कानून के किस फंदे में फंसे हैं राज कुंद्रा और भारत में अश्लीलता पर क्या कहता है कानून?

Shadab Salim

29 July 2021 4:52 PM GMT

  • कानून के किस फंदे में फंसे हैं राज कुंद्रा और भारत में अश्लीलता पर क्या कहता है कानून?

    राज कुंद्रा पोर्नोग्राफी मामला ज़ोर पर है। अश्लीलता को भारत में अपराध माना गया है और अश्लीलता के ख़िलाफ़ भारत में ज्यादा कठोर तो नहीं फिर भी सज़ा दिए जाने जितना कानून तो मौजूद ही है।

    आइए जानते हैं अश्लीलता से जुड़ा भारत का कानून-

    अश्लीलता- भारत की गुनाहों की किताब आई पी सी की धारा 292 अश्लीलता शब्द का मतलब बताती है। इस दफ़ा में अश्लीलता उसे माना गया है जिसमे कुछ ऐसा हो जिससे लोगों की सेक्स को लेकर भावना भड़क जाए या फिर जिसे देखकर सेक्स करने का मन करने लगे।

    अगर कुछ भी ऐसा किसी किताब में, किसी अखबार में, किसी आकार में, किसी कैनवास पर, या किसी फ़ोटो में किसी वीडियो में होता है तो वह अश्लीलता माना जाएगा। ऐसी अश्लीलता शब्दों में भी हो सकती है और फ़ोटो में भी हो सकती है यहां तक किसी मूर्ति में भी हो सकती है। सीधी बात यह है कि भारत में सेक्स को लेकर किसी में इच्छा पैदा करना अश्लीलता है और आई पी सी में ऐसा माना गया है कि ऐसी इच्छा पैदा करने से व्यक्ति भ्रष्ट और दुराचारी होता है।

    इस धारा में कुछ चीज़ों को अश्लीलता से छूट दी गई है। अगर कोई ऐसा काम किसी धर्म से जुड़ा है, किसी विज्ञान से जुड़ा है और किसी कला से जुड़ा है तो उसे अश्लील नहीं माना जाता है। इसलिए राज कुंद्रा बार बार कह रहे हैं कि हमने तो एरोटिक बनाया है मतलब की हमने तो कला बनाई है, इसलिए खजुराहो की मूर्तियों को अब तक अश्लील नहीं माना गया है क्योंकि उन्हें इस धारा में छूट मिली हुई है और इसलिए क्राइम पेट्रोल पर भी कार्यवाही नहीं होती है क्योंकि उनका मक़सद लोगों की अवेयरनेस बढ़ाना है।

    ऐसी कोई अश्लील चीज़ का धंधा करना या उसे विदेशों में खरीदना बेचना और यहाँ तक अपने कब्ज़े में रखना भी गुनाह है। इसलिए यह धारा अश्लील कैसेट किराए पर चलाने वालों पर भी लग जाया करती थी और ज्यादातर तो उन्हीं पर लगती थी या फिर अमूमन स्टेशन पर नंगी किताबे बेचने वालों पर भी लग जाती थी पर अब वह दिन लद गए क्योंकि उनका ज़माना चला गया।

    ऐसी अश्लील चीज़ को इधर से उधर एक दूसरे को भेजना भी अपराध है मतलब कोई व्हाट्सएप से किसी को कोई ऐसी चीज़ भेजता है तो उसने भी इस दफा 292 में गुनाह किया है।

    पहली बार यह अपराध करने पर दो साल तक कि सज़ा हो सकती है फिर दूसरी बार फिर यही हरकत करने पर पांच साल तक की सजा सुनाई जा सकती है और पांच हजार का जुर्माना भी किया जा सकता है।

    इसके साथ ही बच्चों को ऐसी चीज़ बेचने पर अलग से दंड की इंतज़ाम है। आमतौर पर पुलिस छोटे मोटे लड़ाई झगड़े में जो धारा लगाती है उसके साथ अश्लीलता की भी एक धारा लगाई जाती है।

    धारा 292 के साथ ही धारा 294 भी है जो शब्दों को बोलने से जुड़ी है। लड़ाई झगड़े में गाली देने पर यह धारा लग जाती है क्योंकि गाली में भी यही गंदे शब्द होते हैं हालांकि यह धारा छोटी है और इसमे सिर्फ तीन महीने तक की सज़ा का ही ज़िक्र है।

    लेखक और फिल्मकारों तथा चित्रकारों पर इस धारा का प्रयोग किया जाता रहा है। समय-समय पर इस प्रकार के लेख चित्र तथा फिल्में देखने को मिलती है जो अश्लीलता का प्रचार करती हैं। समरेश बोस के प्रकरण में एक सुप्रसिद्ध लेखक ने समाज में व्याप्त बुराइयों को प्रकट करने के लिए उपन्यास लिखा। उपन्यास कामुकता पर प्रकाश डाल रहा था। अपभाषा का प्रयोग किया गया था।

    उच्चतम न्यायालय ने इस प्रकरण में अश्लीलता नहीं माना और कहा कि अशिष्ट लेखन अश्लील ही हो आवश्यक नहीं है, समाज में व्याप्त बुराइयों का प्रकटीकरण अश्लील नहीं कहा जा सकता।

    उर्दू के मशहूर लेखक सआदत हसन मंटो पर भी धारा 292 के अंतर्गत प्रकरण चलाया गया था। इस प्रकरण में उनके द्वारा लिखी गई कहानी ठंडा गोश्त को अश्लीलता के आरोप लगाए गए थे हालांकि न्यायालय द्वारा सहादत हसन मंटो को अश्लीलता का आरोपी नहीं माना गया।

    भारत के प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता राज कपूर भी इस प्रकरण में आरोपी रह चुके हैं। राज कपूर बनाम लक्ष्मण का मामला रहा है। इस मामले में सत्यम शिवम सुंदरम फिल्म को अश्लील बताते हुए चुनौती दी गई थी। न्यायालय ने इसे यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि फिल्म का प्रदर्शन विधि द्वारा समनुदेशन होने से इस धारा के प्रतिबंध उस पर लागू नहीं होंगे।

    प्रसिद्ध चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन पर भी इस धारा के अंतर्गत प्रकरण चलाया गया था। गीता बनाम स्टेट ऑफ़ हिमाचल प्रदेश के मामले में अश्लील फिल्म पोर्न पिक्चर के प्रदर्शन को गंभीर अपराध मानते हुए परिवीक्षा का लाभ नहीं दी जाने की अनुशंसा की गई चाहे अभियुक्त का वह पहला अपराध ही क्यों न हो।

    20 वर्ष से कम आयु के किसी तरुण व्यक्ति को अश्लील वस्तुओं को विक्रय करना भारतीय दंड सहिंता की धारा 293 के अंतर्गत दंडनीय अपराध है इस प्रकार का अपराध इस धारा के अनुसार 3 वर्ष के कारावास से दंडित है।

    किसी महिला की मर्ज़ी के बगैर उसको ऐसा अश्लील दिखाना-

    अश्लीलता तो अपराध है ही पर अगर किसी महिला को उसकी मर्ज़ी के बगैर ऐसा अश्लील दिखाया तो वह इससे बड़ा अपराध है। इसका इंतज़ाम आई पी सी की धारा 354 (सी) में भी मिलता है।

    हालांकि यह धारा किसी महिला को नहाते हुए या कपड़े बदलते हुए देखने पर या उसका फ़ोटो लेने पर लगती है पर राज कुंद्रा वाले मामले में उन पर लग सकती है क्योंकि उन पर आरोप है कि उन्होंने किसी लड़की को कला फ़िल्म बनाने का कह कर सौदा किया और चुपके से गंदी फ़िल्म बना दी मतलब उस महिला के गंदे फ़ोटो और वीडियो बना लिए।

    इस धारा में पहली बार गुनाह करने पर कम से कम एक साल की सज़ा है और ज्यादा से ज्यादा तीन साल की सज़ा है। दूसरी बार फिर यही गुनाह करने पर सात साल तक की सज़ा हो सकती है।

    आई टी (इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट) एक्ट की धारा 67 (ए)- इस कानून में भी ऐसी गंदी चीज़ों को एक दूसरे को सोशल साइट्स पर भेजने पर सज़ा की व्यवस्था है। यह अभी ज्यादा समय पुराना कानून नहीं है। इस धारा के हिसाब से अपराधी को सात साल तक की सज़ा हो सकती है और 10 लाख रुपए तक का जुर्माना भी हो सकता है।

    लज्जा भंग करना- इंडियन पीनल कोड की धारा 509 किसी महिला की लज्जा भंग करने पर लगती है। मतलब किसी महिला का कोई फ़ोटो खींच कर कहीं दूसरे लोगों को बताना या फिर भारी भीड़ में किसी महिला को नंगी नंगी बाते बोलने या लिखने पर भी यह धारा लग जाती है। इस धारा में भी तीन साल तक की जेल का हुक्म है। राज कुंद्रा के मामले में उन पर आरोप है कि चुपके से नंगी फ़िल्म बनाई है इसलिए यह धारा भी लगाई गई है।

    पांडुरंग सीताराम भागवत बनाम स्टेट ऑफ महाराष्ट्र एआईआर 2005 उच्चतम न्यायालय 643 के मामले में किसी स्त्री को पीछे से अपनी बाहों में जकड़ लेना तथा उसकी छाती दबाने को उच्चतम न्यायालय ने स्त्री की लज्जा भंग माना है।

    न्यायालय ने कहा है कि स्त्री की लज्जा भंग का मामला अक्सर मिथ्या नहीं होता क्योंकि सामान्य तौर पर कोई भी महिला अपने चरित्र को दांव पर नहीं लगाना चाहती। कोई भी महिला पुलिस थाने तक तब ही जाती है जब उसके साथ कोई प्रतिष्ठा और गरिमा से संबंधित कोई बड़ी घटना घट जाती है।

    आईपीसी की धारा 354 के अंतर्गत स्त्री की लज्जा भंग के अपराध के गठन के लिए अभियुक्त को यह जानकारी होना मात्र पर्याप्त है कि उसके कृत्य से स्त्री की लज्जा भंग होना संभव है। आशय होना सदैव आवश्यक नहीं है और न यह ही इसका एकमात्र मापदंड है। कोई भी ऐसा कृत्य जिससे यह संभव है कि स्त्री की लज्जा भंग होगी वहां धारा 354 के अंतर्गत अपराध का गठन कर देता है।

    किसी महिला को खींचना और उसके साथ लैंगिक संभोग करने के आशय से कपड़े उतार देना स्त्री की लज्जा भंग का अपराध है। अमन कुमार बनाम स्टेट ऑफ हरियाणा एआईआर 2004 उच्चतम न्यायालय 1497।

    किसी महिला की छाती से उसका दुपट्टा या साड़ी हटा देना भी लज्जा भंग का मामला माना जाएगा।

    कानून की यह धाराएं ज्यादा कठोर नहीं होती है क्योंकि सज़ा कम कम है और केवल आई टी एक्ट की धारा ही सात साल तक की सज़ा दे रही है और साथ में दस लाख रुपए का जुर्माना भी। पर राज कुंद्रा के मामले में धोखाधड़ी भी है इसलिए 420 भी बन ही जाती है।

    धोखा देना एक आपराधिक कृत्य है और कई अन्य अपराधों से जुड़ा हुआ है जैसे कि धोखाधड़ी और चेक का अनादर, अनुबंध के उल्लंघन के माध्यम से धोखा, धोखाधड़ी के उद्देश्य के लिए किसी भी मूल्यवान दस्तावेज की जालसाजी आदि, यह लाभ प्राप्त करने के लिए एक बेईमान कार्य है।

    दूसरे व्यक्ति या किसी व्यक्ति को नुकसान पहुंचाने के लिए। जब कोई व्यक्ति धोखा देता है और इस तरह बेईमानी से किसी व्यक्ति को किसी अन्य व्यक्ति को संपत्ति देने के लिए प्रेरित करता है, तो ऐसे व्यक्ति को दूसरे को प्रेरित करना भारतीय दंड संहिता की धारा 420 के तहत कानूनी रूप से जिम्मेदार है।

    इस मामले में धोखाधड़ी इसलिए है क्योंकि कला बोलकर गंदी फ़िल्म शूट कर लेने का आरोप है इसलिए उन पर मामला संगीन बन गया है और जल्दी जमानत होना थोड़ा सा कठिन हो गया है।

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