The Indian Contract Act में एजेंसी के कॉन्ट्रैक्ट में एजेंट को परिश्रमिक प्राप्त करने का अधिकार
Shadab Salim
16 Sept 2025 9:37 AM IST

भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 219 सर्वप्रथम एजेंट के पारिश्रमिक का उल्लेख करती है। इस धारा के अनुसार एजेंट का सबसे पहला अधिकार है कि वह अपने मालिक से पारिश्रमिक प्राप्त करें। जब एजेंट को सौंपा गया कार्य पूर्ण हो जाता है तब एजेंट उस कार्य के लिए अपने मालिक से पारिश्रमिक प्राप्त करने का हकदार हो जाता है।
जैसे राम से 1000 वसूल करने के लिए शाम को घनश्याम ने नियोजित किया, श्याम के कपट के कारण धन वसूल नहीं होता है, यहां पर श्याम अपनी सेवाओं के लिए किसी भी पारिश्रमिक का हकदार नहीं है।
श्री दिग्विजय सीमेंट कंपनी लिमिटेड बनाम स्टेट ट्रेडिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया एआईआर 2006 दिल्ली 276 के वाद में विदेशी क्रेता को प्रदान करने हेतु स्टेट ट्रेडिंग कॉरपोरेशन ने सीमेंट को क्रय करने की संविदा की थी। वादी ने इस कॉर्पोरेशन की तरफ से सीमेंट की पैकेजिंग के लिए क्राफ्ट पेपर आयात किया परंतु कुछ कारणों से विदेशी क्रेता को सीमेंट का प्रदाय नहीं किया जा सका। वादी ने क्राफ्ट पेपर आयात में हुए खर्च को प्राप्त करने के लिए उक्त कॉर्पोरेशन के विरुद्ध वाद दायर किया।
निर्णय हुआ कि वादी यह खर्च पाने का अधिकारी है क्योंकि भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 219 वादी के पारिश्रमिक को प्राप्त करने के अधिकार का उल्लेख कर रही है।
मूल रूप में जैसे ही कोई कार्य पूर्ण होता है परिश्रमिक का संदाय किया जाना अपेक्षित हो जाता है। उपरोक्त संदर्भ में कृत्य की पूर्णता एक प्रमुख एवं तात्विक विषय है अर्थात मालिक द्वारा निर्दिष्ट कार्य जैसे ही एजेंट पूरा कर देता है तो वह युक्तियुक्त पारिश्रमिक का हकदार बन जाता है।
जिनमें एजेंट युक्तियुक्त पारिश्रमिक की मांग करने हेतु अधिकृत हो जाता है।
उसके द्वारा किया गया कार्य स्पष्ट हो
कार्य मालिक के निर्देशानुसार किया गया हो
कार्य युक्तियुक्त रूप से किया गया हो
कार्य संपूर्ण रूप से किया गया हो
इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि जब एजेंट कार्य का संपादन युक्तियुक्त रूप में किया है मालिक के निर्देश के अनुसार युक्तियुक्त रूप में किया है और कार्य पूर्णता संपादित किया है न कि आंशिक रूप में तो ऐसी स्थिति में यह कहा जा सकता है कि एजेंट मालिक से युक्तियुक्त रूप से पारिश्रमिक पाने का हकदार होगा अब ऐसी स्थिति में मालिक एजेंट के किसी पारिश्रमिक को नहीं रोक सकता है।
कुछ अवस्थाओं में एजेंट अपने को हुई क्षति के लिए मालिक से प्रतिकर प्राप्त करने का हकदार होता है।
भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 205 के अनुसार जहां किसी अभिकरण का सर्जन एक निश्चित समय अवधि के लिए किया गया है और इसी अवधि के पूर्व ही बिना किसी युक्तियुक्त कारण के उसको रद्द कर दिया जाता है वहां एजेंट अपने मालिक से प्रतिकर प्राप्त करने का हकदार होगा।
भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 222 के अनुसार जब एजेंट अपने मालिक से प्राप्त निर्देशों के अनुसार कार्य करता है तो वह ऐसे कार्यों के परिणामों के लिए मालिक से क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकारी है।
इस धारा के अनुसार विधिपूर्ण कार्यों के परिणामों के लिए एजेंट से क्षतिपूर्ति का उपबंध स्पष्ट है। उदाहरण के लिए कोलकाता के ख क के अनुदेशकों के अधीन ग को कुछ माल परिदान करने के लिए ग से ख सिंगापुर में संविदा करता है। ख को क माल नहीं भेजता है और ग संविदा भंग के लिए ख पर वाद लाता है। यहां ख क से प्रतिकार प्राप्त करने का अधिकारी है।
जहां एजेंट द्वारा कोई नगद भुगतान किया गया हो और उक्त भुगतान एजेंट द्वारा मालिक की ओर से किया गया हो तो ऐसी स्थिति में मालिक एजेंट को क्षतिपूर्ति देने के लिए दायित्वधीन होगा। इस धारा की प्रमुख अनिवार्यता यह है कि एजेंट द्वारा उक्त संव्यवहार अपने प्राधिकार के अंतर्गत संपादित किया गया होना चाहिए।
धारा 223 भी धारा 222 के समांतर ही है। यह भी एजेंट की क्षतिपूर्ति प्राप्त करने के अधिकार से संबंधित है। यह धारा यह स्पष्ट करती है कि जहां कि एक व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति से कोई कार्य करने के लिए नियोजित करता है वह एजेंट उस कार्य को सद्भाव से करता है। वहां वह नियोजक उस कार्य के परिणामों के लिए एजेंट की क्षतिपूर्ति करने का दायीं है।
भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 225 मालिक की उपेक्षा से कारित क्षति के लिए एजेंट को प्रतिकर देने का उपबंध करती है। इसके अनुसार मालिक की उपेक्षा से या उसमें कुशलता की कमी से उसके एजेंट को कारित होने वाली हानि के लिए मालिक एजेंट को प्रतिकर देगा। एजेंट कोई भी ऐसी क्षति को वहन करने के लिए दायित्वधीन नहीं होता है जिस क्षति में उसका कोई योगदान नहीं है।
जहां पर क्षति मालिक की उपेक्षा से कार्य हो रही है तो ऐसी परिस्थिति में मालिक प्रतिकर देने के लिए कर्तव्यधीन होता है। इस धारा के अनुसार मालिक के ऊपर यह कर्तव्य निरूपित किया गया है कि यदि कारोबार के संचालन में अभिकरण की संविदा के अंतर्गत कोई क्षति उसकी ओर से होती है या उसकी उपेक्षा के कारण होती है तो ऐसी परिस्थिति में मालिक को ही उस क्षति से होने वाली नुकसान की भरपाई करनी होगी।
भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 223 किसी एजेंट को यह अधिकार देती है कि वह अपने प्राधिकार में रहते हुए कोई कार्य सदभावनापूर्वक करता है जो किसी कारोबार के संचालन के लिए आवश्यक हो तो ऐसी परिस्थिति पर वहां वह ऐसे कार्य के परिणामों के लिए मालिक से क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का हकदार होता है।
यहां यह और उल्लेखनीय है कि मालिक एजेंट के आपराधिक कार्यों के लिए दायीं नहीं होता है। एजेंट द्वारा कोई भी आपराधिक कार्य किए जाते हैं तो ऐसे अपराधिक कार्यों के लिए मालिक दायीं नहीं होता है, इसका उल्लेख भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 224 के अंतर्गत किया गया है।
भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 221 के अनुसार एजेंट को प्राप्त मालिक के माल, कागज पत्र एवं चल तथा अचल संपत्ति को तब तक अपने कब्जे में रखने का अधिकार है जब तक कि उसके कमीशन, वितरण एवं सेवाओं की बाबत शोध रकम का संदाय नहीं कर दिया जाता है। इस धारा के अनुसार जहां कोई एजेंट अभिकरण के संव्यवहार में मालिक के लेखे प्राप्त उन समस्त धनराशियों का जो उसे उक्त प्रकार के संव्यवहार के संचालन में उसके द्वारा दिए गए अग्रिम धनराशिओं का यथोचित रूप से अवगत वालों के लिए उसको शोध्य हो और ऐसा परिश्रमिक का भी जो ऐसे एजेंट के तौर पर कार्य करने के लिए उसे देय हो प्रतिधारण कर सकेगा।
शुभा पिलाई बनाम रामास्वामी अय्यर 1903 मद्रास 512 के प्रकरण में कहा गया है कि एजेंट द्वारा उस स्थिति में धारणाधिकार का प्रयोग किया जाना न्यायोचित माना गया जबकि उसे उन खर्चों का संदाय नहीं किया गया था जो उसके द्वारा किए गए थे। एजेंट को वह खर्च नहीं दिए गए मालिक के द्वारा जो एजेंट ने किसी कारोबार के संचालन में खर्च किए हैं तो ऐसी परिस्थिति में एजेंट मालिक की संपत्ति पर धारणाधिकार का प्रयोग कर सकता है। वह संपत्ति पर कब्जा उस स्थिति तक नहीं छोड़ेगा जब तक के उसके पारिश्रमिक का भुगतान नहीं कर दिया जाता है।
एजेंट अधिकरण के कारोबार में मालिक के लेकर प्राप्त राशियों में से उन सब व्ययों का जो उसे कारोबार के संचालन में उसके द्वारा दिए गए अग्रिम या और पारिश्रमिक का भी जो ऐसे एजेंट के तौर पर कार्य करने के लिए उसे देय रहे हो प्रतिधारण कर सकता है और मालिक के लेखे धन राशियों में से इनकी कटौती कर सकता है परंतु ऐसी कटौती के बाद शेष धनराशि को देने के लिए बाध्य है।

