BSA 2023 की धारा 151 और 152 के अनुसार न्यायिक कार्यवाही के दौरान गवाहों से पूछे जाने वाले प्रश्नों की प्रासंगिकता
Himanshu Mishra
4 Sept 2024 6:14 PM IST
भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023, जो 1 जुलाई 2024 से लागू हुआ है, ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम (Indian Evidence Act) की जगह ली है। इस अधिनियम की धारा 151 और 152 न्यायिक कार्यवाही के दौरान गवाहों से पूछे जाने वाले प्रश्नों की प्रासंगिकता और उचितता सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन धाराओं का उद्देश्य गवाहों को अनुचित या असंवेदनशील प्रश्नों से बचाना है, जो बिना किसी उचित आधार के पूछे जाते हैं। इस लेख में, हम धारा 151 और 152 के प्रावधानों का विस्तार से विश्लेषण करेंगे, जिसमें दिए गए उदाहरणों (Illustrations) को सरल भाषा में समझाया जाएगा।
धारा 151: अनुचित प्रश्नों से सुरक्षा (Protection Against Improper Questions)
भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 की धारा 151 गवाहों को ऐसे अनुचित प्रश्नों से बचाने का प्रावधान करती है जो उनके चरित्र (Character) को नुकसान पहुंचाने या उनकी साख (Credibility) को कम करने के उद्देश्य से पूछे जाते हैं। यह धारा न्यायालय को यह अधिकार देती है कि वह यह तय करे कि क्या गवाह को ऐसे प्रश्नों का उत्तर देना चाहिए जो मामले से सीधे संबंधित नहीं हैं, बल्कि गवाह की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से पूछे गए हैं। अदालत को ऐसे प्रश्नों की अनुमति देने से पहले विभिन्न कारकों पर विचार करना चाहिए, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि पूछताछ निष्पक्ष और न्यायसंगत रहे।
उदाहरण के लिए, यदि किसी गवाह से उसके पिछले आपराधिक रिकॉर्ड के बारे में पूछा जाता है और यह सवाल वर्तमान मामले से संबंधित नहीं है, तो अदालत इस प्रश्न को अनुचित मान सकती है। अदालत यह भी देखेगी कि क्या यह प्रश्न समय में बहुत दूर है या क्या यह गवाह की गवाही के महत्व की तुलना में उसके चरित्र पर बहुत अधिक हमला करता है।
धारा 152: प्रश्न पूछने के लिए उचित आधार (Reasonable Grounds for Asking Certain Questions)
धारा 152, धारा 151 पर आधारित है और गवाह से पूछे जाने वाले प्रश्नों के प्रकार को और अधिक नियंत्रित करती है। धारा 152 के अनुसार, धारा 151 में वर्णित श्रेणी के किसी भी प्रश्न को तब तक नहीं पूछा जाना चाहिए जब तक कि प्रश्न पूछने वाले व्यक्ति के पास यह मानने के लिए उचित आधार न हो कि जो आरोप (Imputation) वह लगा रहा है, वह सही है। इसका मतलब है कि वकील बिना किसी ठोस आधार के गवाह से ऐसे प्रश्न नहीं पूछ सकते जो उनके चरित्र को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
धारा 152 यह सुनिश्चित करती है कि गवाहों को बिना आधार वाले या अनुमानित प्रश्नों का सामना न करना पड़े जो उनकी प्रतिष्ठा को अनुचित तरीके से धूमिल कर सकते हैं। इस धारा में कुछ उदाहरण (Illustrations) भी दिए गए हैं जो इसके व्यवहारिक अनुप्रयोग (Practical Application) को स्पष्ट करते हैं।
धारा 152 के अंतर्गत उदाहरण (Illustrations)
धारा 152 को समझाने के लिए कानून में चार विशेष उदाहरण दिए गए हैं:
उदाहरण (a):
एक वकील को दूसरे वकील द्वारा बताया गया है कि एक महत्वपूर्ण गवाह डाकू (Dacoit) है। यह गवाह से पूछने के लिए उचित आधार है कि क्या वह डाकू है।
व्याख्या (Explanation):
इस उदाहरण में, एक वकील को दूसरे वकील से गवाह के आपराधिक इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है। चूंकि यह जानकारी कानूनी पेशे में एक विश्वसनीय स्रोत से प्राप्त होती है, इसलिए वकील के पास गवाह से पूछताछ करने का उचित आधार है। कानून मानता है कि ऐसी पूछताछ न्यायसंगत है क्योंकि वकील के पास इस आरोप को सच मानने का उचित कारण है।
उदाहरण (b):
एक वकील को अदालत में एक व्यक्ति द्वारा बताया गया है कि एक महत्वपूर्ण गवाह डाकू है। जब वकील उस व्यक्ति से पूछता है, तो वह अपने बयान के लिए संतोषजनक कारण बताता है। यह गवाह से पूछने के लिए उचित आधार है कि क्या वह डाकू है।
व्याख्या (Explanation):
यहाँ, वकील को अदालत में उपस्थित एक व्यक्ति से जानकारी मिलती है। जब वकील इस व्यक्ति से और पूछताछ करता है, तो वह अपने दावे के लिए संतोषजनक कारण प्रदान करता है कि गवाह डाकू है। अब वकील के पास यह मानने के लिए पर्याप्त कारण हैं कि यह आरोप सही हो सकता है, और वह गवाह से इस बारे में पूछताछ करने के लिए उचित आधार रखता है। मुख्य बिंदु यह है कि जानकारी देने वाले के कारण इतने मजबूत थे कि उन्होंने वकील के मन में उचित संदेह उत्पन्न कर दिया।
उदाहरण (c):
एक गवाह, जिसके बारे में कुछ भी ज्ञात नहीं है, से बिना किसी आधार के पूछा जाता है कि क्या वह डाकू है। यहाँ इस प्रश्न के लिए कोई उचित आधार नहीं है।
व्याख्या (Explanation):
इस उदाहरण में, वकील गवाह के बारे में कुछ नहीं जानता और बिना किसी पूर्व जानकारी या आधार के उससे पूछता है कि क्या वह डाकू है। कानून इस प्रश्न को अनुचित और गलत मानता है। बिना किसी संदेह या आधार के गवाह से पूछे गए इस प्रश्न का कोई उद्देश्य नहीं है, सिवाय इसके कि उसे परेशान या भयभीत किया जाए, जिससे यह धारा 152 के तहत अस्वीकार्य हो जाता है।
उदाहरण (d):
एक गवाह, जिसके बारे में कुछ भी ज्ञात नहीं है, से उसकी जीवन शैली और आजीविका के साधनों के बारे में पूछताछ की जाती है। वह असंतोषजनक उत्तर देता है। यह उसे पूछने के लिए उचित आधार हो सकता है कि क्या वह डाकू है।
व्याख्या (Explanation):
इस मामले में, वकील को प्रारंभ में गवाह के बारे में कुछ भी ज्ञात नहीं होता है। हालांकि, गवाह से उसकी जीवनशैली और आजीविका के साधनों के बारे में पूछताछ के दौरान, वह अस्पष्ट या संदिग्ध उत्तर देता है। ये असंतोषजनक उत्तर गवाह के अवैध गतिविधियों में शामिल होने का संदेह उत्पन्न कर सकते हैं, जैसे कि वह डाकू हो सकता है। वकील को तब गवाह के आपराधिक संलिप्तता के बारे में पूछने का उचित आधार मिलता है क्योंकि गवाह के अपने उत्तर ने संदेह पैदा किया है।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 की धारा 151 और 152 का उद्देश्य गवाहों को अनुचित प्रश्नों से बचाना है, जबकि यह सुनिश्चित करना भी है कि प्रासंगिक और सही आधार वाले प्रश्नों को अदालत में अनुमति दी जाए। धारा 151 न्यायालय को यह अधिकार देती है कि वह तय करे कि क्या कुछ प्रश्न गवाह की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने वाले हैं, और धारा 152 यह सुनिश्चित करती है कि किसी भी ऐसे प्रश्न के लिए उचित आधार होना चाहिए।
धारा 152 में दिए गए उदाहरण यह स्पष्ट करते हैं कि कब एक प्रश्न उपयुक्त है और कब वह अनुचित या परेशान करने वाला हो सकता है। इन धाराओं को सही ढंग से समझकर और लागू करके, कानूनी पेशेवर यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि गवाहों के अधिकारों की रक्षा हो, साथ ही न्यायिक प्रक्रिया (Judicial Process) की निष्पक्षता और ईमानदारी भी बनी रहे।