सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (RTI Act) भाग: 4 लोक प्राधिकारियों की सूचना देने की बाध्यता (धारा-4)
Shadab Salim
7 Nov 2021 1:00 PM IST
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (RTI Act) की धारा 4 के अंतर्गत लोक प्राधिकारियों को सूचना देने हेतु बाध्य किया गया है। उन्हें इस धारा के अंतर्गत सूचना देने हेतु बाध्यता दी गई है। जैसा कि पूर्व में उल्लेख किया गया है सूचना का अधिकार भारत के समस्त नागरिकों को प्राप्त है। कोई भी नागरिक किसी भी लोक प्राधिकारी से सरकारी कामकाज से जुड़ी हुई जानकारियों को प्राप्त कर सकता है।
अधिनियम की धारा महत्वपूर्ण इसलिए हो जाती है क्योंकि इस धारा के माध्यम से लोक प्राधिकारी के ऊपर बाध्यता डाल दी गई है तथा आदेशात्मक रूप में यह कहा गया है कि सूचना देना ही होगी।
उन्हें विशेष कर्तव्य दिया गया है कि वे समय-समय पर अपने कामकाज से जुड़ी हुई सूचनाओं को प्रकाशित करते रहे तथा कोई अन्य सूचना किसी नागरिक द्वारा मांगी जाए तब उसे प्रस्तुत करें। आलेख के अंतर्गत धारा 4 से संबंधित प्रावधान पर व्याख्या प्रस्तुत की जा रही है और साथ ही उससे जुड़े हुए न्याय निर्णय भी प्रस्तुत किए जा रहे है।
अधिनियम प्रस्तुत की गई धारा के मूल स्वरूप को यहां इस आलेख में प्रस्तुत किया जा रहा है जो इस प्रकार है:-
लोक प्राधिकारियों की बाध्यताएं-
(1) प्रत्येक लोक प्राधिकारी
(क) अपने सभी अभिलेखों को सम्यक् रूप से सूचीपत्रित और अनुक्रमणिकाबद्ध ऐसी रीति और रूप में रखेगा, जो इस अधिनियम के अधीन सूचना के अधिकार को सुकर बनाता है और सुनिश्चित करेगा कि ऐसे सभी अभिलेख, जो कंप्यूटरीकृत किये जाने के लिए समुचित हैं, युक्तियुक्त समय के भीतर और संसाधनों की उपलभ्यता के अधीन रहते हुए कंप्यूटरीकृत और विभिन्न प्रणालियों पर संपूर्ण देश में नेटवर्क के माध्यम से संबद्ध है जिससे कि ऐसे आलेख तक पहुंच को सुकर बनाया जा सके।
(ख) इस अधिनियम के अधिनियमन से एक सौ बीस दिन के भीतर,
(i) अपने संगठन की विशिष्टियाँ, कृत्य और कर्तव्य
(ii) अपने अधिकारियों और कर्मचारियों की शक्तियाँ और कर्तव्य
(iii) विनिश्चय करने की प्रक्रिया में पालन की जाने वाली प्रक्रिया जिसमें पर्यवेक्षण और उत्तरदायित्व के माध्यम सम्मिलित हैं
(iv) अपने कृत्यों के निर्वहन के लिए स्वयं द्वारा स्थापित मापमान
(v) अपने द्वारा या अपने नियंत्रणाधीन धारित या अपने कर्मचारियों द्वारा अपने कृत्यों के निर्वहन के लिए प्रयोग किए गए नियम, विनियम अनुदेश, निर्देशिका और अभिलेख
(vi) ऐसे दस्तावेजों के, जो उसके द्वारा धारित या उसके नियंत्रणाधीन हैं, प्रवर्गों का विवरण
(vii) किसी व्यवस्था की विशिष्टियाँ, जो उसकी नीति की संरचना या उसके कार्यान्वयन के संबंध में जनता के सदस्यों से परामर्श के लिए या उनके द्वारा अभ्यावेदन के लिए विद्यमान हैं
(viii) ऐसे बोर्ड, परिषदों, समितियों और अन्य निकायों के, जिनमें दो या अधिक व्यक्ति हैं, जिनका उसके भागरूप में या इस बारे में सलाह देने के प्रयोजन के लिए गठन किया गया है और इस बारे में कि क्या उन बोडों, परिषदों, समितियों और अन्य निकायों की बैठक जनता के लिए खुली होगी या ऐसी बैठकों के कार्यवृत्त तक जनता की पहुंच होगी, विवरण
(ix) अपने अधिकारियों और कर्मचारियों को निर्देशिका
(x) अपने प्रत्येक अधिकारी और कर्मचारी द्वारा प्राप्त मासिक पारिश्रमिक, जिसके अन्तर्गत प्रतिकर की प्रणाली भी है, जो उसके विनियमों में यथा उपबंधित हो
(xi) सभी योजनाओं, प्रस्तावित व्ययों और किए गए संवितरणों पर रिपोर्टों की विशिष्टियाँ उपदर्शित करते हुए अपने प्रत्येक अभिकरण को आवंटित बजट
(xii) सहायिकी कार्यक्रमों के निष्पादन की रीति जिसमें आवंटित राशि और ऐसे कार्यक्रमों के फायदाग्राहियों के ब्यौरे सम्मिलित हैं
(xiii) अपने द्वारा अनुदत्त रियायतों, अनुज्ञापत्रों या प्राधिकारों के प्राप्तिकर्ताओं की विशिष्टियां
(iv) किसी इलेक्ट्रानिक रूप में सूचना के संबंध में ब्यौरे, जो उसको उपलब्ध हो या उसके द्वारा धारित हों
(xv) सूचना अभिप्राप्त करने के लिए नागरिकों को उपलब्ध सुविधाओं की विशिष्टियां, जिनमें किसी पुस्तकालय या वाचन कक्ष के, यदि लोक उपयोग के लिए अनुरक्षित हैं तो, कार्यकरण घंटे सम्मिलित हैं
(xvi) लोक सूचना अधिकारियों के नाम पदनाम और अन्य विशिष्टियां
(xvil) ऐसी अन्य सूचना जो विहित की जाए, प्रकाशित करेगा और तत्पश्चात् इन प्रकाशनों को प्रत्येक वर्ष में अद्यतन करेगा
(ग) महत्वपूर्ण नीतियों की विरचना करते समय या ऐसे विनिश्चयों की घोषणा करते समय, जो जनता को प्रभावित करते हों, सभी सुसंगत तथ्यों को प्रकाशित करेगा:-
(घ) प्रभावित व्यक्तियों को अपने प्रशासनिक या न्यायिककल्प विनिश्चयों के लिए कारण उपलब्ध कराएगा।
(2) प्रत्येक लोक अधिकारी का निरंतर यह प्रयास होगा कि वह उपधारा (1) के खंड (ख) की अपेक्षाओं के अनुसार स्वप्रेरणा से जनता को नियमित अन्तरालों पर संसूचना के विभिन्न साधनों के माध्यम से, जिनके अन्तर्गत इंटरनेट भी है, इतनी अधिक सूचना उपलब्ध कराने के लिए उपाय करे जिससे कि जनता को सूचना प्राप्त करने के लिए इस अधिनियम का कम से कम अवलंब लेना पड़े।
(3) उपधारा (1) के प्रयोजन के लिए प्रत्येक सूचना को विस्तृत रूप से और ऐसे प्ररूप और रीति में प्रसारित किया जाएगा, जो जनता के लिए सहज रूप से पहुँच योग्य हो।
(4) सभी सामग्री को, लागत प्रभावशीलता, स्थानीय भाषा और उस क्षेत्र में संसूचना की अत्यंत प्रभावी पद्धति को ध्यान में रखते हुए प्रसारित किया जाएगा तथा सूचना, यथास्थिति केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य सूचना अधिकारी के पास इलेक्ट्रानिक रूप में संभव सीमा तक निःशुल्क या माध्यम की ऐसी लागत पर या ऐसी मुद्रण लागत कीमत पर जो विहित की जाए सहज रूप से पहुंच योग्य होनी चाहिए।
स्पष्टीकरण- उपधारा (3) और उपधारा (4) के प्रयोजनों के लिए, "प्रसारित" से सूचना पटल, समाचार पत्रों, लोक उद्घोषणाओं, मीडिया प्रसारणों, इंटरनेट या किसी अन्य माध्यम से, जिसमें किसी लोक प्राधिकारी के कार्यालयों का निरीक्षण सम्मिलित है, जनता को सूचना की जानकारी देना या संसूचित कराना अभिप्रेत है।
यह इस धारा का मूल स्वरूप था जिसे अधिनियम में प्रस्तुत किया गया है। यह लोक प्राधिकारियों पर सक्रियता से सूचना को यथासम्भव व्यापक रूप से प्रकट करने, प्रसारित करने और प्रकाशित करने का कर्तव्य भी अधिरोपित करता है। अधिनियम विधि के अधीन आच्छादित सभी प्राधिकारियों को स्वप्रेरणा से या सक्रियता से सूचना के व्यापक क्षेत्र को प्रकाशित करने की अपेक्षा भी करता है, यदि किसी ने विनिर्दिष्ट रूप से उसका अनुरोध नहीं किया है।
यह धारा सभी लोक प्राधिकारियों से नैमित्तिक रूप से सूचना के 17 संवर्गों को प्रकाशित करने की अपेक्षा करती है। यह प्रावधान स्पष्ट रूप से विनिर्दिष्ट करता है कि सभी लोक प्राधिकारियों के इन्टरनेट को शामिल करके विभिन्न माध्यमों से नियमित अन्तराल पर सामान्य जनता को स्वप्रेरणा से इतनी सूचना प्रदान करने के लिए लगातार प्रयास करना चाहिए, जिससे सामान्य जनता को सूचना प्राप्त करने के लिए इस अधिनियम का प्रयोग करने के लिए न्यूनतम आवश्यकता हो।
इसके अतिरिक्त लोक प्राधिकारियों द्वारा स्वप्रकटन का प्रसारण स्थानीय भाषा, लागत प्रभाव और संसूचना के अत्यधिक प्रभावी माध्यम के बारे में विचारण के साथ किया जाना चाहिए, जिससे वह नागरिकों के बड़े भाग तक पहुँचे। यह सुनिश्चित करता है कि नागरिकों की प्रमाणित, उपयोगी और सुसंगत सूचना पर सदैव पहुँच है। यह मुख्य प्रावधान है क्योंकि यह मान्यता देता है कि कुछ सूचना व्यापक रूप से समुदाय के लिए इतनी उपयोगी और महत्वपूर्ण है कि उसे नियमित रूप से किसी व्यक्ति द्वारा विनिर्दिष्ट रूप से उसके लिए अनुरोध किये बिना दिया जाना चाहिए।
स्वप्रकटन शासन में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व की वृद्धि को समर्थ बनाता है और नागरिकों द्वारा लोक प्राधिकारियों से सूचना के लिए मांग को कम करता है क्योंकि महत्वपूर्ण सूचना में से अधिकतर सार्वजनिक क्षेत्र में उपलब्ध है।
ए० आर० शाह बनाम यूनियन बँक ऑफ इण्डिया के मामले में कहा गया है कि-
लोक प्राधिकारी का कर्तव्य लोक प्राधिकारी सूचना के लिए आवेदन की जाँच करने और यह विनिश्चय करने के लिए बाध्य है कि क्या सूचना दी जा सकती है या धारा 8 का आश्रय ले करके नहीं दी जा सकती।
लोक सूचना अधिकारी को सम्बद्ध अधिकारी से सूचना की ईप्सा करनी चाहिए, जैसा कि धारा 5 (4) में नियत है। अधिनियम लोक सूचना अधिकारी से उसी लोक प्राधिकरण में किसी अधिकारी को सूचना प्राप्त करने और आवेदक को उसे देने की अपेक्षा करता है। यदि सूचना अन्य लोक प्राधिकारी से सम्बन्धित है, तो लोक सूचना अधिकारी को पाँच दिनों के भीतर आवेदन या उसके भाग को अन्तरित करना चाहिए, जैसा कि अधिनियम की धारा 6 (3) में समादेश किया गया है।
लोक प्राधिकारी का सूचना के लिए आवेदन की जाँच करने का कर्तव्य है और या तो वह सूचना देने, जो उसके पास है या कारण देने का कर्तव्य है कि क्यों उसके पास स्पष्ट सूचना नहीं है।
फाइलों के बारे में सूचना के सम्बन्ध में लोक प्राधिकारी या तो फाइल को खोजेगा और आवेदक को प्रतियाँ प्रदान करेगा या दर्शित करेगा कि फाइल छांटने की प्रक्रिया द्वारा विनष्ट की गयी है।
यदि एक बार लोक प्राधिकारी ने अधिकथित किया है कि सूचना प्रदान की जायेगी, तो वह अपनी प्रतिबद्धता को केवल इस कारण अमान्य नहीं कर सकता कि आवेदन विहित समय के पश्चात् प्रथम अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष गया है। यह तथ्य अनन्त कुमार सिंह बनाम यूनिवर्सिटी ऑफ डेलही के मामले में विनिश्चित किए गए हैं।
लोक अधिकारी उस विनिर्दिष्ट कमी को स्पष्ट करने के लिए कर्तव्य से आबद्ध है, जो उसके द्वारा दी गयी सूचना में पायी जाती है।
लोक सूचना अधिकारी सूचना के आवेदन को उस विभाग को अन्तरित करने के लिए बाध्य है, जिसके पास सूचना उपलब्ध है।
अभिलेख प्रबन्धन आवश्यक प्रत्येक लोक प्राधिकारी को, विशिष्ट रूप से अधिनियम के क्रियान्वयन के पश्चात् धारा 4 (1) (क) के अनुसरण में उनके कार्यालयों में दक्ष अभिलेख प्रबन्धन प्रणाली को क्रियान्वित करने के लिए सभी उपाय करने चाहिए, जिससे सूचना के लिए अनुरोध का तत्परता से और उचित रूप से निस्तारण किया जा सके और विश्वविद्यालय को ऐसे ढंग में अपने विश्वविद्यालय अभिलेख प्रबन्धन प्रणाली को रखना चाहिए कि सूचना नागरिकों को किसी विलम्ब के बिना दी जा सकती है।
कारणों का अभिलेखन आवश्यक:-
धारा 4 (1) (घ) लोक प्राधिकारियों पर उन विनिश्चयों के लिए कारण अभिलिखित करने का कर्तव्य अधिरोपित करती है, जिन्हें वे प्रशासनिक और अर्द्ध-न्यायिक मामलों में करते हैं।
लोक प्राधिकारी को अनुसंधान कार्य के लिए भारित नहीं किया जा सकता:-
लोक प्राधिकारी को उसे आवेदक के लाभ के लिए, जो केवल और अन्तिम ऐसा आवेदक नहीं हो सकता, के लाभ के लिए अनुसंधान कार्य में संलग्न होने के लिए आबद्ध नहीं किया जा सकता।
फाइल का निरीक्षण:-
आवेदक अनुरोध की गयी फाइल का निरीक्षण करने के लिए हकदार है, जो परियोजना से सम्बन्धित है और फाइल उपलब्ध कराई जानी चाहिए। यह बात राजेन्द्र सिंह बनाम डी डी ए, नई दिल्ली के मामले में विनिश्चित किया गया है।
अविनाश दत्तात्रेय ठाकुर बनाम इम्प्लाइज प्राविडेन्ट फण्ड आर्गनाइजेशन के प्रकरण में विनिश्चय किया गया है कि अपीलार्थी को सुसंगत अभिलेखों और फाइलों के निरीक्षण की ईप्सा करनी चाहिए, जिससे सूचना की शिनाख्त की जाये, जो उसको प्रदान की जानी चाहिए। दस्तावेजों के निरीक्षण का निर्देश किया जाए।
अपीलार्थी को कर्मचारियों को बकाया मजदूरी को निपटारे से सम्बन्धित अभिलेखों के निरीक्षण की ईप्सा करनी चाहिए। यह आदेश ए० मित्रा बनाम नेशनल एविएशन कंपनी ऑफ इण्डिया के मामले दिया गया है।
सूचना का प्रकाशन:-
इस धारा में वर्णित सूचना का अनिवार्य रूप से किसी व्यक्ति को किसी अनुरोध के बिना स्वयं लोक प्राधिकारी द्वारा प्रकाशित किया जाना चाहिए।
सूचना देने में विवेकाधिकार:-
प्रदीप कुमार साहा बनाम डी बी जनोत्कर के मामले में कहा गया है कि लोक प्राधिकरण के प्रबन्धन को जाँच अधिकारी को उस कार्य के अनुरूप सुविधा प्रदान करने का पूर्ण विवेकाधिकार है, जो उसे सौंपा गया है और ऐसी सूचना प्रदान नहीं की जानी चाहिए, जो कर्मचारियों के विरुद्ध कार्यवाही को कमजोर करे।