The Indian Contract Act में एजेंट को दी गयी पॉवर ऑफ़ एटॉर्नी का रेवोकेशन और एजेंट के अन्य अधिकार
Shadab Salim
15 Sept 2025 9:35 AM IST

यह मालिक की इच्छा पर है कि वह मुख्तारनामा का प्रतिसंहरण कर दे अर्थात उसे रद्द कर दे, किंतु जहां कोई मुख्तारनामा किसी अभिकर्ता के संबंध में सृजित किया गया है तो वह उसी मुख्तारनामा के अनुसार कार्य करेगा वरना मुख्तारनामा की बाबत अप्रतिसंहरण शब्द का प्रयोग हुआ है किंतु यह ध्यान देने की बात है कि मालिक इसके बावजूद भी मुख्तारनामा का रेवोकेशन करने के लिए अधिकृत है।
जब भी कोई एजेंसी की संविदा की जाती है तो इसमें मालिक द्वारा एजेंट को मुख्तारनामा दे दिया जाता है तथा कई शक्तियां दे दी जाती हैं। जिन शर्तों से कोई भी अभिकर्ता मालिक की शक्तियां प्राप्त कर लेता है मुख्तारनामा के द्वारा अभिकर्ता को किसी व्यवसाय का प्रबंध सौंपा जा सकता है ऐसी स्थिति में उक्त नियुक्ति अभिकर्ता अपने कृतियों का संपादन मालिक के निर्देश अनुसार करेगा।
इस प्रकरण में यह भी उल्लेख है जब मालिक किसी व्यवसाय का प्रबंध एवं चलाने हेतु किसी अभिकर्ता को प्राधिकृत करता है तो अभिकर्ता उसी के अनुसार कोई कार्य किसी अवधि विशेष के लिए करेगा अर्थात निर्देश तो मालिक के द्वारा ही दिए जाएंगे कोई भी अभिकर्ता किसी मालिक के निर्देशों की अवहेलना करके अपने अनुसार कोई कार्य नहीं कर सकता है निर्देश मालिक के द्वारा दिए जाते हैं तथा उस निर्देश का पालन तब तक करना होता है तब तक उस प्रयोजन को पूरा नहीं कर दिया जाता जिस प्रयोजन के लिए अभिकरण की संविदा की गई है। अभिकर्ता के मालिक के प्रति क्या कर्तव्य होते हैं इसका उल्लेख अगले आलेख में किया जाएगा।
अभिकरण की संविदा के अंतर्गत अभिकर्ता के सभी कर्तव्य है। जो कार्य मालिक द्वारा किए जा सकते हैं मुख्तारनामा के द्वारा मालिक किसी अभिकर्ता को क्रय करने की शक्ति प्रदान कर देता है किसी युक्तियुक्त ब्याज दर पर यदि कोई माल का क्रय करता है किंतु यदि उक्त क्रय किए गए निर्णय से मालिक को लाभान्वित हो न तात्पर्य तो ऐसी स्थिति में अभिकर्ता वैसा कार्य व्यवहार संपन्न कर सकता है।
परशुराम अग्रवाल बनाम फ़ूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया एआईआर 1994 उड़ीसा 292 के प्रकरण में कहा गया है कि वह कोई क्रय उसी सीमा तक संपन्न करने हेतु अधिकृत है जितना मामले की परिस्थितियों के अनुसार उचित एवं न्याय संगत होता है। एक प्रकरण में यह अभिनिर्धारित किया गया कि भारतीय खाद्य निगम एफसीआई का यह दायित्व है कि उसने अपने अभिकर्ता के द्वारा जितना कार्य करवाया है उसे अपने व्यवहार में लाएं।
अभिकरण की संविदा के अंतर्गत मालिक द्वारा अभिकर्ता को विक्रय का भी प्राधिकार सौंप दिया जाता है। इस प्रकार का प्राधिकार उसे मुख्तारनामा के माध्यम से सौंपा जाता है तथा अभिकर्ता उस चीज को बेचने के लिए शक्तिशाली हो जाता है जिस चीज को मालिक सकता है परंतु ऐसा विक्रय रहे मालिक के निर्देशों के अनुसार ही किए जाएगा जिस प्रकार किसी वस्तु को मालिक बेच सकता है। इसी प्रकार से किसी वस्तु को एक अभिकर्ता भी बेच सकता है। यदि सामान्य तौर पर अभिकर्ता को किसी माल के विक्रय के संदर्भ में नियुक्त किया गया है तो वह माल का विक्रय करेगा इस निमित्त दलाल से भी संपर्क करने के लिए अधिकृत होगा और उन सभी कार्यों को कर सकता है जो युक्तियुक्तता और लोक नीति के विरुद्ध न हो, कोई भी ऐसा कार्य कर सकता है जिसे एक सामान्य बुद्धि वाला व्यक्ति करता है।
परंतु विक्रय के प्राधिकार का उपयोग करते हुए अभिकर्ता को कुछ बातों को ध्यान में रखना होता है जैसे-
वह विक्रय से मालिक को लाभान्वित करेगा
वह मालिक के प्रति कर्तव्यनिष्ठ होगा
वह युक्तियुक्त रूप में कार्य करेगा
वह मालिक को हानि से बचाएगा
उसके कार्य में स्पष्टता होगी
बड़बिक बनाम ग्रांड 1974 के प्रकरण में कहा गया है कि जहां क्रय अथवा विक्रय उसी रूप में होंगे वहां इससे संबंधित बातों का विवरण विक्रय की संविदा में किया जाता है।
कॉल शेखर पटनम हैंड मैच वर्कर्स कोऑपरेटिव सोसाइटी बनाम राधेलाल लल्लू लाल 1971 एम् पि एल जी 552 के प्रकरण में तय हुआ है कि जहां कोई विक्रय विलेख निष्पादित करने संबंधी कोई शक्ति अथवा पर अधिकार प्रदान किया गया है तो ऐसी स्थिति में अभिकर्ता उक्त प्रकार की सीमा में रहकर ही अपने कार्यों का निष्पादन करेगा।
अभिकरण की संविदा के अंतर्गत जिस प्रकार मालिक को कोई भुगतान करने का अधिकार प्राप्त होता है इसी प्रकार वह पावर ऑफ अटॉर्नी के माध्यम से किसी एजेंट को अपनी ओर से संदाय करने का अधिकार प्रदान कर सकता है तथा इस हेतु उसे शक्तिशाली कर सकता है। कोई ऋण का संदाय करने संबंधी प्रतिकार उक्त संदर्भ में किसी अभिस्वीकृति के अधिकार से संबंधित हो सकता है। यदि कोई अनुबंध आंशिक संदाय से संबंधित है तो ऐसी स्थिति में अभिकर्ता मालिक की ओर से आंशिक संदाय करेगा। इसी प्रकार का विचार कोर्ट ने अन्ना चारी बनाम रत्नम के मामले में व्यक्त किया है।
अभिकर्ता को प्राप्त प्राधिकार के अंतर्गत भुगतान को प्राप्त करने की भी शक्ति प्राप्त हो सकती है यदि मालिक अभिकर्ता को कोई संदाय प्राप्त करने हेतु सशक्त किया करता है तो ऐसी स्थिति में उक्त अभिकर्ता मालिक के निर्देश अनुसार संदाय को प्राप्त कर सकता है तथा अभिकरण की संविदा में इस प्रकार का प्रावधान रखा जा सकता है कि कोई मालिक की ओर से कोई अभिकर्ता किसी संदाय को प्राप्त करें।
किसी भी अभिकरण की संविदा के अंतर्गत के मालिक द्वारा अभिकर्ता को अपने ऋण को वसूलने का अधिकार भी दिया जा सकता है। यदि मालिक ने अभिकर्ता को ऋण वसूलने का अधिकार प्रदान किया है तो ऐसी स्थिति में वह अभिकर्ता उक्त ऋण वसूल करने के लिए अधिकृत होता है। किंतु वह उसी को वसूल कर सकता है जिसके लिए अधिकृत है क्योंकि वह किसी ऐसे ऋण की वसूली नहीं कर सकता जिसे वसूलने का अधिकार नहीं प्राप्त है।
जिस प्रकार एक मालिक ऋण ले सकता है उसी प्रकार एक अभिकर्ता अपने मालिक की ओर से ऋण ले सकता है क्योंकि अभिकर्ता जब ऋण का संदाय कर सकता है तो उस ऋण को प्राप्त भी कर सकता है।
संविदा विधि के अंतर्गत इस प्रकार के ऋण को लेने का प्राधिकार अभिकर्ता को प्राप्त है। यह बात निसंदेह रूप में स्थापित है कि धारा 186 अभिकर्ता को ऋण की वसूली के लिए अधिकृत कर सकता है किंतु यह तभी किया जाएगा जबकि उक्त ऋण लेने की आवश्यकता हो और उक्त संव्यवहार समय के अनुसार आवश्यक हो।
बैंक ऑफ़ बंगाल बनाम रामनाथन चोटी एआईआर 1916 के प्रकरण में कौंसिल ने यह अभिनिर्धारित किया कि अभिकर्ता उसी ऋण के विषय में प्राधिकृत किया जाएगा जिसके संदर्भ में उसका वैसा किया जाना सामान्य परिस्थितियों के अनुसार यथोचित और साम्यपूर्ण हो जबकि मालिक अभिकर्ता को इस निमित्त अधिकृत करता है कि वह मालिक के लिए कोई ऋण आदि ले तो ऐसी स्थिति में उक्त अभिकर्ता मालिक के लिए ऋण लेगा। जहां कोई फार्म सामान्य साझेदारी में हो या और कुछ धनराशि की आवश्यकता पड़ी थी वहां यह अभिनिर्धारित किया गया कि फर्म के अधिकृत अभिकर्ता के लिए उधार ऋण की व्यवस्था कर सकते हैं।

