सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (RTI Act) भाग: 6 सूचना के अनुरोध का निपटारा करने संबंधित प्रक्रिया (धारा-7)

Shadab Salim

9 Nov 2021 3:30 AM GMT

  • सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (RTI Act) भाग: 6 सूचना के अनुरोध का निपटारा करने संबंधित प्रक्रिया (धारा-7)

    सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (RTI Act) के अंतर्गत धारा 7 सूचना के अनुरोध का निपटारा करने से संबंधित प्रक्रिया को विहित करती है। यह अधिनियम अत्यंत विस्तृत अधिनियम है और आधुनिक समय का बनाया गया अधिनियम है।

    इस अधिनियम के अंतर्गत वे सभी समस्याओं का निराकरण कर दिया गया है जो आम जनमानस को समय-समय पर देखनी होती है। अत्यंत गहनता से अध्ययन के बाद भारत की संसद द्वारा इस अधिनियम को अधिनियमित किया गया जिससे नागरिकों को कोई भी सूचना प्राप्त करने में किसी भी प्रकार की परेशानी का सामना न करना पड़े।

    जैसा कि इससे पूर्व के आलेखों में उल्लेख किया गया है इस अधिनियम की धारा 6 सूचना के अधिकार को व्यवहार में लाने हेतु सूचना मांगने के ढंग को व्यवस्थित करती है, सूचना के अनुरोध से संबंधित प्रक्रिया को निर्धारित करती है। इसी प्रकार इससे ठीक अगली धारा 7 में सूचना के अनुरोध के निपटारे से संबंधित प्रक्रिया को विहित किया गया है।

    अर्थात यह प्रक्रिया भी बतला दी गई है कि यदि कोई सूचना का अनुरोध किया गया है तो उसका निपटारा किस ढंग से किया जाएगा, किस समय अवधि में किया जाएगा और सूचनाओं को प्रदान किया जाएगा।

    इस आलेख के अंतर्गत इस ही महत्वपूर्ण धारा 7 पर संक्षिप्त टीका न्याय निर्णय के साथ प्रस्तुत किया जा रहा है।

    अधिनियम के भीतर धारा 7 के मूल स्वरूप को इस प्रकार प्रस्तुत किया गया है:-

    अनुरोध का निपटारा:-

    (1) धारा 5 की उपधारा (2) के परन्तुक या धारा 6 की उपधारा (3) के परन्तुक के अधीन रहते हुए धारा 6 के अधीन अनुरोध के प्राप्त होने पर यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी, यथा संभव शीघ्रता से, और किसी भी दशा में अनुरोध की प्राप्ति के तीस दिन के भीतर ऐसी फीस के संदाय पर, जो विहित की जाए या तो सूचना उपलब्ध कराएगा या धारा 8 और धारा 9 में विनिर्दिष्ट कारणों में से किसी कारण से अनुरोध को अस्वीकार करेगा, परन्तु जहाँ मांगी गई जानकारी का संबंध किसी व्यक्ति के जीवन या स्वतंत्रता से है, वहां वह अनुरोध प्राप्त होने के 48 घंटे के भीतर उपलब्ध कराई जाएगी।

    (2) यदि, यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी उपधारा (1) के अधीन विनिर्दिष्ट अवधि के भीतर सूचना के लिए अनुरोध पर विनिश्चय करने में असफल रहता है तो, यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी के बारे में यह समझा जाएगा कि उसने अनुरोध को नामंजूर कर दिया है।

    (3) जहाँ, सूचना उपलब्ध कराने की लागत के रूप में किसी और फीस के संदाय पर सूचना उपलब्ध कराने का विनिश्चय किया जाता है, वहाँ यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी अनुरोध करने वाले व्यक्ति को,

    (क) उसके द्वारा यथा अवधारित सूचना उपलब्ध कराने को लागत के रूप में और फीस के ब्यौरे, जिनके साथ उपधारा (1) के अधीन विहित फीस के अनुसार रकम निकालने के लिए की गई संगणनाएँ होंगी, देते हुए उससे उस फीस को जमा करने का अनुरोध करते हुए कोई संसूचना भेजेगा और उक्त संसूचना के प्रेषण और फीस के संदाय के बीच मध्यवर्ती अवधि को उस धारा में निर्दिष्ट तीस दिन की अवधि की संगणना करने के प्रयोजन के लिए अपवर्जित किया जाएगा;

    (ख) प्रभारित फीस की रकम या उपलब्ध कराई गई पहुंच के प्ररूप के बारे में जिसके अंतर्गत अपील प्राधिकारी को विशिष्टियां समय-सीमा, प्रक्रिया और कोई अन्य प्ररूप भी हैं, विनिश्चय करने का पुनर्विलोकन करने के संबंध में उसके अधिकार से संबंधित सूचना देते हुए कोई संसूचना भेजेगा।

    (4) जहाँ, इस अधिनियम के अधीन अभिलेख या उसके किसी भाग तक पहुंच अपेक्षित है, और ऐसा व्यक्ति जिसको पहुँच उपलब्ध कराई जानी है, संवेदनात्मक रूप से निःशक्त है, वहाँ यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी सूचना तक पहुँच को समर्थ बनाने के लिए सहायता उपलब्ध कराएगा जिसमें निरीक्षण के लिए ऐसी सहायता कराना भी सम्मिलित है, जो समुचित हो।

    (5) जहाँ, सूचना तक पहुंच मुद्रित या किसी इलेक्ट्रानिक रूपविधान में उपलब्ध कराई जानी है, वहां आवेदक, उपधारा (6) के अधीन रहते हुए, ऐसी फीस का संदाय करेगा, जो विहित की जाए : परन्तु धारा 6 की उपधारा (1) और धारा 7 की उपधारा (1) और उपधारा (5) के अधीन विहित फीस युक्तियुक्त होगी और ऐसे व्यक्तियों से, जो गरीबी की रेखा के नीचे हैं। जैसा समुचित सरकार द्वारा अवधारित किया जाए, कोई फीस प्रभारित नहीं की जाएगी।

    (6) उपधारा (5) में किसी बात के होते हुए भी, जहाँ कोई लोक प्राधिकारी उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट समय सीमा का अनुपालन करने में असफल रहता है, वहाँ सूचना के लिए अनुरोध करने वाले व्यक्ति को प्रभार के बिना सूचना उपलब्ध कराई जाएगी।

    (7) उपधारा (1) के अधीन कोई विनिश्चय करने से पूर्व, यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी धारा 11 के अधीन पर व्यक्ति द्वारा किए गए अभ्यावेदन को ध्यान में रखेगा।

    (8) जहाँ, किसी अनुरोध को उपधारा (1) के अधीन अस्वीकृत किया गया है, वहाँ, यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी अनुरोध करने वाले व्यक्ति को,

    (1) ऐसी अस्वीकृति के लिए कारण;

    (ii) वह अवधि, जिसके भीतर ऐसी अस्वीकृति के विरुद्ध कोई अपील की जा सकेगी; और

    (iii) अपील प्राधिकारी की विशिष्टियां, संसूचित करेगा।

    (9) किसी सूचना को साधारणतया उसी प्ररूप में उपलब्ध कराया जाएगा, जिसमें उसे मांगा गया है, जब तक कि वह लोक प्राधिकारी के स्रोतों को अननुपाती रूप से विचलित न करता हो या प्रशनगत अभिलेख को सुरक्षा या संरक्षण के प्रतिकूल न हो।

    यह इस अधिनियम में प्रस्तुत की गई धारा का मूल स्वरूप है। अधिनियम स्पष्ट रूप से लोक सूचना अधिकारियों द्वारा अनुरोधों के निस्तारण के लिए समय सीमा को नियत करता है, जिससे नागरिकों को अन्तहीन रूप से सूचना के लिए लोक प्राधिकारियों का चक्कर न लगाना पड़े। आवेदकों के लिए सूचना के विभिन्न संवर्गों के लिए समय-सीमा, ढंग, जिसके द्वारा समय सीमा की संगणना लोक सूचना अधिकारी द्वारा की जाती है और अतिरिक्त फीस के भुगतान की अपेक्षा को जानना महत्वपूर्ण है, जिससे आवेदक आसानी से सूचना प्राप्त कर सकता है जिसकी वह अपेक्षा करता है/करती है।

    इस धारा के अधीन, सूचना को लोक सूचना अधिकारियों द्वारा आवेदन प्राप्त करने के 30 दिनों के भीतर नागरिकों को प्रदान किया जाना चाहिए। किन्तु यदि सूचना व्यक्ति के जीवन और स्वतन्त्रता से सम्बन्धित है, तो लोक सूचना अधिकारियों को 48 घण्टे के भीतर सूचना प्रदान करनी चाहिए। नागरिकों को सहायक लोक सूचना अधिकारी के समक्ष सूचना के लिए आवेदन पेश करने का विकल्प होगा, जो उसकी प्राप्ति के 5 दिनोंवके भीतर आवेदन लोक सूचना अधिकारियों को अन्तरित करेगा।

    यदि लोक सूचना अधिकारी सूचना प्रदान करने का विनिश्चित करता है, तो वह सूचना आवेदक को विनिर्दिश्ट रूप से अग्रिम फीस (जिराक्स, नमूना/मुद्रित सामग्री/निरीक्षण फीस इत्यादि) के विवरण को स्पष्ट रूप से विनिर्दिष्ट करते हुए आवेदक को सूचित करेगा, जिसका भुगतान सूचना प्राप्त करने के लिए किया जाता है। उसे आवेदक को उस तारीख और समय के बारे में भी सूचना देना चाहिए, जब सूचना को आवेदक द्वारा फीस के भुगतान के पश्चात् एकत्रित किया जा सकता है।

    आवेदन के निस्तारण के लिए समय सीमा:-

    नागरिकों के लिए यह जानना महत्वपूर्ण है कि सूचना के लिए अनुरोध के निस्तारण के लिए समय-सीमा की गणना कैसे लोक सूचना अधिकारियों द्वारा की जाती है। 30 दिनों की गणना उस तारीख से प्रारम्भ होती है, जब लोक सूचना अधिकारी आवेदन प्राप्त करता है, गणना तब समाप्त होती है, जब लोक सूचना अधिकारी आवेदक को पुनः फीस (जिरॉक्स इत्यादि) के भुगतान के बारे में आवेदक को सूचना देता है और गणना पुनः तब प्रारम्भ होती है, जब नागरिक ने सूचना अभिप्राप्त करने के लिए अपेक्षित फीस का भुगतान किया था। इसलिए, लोक सूचना अधिकारी द्वारा पुनः फीस के भुगतान के लिए और आवेदक द्वारा ऐसी फीस से भुगतान के लिए सूचना को देने के मध्य सीमा को 30 दिनों को विहित समय-सीमा में शामिल नहीं किया जायेगा। यदि लोक सूचना अधिकारी उक्त समय-सीमा के अन्तर्गत मांगी गयी सूचना प्रदान नहीं करता, तो मांगी गयी सूचना नामंजूर की गयी मानी जायेगी। यदि लोक सूचना अधिकारी इस धारा के अधीन नियत समय सीमा के अन्तर्गत सूचना प्रदान नहीं करता, तो सूचना आवेदक को निःशुल्क प्रदान की जायेगी। यह जानना महत्वपूर्ण है कि कोई आवेदन फीस या पुनः फीस आवेदकों पर प्रभारित नहीं की जानी चाहिए, जो नागरिकों के बी० पी० एल० संवर्ग से सम्बन्धित है।

    विनिर्दिष्ट सूचना का प्रत्याख्यान:-

    लोक सूचना अधिकारी को आवेदक को कुछ सूचना का प्रत्याख्यान करने का अधिकार है, जो अधिनियम की धारा 8 (1) के अधीन आच्छादित है। यदि आवेदक को सूचना नामंजूर की जाती है, तो लोक सूचना अधिकारी ऐसी नामंजूरी और ऐसी सूचना प्रदान न करने के लिए कारणों के बारे में आवेदक को सूचना देने के लिए कर्तव्य से आबद्ध है। उसी समय, लोक सूचना अधिकारी को आवेदक को उस समय सीमा के बारे में सूचना देनी चाहिए, जिसके अन्तर्गत आवेदक लोक प्राधिकारी के अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष लोक सूचना अधिकारी द्वारा नामंजूरी के लिए अपील दाखिल कर सकता है, उसे आवेदक को अपीलीय अधिकारी का नाम और पता भी प्रदान करना चाहिए।

    इस प्रकार धारा 7 स्पष्ट रूप से सूचना प्रदान करने के लिए अनुरोध की कार्यवाही या निस्तारण और लोक प्राधिकारियों द्वारा सूचना प्रदान करने के लिए समय सीमा के सम्बन्ध में प्रावधान विनिर्दिष्ट करती है।

    सूचना का प्रदाय:-

    अमिताभ ठाकुर बनाम उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग एवं एक अन्य, 2017 के मामले में तीस दिन के भीतर आदेश को पारित करने के आवेदन को नामंजूर किया गया था। द्वितीय अपील को राज्य सूचना आयुक्त द्वारा यह निर्देशित करते हुए अनुज्ञात कर लिया गया था कि याची नियमों के अनुसार परिगणित अतिरिक्त शुल्क के संदाय पर सूचना को प्राप्त कर सकेगा। याची का दावा कि उसे सूचना निःशुल्क प्रदान की जानी चाहिए। अभिनिर्धारित किया गया कि, तीस दिन की अवधि को उस तारीख से प्रारम्भ होना था जब द्वितीय अपील को अनुज्ञात किया गया था तथा द्वितीय अपील को अनुज्ञात करने की तिथि के समाप्त होने पर याची सभी सूचना को निःशुल्क प्राप्त करने का हकदार था जैसा कि उस आदेश के अधीन निर्देशित किया गया था। याची को निःशुल्क सूचना प्रदान करने हेतु निर्देश जारी किया गया।

    पर पक्षकार के बारे में सूचना:-

    जब कभी कोई व्यक्ति पर पक्षकार के बारे में सूचना के लिए आवेदन करता है, तो ऐसी सूचना केवल धारा 11 (1) के अधीन विहित प्रक्रिया का अनुसरण करने के पश्चात् लोक सूचना अधिकारी द्वारा दी जानी चाहिए।

    निशुल्क सूचना का प्रदाय:-

    इसे केवल तब प्रदान किया जा सकता है जहां आवेदन पर इसके दाखिल किये जाने के दिनांक से तीस दिन के भीतर विचारित नहीं किया गया है अथवा यदि प्रथम अपीलीय प्राधिकारी द्वारा स्वयं निःशुल्क सूचना प्रदान करने का लोक सूचना अधिकारी को निर्देश दिया जाता है।

    विलम्बित सूचना फीस का प्रतिदान:-

    यदि ईप्सित सूचना का उत्तर देने में विलम्ब है, तो अपीलार्थी को धारा 7 (6) के अधीन शर्त के अनुसार खर्च के बिना सूचना प्रदान की जानी चाहिए क्योंकि सूचना प्रदान करने में विलम्ब है और अपीलार्थी धारा 19 (8) (ख) के अधीन प्रतिपूर्ति का हकदार निर्णीत किया जाता है। यह अभिनिश्चय गीता दीवान वर्मा बनाम अर्बन डेवलपमेंट डिपार्टमेंट, डेहली, के मामले में किया गया है।

    यदि सूचना उस समय सीमा के बाद प्रदान की गयी है, जैसा कि धारा 7 (1) के अधीन विहित है, तो फीस के प्रतिदाय का आदेश धारा 7 (6) के अधीन दिया जा सकता है।

    प्राण और स्वतन्त्रता से सम्बन्धित सूचना:-

    धारा 7 (1) के अधीन आवेदन का प्राण और स्वतन्त्रता से सम्बन्धित आवेदन माने जाने के लिए, उसे मौलिक साक्ष्य के साथ होना चाहिए कि प्राण और स्वतन्त्रता में आशंका विद्यमान है और अहिंसा के प्रयोग के साथ आन्दोलन को विरोध का सद्भावपूर्ण रूप मान्य किया जाना चाहिए और इसलिए यदि प्राण और स्वतन्त्रता के लिए चिंता का दावा लोक प्राधिकारी द्वारा विशिष्ट मामले में स्वीकार नहीं किया जाता, तो ऐसा न करने के लिए कारण लिखित में आवेदन को निस्तारित करने में दिया जाना चाहिए।

    30 दिनों की परिसीमा की संगणना:-

    अधिनियम के अधीन सूचना प्रदान करने के लिए 30 दिनों की समय सीमा की संगणना करने में लोक सूचना अधिकारी द्वारा अतिरिक्त/अग्रिम फीस की मांग करने और आवेदक द्वारा उसके अन्तिम भुगतान के मध्य की अवधि धारा 7 (3) (क) के अनुसार अधिनियम की धारा 7 (1) में नियत 30 दिनों की अवधि की संगणना करने में अपवर्जित की जाती है।

    आवेदन के निस्तारण की अवधि अधिनियम की धारा 7 या तो सूचना प्रदान करके या निवेदन को नामंजूर करके तीस दिनों के भीतर निवेदन के निस्तारण के लिए प्रावधान करती है। विनिर्दिष्ट अवधि के भीतर सूचना के लिए निवेदन पर निर्णय प्रदान करने की असफलता को निवेदन की इन्कारी होना समझा गया है। जहां उपधारा (1) के अधीन निवेदन को नामंजूर कर दिया गया हो, तब केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी अथवा राज्य लोक सूचना अधिकारी, जैसी भी स्थिति हो, निवेदन करने वाले व्यक्तियों को नामंजूरी का कारण, यह अवधि जिसके भीतर ऐसो नामंजूरी के विरुद्ध अपील प्रस्तुत की जा सकती है, संसूचित करेगा तथा अपीलीय प्राधिकारी की विशिष्टियों को सूचित करेगा।

    अधिनियम की धारा 19 की उपधारा (1) विनिर्दिष्ट रूप से यह प्रावधान करती है कि कोई व्यक्ति, जो धारा 7 की उपधारा (1) अथवा (3) के खण्ड (क) में विनिर्दिष्ट समय के भीतर निर्णय प्राप्त नहीं करता है अथवा वह केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी अथवा राज्य लोक सूचना अधिकारी, जैसी भी स्थिति हो, से वरिष्ठ श्रेणी का हो, अपील प्रस्तुत कर सकता है।

    धारा 19 की उपधारा (3) उपधारा (1) के अधीन निर्णय के विरुद्ध 90 दिन के भीतर द्वितीय अपील के लिए प्रावधान करती है। धारा 19 की उपधारा (6) प्रावधान करती है कि उपधारा (1) अथवा उपधारा (2) के अधीन अपील की प्राप्ति की तारीख से तीस दिन के भीतर अथवा ऐसी विस्तारित अवधि, जो उसके दाखिल करने की तारीख से पैंतालीस दिन से अधिक न हो, के भीतर, जैसी भी स्थिति हो, लेखबद्ध किये जाने वाले कारणों से निस्तारित की जायेगी।

    उपधारा (8) के अधीन केन्द्रीय लोक सूचना आयोग तथा राज्य लोक सूचना आयोग पर लोक प्राधिकारी से किसी हानि अथवा अन्य उपगत प्रतिकूल प्रभाव के लिए परिवादी को क्षतिपूरित करने के लिए अपेक्षा करने की शक्ति प्रदत्त की गयी है। इस प्रकार अधिनियम की धारा 7 तथा 19 को सम्पूर्ण योजना ऐसे प्रत्येक व्यक्ति पर, जो निर्णय प्राप्त नहीं करता है अथवा जो केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी अथवा राज्य लोक सूचना अधिकारी के निर्णय द्वारा व्यधित है, अपील का अधिकार प्रदान करती है। इस प्रकार किसी निवेदन पर निर्णय के विरुद्ध अथवा प्रत्येक निवेदन की कल्पित इन्कारी के विरुद्ध पृथक् प्रथम अपील होगी।

    सूचना बी पी एल (गरीबी रेखा) आवेदकों को निःशुल्क प्रदान की जायेगी:-

    जब अधिनियम के अनुसार, आवेदक से 10 रुपये के आवेदन फीस का भुगतान करने की अपेक्षा नहीं की जाती, तब उससे अधिक फीस का भुगतान करने की प्रत्याशा नहीं की जाती और इसलिए उसे निःशुल्क सूचना प्रदान की जानी चाहिए किन्तु महत्वपूर्ण शर्त, कि किसी लोक प्राधिकारी को, जो बी पी एल आवेदक द्वारा ईप्सित सूचना प्रदान करता है, सुनिश्चित करना चाहिए कि आवेदक सूचना का असली ईप्सा करने वाला व्यक्ति है और किसी व्यक्ति के लिए छद्म के रूप में कार्य नहीं कर रहा है, जो केवल सूचना प्राप्त करने के लिए धन बचाना चाहता है।

    निवेदन की इन्कारी अथवा कल्पित इन्कारी:-

    परिवादी को अधिनियम की धारा 7 को क्रमशः उपधारा (1) अथवा उपधारा (2) के अधीन धारा 19 की उपधारा (8) द्वारा समर्थित निर्णय द्वारा निवेदन की इन्कारी अथवा कल्पित इन्कारी के कारण कोई हानि अथवा अन्य प्रतिकूल प्रभाव उपगत किया है, को क्षतिपूरित करने की अपेक्षा करती है। यह तथ्य कि प्रत्येक निर्णय अथवा कल्पित इन्कारी के विरुद्ध अपील होगी, अधिनियम की धारा 20 के अधीन उपबन्धित शास्ति खण्ड से भी स्पष्ट है, क्योंकि शास्ति सूचना के लिए आवेदन को प्राप्त करने की इन्कारी के विरुद्ध अथवा धारा 7 की उपधारा (1) के अधीन विनिर्दिष्ट समय के भीतर सूचना प्रदान न करने अथवा सूचना के निवेदन की असद्भावपूर्वक इन्कारी अथवा जानबूझकर गलत, अपूर्ण अथवा भ्रामक सूचना प्रस्तुत करने अथवा सूचना को नष्ट करने अथवा सूचना प्रस्तुत करने में किसी भी रीति से अवरोध कारित करने के विरुद्ध उद्ग्रहणीय होती है।

    डॉ० नीरज श्रीवास्तव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य, 2018 के वाद में कहा गया है कि सूचना का अधिकार नियमावली, 2012 विनिर्दिष्ट रूप से प्रथम अपीलीय प्राधिकारी द्वारा पारित किये गये आदेश अथवा अपील को निस्तारित न करने के विरुद्ध द्वितीय अपील के लिए प्रावधान करती है। उत्तर प्रदेश सूचना का अधिकार नियमावली, 2015 का नियम 7 किसी व्यक्ति, जो विहित समय के भीतर राज्य लोक सूचना अधिकारी से निर्णय प्राप्त नहीं करता है अथवा राज्य लोक सूचना अधिकारी के निर्णय द्वारा व्यथित है, जैसी भी स्थिति हो, द्वारा अपील के लिए प्रावधान करती है। उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग (अपील प्रक्रिया) नियमावली, 2006 का नियम 3 कल्पित इन्कारी के विरुद्ध प्रस्तुत की गयी अपील में आवेदन की विशिष्टियों अथवा आदेश की विशिष्टियों तथा केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी, जिसके निर्णय के विरुद्ध अपील प्रस्तुत की गयी है, का नाम, पता प्रस्तुत करने के लिए प्रावधान करती है।

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