सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (RTI Act) भाग: 3 सूचना का अधिकार (धारा-3)
Shadab Salim
6 Nov 2021 9:00 AM IST
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (RTI Act) के अंतर्गत धारा- 3 अत्यंत महत्वपूर्ण धारा है। यह धारा सूचना के अधिकार का उल्लेख करती है। यह वही धारा है तथा वही अधिकार है जिसके लिए भारत में वर्षों तक संघर्ष किया गया और इस अधिकार हेतु हुई इस अधिनियम को गढ़ा गया है। इस आलेख के अंतर्गत धारा 3 की व्याख्या अदालतों के न्याय निर्णय के सहित प्रस्तुत की जा रही है।
यह धारा सभी भारतीय नागरिकों को लोक प्राधिकारियों से सूचना प्राप्त करने का अधिकार प्रदान करती है। अधिनियम के अधीन नागरिक का तात्पर्य केवल प्राकृत से है और न कि न्यायिक व्यक्ति से जैसे फर्म, कम्पनी या अन्य निगमित निकाय।
इसके अतिरिक्त, नागरिकों को किसी लोक प्राधिकारी से विशिष्ट सूचना की मांग करने के लिए कारण देने की आवश्यकता नहीं है और लोक सूचना अधिकारी या लोक प्राधिकारी अधिनियम के अधीन आवेदक से यह प्रश्न नहीं कर सकता कि क्यों उसे विशिष्ट सूचना की आवश्यकता है।
यदि एक से अधिक व्यक्ति उसी प्रकार की सूचना की मांग करते हैं, तो उसे लोक सूचना अधिकारियों द्वारा सभी अनुरोधकर्ताओं को उपलब्ध कराया जाना चाहिए। नागरिक को उस सूचना की भी मांग करने का अधिकार दिया गया है, जिसे पहले ही अधिनियम के स्व-प्रकटन अपेक्षाओं के अनुसार प्रकट किया गया है। इसे नागरिक को प्रदान किया जाना चाहिए, जो लोक प्राधिकारी में ऐसी सूचना के लिए आवेदन करता है।
यह धारा सूचना के अधिकार को नागरिकों तक निर्बन्धित करती है और इस प्रकार केवल भारत का नागरिक सूचना की मांग कर सकता है।
सूचना का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (क) के अधीन संवैधानिक प्रत्याभूतियों से उद्भूत होता है।
अधिनियम सभी नागरिकों को सूचना का अधिकार प्रदान करता है और न कि सभी 'व्यक्तियों' को।
नागरिक को वह सूचना प्राप्त करने का अधिकार है, जो संसद या राज्य विधान मण्डल को दी जा सकती है। इस धारा के अधीन केवल नागरिक सूचना की मांग कर सकता है और न कि कम्पनी, जो निगमित है।
भारत का नागरिक सूचना प्राप्त कर सकता है कर्मचारी संघ का महासचिव नागरिक नहीं है। यह बात एम० डी० एन० पनिकर बनाम राउरकेला स्टील प्लान्ट, के मामले में कही गई है।
संघ या कम्पनी को नागरिक नहीं माना जा सकता, राजनैतिक दल के पदधारक अधिनियम के अधीन आच्छादित नहीं है। सूचना का अधिकार आत्यन्तिक और अवरुद्ध अधिकार नहीं है किन्तु ऐसा अधिकार इस अधिनियम के प्रावधानों के अध्यधीन है।
मूल अधिकार:-
भगत सिंह बनाम चीफ इन्फार्मेशन कमिश्नर, 2008 के मामले में कहा गया है कि-
सूचना का अधिकार मूल अधिकार है। मुक्त करने के लिए छूट केवल तब प्रदान की जाती है, यदि यह अन्वेषण या अपराधियों के अभियोजन की प्रक्रिया में होगी। सूचना रोकने वाले प्राधिकारी को उसके लिए समाधानप्रद कारण दर्शित करना चाहिए।
सूचना का अधिकार नागरिक का मौलिक अधिकार है, इसका प्रयोग किसी व्यक्ति की मांगों को पूरा करने के लिए मनमाने ढंग से नहीं किया जा सकता है।
विवक्षित वर्जन:- विवक्षित वर्जन का सिद्धान्त लागू नहीं है और लोक प्राधिकारी के पास उपलब्ध सूचना प्रदान करने में कोई आक्षेप नहीं होना चाहिए, जब तक वह धारा 8 (1) (2) के अधीन वर्णित संवर्ग से सम्बन्धित नहीं है।
एस पी अरोड़ा बनाम स्टेट इन्फार्मेशन कमीशन, ए आई आर 2009 के मामले में कहा गया है-
सूचना के अधिकार का विस्तार सूचना मांगने के अधिकार का विस्तार इस सीमा तक नहीं किया जा सकता कि यदि फाइल उपलब्ध नहीं है, तो फाइल को उपाप्त करने तथा सूचना प्रदान करने के लिए कदम उठाये जायेंगे।
अधिनियम के प्रवर्तन के पूर्व से सम्बन्धित सूचना:-
"अभिलेख" में कोई दस्तावेज या फाइल शामिल है। न तो परिभाषा खण्ड, न तो अधिनियम का कोई प्रावधान यह मानता है कि अधिनियम के प्रवर्तन के पूर्व की सूचना को नागरिक को प्रदान नहीं किया जा सकता है। केवल विहित निर्बंधन धारा 8, 9, 11 के और 24 के अधीन है। यहाँ भी अधिनियमन के पूर्व अभिलिखित सूचना प्रदान करने के लिए किसी रोक का प्रावधान नहीं किया गया है। वास्तव में धारा 6 सूचना की मांग करने के लिए नागरिकों को सशक्त करती है और धारा 7 उसके सिवाय जहाँ ऐसा नहीं किया जा सकता है, और वह भी सीमित आधारों पर और बताये गये कारणों से विहित प्राधिकारियों पर उसे प्रदान करने के लिए कर्तव्य और दायित्व अधिरोपित करती है।
प्राकृत व्यक्ति सूचना के लिए हकदार:-
अधिनियम के अधीन सूचना के लिए आवेदन करने वाले व्यक्तियों को प्राकृत और व्यक्तिगत व्यक्तियों (नागरिकों) के रूप में आवेदन करना चाहिए। निगमित निकाय और न्यायिक व्यक्ति इस अधिनियम के अधीन सूचना के लिए आवेदन नहीं कर सकता। यदि व्यक्ति निगमित निकाय के प्रतिनिधि के रूप में लोक प्राधिकारी के समक्ष सूचना के लिए आवेदन करता है, तो वह अधिनियम के अधीन सूचना के लिए हकदार है।
अधिकार का प्रयोग:-
सूचना के अधिकार का प्रयोग नागरिकों द्वारा प्राइवेट संस्थानों के विरुद्ध किया जा सकता है, जो माध्यमिक शिक्षा परिषद द्वारा मान्य किया गया है और राज्य सरकार द्वारा सहायता अनुदान प्राप्त कर रहा है। धारा सिह गर्ल्स हाईस्कूल, गाजियाबाद बनाम स्टेट ऑफ यू पी, 2008 सीएआर 343 (इलाहाबाद) के मामले में कही गई है।
अभिप्राप्त करने के लिए कोई उत्पीड़न नहीं:-
कोई उत्पीड़न उन कर्मचारियों का नहीं किया जाना चाहिए, जो अधिनियम के प्रावधानों के अधीन सूचना की ईप्सा कर रहे हैं, उत्पीड़न के ऐसे कार्य का विरोध किया जाना चाहिए, यदि नागरिकों और सरकार के बीच सूचना के मुक्त प्रवाह में वृद्धि करने का प्रयोजन प्रतिकूल ढंग से प्रभावित किया जायेगा।
सिविल सेवकों का कर्तव्य:-
मौखिक अनुदेश, आदेश, सुझायों पर कार्य नहीं करना है। उन्हें फाइल पर अनुदेश, आदेश आदि को अभिलिखित करना चाहिए, यदि ये मौखिक अनुदेश पर कार्य करते हैं। उन्हें अभिलिखित किये बिना मौखिक अनुदेशों पर कार्य करना अधिनियम को भी विफल कर देता है और भ्रष्टाचार को अवसर प्रदान करता है।
बैंक खाता के बारे में जानकारी का अधिकार व्यक्ति को बैंक में उसके पिता और माता द्वारा संयुक्त रूप से धारण किये गये बचत बैंक खाता तथा सावधि जमा रसीद के बारे में विवरण को जानने का अधिकार है।
परीक्षार्थी का अधिकार- परीक्षार्थी को उत्तर पुस्तिका देखने का अधिकार है और उत्तर पुस्तिका उसको प्रदान की जानी चाहिए यह बात प्रीतम रूज बनाम यूनिवर्सिटी ऑफ कलकत्ता, ए आई आर 2008 कलकत्ता 118।
उत्तर-पत्रकों के सम्बन्ध में सूचना उत्तर पत्रकों से सम्बन्धित सूचना प्रदान की जानी चाहिए। क्योंकि लोक कार्य का निर्वहन करने वाला परीक्षक लोगों के प्रति उत्तरदायी है और यह लोक प्रयोजन को पूरा करेगा।
उत्तर पुस्तिकाओं का पुनर्मूल्यांकन:-
धीरज पाण्डेय बनाम मध्य प्रदेश राज्य 2014 के मामले में कहा गया है बिना किसी विश्वसनीय और विशिष्ट तथ्यों के पुनर्मूल्यांकन का आदेश नहीं दिया जा सकता है।
सूचना के लिए कारण आवश्यक नहीं:-
सरूप सिंह हरया नायक बनाम स्टेट ऑफ महाराष्ट्र, ए आई आर 2007 बम्बई 121 व्यक्ति द्वारा ईप्सित सूचना उपलब्ध करायी जानी चाहिए और ऐसा व्यक्ति उस सूचना के लिए कारण देने के लिए बाध्य नहीं है जिसकी वह ईप्सा करता है।
अपेक्षा:- सूचना की मांग करने वाले से अपेक्षित सूचना को स्पष्ट रूप से विनिर्दिष्ट करने की अपेक्षा की जाती है और यदि आवश्यक है, तो उसे सुसंगत अभिलेखों और फाइलों के निरीक्षण की भी मांग करनी चाहिए जिससे अपेक्षित सूचना की शिनाख्त की जाए।
सूचना लोक प्राधिकारी से सम्बन्धित होगी:-
ईप्सित सूचना किसी लोक प्राधिकारी से सम्बन्धित होनी चाहिए और न कि प्राइवेट निकाय से संबंधित हो।
अभिलेखों का निरीक्षण:-
आवेदक अभिलेखों का निरीक्षण करने के लिए हकदार है, यदि उसे दो गयी सूचना से समाधान नहीं होता है। यदि आवेदक को दी गयी सूचना से समाधान नहीं है और सूचना का कोई प्रत्याख्यान नहीं है, तो यह सक्षम प्राधिकारी के समक्ष अभिलेखों के निरीक्षण के लिए आवेदन कर सकता है।
अभिलेखों के निरीक्षण के अभिवाक को अनुज्ञात किया जाना चाहिए, जब आवेदक अभिकधित करता है कि दी गयी सूचना अपूर्ण और अशुद्ध है। यह तथ्य डॉ० पूनम नागपाल बनाम डिपार्टमेंट ऑफ एजुकेशन, के वाद में दी गया है।
फाइलों का निरीक्षण सूचना के अधिकार में फाइलों का निरीक्षण भी शामिल है।
सांस्थानिक निर्धारण का मामला- सांस्थानिक निर्धारण के मामले में, आवेदक सभी रिपोर्टों के लिए सभी सूचना को ईप्सा करने का हकदार है, जिसे लोकहित में तैयार किया जाता है।
ए० महेन्द्र बनाम रोहेबिलिटेशन कौंसिल ऑफ इंडिया के मामले में यह विचार दिया गया है।
किसके समक्ष आवेदन:-
यदि सूचना का विषय राज्य से सम्बन्धित है, तो आवेदन को राज्य प्राधिकारी के समक्ष दाखिल किया जायेगा।
एक ही विषय पर दूसरा आवेदन नहीं उसी विषय पर एक के बाद दूसरा विभिन्न आवेदन दाखिल करना, जब मामला उच्चतम न्यायालय के समक्ष अधिनियम के लाभद प्रावधान के दुरुपयोग के अतिरिक्त कुछ नहीं है।
प्रकटन आज्ञापक लोक प्राधिकारी से सम्बन्धित सूचना का प्रकटन आज्ञापक है, यदि पित सूचना अधिनियम के परिक्षेत्र के अन्तर्गत आती है।
विधिक इकाइयों द्वारा ईप्सित सूचना:- संघ या भागीदारी फर्म या हिन्दू अविभक्त कुटुम्ब से या व्यक्तियों के किसी अन्य समूह से, जो निकाय के रूप में या अन्यथा गठित है, अपील पर आवेदन को स्वीकार किया जाना चाहिए और अनुज्ञात किया जाना चाहिए।
ग्राहक सूचना के लिए हकदार:- उपभोक्ता सहकारी समिति द्वारा संचालित राशन की दुकान से सम्बन्धित विवरण प्राप्त करने के लिए हकदार है। ए सी सेकर बनाम द डिप्टी रजिस्ट्रार ऑफ कोआपरेटिव सोसाइटीज, थिरुवन्नामलाई सर्किल, ए आई आर 2008 मद्रास 224 के वाद में यह निर्णय दिया गया है।