POCSO Act में Vulgar Literature में बच्चों का इस्तेमाल करने पर दंड
Shadab Salim
30 Oct 2025 10:12 AM IST

Vulgar Literature में बच्चों के इस्तेमाल को इस एक्ट की धारा 13 में अपराध घोषित किया गया है और धारा 14 में दंड का उल्लेख किया गया है। धारा 14 के अनुसार-
(1) जो कोई अश्लील प्रयोजनों के लिए किसी बालक या बालकों का उपयोग करेगा, वह ऐसे कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष से कम की नहीं होगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा तथा दूसरे या पश्चातुवती दोषसिद्धि की दशा में ऐसे कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष से कम की नहीं होगी. दण्डित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा।
(2) जो कोई उपधारा (1) के अधीन अश्लील प्रयोजनों के लिए किसी बालक या बालकों का उपयोग करके ऐसे अश्लील कृत्यों में प्रत्यक्ष रूप से भाग लेकर, धारा 3 या धारा 5 या धारा 7 या धारा 9 में निर्दिष्ट कोई अपराध करेगा, वह उक्त अपराधों के लिए उपधारा (1) में उपबंधित दण्ड के अतिरिक्त क्रमशः धारा 4, धारा 6 धारा 8 और धारा 10 के अधीन भी दण्डित किया जाएगा।
बालकों को सम्मिलित करने वाली अश्लील सामग्री के भंडारकरण के लिए दण्ड (1) कोई भी व्यक्ति, जो बालक सम्बन्धी अश्लील साहित्य को साझा या पारेषित करने के आशय से किसी बालक को सम्मिलित करने वाली अश्लील सामग्री का किसी भी रूप में भंडारकरण करता है या रखता है, किन्तु उसे मिटाने या नष्ट करने या ऐसे अभिहित प्राधिकारी को, जो विहित किया जाए, रिपोर्ट करने में असफल होता है, वह पांच हजार रुपये से अन्यून के जुर्माने से और दूसरे या पश्चात्वर्ती अपराध की दशा में ऐसे जुर्माने से, जो दस हजार रुपये से कम का नहीं होगा, दायी होगा।
(2) कोई भी व्यक्ति, जो किसी बालक को सम्मिलित करने वाली अश्लील सामग्री का रिपोर्टिंग के ऐसे प्रयोजन के सिवाय, जो विहित किया जाए, किसी भी समय, किसी भी रीति में पारेषण या प्रदर्शन या प्रचार या वितरण करता है या कोर्ट में उसका साक्ष्य के रूप में उपयोग करता है, वह किसी भी भांति के कारावास से, जो तीन वर्ष तक का हो सकेगा, या जुर्माने से या दोनों से दण्डित किया जाएगा।
(3) कोई भी व्यक्ति, जो किसी बालक को सम्मिलित करने वाली अश्लील सामग्री का किसी सभी रूप में वाणिज्यिक प्रयोजन के लिए भंडारकरण करता है या रखता है, वह पहली दोषसिद्धि पर किसी भी भांति के कारावास से, जो तीन वर्ष से कम नहीं होगा, किन्तु जो पाँच वर्ष तक का हो सकेगा या जुर्माने से या दोनों से दण्डित किया जाएगा और दूसरी और पश्चातवर्ती दोषसिद्धि की दशा में किसी भी भांति के कारावास से जो पांच वर्ष से कम नहीं होगा, किन्तु जो सात वर्ष तक का हो सकेगा, से दण्डित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा।
गोलापी बीबी बनाम असम राज्य, 2004 के मामले में जहाँ पर साक्ष्य के द्वारा यह दर्शाया गया हो कि पीड़िता अवयस्क लड़की किसी उत्प्रेरणा अथवा प्रभाव के बिना मात्र अभियुक्त के साथ थी। अभियुक्तों की ओर से पीड़िता को उसके घर से ले जाने के लिए कोई उत्प्रेरणा नहीं थी। अभियुक्तगण उसे धारा 366-क उल्लिखित कोई कृत्य करने के लिए उत्प्रेरित नहीं किए थे। यह अभिनिर्धारित किया गया था कि धारा 366- क के अधीन अपराध नहीं बनता था, क्योंकि साक्षियों के अभिसाक्ष्य के आधार पर धारा 366- क में यथा अनुचिन्तित उत्प्रेरणा का अभाव पाया गया था।
बिकाश दास उर्फ रणधीर दास बनाम त्रिपुरा राज्य, 2009 क्रिलॉज के मामले में अभिलेख पर यह उपधारणा करने के लिए प्रथम दृष्टया मामले का अस्तित्व इंगित करने के लिए कोई सामग्री नहीं थी कि अभियुक्त ने भारतीय दण्ड संहिता की धारा 366- क के अधीन अपराध कारित किया था। अवयस्क लडकी को विधिपूर्ण संरक्षक की अभिरक्षा से ले जाना स्वयं भारतीय दण्ड संहिता की धारा 366- क के अधीन अपराध कारित करने की कोटि में नहीं आता है, यदि ऐसा ले जाना किसी स्थान से इस आशय के साथ उत्प्रेरणा के द्वारा अग्रसर न हो कि ऐसी लड़की के साथ किसी अन्य व्यक्ति के द्वारा अवैध समागम किया जा सकता है अथवा यह जानते हुए अग्रसर न हो कि ऐसी लड़की का किसी अन्य व्यक्ति के साथ अवैध समागम के लिए विवश अथवा विलुब्ध किया जाना संभाव्य है।
उत्प्रेरणा अथवा किसी अन्य व्यक्ति के साथ अवैध समागम के लिए विलुब्ध करने के आशय का आवश्यक तत्व वर्तमान मामले में बिल्कुल उपलब्ध नहीं है। इसलिए विद्वान सत्र न्यायाधीश भारतीय दण्ड संहिता की धारा 366- क के अधीन आरोप विरचित करने को निश्चित करते समय भारतीय दण्ड संहिता की धारा 366-के के प्रावधान पर अपने मस्तिष्क का प्रयोग करने में विफल हुआ था।
कुबेर चन्द्र दास बनाम बिहार राज्य, 2004 क्रि लॉ ज के मामले में पीड़िता की आयु का सबूत जहाँ पर प्रथम सूचना रिपोर्ट में कथित आयु का सबूत यह था कि पीड़िता इत्तिलाकत्री 17 वर्ष की थी। मुख्य साधन, जो किसी व्यक्ति को विशेष रूप में पहले के समय में किसी व्यक्ति की आयु के बारे में स्पष्ट रूप में शुद्ध राय बनाने के लिए समर्थ बनाती थी, दांत और अस्थियों का अस्थि परीक्षण था। दांत की संख्या और स्थिति का उल्लेख करते हुए दांत से आयु का आकलन समाप्त हो गया और निश्चितता की कुछ मात्रा के साथ एक्स-रे जांच केवल 17 और 20 वर्ष की आयु तक ही संभाव्य थी।
चिकित्सा विधिशास्त्र और विष विज्ञान के साथ चवर्णक दांत 17वें और 25वें वर्ष के बीच की आयु समूह में समाप्त हो जाते हैं, क्योंकि इत्तिलाकत्री के सभी मूल दांत समाप्त हो गये थे और इसके कारण पीड़िता / इत्तिलाकत्री को निश्चित रूप में 17 वर्ष से कम आयु की न होना, परन्तु 18 वर्ष से अधिक आयु की होना अभिनिर्धारित किया गया था।

