेषण के अधीन है, इसलिए धारा 8 (1) (ज) के अधीन छूट लागू होगी।

    मंगतो राम बनाम एडिशनल कमिश्नर एण्ड पी० आई० ओ०, डेलही पुलिस के प्रकरण में आवेदक ने रहस्यात्मक परिस्थितियों के अधीन अपनी पुत्री की मृत्यु के जारी अन्वेषण पर सूचना के लिए आवेदन किया था और यह अवधारित किया गया था कि यह मामला अधिनियम की धारा 8 (1) (ज) में अधिकथित सामान्य नियम के अपवाद का था, जो सूचना के प्रकटन को प्रतिषिद्ध करता है, क्योंकि पीड़ित परिवार को सूचना की आपूर्ति अन्वेषण की प्रक्रिया में कोई अवरोध नहीं करेगा।

    वैश्वासिक सम्बन्ध का अभिवाक्:-

    यह दर्शित करने के लिये कोई सामग्री या नियम नहीं है कि परीक्षक द्वारा की गयी परीक्षा गोपनीय होगी। स्वयं का उत्तर सारणी की मांग की सूचना को वैश्वासिक सम्बन्ध के आधार पर निर्मुक्ति नहीं दी गयी थी। यह तथ्य कवल सिंह गौतम बनाम छत्तीसगढ़, राज्य, एआईआर छत्तीसगढ़ के मामले में दिया गया है।

    लोक प्राधिकारी सूचना को प्रकट करेगा:-

    यदि लोक प्राधिकारी यह विनिश्चित करता है कि प्रकटन में लोकहित संरक्षित हितों को क्षति को अमान्य करेगा, तो वह सूचना को प्रकट कर सकता है।

    चयन प्रक्रिया परीक्षाओं और चयन प्रक्रियाओं के मामले में सफल अभ्यर्थियों द्वारा प्राप्त किये गये अंकों से सम्बन्धित सूचना को इंकार नहीं किया जा सकता है। हालांकि असफल अभ्यर्थियों के अंकों के प्रकटन को अनुज्ञात नहीं किया जा सकता है, क्योंकि ऐसी सूचना का प्रकटन सम्बद्ध व्यक्तियों की एकांतता का अप्राधिकृत आक्रमण कारित करेगा, क्योंकि यह इन व्यक्तियों की असफलता से सम्बन्धित है और इसका प्रकटन उनके मनोबल तथा आत्म सम्मान के प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकता है। यह निर्णय शमसुल हसन बनाम केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी, तेल और प्राकृतिक गैस निगम लिमिटेड, लोक सूचना विभाग, के मामले में भारत के उच्चतम न्यायालय द्वारा दिया गया है।

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