जीवन की गरिमा और समानता का अधिकार: जीजा घोष और अन्य बनाम भारत संघ

Himanshu Mishra

30 Oct 2024 5:41 PM IST

  • जीवन की गरिमा और समानता का अधिकार: जीजा घोष और अन्य बनाम भारत संघ

    जीजा घोष और अन्य बनाम भारत संघ के मामले में, भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एयरलाइनों द्वारा दिव्यांग व्यक्तियों (PWDs – Persons with Disabilities) के प्रति असंवेदनशीलता और भेदभावपूर्ण व्यवहार पर ध्यान केंद्रित किया। इस मामले ने हवाई यात्रा के दौरान दिव्यांगों को होने वाली समस्याओं को उजागर किया।

    अदालत ने इस मुद्दे को संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (जीवन और गरिमा का अधिकार) के संदर्भ में देखा। कोर्ट ने इस बात पर भी विचार किया कि भारत ने United Nations Convention on the Rights of Persons with Disabilities (UNCRPD) जैसे अंतरराष्ट्रीय संधियों में क्या प्रतिबद्धताएं (Obligations) ली हैं और घरेलू कानूनों जैसे Persons with Disabilities Act, 1995 के तहत दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों की क्या रक्षा होनी चाहिए।

    नागरिक उड्डयन दिशा-निर्देशों का उल्लंघन (Violation of Civil Aviation Requirements – CAR)

    नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA) ने 2008 में Civil Aviation Requirements (CAR) जारी किए थे, जिसमें एयरलाइनों और हवाई अड्डों को दिव्यांग यात्रियों को यात्रा सुविधाएं उपलब्ध कराने के निर्देश दिए गए थे।

    इन दिशा-निर्देशों में कर्मचारियों के लिए संवेदनशीलता प्रशिक्षण (Sensitivity Training) और दिव्यांग यात्रियों को हर संभव सहायता प्रदान करने की आवश्यकता को स्पष्ट किया गया था।

    हालांकि, जीजा घोष के साथ हुए दुर्व्यवहार ने दिखाया कि इन निर्देशों का पालन सही तरीके से नहीं किया गया। कोर्ट ने एयरलाइन के व्यवहार की निंदा करते हुए कहा कि इस तरह की असंवेदनशीलता न केवल CAR का उल्लंघन है बल्कि संविधान के तहत दिए गए मौलिक अधिकारों का भी हनन (Violation) है।

    मौलिक अधिकारों की व्याख्या (Judicial Interpretation of Fundamental Rights)

    कोर्ट ने स्पष्ट किया कि गरिमा (Dignity) का अधिकार जीवन के अधिकार (Right to Life) का अभिन्न हिस्सा है और इसे अनुच्छेद 21 के तहत संरक्षित किया गया है। भेदभावपूर्ण व्यवहार को अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन बताया गया।

    कोर्ट ने विकास कुमार बनाम यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन (2021) जैसे मामलों का हवाला दिया और कहा कि राज्य और उसकी संस्थाओं का यह दायित्व (Duty) है कि वे सार्वजनिक जीवन में दिव्यांगों को समान रूप से भाग लेने का अवसर प्रदान करें।

    अंतरराष्ट्रीय दायित्व (International Obligations) और UNCRPD

    भारत ने 2007 में United Nations Convention on the Rights of Persons with Disabilities (UNCRPD) पर हस्ताक्षर किए, जिसमें कहा गया है कि दिव्यांग व्यक्तियों के साथ भेदभाव समाप्त कर सभी को समान अवसर (Equal Opportunity) दिए जाने चाहिए।

    कोर्ट ने बताया कि इस संधि के तहत न केवल सरकारी संस्थानों बल्कि निजी क्षेत्र, जिनमें एयरलाइंस भी शामिल हैं, को भी दिव्यांगों के लिए सुविधाएं सुनिश्चित करनी चाहिए। कोर्ट ने Vienna Convention on the Law of Treaties का भी उल्लेख करते हुए कहा कि किसी देश की आंतरिक नीति उसके अंतरराष्ट्रीय दायित्वों का उल्लंघन नहीं कर सकती।

    सरकार की सकारात्मक प्रतिक्रिया: संशोधित CAR, 2014 (Government's Positive Response: Revised CAR, 2014)

    घटना के बाद, DGCA ने 2014 में CAR को संशोधित किया और दिव्यांग यात्रियों के लिए बेहतर दिशा-निर्देश तैयार किए।

    संशोधित CAR में व्हीलचेयर उपयोग, सुविधाओं के मानकीकरण (Standardization) और एयरपोर्ट इन्फ्रास्ट्रक्चर के सुधार जैसे प्रावधान जोड़े गए। कोर्ट ने सरकार की इस पहल का स्वागत किया, लेकिन यह भी कहा कि इन प्रावधानों के कार्यान्वयन (Implementation) की लगातार निगरानी (Monitoring) जरूरी है ताकि भविष्य में ऐसे मामलों को रोका जा सके।

    कोर्ट का निर्देश: जवाबदेही तय करना (Court's Directive on Accountability)

    कोर्ट ने कहा कि CAR का पालन सुनिश्चित करना एयरलाइनों और सरकार दोनों की जिम्मेदारी है। DGCA को निर्देश दिया गया कि वह एयरलाइनों पर निगरानी रखे और किसी भी उल्लंघन (Non-compliance) पर दंड लगाए।

    कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि किसी दिव्यांग यात्री को बिना उचित कारण के विमान में चढ़ने से मना करना अवैध है। शिकायतों के निवारण (Redressal) के लिए एक पारदर्शी प्रणाली स्थापित करने की सिफारिश भी की गई।

    जीजा घोष और अन्य बनाम भारत संघ का यह फैसला हवाई यात्रा में दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों को मान्यता देने में मील का पत्थर है। इसने यह सुनिश्चित किया कि सार्वजनिक सेवाओं में गरिमा, समानता और भेदभावरहित व्यवहार को प्राथमिकता दी जाए। इस फैसले ने भारत की अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को रेखांकित किया और घरेलू कानूनों में मजबूत तंत्र की आवश्यकता पर जोर दिया।

    यह मामला इस बात का उदाहरण है कि मानवाधिकारों से किसी भी क्षेत्र में समझौता नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने यह संदेश दिया कि एयरलाइंस और हवाई अड्डे सभी यात्रियों, विशेष रूप से दिव्यांगों, के लिए सम्मानजनक और सुविधाजनक यात्रा सुनिश्चित करें।

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