राजस्थान न्यायालय शुल्क अधिनियम 1961 की धारा 59 और 60 के अंतर्गत दंड और शुल्क की वसूली तथा राजस्व बोर्ड की भूमिका
Himanshu Mishra
10 May 2025 5:13 PM IST

राजस्थान न्यायालय शुल्क एवं वाद मूल्यांकन अधिनियम, 1961 में यह सुनिश्चित किया गया है कि मृतक व्यक्ति की संपत्ति पर जब उत्तराधिकारी को प्रॉबेट या प्रशासन-पत्र (Letters of Administration) दिया जाता है, तो उस पर उचित न्यायालय शुल्क लगे। अगर किसी कारणवश कम शुल्क अदा किया गया हो, जानबूझकर या गलती से, तो इस अधिनियम में ऐसे मामलों से निपटने के लिए सुस्पष्ट प्रावधान दिए गए हैं। धारा 59 और 60 इसी विषय से संबंधित हैं।
धारा 59 – दंड व अन्य राशि की वसूली का प्रावधान
यह धारा इस बात को सुनिश्चित करती है कि यदि किसी आवेदनकर्ता, निष्पादक (executor) या प्रशासक (administrator) द्वारा कम शुल्क जमा किया गया है या उस पर कोई दंड या ज़ुर्माना (penalty/forfeiture) लगाया गया है, तो उसे किस प्रकार वसूला जाएगा।
इस धारा के अनुसार, यदि बोर्ड ऑफ रेवेन्यू (राजस्व मंडल) यह प्रमाण पत्र दे देता है कि कोई अतिरिक्त शुल्क, लागत (जैसे धारा 55(4) के अंतर्गत हुई जांच की लागत) या दंड वसूल किया जाना है, तो उसे भूमि राजस्व (land revenue) की तरह वसूला जाएगा। इसका अर्थ यह है कि जैसे सरकार बकाया जमीन का राजस्व वसूलती है, वैसे ही यह राशि भी वसूली जा सकती है।
संबंधित पूर्व धाराएं और प्रक्रिया
इस धारा को समझने के लिए हमें पहले कुछ महत्वपूर्ण धाराओं को भी देखना चाहिए:
धारा 54: यह धारा कलेक्टर को यह अधिकार देती है कि वह दिए गए मूल्यांकन की सच्चाई की जांच कर सके। अगर उसे लगे कि संपत्ति की सही कीमत कम बताई गई है, तो वह आवेदनकर्ता से संशोधित मूल्यांकन मांग सकता है।
धारा 55: यदि कलेक्टर को यह संतोष न हो कि संपत्ति की कीमत सही बताई गई है, तो वह न्यायालय में जांच करवाने के लिए आवेदन कर सकता है। इसके तहत न्यायालय एक रिपोर्ट तैयार करता है और वास्तविक मूल्यांकन दर्ज करता है।
धारा 56: इस धारा में बताया गया है कि यदि कम शुल्क गलती से या जानकारी के अभाव में जमा किया गया है, तो किस प्रकार उसे दुरुस्त किया जा सकता है और यदि ऐसा नहीं किया गया तो कितना दंड लगेगा।
उदाहरण: मान लीजिए, किसी मृतक की संपत्ति का मूल्य एक करोड़ रुपए था, लेकिन उसके उत्तराधिकारी ने केवल 50 लाख का मूल्यांकन दिया और शुल्क उसी आधार पर जमा किया। यदि जांच के बाद पता चलता है कि असल संपत्ति का मूल्य एक करोड़ है, तो बचे हुए 50 लाख पर लगने वाला शुल्क और उस पर ज़ुर्माना वसूला जाएगा। यदि न्यायालय जांच में यह साबित कर दे कि यह जानबूझकर किया गया कृत्य नहीं था, तब भी शेष शुल्क अदा करना होगा। यदि यह कृत्य जानबूझकर किया गया था, तो दंड के रूप में पांच गुना राशि तक भी वसूली जा सकती है।
अब यदि बोर्ड ऑफ रेवेन्यू इस विषय पर प्रमाण पत्र जारी कर दे कि कितनी अतिरिक्त राशि वसूली जानी है, तो यह राशि ऐसे वसूली जाएगी जैसे किसी किसान से बकाया भूमि कर वसूला जाता है। इसमें ज़मीन या संपत्ति की कुर्की की प्रक्रिया भी अपनाई जा सकती है।
धारा 60 – कलेक्टर की शक्तियों पर बोर्ड ऑफ रेवेन्यू का नियंत्रण
इस धारा में यह प्रावधान है कि इस अध्याय के अंतर्गत कलेक्टर को जो भी शक्तियाँ और कर्तव्य सौंपे गए हैं, वे सभी राजस्व मंडल (Board of Revenue) के नियंत्रण में होंगे। इसका अर्थ यह है कि कलेक्टर द्वारा लिया गया कोई भी निर्णय या कार्यवाही पूरी तरह से बोर्ड ऑफ रेवेन्यू की निगरानी और निर्देशन में होती है।
धारा 60 का व्यावहारिक महत्व
यह धारा यह सुनिश्चित करती है कि कोई भी कलेक्टर अपनी मर्जी से या पक्षपातपूर्वक निर्णय न ले सके। हर निर्णय और कार्यवाही की समीक्षा और निर्देशन राजस्व मंडल कर सकता है। यदि किसी आवेदक को कलेक्टर द्वारा शुल्क संबंधी निर्णय या दंड पर आपत्ति हो, तो वह बोर्ड ऑफ रेवेन्यू में अपील कर सकता है।
एक अन्य उदाहरण
मान लीजिए किसी व्यक्ति ने मृतक की संपत्ति का गलत मूल्यांकन जानबूझकर किया और शुल्क बचा लिया। जांच के बाद कलेक्टर ने अतिरिक्त शुल्क और दंड लगाने का निर्णय लिया। यदि वह व्यक्ति इस निर्णय से असंतुष्ट है, तो वह बोर्ड ऑफ रेवेन्यू में अपील कर सकता है। राजस्व मंडल यह जांच करेगा कि क्या कलेक्टर का निर्णय न्यायसंगत है या नहीं। यदि वह पाता है कि कलेक्टर ने मनमाने ढंग से कार्य किया, तो वह निर्णय पलट भी सकता है।
धारा 59 और 60 राजस्थान न्यायालय शुल्क एवं वाद मूल्यांकन अधिनियम, 1961 के प्रशासनिक और न्यायिक अनुपालन का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। ये धाराएं सुनिश्चित करती हैं कि प्रॉबेट और प्रशासन-पत्र पर सही शुल्क लगे, और किसी प्रकार की गड़बड़ी, जानबूझकर या अनजाने में की गई, को सुधारा जा सके। इन धाराओं के माध्यम से कलेक्टर और राजस्व मंडल दोनों की भूमिका स्पष्ट रूप से तय की गई है।
इन धाराओं की वजह से पूरा शुल्क संग्रहण तंत्र पारदर्शी और उत्तरदायित्वपूर्ण बनता है। साथ ही, इससे सरकार को राजस्व की क्षति से भी बचाया जाता है और आम नागरिकों को यह संदेश जाता है कि कानून के अनुसार सच्चाई और पारदर्शिता से कार्य करना आवश्यक है।