लड़की का अपने पिता से भरण-पोषण लेने का अधिकार

Shadab Salim

18 Oct 2025 9:10 PM IST

  • लड़की का अपने पिता से भरण-पोषण लेने का अधिकार

    एक बालिग़ बेटी भी अपने पिता से मेंटेनेंस मांग सकती है यह अधिकार उसे क़ानून ने दिया है। भरण पोषण एक ऐसे व्यक्ति को देना होता है जिस व्यक्ति पर दूसरे लोग आश्रित होते हैं। BNSS में एक पुरुष पर यह जिम्मेदारी डाली गई है कि वे अपने बच्चों, पत्नी तथा आश्रित माता-पिता का भरण पोषण करेगा।

    भरण पोषण से संबंधित कानून घरेलू हिंसा अधिनियम में भी मिलते हैं, जहां महिलाओं को भरण-पोषण दिलवाने की व्यवस्था की गई है। इसी के साथ हिंदू विवाह अधिनियम के अंतर्गत भी भरण-पोषण के प्रावधान मिलते हैं। जहां पर एक पत्नी अपने पति से भरण-पोषण मांग सकती है। साथ ही हिंदू एडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट के अंतर्गत भी बच्चे अपने पिता से भरण पोषण मांग सकते है।

    BNSS की धारा 144 भरण पोषण के मामले में एक प्रसिद्ध धारा है। इस धारा के अंतर्गत कोई भी संतान जो अपने पिता पर आश्रित है और जिसने 18 वर्ष की आयु पूरी नहीं की है, भरण पोषण प्राप्त करने की अधिकारी हैं। इस धारा के अंतर्गत केवल संतान ही भरण पोषण प्राप्त करने की अधिकारी नहीं है बल्कि पत्नी और माता-पिता भी इस ही धारा के अंतर्गत भरण पोषण प्राप्त करने के अधिकारी हैं।

    पत्नी उस स्थिति में अपने पति से भरण-पोषण प्राप्त करने की अधिकारी होती है जब वह पति से अलग रह रही होती है। माता पिता भी अपने पुत्र या पुत्री से भरण पोषण प्राप्त करने के अधिकारी हैं। एक पुत्री भी अपने माता-पिता का भरण पोषण करने से बच नहीं सकती है। कानून ने उस पर भी अपने बूढ़े माता-पिता का भरण पोषण करने की जिम्मेदारी दी है।

    एक पिता से अवयस्क बच्चे भरण पोषण प्राप्त करने के अधिकारी होते हैं। अगर कोई पिता भरण-पोषण नहीं कर रहा है तब BNSS की धारा 144 के अंतर्गत उससे भरण पोषण प्राप्त किया जा सकता है। इसी के साथ हिंदू एडॉप्शन एंड मेंटिनेस एक्ट की धारा 20 के अंतर्गत भी बच्चे अपने पिता से भरण पोषण प्राप्त कर सकते हैं। कोई भी पुत्र जो 18 वर्ष की आयु से कम है अपने पिता से भरण-पोषण प्राप्त करने का अधिकारी होता है। पुत्र के मामले में स्थिति बिल्कुल स्पष्ट है। जब तक पुत्र 18 वर्ष का नहीं है तब तक अपने पिता से भरण-पोषण प्राप्त कर सकता है। जैसे ही उसकी उम्र 18 वर्ष की होती है फिर उसके पास पिता से भरण पोषण प्राप्त करने का अधिकार समाप्त हो जाता है। अब कानून उस पुत्र से यह आशा करता है कि वह स्वयं अपना भरण-पोषण करें।

    18 वर्ष की आयु के बाद एक पुत्र पढ़ने लिखने के लिए होने वाले खर्च भी अपने पिता से प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है। यह नहीं कह सकता कि उसके पढ़ने में जो खर्च हो रहा है, वह उसके पिता द्वारा अदा किया जाए किंतु लड़कियों के संबंध में स्थिति थोड़ी सी भिन्न है।

    BNSS की धारा 144 के अंतर्गत जिस भरण-पोषण का उल्लेख किया गया है वहां पर लड़का और लड़की के बीच किसी प्रकार का भेद नहीं किया गया है। दोनों ही लोगों को 18 वर्ष की आयु तक भरण-पोषण दिए जाने का उल्लेख मिलता है, इसके बाद पिता के ऊपर उन का भरण पोषण करने की कोई जिम्मेदारी नहीं है। किंतु हिंदू एडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट की धारा 20(3) के अंतर्गत एक बगैर शादीशुदा लड़की के मामले में कानून यह कहता है कि अगर वह अपना भरण-पोषण करने में समर्थ नहीं है तब उसके पिता की यह जिम्मेदारी होगी कि वे उसका भरण पोषण करें।

    भारत के सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण निर्णय जिसे आशा वर्सेस प्रकाश के नाम से जाना जाता है यह बात स्पष्ट किया है कि कोई भी अविवाहित लड़की यदि अपना भरण-पोषण करने में समर्थ नहीं है तब वे अपने पिता से अपना भरण-पोषण प्राप्त कर सकती है। अब भले ही ऐसी लड़की की आयु 50 वर्ष क्यों न हो फिर भी वे अपने पिता से भरण-पोषण प्राप्त करने के अधिकारी होगी।

    यहां पर यह देखा जाता है कि कोई महिला किसी कार्य को करने की स्थिति में है या नहीं। भारत की पृष्ठभूमि सारे विश्व से थोड़ी सी भिन्न है। यहां महिलाएं घरों में रहती हैं, अधिकांश महिलाओं को शिक्षा भी नहीं मिल पाती है। ऐसी स्थिति में उनका कामकाज करना मुश्किल होता है। कानून में इस प्रावधान को दिए जाने का उद्देश्य यह है कि ऐसी लड़कियां जो शादीशुदा नहीं है, कोई काम नहीं करती हैं, उन लड़कियों का भरण पोषण उनके पिता से करवाया जाए।

    अगर पिता नहीं है तब ऐसी स्थिति में वह लड़की कहीं से भी भरण पोषण प्राप्त करने की अधिकारी नहीं है। ऐसा कतई नहीं हो सकता कि वह लड़की अपने भाइयों से भरण-पोषण प्राप्त करने हेतु कोर्ट के समक्ष किसी प्रकार का कोई वाद लाए। भरण-पोषण की जिम्मेदारी केवल पिता की होती है। जैसे ही उस पुत्री की शादी हो जाती है वैसे ही पिता पर से भरण-पोषण की जिम्मेदारी समाप्त हो जाती है। कोई भी विवाहित महिला भरण-पोषण के लिए मुकदमा अपने पति के विरुद्ध लाती है, यहां तक एक तलाकशुदा महिला भी अपने पति से ही भरण पोषण लेगी जब तक उसकी दूसरी शादी नहीं हो जाती है। लेकिन अपने पिता के विरुद्ध वाद नहीं ला सकती। अविवाहित लड़की भरण पोषण का मुकदमा अपने पिता के विरुद्ध ला सकती है।

    Next Story