सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (RTI Act) भाग: 5 सूचना प्राप्त करने हेतु अनुरोध तथा उससे संबंधित प्रक्रिया (धारा-6)

Shadab Salim

8 Nov 2021 4:05 AM GMT

  • सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (RTI Act) भाग: 5 सूचना प्राप्त करने हेतु अनुरोध तथा उससे संबंधित प्रक्रिया (धारा-6)

    सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (RTI Act) के अंतर्गत धारा-6 सूचना अभिप्राप्त करने हेतु अनुरोध करने तथा उससे संबंधित प्रक्रिया को व्यवस्थित करती है। यह प्रावधान एक प्रक्रिया के समान हैं जो सूचना प्राप्त करने हेतु किसी आवेदक को अनुपालन करना होती है।

    यह धारा इस अधिनियम की महत्वपूर्ण धाराओं में से एक है जिस प्रकार से इस अधिनियम की धारा 3 सूचना के अधिकार का उल्लेख कर रही है वहीं धारा 6 उस अधिकार को व्यवहार में लाने हेतु प्रक्रिया विहित कर रही है। कोई भी व्यक्ति सूचना प्राप्त करने हेतु अनुरोध कर सकता है। इस आलेख के अंतर्गत धारा 6 से संबंधित प्रावधानों पर संक्षिप्त टीका प्रस्तुत किया जा रहा है।

    अधिनियम में धारा 6 को निम्न रूप में प्रस्तुत करती है:-

    सूचना अभिप्राप्त करने के लिए अनुरोध-

    (1) कोई व्यक्ति, जो इस अधिनियम के अधीन कोई सूचना अभिप्राप्त करना चाहता है, लिखित में या इलेक्ट्रानिक युक्ति के माध्यम से अंग्रेजी या हिन्दी में या उस क्षेत्र की, जिसमें आवेदन किया जा रहा है, राजभाषा में ऐसी फीस के साथ, जो विहित की जाए

    (क) संबंधित लोक प्राधिकरण के यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी।

    (ख) यथास्थिति, केन्द्रीय सहायक लोक सूचना अधिकारी या राज्य सहायक लोक सूचना अधिकारी, को उसके द्वारा मांगी गई सूचना की विशिष्टियां विनिर्दिष्ट करते हुए अनुरोध करेगा: परन्तु जहां ऐसा अनुरोध लिखित में नहीं किया जा सकता है, वहाँ, यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी अनुरोध करने वाले व्यक्ति को सभी युक्तियुक्त सहायता मौखिक रूप से देगा, जिससे कि उसे लेखबद्ध किया जा सके।

    (2) सूचना के लिए अनुरोध करने वाले आवेदक से सूचना का अनुरोध करने के लिए किसी कारण को या किसी अन्य व्यक्तिगत ब्यौरे को, सिवाय उसके जो उससे संपर्क करने के लिए आवश्यक हों, देने की अपेक्षा नहीं की जाएगी।

    (3) जहाँ, कोई आवेदन किसी लोक प्राधिकारी को किसी ऐसी सूचना के लिए अनुरोध करते हुए किया जाता है

    (i) जो किसी अन्य लोक प्राधिकारी द्वारा धारित है; या (ii) जिसकी विषय-वस्तु किसी अन्य लोक प्राधिकारी के कृत्यों से अधिक निकट रूप से सम्बन्धित है, वहाँ, वह लोक प्राधिकारी, जिसको ऐसा आवेदन किया जाता है, ऐसे आवेदन या उसके ऐसे भाग को, जो समुचित हो, उस अन्य लोक प्राधिकारी को अंतरित करेगा और ऐसे अंतरण के बारे में आवेदक को तुरंत सूचना देगा :

    परन्तु यह कि इस उपधारा के अनुसरण में किसी आवेदन का अंतरण यथासाध्य शीघ्रता से किया जाएगा, किंतु किसी भी दशा में आवेदन की प्राप्ति की तारीख से पांच दिनों के पश्चात् नहीं किया जाएगा।

    यह अधिनियम में प्रस्तुत की गई धारा 6 का मूल स्वरूप था। नागरिक सूचना अभिप्राप्त करने के लिए लोक सूचना अधिकारी या सहायक लोक सूचना अधिकारी के समक्ष आवेदन पेश करेगा।

    आवेदन को उस लोक प्राधिकारी के लोक सूचना अधिकारी के समक्ष पेश किया जाना चाहिए, जिसकी अधिकारिता के अधीन आवेदन की विषय-वस्तु आती है। जब आवेदन को सूचना के लिए लोक प्राधिकारी के समक्ष पेश किया जाता है, जिसे अन्य लोक प्राधिकारी द्वारा धारण किया जाता है, तब लोक प्राधिकारी, जिसके समक्ष आवेदन किया गया है, उस लोक प्राधिकारी को, जिसके पास सूचना है, आवेदन अन्तरित करने के कर्तव्य के अधीन है।

    यदि नागरिक कतिपय सूचना की मांग करता है, जो तीन या चार लोक प्राधिकारियों के पास है, तब प्रथम लोक प्राधिकारी का लोक सूचना अधिकारी उस भाग की सूचना प्रदान करेगा, जो उसकी अधिकारिता के अन्तर्गत आता है, उसके पश्चात् अन्य भाग सुसंगत लोक प्राधिकारियों के लोक सूचना अधिकारियों को अन्तरित करता है। आवेदन के भाग को अन्तरित करते समय, उसे आवेदन की विषय वस्तु के आधार पर लोक प्राधिकारियों की शिनाख्त करने में सावधान होना चाहिए।

    यदि आवेदन अन्य लोक प्राधिकारी को अन्तरित किया जाना है, तो लोक प्राधिकारी, जिसके समक्ष आवेदन किया जाता है, आवेदन की प्राप्ति के पाँच दिनों के भीतर अन्य लोक प्राधिकारी को आवेदन अन्तरित करेगा। जैसे ही लोक प्राधिकारी का लोक सूचना अधिकारी आवेदन को अन्य लोक प्राधिकारी को अन्तरित करता है, वैसे ही उसे ऐसे अन्तरण के बारे में आवेदक को तत्काल सूचना देनी चाहिए।

    सूचना को ईप्सा करने के लिए आवेदन की प्रक्रिया अत्यधिक साधारण तथा नागरिक हितैषी है। आवेदन को अंग्रेजी या हिन्दी या राज्य की शासकीय भाषा में लिखा जा सकता है। मौखिक अनुरोध को लोक सूचना प्राधिकारी की सहायता से लेखबद्ध किया जायेगा, यदि आवेदक शिक्षित नहीं है।

    आवेदक को स्पष्ट रूप से सूचना विनिर्दिष्ट करनी चाहिए, जिसकी वह ईप्सा कर रहा है। अन्तिम किन्तु कम से कम नहीं, आवेदन को सम्बन्धित राज्य नियमावली के अधीन विहित आवश्यक आवेदन फीस के साथ होना चाहिए। कई राज्यों में, इसका भुगतान नकदी/डिमाण्ड ड्राफ्ट/धनादेश, ट्रेजरी चालान/गैर-न्यायिक स्टाम्प के रूप में किया जा सकता है।

    आवेदन सादे कागज पर किया जा सकता है और उसे लिखने के लिए कोई विहित प्ररूप नहीं है। आवेदक से सूचना का अनुरोध करने के लिए कोई कारण देने की अपेक्षा नहीं की जाती, उससे केवल उसकी सम्पर्क दूरभाष संख्या/ पता देने की अपेक्षा की जाती है, ताकि ईप्सित सूचना उसको लोक सूचना अधिकारी द्वारा भेजी जा सके। सूचना प्राप्त करने के लिए प्रक्रिया निर्धन और समाज के साधनहीन वर्ग को उसका अत्यधिक उपयोग करने के लिए सक्षम बनाने के लिए अधिनियम में अत्यधिक साधारण बनायी गयी है।

    आवेदक से केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी के समक्ष आवेदन करने के लिए प्रत्याशा की जाती है। इस धारा के अधीन सभी आवेदन लिखित में या इलेक्ट्रानिक माध्यम से किया जाना चाहिए, जो विहित फीस के साथ हो और निर्देश तथा उत्तर के लिए, यह धारा लोक प्राधिकारी को आवेदन करने के प्रयोजन के लिए मानक प्ररूप विहित करने से प्रवारित नहीं करती।

    धारा 6 किसी भी व्यक्ति को सूचना प्राप्त करने का अधिकार देती है।

    परिवादी का अधिकार:-

    परिवादी को सुसंगत अभिलेखों का निरीक्षण करने का अधिकार है, जिससे अपेक्षित सूचना की पहचान की जाए, जो उसको प्रदान की गयी है।

    सूचना के लिए अनुरोध:-

    दिवाकर एस० नटराजन बनाम स्टेट इन्फार्मेशन कमिश्नर ए आई आर 2009 के मामले में कहा गया है कि सूचना के लिए अनुरोध केवल लोक प्रयोजन के लिए होगा और सूचना प्राप्त करने के लिए अविवेकपूर्ण प्रयास न्यायोचित और उचित नहीं है।

    आवेदन का कोई विशिष्ट प्ररूप आवश्यक नहीं और सूचना की ईप्सा करने के लिए कोई कारण अपेक्षित नहीं:-

    सूचना की ईप्सा करने के लिए विशिष्ट प्ररूप को विहित करने के लिए कोई निर्देश आज्ञापक नहीं हो सकता और साधारण आवेदन की अपेक्षा को अभिभावी नहीं कर सकता, जैसा कि इस धारा में अधिकथित है और आवेदन दाखिल करने के लिए कारण की मांग करना अधिनियम की धारा 6 (2) में समाविष्ट सिद्धान्त का स्पष्ट उल्लंघन है, कारणों की मांग करने के लिए लोक प्राधिकारी की नियमावली में खण्ड के प्रतिधारण की अनुमति दी जा सकती है, यदि ऐसा खण्ड धारा 8 (ञ) के अधीन गोपनीयता तथा अधिनियम की धारा 11 (1) के अधीन पर पक्षकार के हित को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है।

    सूचना जिसे संसद या राज्य विधान मण्डल से प्रत्याख्यान नहीं किया जा सकता का प्रत्याख्यान व्यक्ति को भी नहीं किया जा सकता।

    प्रत्येक परीक्षा करने वाले निकाय को प्रश्नपत्रों के तैयार करने की प्रक्रिया के मानक को प्रकट करना होगा यदि उसने उसे तैयार किया है।

    पहुँच योग्य सूचना:-

    कवल सिंह गौतम बनाम छत्तीसगढ़ राज्य, ए आई आर 2011 छत्तीसगढ़ 143 के मामले में कहा गया है कि सूचना के प्रकटन को किसी अन्य अभ्यर्थी, जिसने सूचना की ईप्सा नहीं की है, को व्यक्तिगत सूचना के रूप में नहीं समझा जा सकता है और प्रकट किया जा सकता है।

    उस रिट याचिका से सम्बन्धित सूचना जिसमें याची स्वयं पक्षकार हो, इस धारा के अधीन प्रकट करने योग्य नहीं होती है।

    न्यायिक निर्णयों से सम्बन्धित सूचना:-

    इस बारे में सूचना कि न्यायाधीश विशेष निर्णय या निष्कर्ष पर क्यों एवं किस कारण से पहुंचा, की वादकारी द्वारा ईप्सा नहीं की जा सकती है। यह अभिनिश्चय खानापुरम गण्डय्या बनाम प्रशासनिक अधिकारी, ए आई आर 2010 एस सी 6151 के प्रकरण में किया गया है।

    आवेदन समुचित लोक प्राधिकारी को अन्तरित किया जाएगा:-

    श्याम सिंह ठाकुर बनाम डिपार्टमेंट ऑफ साइन्स एण्ड टेक्नॉलाजी के वाद में कहा गया है कि यदि ईप्सित सूचना उस विभाग से सम्बन्धित नहीं है, जिसमें आवेदन दाखिल किया जाता है, तो सम्बद्ध विभाग धारा 6 (3) के प्रावधानों के अनुसार आवेदन की प्राप्ति के पाँच दिनों के अन्दर समुचित लोक प्राधिकारी को आवेदन अन्तरित करने के कर्तव्य से आबद्ध है।

    स्थानान्तरण:- आनन्द स्वरूप जैन बनाम दिल्ली उच्च न्यायालय के मामले में कहा गया है कि सूचना हेतु आवेदन का स्थानांतरण न्यायसंगत होता है, यदि मांगी गयी सूचना एक अन्य लोक प्राधिकारी द्वारा धारित हो अथवा जिसकी विषय-वस्तु एक अन्य लोक प्राधिकारी के कृत्य से गहन रूप से सम्बन्धित हो।

    यदि आवेदन को केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी द्वारा अन्तरित नहीं किया गया है, तो वह स्वयं सूचना अभिप्राप्त करेगा और प्रदान करेगा।

    जब सूचना लोक सूचना अधिकारी द्वारा धारण नहीं की जाती, तब आवेदन समुचित प्राधिकारी को अन्तरित किया जा सकता है।

    सूचना की मांग करने वाले आवेदक को कोई कारण नहीं देना होता है कि क्यों उसे ऐसी सूचना की आवश्यकता है, सिवाय ऐसे विवरण के, जो उससे सम्पर्क करने के लिये आवश्यक हो सकता है।

    केवल लोक प्राधिकारी से अधिकार:-

    सूचना के अधिकार का प्रयोग केवल लोक प्राधिकारी से किया जाता है और न कि विकास परिषद के मानदेय सदस्य से। यह तथ्य बृजभूषण दूबे बनाम स्टेट इन्फार्मेशन कमीशन 2008 सी ए आर 167 (इलाहाबाद) के मामले में दिया गया है।

    आवेदन आवश्यक सूचना अभिप्राप्त करने की वांछा करने वाला कोई व्यक्ति विहित प्राधिकारी के समक्ष लिखित में अनुरोध करेगा।

    राम विशाल बनाम द्वारका प्रसाद के प्रकरण में कहा गया है कि आवेदन के समर्थन में शपथ पत्र आवेदन के समर्थन में शपथ-पत्र आज्ञापक है, जब उसे लोक अभिलेख की प्रमाणित प्रति की मांग करने के लिए दाखिल किया जाता है।

    आर्थिक सहायता ऋण हितग्राहियों के बारे में सूचनाचूँकि सार्वजनिक निधियों से प्रदान की गयी आर्थिक सहायता द्वारा प्रदान किये जाने वाले यह ऋण के लाभ कम-से-कम कुछ सूचना है, इसलिए हितग्राहियों के नाम के अलावा उन्हें सार्वजनिक परिधि में उपलब्ध कराया जाना चाहिए।

    व्यक्तिगत सूचना:-

    व्यक्तिगत सूचना, जिसका किसी सार्वजनिक क्रियाकलाप या हित से कोई सम्बन्ध नहीं है, प्रदान नहीं की जा सकती।

    किसी व्यक्ति की सरकारी कार्यालय में नियुक्ति तथा उसको शैक्षिक अर्हता "वैयक्तिक सूचना" नहीं थी जिसे अधिनियम के अधीन प्रदान नहीं किया जा सकता था। गीता कुमारी बनाम झारखण्ड राज्य, ए आई आर 2016 झारखण्ड के मामले में यह तथ्य दिया गया है।

    19. सूचना के लिए अनुरोध:- आवेदक को केवल ये विवरण दिये जाने चाहिए जो उसको संसर्ग करने के लिए आवश्यक हों। आवेदक के परिचय पत्र की कोई सुसंगतता नहीं है तथा सूचना को प्रदान करने में इसकी बिल्कुल हो गणना नहीं की जानी चाहिए।

    सूचना के अनुरोध की वापसी इस आधार पर कि विवाधक उस कार्यालय से सम्बन्धित नहीं था जहां आवेदन किया गया था लेकिन एक अन्य लोक प्राधिकारी से सम्बन्धित था, अधिनियम की धारा 6 (3) के उल्लंघन में था। चूंकि लोक प्राधिकारी जिसे इस प्रकार का आवेदन त्रुटिपूर्वक प्रस्तुत कर दिया गया था उसे समुचित प्राधिकारी को अन्तरित कर दिया जाना चाहिए था तथा आवेदक को अन्तरण के बारे में सूचित कर दिया जाना चाहिए था।

    दम्पत्ति के मध्य तनावपूर्ण सम्बन्ध के आधार पर इंकारी:-

    दम्पत्ति के मध्य महत्वपूर्ण सम्बन्ध है, सूचना को वैयक्तिक रूप में माना जाना है और धारा 11 के अधीन आवेदन को न्यायसंगत और विधितः समर्थनीय होना है।

    शिकायत का प्रतितोष नहीं ग्राहकों की शिकायतों के प्रतितोष के लिए अधिनियम के अधीन कोई प्रतितोष नहीं है।

    पदोन्नति में अभिकथित विभेदीकरण के बारे में सूचना पदोन्नति में अधिकथित विभेदोकरण के मामले में, लोक प्राधिकारियों को यह अभिपुष्टि करने के लिए निर्देश दिया जाता है कि क्या उन्होंने पद पर किसी को पदोन्नत करने के लिए विनिश्चय किया है, जिसके लिए आवेदक अभिकथित करता है कि उसका विधिमान्य दावा था और यदि ऐसा है, तो उसको इस पदोन्नति के मार्गनिर्देश की प्रति प्रदान करेगा और यदि कोई मार्गनिर्देश नहीं है, तो प्राधिकारी को सूचित करेगा, जिसके अधीन इसे किया गया है और शक्ति उस विशिष्ट प्राधिकारी में निहित है।

    काल्पनिक आवेदन पोषणीय नहीं:- सूचना को ईप्सा करने के लिए आवेदन पोषणीय नहीं है, यदि वह नकली नाम और पता का प्रयोग करते हुए काल्पनिक और तुच्छ आवेदन है और प्रतिरूपण स्पष्ट है।

    कोई नामंजूरी नहीं- सूचना के अनुरोध को इस आधार पर नामंजूर नहीं किया जा सकता कि आवेदक दस्तावेज के लिये अपरिचित है या आवेदक ने सूचना के लिये कारण प्रकट नहीं किया है।

    न्यास और विद्यालय दायी नहीं:-

    न्यास और विद्यालय, जो प्रत्यक्षतया या परोक्ष रूप से समुचित सरकार द्वारा सारभूत रूप से वित्तपोषित नहीं हैं, सूचना देने के लिए दायी नहीं है।

    पत्रावली का निरीक्षण:-

    पत्रावली के सूचना उपलब्ध होने की स्थिति में, सम्बद्ध पत्रावली का निरीक्षण सूचना प्राप्त करने के लिए किया जा सकता है।

    प्रत्यक्ष हित आवश्यक नहीं:-

    अधिनियम की धारा 6 के आधारभूत अध्ययन से यह प्रचुर रूप से स्पष्ट है कि किसी व्यक्ति को, जो अधिनियम के अधीन सूचना प्राप्त करने को वांछा करता है, अधिनियम के अधीन संरक्षित प्राधिकारी के समक्ष लिखित में अनुरोध करना होगा। यह आवश्यक नहीं है कि सूचना की ईप्सा करने वाला व्यक्ति देश का नागरिक है या उसका मामले में प्रत्यक्ष हित है।

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